चीन के ग़ायब होते मंत्री, शी जिनपिंग का वर्चस्व कि बढ़ती मुसीबत?

क्या चीन में ‘ग़ायब’ होते मंत्री राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए ख़तरे की घंटी है?
शी जिनपिंग

वो सब शी जिनपिंग के भरोसेमंद और पसंदीदा लोग थे. लेकिन, ऐसा लग रहा है कि अब वो सब ग़ायब होते जा रहे हैं.

हाल के महीनों में चीन के कई बड़े अधिकारियों के अचानक लापता होने की घटनाओं ने इन अटकलों को तेज़ कर दिया है कि, क्या शी जिनपिंग ने ‘सफ़ाई अभियान’ शुरू कर दिया है. ख़ास तौर से उन लोगों की काट-छांट, जो सेना से जुड़े रहे हैं.

चीन के बड़े अधिकारियों के बेआबरू होकर लापता होने की सबसे ताज़ा मिसाल, रक्षा मंत्री ली शांगफू हैं. वो पिछले कई महीनों से किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं दिखे हैं.

शुरुआत में तो शांगफू की गुमशुदगी को असामान्य बात नहीं माना गया. लेकिन, जब एक बड़े अमेरिकी राजनयिक ने चीन के रक्षा मंत्री के ग़ायब होने की तरफ़ इशारा किया, तो इस बात की जांच पड़ताल तेज़ हो गई.

बाद में समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया कि जनरल ली शांगफू के ख़िलाफ़ सैन्य साज़-ओ-सामान में ख़रीद को लेकर जांच पड़ताल चल रही है. जनरल शांगफू के पास पहले पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए सैन्य सामान ख़रीदने की ज़िम्मेदारी थी.

जनरल शांगफू के लापता होने से कुछ हफ़्तों पहले ही एटमी मिसाइलों की ज़िम्मेदारी संभालने वाली चीन की सेना की इकाई, रॉकेट फोर्स के दो बड़े अधिकारियों, और एक सैनिक अदालत के जज को उनके पद से हटा दिया गया था.

अब ताज़ा अटकलें ये चल रही हैं कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय सैन्य आयोग के कुछ उन अधिकारियों के ख़िलाफ़ भी जांच की जा रही है, जो देश के सैन्य बलों को नियंत्रित करते हैं.

चीन ने ‘स्वास्थ्य कारणों’ के अलावा, इन अधिकारियों की बर्ख़ास्तगी की कोई वजह नहीं बताई है. कोई जानकारी सामने न आने की वजह से अटकलों का बाज़ार गर्म है.

जिस अटकल की चर्चा सबसे ज़्यादा हो रही है, उसके मुताबिक़ चीन की सरकार, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम चला रही है.

चीन की सेना बहुत सतर्क है. जुलाई महीने में पीएलए ने बेहद असामान्य अपील की थी.

चीन की सेना ने जनता से गुज़ारिश की थी कि अगर उनके पास पिछले पांच सालों के दौरान भ्रष्टाचार के किसी भी मामले की जानकारी हो, तो वो सेना को दें.
भ्रष्टाचार या राजनीतिक नियंत्रण का युद्ध?
जनरल ली शांगफ़ू
चीन के रक्षा मंत्री जनरल ली शांगफू कई हफ्तों से सार्वजनिक रूप से नहीं दिखे हैं

राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी सेना की जांच-परख शुरू की है. बीबीसी मॉनिटरिंग की पड़ताल के मुताबिक़, अप्रैल महीने से अब तक जिनपिंग, पूरे देश में फौजी ठिकानों के निरीक्षण के पांच दौरे कर चुके हैं.

सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के रिसर्च फेलो, डॉक्टर जेम्स चार कहते हैं कि, चीन की सेना में भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती रहा है. ख़ास तौर से तब से, जब 1970 के दशक में चीन ने अर्थव्यवस्था का उदारीकरण शुरू किया था.

चीन हर साल, अपनी सेनाओं पर एक ख़रब युआन की रक़म ख़र्च करता है. इसमें से एक बड़ा हिस्सा फौजी साज़-ओ-सामान ख़रीदने में जाता है. राष्ट्रीय सुरक्षा के कारणों से इस ख़रीदारी की पूरी जानकारी सार्वजनिक भी नहीं की जा सकती है.

चीन की सेना और कम्युनिस्ट पार्टी के रिश्तों का अध्ययन करने वाले जेम्स चार कहते हैं कि चीन में एक दल की केंद्रीकृत व्यवस्था होने की वजह से पारदर्शिता की इस कमी में और पेचीदगी आ जाती है.

वो इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि, दूसरे देशों में सेनाओं की सार्वजनिक रूप से काफ़ी जांच-पड़ताल होती है. वहीं, चीन के सैन्य बलों की निगरानी सिर्फ़ और सिर्फ़ कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ में होती है.

शी जिनपिंग को अपने देश की फौज के भीतर भ्रष्टाचार पर क़ाबू पाने में कुछ हद तक तो कामयाबी मिली है, और वो सेना की प्रतिष्ठा दोबारा बहाल करने में कुछ सफल हुए हैं.

लेकिन, डॉक्टर जेम्स चार कहते हैं कि, “भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना, अगर असंभव नहीं तो बेहद मुश्किल काम ज़रूर है.” क्योंकि इसके लिए, “फौज के ढांचे में संस्थागत बदलाव करना होगा. और मुझे नहीं लगता कि कोई तानाशाही देश इसके लिए तैयार होगा.”

वो कहते हैं कि, “जब तक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार एक उचित वैधानिक व्यवस्था लागू करने के लिए तैयार नहीं होगी, तब तक मुझे नहीं लगता कि भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकेगी. इसलिए, सेना में ऐसे सफाई अभियान भी चलते ही रहेंगे.”

गहराता मानसिक ख़ौफ़?
शी जिनपिंग
हाल ही में चीन में जासूसी रोकने के लिए एक व्यापक क़ानून लागू किया था.

लेकिन आज जब चीन, अमेरिका के साथ अपने जटिल संबंधों को साधने की कोशिश कर रहा है, तो उसके बड़े अधिकारियों के अचानक इस तरह से लापता होने को कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर गहराते मानसिक ख़ौफ़ के तौर पर भी देखा जा रहा है.

जुलाई महीने में चीन ने अपने यहां जासूसी रोकने के लिए एक व्यापक क़ानून लागू किया था.

इस क़ानून में अधिकारियों को बड़े पदों पर बैठे लोगों की जांच करने के ज़्यादा अधिकार दिए गए थे.

इसके तुरंत बाद, चीन के स्टेट सिक्योरिटी मंत्रालय ने आम लोगों से सार्वजनिक रूप से अपील की थी कि वो देश के भीतर जासूसी गतिविधियों से मुक़ाबला करने में सरकार की मदद करें.

जनरल ली शांगफू की गुमशुदगी, ठीक उसी तरह हुई है जैसे विदेश मंत्री छिन गांग अचानक लापता हो गए थे.

जुलाई महीने में जब उन्हें विदेश मंत्री पद से बर्ख़ास्त किया गया था, तो अटकलों का बाज़ार बहुत गर्म हो गया था.

इसी हफ़्ते वॉल स्ट्रीट जर्नल ने ख़बर दी कि चिन गांग के ख़िलाफ़, अमेरिका में उनके अफेयर को लेकर जांच की जा रही है. इस रिश्ते से उन्हें एक बच्चा भी हुआ था.

चीनी मामलों के विश्लेषक बिल बिशप कहते हैं कि, “विवाहेतर संबंध, किसी नेता के कम्युनिस्ट पार्टी के आला दर्जे में शामिल होने में बाधा नहीं बनते. लेकिन, किसी ऐसे इंसान के साथ अफेयर होना ख़तरनाक हो सकता है, जिसका ताल्लुक़ किसी ख़ुफ़िया एजेंसी से हो. और फिर उसके साथ आपकी कोई औलाद भी हो जाए, जो आपके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी देश की नागरिक हो.”

अटकलें तो इस बात की भी हैं कि शी जिनपिंग, ये सफ़ाई अभियान कम्युनिस्ट पार्टी के अंदरूनी दबाव की वजह से चला रहे हैं. क्योंकि, कोविड-19 महामारी के बाद चीन की अर्थव्यवस्था की स्थिति डांवाडोल है, और बेरोज़गारी लगातार बढ़ती जा रही है.
नेतृत्व की चुनौती
चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी
चीन की राजनीतिक व्यवस्था में शी जिनपिंग, सिर्फ़ देश के राष्ट्रपति ही नहीं हैं. वो सेना के सर्वोच्च नेता भी हैं.

एक नज़रिए से देखें, तो एक के बाद एक बड़े मंत्रियों का इस तरह से लापता होना, शी जिनपिंग के नेतृत्व की अस्थिरता का भी संकेत है.

पर्यवेक्षकों का कहना है कि जनरल ली और चिन गांग सिर्फ़ मंत्री नहीं थे.

वो शी जिनपिंग के पसंदीदा नेता थे और चीन के स्टेट काउंसलर्स के ऊंचे ओहदे पर भी थे. इसीलिए, उनका इस तरह अचानक पतन होना, चीन के राष्ट्रपति के फ़ैसले लेने की क़ुव्वत पर भी सवाल खड़े कर रहा है.

बड़े बड़े मंत्रियों के इस तरह लापता होने को हम अगर सियासी सफ़ाई अभियान के तौर पर देखें, तो इससे भी जिनपिंग की नेतृत्व क्षमता सवालों के घेरे में आ जाती है.

क्योंकि, जिनपिंग ने अभी पिछले साल ही पार्टी कांग्रेस में अपनी ताक़त बढ़ाते हुए, संभावित प्रतिद्वंद्वियों को किनारे लगा दिया था, और देश चलाने वाली सारी अहम समितियों में अपने वफ़ादार लोग भर लिए थे.

लेकिन, एक दूसरा नज़रिया ये भी है कि ये सफ़ाई अभियान शी जिनपिंग का शक्ति प्रदर्शन ही है.

शी जिनपिंग ख़ुद भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के एक ऐसे अधिकारी के बेटे हैं, जिन्हें सफाई अभियान के तहत हटाया गया था.

वो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपने सार्वजनिक अभियानों के लिए जाने जाते हैं. पर्यवेक्षकों का कहना है कि भ्रष्ट अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुहिम चलाकर जिनपिंग अपने दुश्मनों का भी सफ़ाया किया करते हैं.

चेयरमैन माओ त्से तुंग के बाद, चीन के किसी और नेता ने इतने बड़े पैमाने पर कार्रवाई नहीं की, जितने व्यापक स्तर पर जिनपिंग कर रहे हैं.

चिन गांग

चिन गांग को जिनपिंग का पसंदीदा नेता कहा जाता था

कहा जाता है कि पिछले कई वर्षों के दौरान, जिनपिंग ने हज़ारों पार्टी नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है. उनकी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के निशाने पर बड़े अधिकारियों के साथ साथ निचले स्तर के कर्मचारी भी रहे हैं.

इसकी शुरुआत उन्होंने 2013 में सत्ता संभालने के फ़ौरन बाद ‘बाघ और मक्खियां’ अभियान के साथ की थी.

2017 में जिनपिंग ने सैन्य बलों को निशाने पर लिया था और सौ से ज़्यादा अधिकारियों को बर्ख़ास्त कर दिया था.

उस वक़्त चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने बताया था कि “हटाए गए लोगों की तादाद जंग में मारे गए जनरलों से भी ज़्यादा थी, ताकि एक नए चीन का निर्माण किया जा सके.”

लेकिन, सबसे बड़ा सवाल तो ये है बड़े मंत्रियों की अचानक गुमशुदगी से क्या संकेत मिल रहे हैं? और, आख़िर में इसका असर क्या होगा?

पर्यवेक्षकों का कहना है कि इन कार्रवाइयों से चीन की सेना और सरकार में डर का माहौल बन जाएगा.

हो सकता है कि जिनपिंग, अपनी बातें मनवाने के लिए ये क़दम उठा रहे हों. लेकिन, इससे अधिकारियों के हौसले भी पस्त होंगे.

जो अधिकारी जिनपिंग के पसंदीदा नहीं रह गए हैं, उनके ख़िलाफ़ बरसों से की जा रही कार्रवाई, और सारे ऊंचे ओहदों पर अपने अनुयायियों को बिठाने का मतलब है कि जिनपिंग ने अपने चारों तरफ़ चापलूसों की जमात इकट्ठी कर ली है.

डॉक्टर जेम्स चार कहते हैं कि, “जिनपिंग के नेतृत्व के लिए सबसे बड़ा ख़तरा तो ये हां-हुज़ूरी करने वालों की फ़ौज है. क्योंकि, सबकी सोच एक जैसी होगी, तो इससे चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति पर बुरा असर पड़ेगा.”

चीन में बड़े अधिकारियों के लापता होने की घटनाएं उस वक़्त हो रही हैं, जब ताइवान के साथ तनाव बढ़ा हुआ है. हाल के हफ़्तों में चीन ने ताइवान को डराने के लिए बड़ी तादाद में जंगी जहाज़ और लड़ाकू विमान उसकी सीमा में भेजे हैं.

अपारदर्शी सियासी सिस्टम
काशगर में माओ की मूर्ति
कार्नेगी चाइना थिंक टैंक के नॉन रेज़िडेंट फेलो इयान चोंग कहते हैं कि, “विदेश नीति और रक्षा कूटनीति के मामले में किसी भी तरह का ख़लल पड़ना ‘ख़ास तौर से चिंताजनक’ होगा. क्योंकि इससे ‘कोई हादसा भी हो सकता है’, और उस सूरत में बढ़ते तनाव पर क़ाबू पाना ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाएगा.”

हालांकि, दूसरे जानकारों का मानना है कि चीन का सैन्य नेतृत्व इतना मज़बूत है कि वो कुछ अधिकारियों के हटाए जाने का झटका बर्दाश्त कर सके.

पर्यवेक्षक ये इशारा भी करते हैं कि चीन की सेना, जंग के मुहाने के क़रीब पहुंचकर भी बहुत सावधानी से नियंत्रित बर्ताव करती रही है.

फिर भी, कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े अधिकारियों की गुमशुदगी का शी जिनपिंग के नेतृत्व और चीन की स्थिरता पर दूरगामी असर पड़ेगा.

एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट में चीन के कुलीन वर्ग की राजनीति के जानकार नील थॉमस कहते हैं कि, “अब तक जितने भी अधिकारियों के ऊपर कार्रवाई की गई है, उनमें से कोई भी जिनपिंग का क़रीबी नहीं रहा है.”

वैसे, जिस एक बात पर ज़्यादातर पर्यवेक्षक सहमत हैं, वो ये है कि ये घटनाएं, उजागर करती हैं कि चीन की राजनीतिक व्यवस्था कितनी अपारदर्शी है.

कार्नेगी के डॉक्टर इयान चोंग कहते हैं कि, “मंत्रियों की गुमशुदगी उस सवाल को और धारदार बना देती है कि क्या चीन में नीतियां लागू करने में निरंतरता बनी रहेगी? और, उन वादों को पूरा करने को लेकर चीन की विश्वसनीयता क्या है, जिसका भरोसा उसने बाक़ी दुनिया को दिया है?”

आख़िर में इन आला अधिकारियों के यूं लापता होने की घटनाओं ने चीन के प्रति असहजता को और बढ़ा दिया है.

*टेसा वांग

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