छत्रपति शिवाजी के विद्रोही बेटे संभाजी जिन्होने प्राण दिये पर धर्म नहीं छोड़ा

छत्रपति शिवाजी के विद्रोही बेटे संभाजी के दुखद अंत की कहानी

इमेज कैप्शन,13 दिसंबर 1678 को संभाजी ने पिता शिवाजी को हैरान करने वाला कदम उठाया
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छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े बेटे संभाजी सिर्फ़ दो साल के थे जब सन 1659 में उनकी माँ का निधन हो गया था. वो अपने पिता शिवाजी और दादी जीजाबाई की देखरेख में बड़े हुए थे.

जब उनके पिता शिवाजी को औरंगज़ेब ने आगरा में क़ैद किया था तो वो उनके साथ थे. जब वो वहाँ बच निकलने में क़ामयाब हुए थे तब भी वो उनके साथ थे.

शिवाजी ने उनको पढ़ाने के लिए शिक्षक नियुक्त किए थे, शुरू से ही संस्कृत भाषा में उनकी रुचि थी जिसमें उन्होंने महारत हासिल कर ली थी.

सन 1670 के बाद से शिवाजी ने उन्हें महत्वपूर्ण प्रशासनिक कार्यों में लगाना शुरू कर दिया था. जब शिवाजी राजा बन गए थे तो स्वाभाविक रूप से संभाजी को उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाने लगा था, लेकिन इसी बीच शिवाजी के परिवार में एक क्लेश जन्म ले रहा था.
वैभव पुरंदरे अपनी किताब ‘शिवाजी इंडियाज़ ग्रेट वारियर किंग’ में लिखते हैं, “शिवाजी की सबसे बड़ी पत्नी सोयराबाई ने 24 फ़रवरी, 1670 को एक पुत्र को जन्म दिया था जिसका नाम राजाराम रखा गया था.”

“शिवाजी के राज्याभिषेक के समय उसकी उम्र सिर्फ़ चार साल थी लेकिन सोयराबाई चाहती थीं कि संभाजी की जगह उनके पुत्र को शिवाजी का उत्तराधिकारी बनाया जाए.”

वो लिखते हैं, “शिवाजी के सिर्फ़ ये दो पुत्र थे हालांकि उन्होंने आठ शादियाँ की थीं. इनमें में से बहुत सी शादियाँ राजनीतिक उद्देश्यों से की गई थीं. उनकी छह बेटियाँ भी थीं जिनकी प्रतिष्ठित मराठा परिवारों में शादियाँ हुई थीं.”

संभाजी ने शिवाजी का साथ छोड़ा
शिवाजीइमेज स्रोत,DR. KAMAL GOKHALE/CONTINENTAL PUBLICATION
इमेज कैप्शन,कमल गोखले की किताब ‘शिवापुत्र संभाजी’

जब सन् 1676 के शुरू में शिवाजी एक महीने के लिए गंभीर रूप से बीमार पड़े तब दक्षिण के कुछ हल्कों में ये अफवाह फैल गई कि उनका निधन हो गया है.

लगभग इसी समय शिवाजी के परिवार में उठ रहे गंभीर मतभेदों की ख़बर भी चारों ओर फैलने लगी.

कमल गोखले अपनी किताब ‘शिवापुत्र संभाजी’ में लिखते हैं, “इसी दौरान संभाजी के कथित बुरे आचरण की ख़बरों को भी बल मिलने लगा. सन 1674 में शिवाजी के राज्याभिषेक के बाद से ये ख़बरें ज़्यादा आने लगीं और उनको फैलाने में उनकी सौतेली माँ सोयराबाई का हाथ था ताकि संभाजी को लोगों की नज़रों में गिराया जा सके.”

“ये बात सच थी कि शिवाजी के परिवार में तनाव उभरने शुरू हो गए थे और संभाजी परिवार में अपनी स्थिति और जिस तरह से चीज़ें आगे बढ़ रही थीं, बहुत असंतुष्ट थे.”

सन् 1674 में ही उनकी सबसे बड़ी समर्थक उनकी दादी जीजाबाई का भी निधन हो गया था.

13 दिसंबर 1678 को संभाजी ने ऐसा क़दम उठाया जिसने उनके पिता को आहत और चकित कर दिया था.

वो सतारा छोड़ कर पेड़गाँव चले गए जहाँ उन्होंने मुग़लों के गवर्नर दिलेर ख़ान का हाथ थाम लिया था. उस समय उनकी उम्र 21 साल थी.

असहज संभाजी
शिवाजीइमेज स्रोत,Getty Images
इमेज कैप्शन,संभाजी ने शिवाजी का साथ छोड़ दिया था
उस समय के उपलब्ध साक्ष्य इस बात पर रोशनी नहीं डालते कि संभाजी का शिवाजी का साथ छोड़ने का कारण क्या था?

विश्वास पाटिल संभाजी की जीवनी में लिखते हैं, “दिलेर ख़ान की अनुभवी आँखों ने युवा राजकुमार के चेहरे पर आ रहे दुख के भावों को पढ़ लिया. उसने संभाजी को दिलासा देते हुए कहा, ‘तुम्हारे भाई दिलेर को पूरा अंदाज़ा है कि रायगढ़ में किस तरह तुम्हारा अपमान किया गया है.'”

“हाथी पर सवार संभाजी जब बहादुरगढ़ के किले में घुसे तो वहाँ मौजूद लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया लेकिन इसके बावजूद संभाजी अपने-आप को सहज नहीं पा रहे थे.”

दिलेर ख़ान संभाजी से उम्र में चालीस साल बड़ा था लेकिन वह युवा राजकुमार के साथ बहुत दोस्ताना व्यवहार कर रहा था.

दिलेर ख़ान से संभाजी का मोहभंग
छत्रपति शिवाजी

दिलेर ख़ान ने 1679 में भूपलगढ़ किले पर हमला कर कब्ज़ा कर लिया, तब संभाजी उसके साथ थे.
मुग़लों के लिए संभाजी को अपनी तरफ़ करना एक बड़ी उपलब्धि थी लेकिन जल्द ही उनके दिलेर ख़ान से भी मतभेद होने शुरू हो गए थे.

जब अप्रैल, 1679 में दिलेर ख़ान ने भूपलगढ़ किले पर हमला कर कब्ज़ा कर लिया तो संभाजी उसके साथ थे. दिलेर ख़ान ने किले और स्थानीय गाँव के लोगों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया.

जदुनाथ सरकार अपनी किताब ‘शिवाजी एंड हिज़ टाइम्स’ में लिखते हैं, “दिलेर ख़ान ने किले में जीवित बचे 700 लोगों का एक हाथ कटवा कर उन्हें छोड़ दिया और गांव में रहने वाले लोगों को अपना गुलाम बना लिया.”

दिलेर ख़ान ने आदिल शाही के ख़िलाफ़ भी अपना अभियान चलाया और आदिल शाही के जनरल सिद्दी मसूद ने बीजापुर की रक्षा के लिए शिवाजी से सहायता मांगी.

सेतुमाधव राव पगाड़ी अपनी किताब ‘छत्रपति शिवाजी’ में लिखते हैं, “शिवाजी ने तुरंत 10 हज़ार घुड़सवार और अनाजों से लदी हुई 10 हज़ार बैलगाड़ियाँ भेजीं और दबाव कम करने के लिए मुग़ल इलाके जालना पर हमला बोलकर उस पर कब्ज़ा कर लिया.”

वो आगे लिखते हैं, “नतीजा हुआ कि दिलेर ख़ान ने बीजापुर की घेराबंदी तोड़ दी. लौटते समय दिलेर ख़ान ने टिकोटा कस्बे पर हमला बोलकर कस्बे के तीन हज़ार आम नागरिकों को बंदी बना लिया. इसके बाद वो अठानी गया जहां उसने वहां की जनता पर और ज़ुल्म ढ़ाए.”

शिवाजी की उदार लोकनीति में पले-बढ़े संभाजी को दिलेर ख़ान का आम नागरिकों के प्रति क्रूरता का व्यवहार पसंद नहीं आया.

उन्हें ये अहसास हो गया कि उनका मुग़लों से साथ लंबे समय तक नहीं चलने वाला है.

संभाजी की घर वापसी

शिवाजी और संभाजी के बीच की दरार आख़िरी समय तक समाप्त नहीं हुई.
जदुनाथ सरकार लिखते हैं, “20 नवंबर, 1679 को संभाजी अपनी पत्नी यशुबाई के साथ मुग़ल शिविर से भाग निकले. उनकी पत्नी ने पुरुषों का वेश बनाया हुआ था. उनके साथ 10 सैनिक थे.”

“घोड़े की सवारी करते हुए वो अगले दिन बीजापुर पहुंचे जहाँ मसूद ने उनका स्वागत किया. चार दिसंबर को वो पन्हला पहुंचे जहाँ पिता-पुत्र की मुलाक़ात हुई.”

शिवाजी उनसे गर्मजोशी से मिले लेकिन पिता-पुत्र के बीच की दरार आख़िरी समय तक समाप्त नहीं हुई. करीब एक वर्ष तक चले संभाजी के विद्रोह ने मराठा साम्राज्य में ख़ासी उथल-पुथल पैदा कर दी थी.

इस मुलाक़ात के बाद भी शिवाजी के उत्तराधिकार का मसला नहीं सुलझा.

कृष्णाजी अनंत सभासाद शिवाजी की जीवनी ‘सभासाद बखर’ में लिखते हैं, “मुझे इस बात का अंदाज़ा है कि तुम एक अलग राज्य बनाने के बारे में सोच रहे हो. मेरे दो बेटे हैं, तुम संभाजी और राजाराम.”

“मैं अपना साम्राज्य दो भागों में विभाजित करूँगा. मेरे राज्य के दो हिस्से हैं, एक तुंगभद्र से कावेरी तक और दूसरा तुंगभद्र के दूसरी ओर जो गोदावरी नदी तक जाता है. मैं तुम्हें कर्नाटक का इलाका देता हूँ और बाकी इलाका राजाराम को.”

शिवाजी के देहावसान के बाद संभाजी ने राजकाज संभाला

छत्रपति शिवाजी महाराज की मौत 53 साल के उम्र में हुई.
तीन अप्रैल, 1680 को शिवाजी का देहावसान हो गया. उस समय उन्होंने अपने जीवन के 53 वर्ष भी पूरे नहीं किए थे. जब शिवाजी मृत्युशैया पर थे, संभाजी को इसके बारे में सूचना नहीं दी गई.

डेनिस किंनकेड शिवाजी की जीवनी में लिखते हैं, “जब संभाजी को शिवाजी की बीमारी के बारे में पता चला तो वो अपने ऊँट पर पन्हला से रायगढ़ के लिए तुरंत रवाना हो गए.”

“गर्म मौसम में दिन रात चलते हुए वो रायगढ़ के किले पहुंचे लेकिन तब तक उनके पिता का निधन हो चुका था. गुस्से में उन्होंने अपने ऊँट का सिर काट दिया. बाद में उन्होंने आदेश दिया कि उसी स्थान पर बिना सिर के ऊँट की एक मूर्ति बनाई जाए.”

संभाजी शिवाजी के उत्तराधिकारी बने. राजा बनने के एक साल बाद उन्होंने अपनी सौतेली माँ सोयराबाई को मौत की सज़ा सुनाई. उन पर, अपने पति शिवाजी को ज़हर देने का आरोप लगाया गया.

जदुनाथ सरकार लिखते हैं, “संभवत: ये एक झूठा बहाना था क्योंकि संभाजी अपनी सौतेली मां से अपने बेटे को शिवाजी का उत्तराधिकारी बनाने के प्रयासों का बदला लेना चाहते थे.”

संभाजी को औरंगज़ेब की सेना ने बंदी बनाया
सन 1689 में रत्नागिरी में संभाजी को औरंगज़ेब की सेना ने बंदी बनाया. (औरंगज़ेब)
सन् 1681 से 1682 के बीच औरंगज़ेब ने अपना दक्षिण भारत का अभियान शुरू कर सभी चुनौतियों को समाप्त करने का बीड़ा उठाया.

उसने बीजापुर और गोलकुंडा पर कब्ज़ा कर वहां के राजाओं को बंदी बना लिया.

सन् 1689 में रत्नागिरी में संगमेश्वर में संभाजी को भी बंदी बना लिया गया.

विश्वास पाटिल लिखते हैं, “संभाजी को बहादुरगढ़ के मुग़ल शिविर में ले जाया गया और औरंगज़ेब के आदेश पर पूरे शहर में उनकी परेड कराई गई. संभाजी को विदूषक के कपड़े पहनाए गए.”

वो आगे लिखते हैं, “एक ज़माने में सोने के सिंहासन पर बैठने वाले संभाजी को मामूली अपराधी की तरह एक दुबले पतले ऊँट पर बैठाया गया. उनके सिर पर कैदियों के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली लकड़ी की टोपी पहनाई गई.”

“उनके हाथ को ऊपर उठा कर लकड़ी के तख़्ते से बाँध दिया गया. उनकी गर्दन को भी लकड़ी के तख़्ते से जकड़ दिया गया ताकि वो इधर-उधर न देख सकें.”

धीरे-धीरे ये जुलूस दीवान-ए-ख़ास तक पहुंचा. अपनी ख़ुशी पर नियंत्रण करने में असमर्थ औरंगज़ेब अपना आसन छोड़कर खड़ा हो गया.

जदुनाथ सरकार लिखते हैं, “जैसे ही औरंगज़ेब ने शिवाजी के बेटे को बंदी के रूप में अपने सामने आते देखा, मुग़ल बादशाह सज्दे में ज़मीन पर झुक गया.”

“संभाजी से औरंगज़ेब के सामने सिर झुकने के लिए कहा गया लेकिन संभाजी ने ऐसा करने से इनकार करते हुए औरंगज़ेब को घूरना शुरू कर दिया. औरंगज़ेब ने उसी रात संभाजी की आँखें निकालने का आदेश दे दिया.”

इस प्रकरण का विवरण देते हुए डेनिस किनकेड लिखते हैं, “औरंगज़ेब ने उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया लेकिन संभाजी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. औरंगज़ेब के आदेश पर उनकी ज़ुबान खींच ली गई.”

“इसके बाद उनके सामने बादशाह का प्रस्ताव फिर दोहराया गया. संभाजी ने एक काग़ज़ मंगवाया और उस पर अपना जवाब लिखा, ‘बिल्कुल नहीं, अगर बादशाह अपनी बेटी भी मुझे दे, तब भी नहीं.”

अंधा किए जाने के पंद्रह दिनों बाद तक औरंगज़ेब के आदेश पर शिवाजी के बेटे को यातनाएं दी जाती रहीं.

डेनिस किनकेड आगे लिखते हैं, “11 मार्च, 1689 को एक-एक करके संभाजी के सारे अंग काट दिए गए और अंत में उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया.”

क्रूरता का सबसे बुरा उदाहरण पेश करते हुए उनके कटे हुए सिर को दक्षिण के प्रमुख नगरों में घुमाया गया.

उधर शिवाजी के छोटे बेटे राजराम को राजा बनाया गया. मुग़लों ने उनका भी पीछा नहीं छोड़ा.

वैभव पुरंदरे लिखते हैं, मुग़लों ने संभाजी की पत्नी और बेटे शाहू को बंदी बना लिया.

राजाराम को अपनी पत्नी ताराबाई के साथ जिनजी किले में शरण लेनी पड़ी. आख़िरकार सन् 1697 में वो दोनों जिनजी के किले से भाग निकलने में क़ामयाब हो गए. इसके बाद उन्होंने औरंगज़ेब पर जवाबी हमला बोला.

सन् 1699 में सिर्फ़ 30 साल की उम्र में राजाराम का निधन हो गया लेकिन उनकी पत्नी ताराबाई ने औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखी.

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