भारत का फर्जी इतिहास-1, फर्जीवाड़ा खोला तो 84वर्षीय स्वामी प्रकाशानंद को बनाया रेपिस्ट

फर्जी इतिहासकार-1

विचित्र भारतीय इतिहासकार, जो संस्कृत नहीं जानते लेकिन प्राचीन इतिहास लिख देते हैं।
वैदिक भाषा नहीं जानते लेकिन आर्य आगमन पर दृढ़ हैं।
पशुपति कह देंगे लेकिन उसे शिव कहते ही चिढ़ जाते हैं।
अरबी, फ़ारसी और हिब्रू नहीं जानते लेकिन एक स्वर से कुरान को सही सही व्याख्या कर लेते हैं।
आईने अकबरी और फतवा आलमगीरी नहीं पढ़ी लेकिन मुगल हिस्ट्री के मास्टर हैं।
12 राशियों, नक्षत्रों और खगोलीय पिंडों के नाम जानते हैं लेकिन गणना को समझना नहीं चाहते।

इनके कुछ विचित्र निष्कर्ष-

1.प्राचीन मुद्रा देखते ही किसी राजा के पूरे वंश तथा कालक्रम का पता चलता है, भले ही उस राजा को पता न रहा हो।

2.पुराने से पुराना मन्दिर और पुरानी ईंट मिलते ही वह गुप्त काल की हो जाती है।

3.सिन्धु घाटी के खिलौनों को लिपि मान कर उसे कम से कम १५ प्रकार से पढ़ा जा चुका है। और पढ़ते पढ़ते गलती से भी कोई पौराणिक या वैदिक प्रतीक से संगति बैठे तो तुरंत यह पढ़ी नहीं जा सकती की घोषणा की जाती है।

4.सिंधु घाटी में प्राप्त अश्व की आकृति को घोड़ा नहीं माना जायेगा, अन्य चाहे जो पशु मान सकते हैं।

5. विश्व की सभी स्क्रिप्ट पढ़ समझ ली केवल मुद्रित वेद पुराण पढ़ने में कठिनाई होती है।

6.भारत के हर गाँव में पञ्चाङ्ग देखने तथा पालन करने वाले हैं। किन्तु भारत के इतिहासकारों ने अभी तक शक या संवत्सर का नाम नहीं सुना है।

7.इतिहासकारों के अनुसार ग्रीक इतिहासकारों को पता था कि सिकन्दर आक्रमण के ३२६ वर्ष बाद इस्वी सन आरम्भ होने वाला है! जाsss दू ss…!

8.वराहमिहिर भी अपनी मृत्यु के ८३ वर्ष बाद आरम्भ हुए शालिवाहन शक का प्रयोग कर रहे थे।😊😊😊

9. हर ज्योतिष सम्मेलन में कहा जाता है कि ज्योतिष कालविधान शास्त्र है। पर काल निर्णय के लिए ज्योतिषी उन अशिक्षित इतिहासकारों की नकल करते हैं जिन्होने अभी तक संवत्सर का नाम नहीं सुना है।

10. युधिष्ठिर, शूद्रक, श्रीहर्ष, शालिवाहन, चेदि, आदि सभी के वर्षों को शक कहा गया है। पर शक वर्ष को शक जाति से जोड़ दिया गया है।

11.शालिवाहन शक को कुषाण जाति का बना कर उसका राजा कनिष्क को कर दिया जो कश्मीर में १२९२-१२७२ ईपू में शासक था (राजतरंगिणी, तरंग १)

12.अंग्रेजों के उपदेश के अनुसार ये सभी कल्पनायें सच हैं, पर भारत के सभी इतिहास, पुराण, रामायण, महाभारत, राजतरंगिणी आदि झूठे हैं।

13.भारत से बाहर २००० वर्ष से पुराना कोई कैलेण्डर नहीं है, पर वहाँ के लेखक ७००० वर्ष पुरानी तिथि देते थे (मेगास्थनीज)।

14.भारत में पिछले ३१,००० वर्षों से कैलेण्डर चल रहे है। यदि भारतीय तिथि नहीं देते थे तो कैलेण्डर क्यों बने थे? (मने इनको समझ में नहीं आया मतलब किसी को नहीं आया!)

15. वराहमिहिर की जन्म तिथि दिखाने पर एक स्वर से विरोध हुआ कि उन्होंने अपनी मृत्यु तिथि क्यों नहीं दी?

भारतीय इतिहास में ब्रिटेन की जालसाजी

१. बेरोसस (सुमेरिया, ३०० ईपू.)-हेरोडोटस आदि ग्रीक लोगों को अपने इतिहास का पता नहीं है। वे ग्रीस की प्रशंसा में झूठी कहानियां लिखते रहते हैं। असीरिया के बारे में भी लिखा कि नबोनासर (लवणासुर) ने अपने पूर्व के सभी अवशेष नष्ट कर दिये थे जिससे लोग उसी को प्रथम महान् राजा समझें।
२. अल बरुनी-प्राचीन देशों की कालगणना (English translation-Chronology of Ancient Nations-page 44)-शत्रु सदा अपने पक्ष की गलती तथा अपराधों को छिपाते हैं तथा अपनी प्रशंसा करते हैं। मित्र को दोष नहीं दीखता, घृणा में केवल पाप दीखता है।
३. अंग्रेजी शासन के आरम्भ में बंगाल के २ जज विलियम जोन्स तथा एरिक पार्जिटर ने लगान वसूली के लिये बर्बर अत्याचार कर १ करोड़ लोगों की हत्या न्याय के नाम पर करवायी तथा पुराणों को तथा इतिहास को विकृत किया। उनकी क्रूर हत्या का वर्णन बंकिम चन्द्र चटर्जी के आनन्द मठ उपन्यास में है तथा ब्रिटिश संसद को दी गयी रिपोर्ट में भी है।
४. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में १८३१ ई. में बोडेन पीठ की स्थापना की गयी जिसका लिखित उद्देश्य था-भारत का झूठा इतिहास लिख कर वैदिक सभ्यता को नष्ट कर इसाइयत का प्रचार करें। इसके लिए मैक्समूलर, म्यूर, मैकडोनेल, कीथ, वेबर आदि ने तथा उनके शिष्यों राधाकृष्णन् आदि ने बहुत काम किया।

अंग्रेजों की जालसाजियों का सारांश स्वामी प्रकाशानन्द की पुस्तक में है-

इस पुस्तक का प्रकाशन होते ही स्वामी प्रकाशानन्द सरस्वती पर ८४ वर्ष की आयु में मिशनरियों ने उन पर बलात्कार का केस किया। पर उस केस के पूरा होने के पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी। आचार्य रजनीश पर भी नया बाइबिल लिखने के कारण जेल में डाला गया था।

जारी है……

✍🏻अरुण उपाध्याय की पोस्टों से संग्रहीत

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