इतिहास: विभाजन में लाखों की हत्या, महिलाओं का मानमर्दन और कांग्रेस की भूमिका
✳️ वो पन्द्रह दिन- 1अगस्त से 15 अगस्त के मध्य में नेताओं की कथनी और करनी क्या थी यह बताया गया है। पुस्तक लिखने में इंग्लिश की 35, हिन्दी की 10 व मराठी की 7 पुस्तकों का प्रयोग किया गया है।
पुस्तक के कुछ अंश-
5 अगस्त –
रावलपिंडी में शरणार्थी शिविर में गांधी जी पहुंचे। भीड़ में से 2 सिक्ख खड़े हुए। उनका कहना था, “यह शिविर तत्काल पूर्वी पंजाब में स्थानांतरित किया जाए क्योंकि 15 अगस्त के बाद यहाँ पाकिस्तान का शासन हो जाएगा पाकिस्तान का शासन, यानी मुस्लिम लीग का शासन । जब ब्रिटिशों के शासन में ही मुसलमानों ने हिंदुओं और सिखों के इतने सारे कत्ल-बलात्कार किए हैं तो जब उनका शासन आ जाएगा, तब हमारा क्या होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ”
” इस पर गांधीजी थोड़ा मुसकराए और अपनी धीमी आवाज में बोलने लगे, ‘आप लोगों को 15 अगस्त के बाद के दंगों का भय सता रहा है, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता। मुसलमानों को पाकिस्तान चाहिए था, वह उन्हें मिल चुका है। इसलिए अब वे दंगा करेंगे, ऐसा मुझे तो कतई नहीं लगता। इसके अलावा स्वयं जिन्ना साहब और मुस्लिम लीग के कई नेताओं ने मुझे शांति और सौहार्द का भरोसा दिलाया है। उन्होंने मुझे आश्वस्त किया है कि पाकिस्तान में हिंदू और सिख सुरक्षित रहेंगे। इसलिए हमें उनके आश्वासन का आदर करना चाहिए। यह शरणार्थी शिविर पूर्वी पंजाब में ले जाने का कोई कारण मुझे समझ नहीं आता। आप लोग यहाँ पर सुरक्षित रहेंगे। अपने मन में से दंगों का भय निकाल दें। यदि मैंने पहले से ही नोआखाली जाने की स्वीकृति नहीं दी होती, तो 15 अगस्त को मैं आपके साथ यहीं पर रहता ं । इसलिए आप लोग चिंता न करें।” (Mahatma Volume 8, Life of Mohandas K. Gandhi-D.G. Tendulkar)
जब गांधीजी शिविर में यह सब बोल रहे थे, उस समय सामने खड़ी भीड़ के चेहरों पर क्रोध, चिढ़ और हताशा साफ दिखाई दे रही थी। लेकिन फिर भी इन शरणार्थियों के मन में मुसलमानों के प्रति इतना भय और क्रोध क्यों है, यह गांधीजी की समझ में नहीं आ रहा था।
6 अगस्त-
इस तमाम व्यस्तताओं के बीच बाबा साहब अम्बेडकर के दिमाग में अनेक विचार चल रहे थे। विशेषकर देश के पश्चिम भाग में भोषण हिंदू-मुस्लिम दंगों की खबरें उन्हें बेचैन कर रही थीं। इस संबंध में उनके विचार एकदम स्पष्ट थे। बाबा साहब भी विभाजन के पक्ष में ही थे, क्योंकि उनका यह
साफ मानना था कि हिंदुओं और मुसलमानों का सह अस्तित्व संभव ही नहीं है । अलबत्ता विभाजन के लिए अपनी सहमति देते समय बाबासाहब की प्रमुख शर्त थी, ‘जनसंख्या की अदला-बदली करना ।’ उनका कहना था कि चूँकि विभाजन धर्म के आधार पर हो रहा है, इसलिए प्रस्तावित पाकिस्तान के सभी हिंदू-सिखों को भारत में तथा भारत के सभी मुसलमानों को पाकिस्तान में विस्थापित किया जाना आवश्यक है। जनसंख्या की इस अदला-बदली से ही भारत का भविष्य शांतिपूर्ण होगा।
कांग्रेस के अन्य कई नेताओं, विशेषकर गांधीजी और नेहरू के कारण बाबासाहब का यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं हुआ, इसका उन्हें बहुत दुःख हुआ था । उन्हें बार-बार लगता था कि यदि योजनाबद्ध तरीके से हिंदू-मुस्लिमों की जनसंख्या की अदला-बदली हुई होती, तो लाखों निर्दोषों के प्राण बचाए जा सकते थे। गांधीजी के इस वक्तव्य पर कि ‘भारत में हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई की तरह रहेंगे,’ उन्हें बहुत क्रोध आता था।
7 अगस्त-
उधर कराची की एक बड़ी सी हवेली में श्रीमती सुचेता कृपलानी लगभग सौ-सवा सौ सिंधी महिलाओं की एक बैठक ले रही हैं। ये सभी सिंधी स्त्रियाँ इतने असुरक्षित वातावरण के बावजूद इस बँगले पर एकत्रित हुई हैं। सुचेता कृपलानी के पति, आचार्य जे. बी. कृपलानी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
सिंधी औरतें सुचेता कृपलानी से शिकायत कर रही हैं कि वे कितनी असुरक्षित हैं। वे सिंधी स्त्रियों पर मुसलमानों के नृशंस अत्याचार के बारे में बता रही हैं । लेकिन इन महिलाओं के कथनों से सुचेता कृपलानी सहमत नहीं दिखतीं । वे आवेश में आकर अपना पक्ष प्रस्तुत करती हैं, “मैं पंजाब और नोआखाली में सरेआम घूमती हूँ। मेरी तरफ तो कोई भी मुस्लिम गुंडा तिरछी निगाह से देखने की भी हिम्मत नहीं करता। क्योंकि मैं न तो भड़कीला मेकअप करती हूँ और ना ही लिपस्टिक लगाती हूँ। आप महिलाएँ लो – नेक का ब्लाउज पहनती हैं, पारदर्शी साड़ियाँ पहनती हैं। इसीलिए मुस्लिम गुंडों का ध्यान आपकी तरफ जाता है। और मान लीजिए, किसी गुंडे ने आप पर आक्रमण कर भी दिया, तो आपको राजपूत बहनों का आदर्श अपने सामने रखना चाहिए, ‘जौहर’ करना चाहिए!
✳️देश विभाजन का खूनी इतिहास।
विभाजन पश्चात भारत सरकार ने एक तथ्यान्वेषी आयोग बनाया। पाकिस्तान छोड़ भारत आये लोगों पर हुए अत्याचारों के आधार पर उच्च न्यायालय के जज जी डी खोसला लिखित, 1949 में प्रकाशित, पुस्तक ‘स्टर्न रियलिटी’ लिखी गई। यह पुस्तक विभाजन के समय दंगों, कत्लेआम, हताहतों की संख्या और राजनैतिक घटनाओं को दस्तावेजी स्वरूप प्रदान करती है। हिंदी में इसका अनुवाद और समीक्षा ‘देश विभाजन का खूनी इतिहास (1946-47 की क्रूरतम घटनाओं का संकलन)’ नाम से सच्चिदानंद चतुर्वेदी ने किया है। प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश—
11 अगस्त 1947 को सिंध से लाहौर स्टेशन पह़ुंचने वाली हिंदुओं से भरी गाड़ियां खून का कुंड बन चुकी थीं। अगले दिन गैर मुसलमानों का रेलवे स्टेशन पहुंचना भी असंभव हो गया। उन्हें रास्ते में ही पकड़कर उनका कत्ल किया जाने लगा। इस नरहत्या में बलूच रेजिमेंट ने प्रमुख भूमिका निभाई। 14 और 15 अगस्त को रेलवे स्टेशन पर अंधाधुंध नरमेध का दृश्य था। एक गवाह के अनुसार स्टेशन पर गोलियों की लगातार वर्षा हो रही थी। मिलिट्री ने गैर मुसलमानों को स्वतंत्रता पूर्वक गोली मारी और लूटा।
19 अगस्त तक लाहौर शहर के तीन लाख गैर मुसलमान घटकर मात्र दस हजार रह गये थे। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति वैसी ही बुरी थी। पट्टोकी में 20 अगस्त को धावा बोला गया जिसमें ढाई सौ गैर मुसलमानों की हत्या कर दी गई। गैर मुसलमानों की दुकानों को लूटकर उसमें आग लगा दी गई। इस आक्रमण में बलूच मिलिट्री ने भाग लिया था।
25 अगस्त की रात के दो बजे शेखपुरा शहर जल रहा था। मुख्य बाजार के हिंदू और सिख दुकानों को आग लगा दी गई थी। सेना और पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। आग बुझाने के लिये अपने घर से बाहर निकलने वालों को गोली मारी जाने लगी। उपायुक्त घटनास्थल पर बाद में पहुंचा। उसने तुरंत कर्फ्यू हटाने का निर्णय लिया और उसने और पुलिस ने यह निर्णय घोषित भी किया। लोग आग बुझाने के लिये दौड़े। पंजाब सीमा बल के बलूच सैनिक, जिन्हें सुरक्षा के लिए लगाया गया था, लोगों पर गोलियाँ बरसाने लगे। एक घटनास्थल पर ही मर गया, दूसरे हकीम लक्ष्मण सिंह को रात में ढाई बजे मुख्य गली में जहाँ आग जल रही थी, गोली लगी। अगले दिन सुबह सात बजे तक उन्हें अस्पताल नहीं ले जाने दिया गया। कुछ घंटों में उनकी मौत हो गई।
गुरुनानक पुरा में 26 अगस्त को हिंदू और सिखों की सर्वाधिक व्यवस्थित वध की कार्यवाही हुई। मिलिट्री द्वारा अस्पताल में लाये जाने सभी घायलों ने बताया कि उन्हें बलूच सैनिकों द्वारा गोली मारी गयी या 25 या 26 अगस्त को उनकी उपस्थिति में मुस्लिम झुंड द्वारा छूरा या भाला मारा गया। घायलों ने यह भी बताया कि बलूच सैनिकों ने सुरक्षा के बहाने हिंदू और सिखों को चावल मिलों में इकट्ठा किया। इन लोगों को इन स्थानों में जमा करने के बाद बलूच सैनिकों ने पहले उन्हें अपने कीमती सामान देने को कहा और फिर निर्दयता से उनकी हत्या कर दी। घायलों की संख्या चार सौ भर्ती वाले और लगभग दो सौ चलंत रोगियों की हो गई। इसके अलावा औरतें और सयानी लड़कियाँ भी थीं जो सभी प्रकार से नंगी थीं। सर्वाधिक प्रतिष्ठित घरों की महिलाएं भी इस भयंकर दु:खद अनुभव से गुजरी थीं। एक अधिवक्ता की पत्नी जब अस्पताल में आई तब वस्तुतः उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था। पुरुष और महिला हताहतों की संख्या बराबर थी। हताहतों में एक सौ घायल बच्चे थे।
संकलन -विवेक आर्य
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++विभाजन का कड़वा सच
15 जून 1947 को गांधी के प्रभाव में कांग्रेस ने भारत का विभाजन स्वीकार कर लिया। यह विभाजन कैसा था? वह इतिहास जो भुला दिया गया। विभाजन के समय क्या हुआ था? लाखों हिंदुओं पर हुए अत्याचारों के ऐतिहासिक दस्तावेज।
✳️ वो पन्द्रह दिन। ₹250
✳️देश विभाजन का खूनी इतिहास। ₹335
दोनो पुस्तक ₹550 (डाक खर्च सहित)। मंगवाने के लिए 7015591564 पर वाट्सएप द्वारा सम्पर्क करें।
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