नैतिकता से नहीं नाता नीतीश का, भाजपा अब खुल खेलेगी हिंदुत्व पिच पर

Nitish Kumar Politics : नीतीश कुमार: राजनीतिक शुचिता से कोई नाता नहीं, जहां देखा मौका, बन गए बिहार के ‘पलटू राम’

-प्रियेश मिश्र

नीतीश कुमार पर सत्ता के लिए पाला बदलने में माहिर नेता होने का आरोप लगता रहा है। हैरानी की बात यह है कि जो व्यक्ति लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री है और जिनके पीएम इन वेटिंग की चर्चा हो रही है, उन्होंने कभी भी अपने गृह राज्य में अकेले दम पर कोई चुनाव नहीं जीता है।

नीतीश कुमार

हाइलाइट्स
1-नीतीश कुमार ने मौका देख कभी बीजेपी तो कभी आरजेडी का थामा दामन
2-लालू के साथ शुरू किया राजनीतिक सफर, बिहार भवन की घटना के बाद छोड़ा साथ
3-मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित करने पर एनडीए छोड़ा, 2017 में फिर शामिल हुए

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नीतीश कुमार पर सत्ता को पाला बदलने का आरोप पिछले कुछ वर्षों से लग रहा था। तो क्या ताजा घटनाक्रम ने राजनीतिक शुचिता को धता बताने में माहिर नेता की उनकी छवि और मजबूत होगी? बिहार में जारी राजनीतिक उठापठक में नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़ दिया है। अब उन्होंने दोबारा आरजेडी के साथ सरकार बनाने का ऐलान कर दिया है। यह वही आरजेडी है, जिससे पिंड छुड़ाकर 2017 में नीतीश कुमार ने बीजेपी का दामन थामा था। उसके पहले 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने ही बिहारी डीएनए को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा था। हालांकि, नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा किसी से भी छिपी हुई नहीं है। नीतीश ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में भाकपा (माले) से लेकर बीजेपी तक साथ काम किया है। सत्ता की खोज में उन्होंने आनंद मोहन सिंह की बिहार पीपुल्स पार्टी के साथ भी गठबंधन किया। नीतीश कुमार के लिए पलटूराम का विशेषण सबसे पहले लालू यादव ने इस्तेमाल किया। अब बीजेपी ने भी नीतीश पर पलटू होने का आरोप लगाया है। ऐसे में जानिए कि नीतीश ने अपने राजनीतिक सफर में कैसे बीजेपी और आरजेडी के साथ सत्ता के लिए दोस्ती से लेकर दुश्मनी निभाई।

चार बार के मुख्यमंत्री पर अकेले दम पर नहीं जीता एक भी चुनाव

नीतीश कुमार के लिए सत्ता शुरू से ही राजनीतिक करियर का केंद्रीय विषय रही है। हालांकि, यह भी कटु सत्य है कि उन्होंने आज तक अकेले दम पर कभी भी कुर्सी नहीं पाई। हैरानी की बात यह है कि जो व्यक्ति लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री है और जिनके पीएम इन वेटिंग की चर्चा हो रही है, उन्होंने कभी भी अपने गृह राज्य में अकेले दम पर कोई चुनाव नहीं जीता है। नीतीश को शुरू से ही एक बूस्टर डोज के तौर पर हमेशा सहयोगी की जरूरत रही। 1995 में उन्होंने भाकपा माले के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा। तब बिहार झारखंड एक ही थे। उस समय 324 सीटों पर हुए चुनाव में नीतीश की समता पार्टी को सिर्फ सात सीटों पर जीत मिली थी।

बिहार से अराजकता खत्म करने के हीरो बने नीतीश

बिहार में लालू राज में फैली अराजकता को खत्म करने को लेकर नीतीश कुमार के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। जब नीतीश को बिहार की सत्ता मिली थी, तब इस प्रदेश को काफी हेय दृष्टि से देखा जाता था। बिहार अपने आप में अपराध से ग्रस्त, पिछड़ा और बीमारू राज्य का प्रतिमान था। लेकिन जब नीतीश सत्ता में आए तो उन्होंने प्रशासनिक सुधारों की झड़ी लगा दी। इसका असर ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों में खूब देखने को मिला। गड्ढों वाली सड़कों की जगह चमचमाती डामर रोड ने ले ली। अपराधियों पर नकेल कसने को स्पेशल फोर्स का गठन किया गया। रात में पुलिस की गश्त बढ़ाई गई।

nitish Lalu

जनता दल से अलग कैसे हुए नीतीश कुमार

नीतीश और लालू मेें संबंध हमेशा से ही उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। लालू और नीतीश के बीच पहली बार विवाद 1992 में देखने को मिला। जगह थी नई दिल्ली स्थित बिहार भवन। नीतीश कुमार उस समय वी.पी. सिंह सरकार में मंत्री थे। हालांकि, उनकी कोशिश बिहार की राजनीति में खुद को बड़े और प्रभावी नेता के तौर पर स्थापित करने की थी। उस समय मध्य बिहार में किसान आंदोलन कर रहे थे। इसी को लेकर नीतीश, तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से मिलने बिहार भवन पहुंचे। लेकिन, कुछ ही देर में दोनों नेताओं के समर्थकों के बीच भद्दे शब्दों की बौछार होने लगी। लालू के कठोर तेेेवर देख नीतीश कुमार वहां से बाहर तो निकल गए लेकिन मन में एक टीस जरूर बन गई।

चारा घोटाले की फाइल खुलवाई, लालू को सत्ता से हटाया

इसी साल नीतिश कुमार औपचारिक रूप से जनता दल से अलग हो गए और लालू के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। नीतीश कुमार लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले में जांच की मांग करने वाले मूल याचिकाकर्ताओं में भी शामिल हो गए। उन्होंने ही ‘जंगल राज’ का नारा गढ़ा। उन्हीं के नेतृत्व में ‘लालू हटाओ, बिहार बचाओ’ का अभियान चला। नीतीश बिहार की जनता को समझाने में सफलता मिली 2005 में जब बीजेपी के साथ उनकी पहली सरकार बनी। उनके ही प्रयासों के कारण लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले की सीबीआई जांच में तेजी आई और एक-एक कर सभी मामलों की सुुनवाई हुई।

Nitish Kumar Modi

नीतीश कुमार मोदी के दोस्त या दुश्मन?

नरेंद्र मोदी को लेकर नीतीश कुमार के विचार समय के साथ बदलते रहे हैं। साल 2009 की वह घटना भला कौन भूल सकता है, जब नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री और एनडीए के प्रमुख घटकों में से एक थे। तब 2009 के लोकसभा अभियान का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी कर रहे थे। उस समय पंजाब के लुधियाना में एनडीए का शक्ति प्रदर्शन था, जिसमें नीतीश को भी आमंत्रित किया गया था। नीतीश नेेेेे वहां जाने से साफ इनकार कर दिया। वो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा नहीं करना चाहते थे। उन्होंने अपनी जगह उस समय पार्टी अध्यक्ष रहे शरद यादव से रैली में शामिल होने का अनुरोध किया। हालांकि, बीजेपी के दिग्गज नेता स्वर्गीय अरुण जेटली ने उन्हें मनाया और नीतीश चार्टर्ड विमान से लुधियाना पहुंच गए। इस दौरान मंच पर मोदी ने उनका हाथ पकड़कर ऊपर उठा लिया। फिर क्या था पूरे राजनीतिक हलके में तहलका मच गया।

एनडीए से पहली बार अलग क्यों हुए नीतीश कुमार

2010 में बिहार में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। इसमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। उन्होंने उस समय बिहार में आई बाढ़ को लेकर गुजरात की तरफ से 5 करोड़ रुपये की घोषणा की। फिर क्या था नीतीश कुमार तमतमा गए और उसे बिहार का अपमान बता दिया। उनका पार इतना चढा कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के सम्मान में रात्रिभोज भी रद्द कर दिया। 2013 में जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया, तब भी नीतीश कुमार ने इसका विरोध किया। यही कारण था कि उन्होंने बीजेपी से अपना नाता तोड़कर लालू प्रसाद के आरजेडी के साथ गठबंधन किया। हालांकि, वो 2017 में फिर से बीजेपी के साथ आ गए। लेकिन पांच साल भी नहीं टिक पाए। नीतीश फिर से उसी आरजेडी के साथ हैं जिनके अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव नीतीश को पलटू राम का तमगा दे चुके हैं।

Nitish Kumar Political History Has Been Devoid Of Integrity And Full Of Defection

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बीजेपी ने बता दिया- आगे किस एजेंडे पर बिहार में अकेले दम पर आएगी सरकार

-पंकज सिंह

हाइलाइट्स
1-नीतीश कुमार के फैसले के बाद बीजेपी हुई हमलावर, कह दी यह बात
2-आए साथ… बिहार में एक बार फिर आरजेडी और जेडीयू की नई सरकार
3-गिरिराज सिंह ने कहा- अब रण होगा, इन मुद्दों पर अब चुप नहीं बैठेगी बीजेपी

बिहार में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड (BJP-JDU Split) की राह अलग हो गई। दोनों दलों से जो कल तक सोच-समझकर बयान दिए जा रहे थे आज उस पर कोई रोक नहीं है। नीतीश कुमार (Nitish Kumar), अब बिहार में आरजेडी के साथ सरकार चलाएंगे और बीजेपी एक बार फिर से विपक्ष की भूमिका में होगी। दो साल पहले बिहार चुनाव में जेडीयू से कहीं अधिक बीजेपी के पास विधायकों संख्या थी लेकिन सीएम नीतीश कुमार ही बने। इन दो वर्षों में ऐसा नहीं कि टकराव की शुरुआत पिछले कुछ दिनों में हुई । ऐसा पहले भी हुआ। कई ऐसे मौके भी आए जब हिंदुत्व के मुद्दे पर फ्रंटफुट पर नजर आने वाली बीजेपी बिहार में बैकफुट पर नजर आई। इसकी वजह नीतीश कुमार ही थे। हालांकि अब दोनों अलग हैं तो बीजेपी एक बार इस मुद्दे पर बिहार में आक्रामक नजर आएगी। इसकी शुरुआत केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के बयान से हो भी गई है।

अब तो रण होगा… बीजेपी की ओर से मिल गया संकेत

बीजेपी-जेडीयू गठबंधन टूटने के बाद केंद्रीय मंत्री और बिहार बीजेपी के बड़े नेता गिरिराज सिंह ने कहा कि अब बिहार में रण होगा। गिरिराज सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार तुष्टीकरण की पराकाष्ठा थे। नीतीश कुमार ने लालूजी से बढ़कर तुष्टीकरण किया। बिहार में शरिया कानून लागू करने की कोशिश हो रही है। अब तो एक करैला दूजे नीम चढ़ा वाली हालत हो गई है। अब तो रण होगा…

इसे एक बयान के तौर पर सिर्फ नहीं देखना चाहिए। उग्र हिंदुत्व की राह पर बीजेपी नीतीश कुमार की वजह से आगे नहीं बढ़ पा रही थी। एनआरसी का मुद्दा, हनुमान चालीसा या लाउडस्पीकर विवाद, जेडीयू का बीजेपी के खिलाफ ही रुख रहा है। जाति जनगणना की बात हो या दूसरे ये मुद्दे नीतीश कुमार बीजेपी से अलग ही खड़े नजर आए। अब सरकार आरजेडी और जेडीयू की होगी। आरजेडी पर पहले से ही बीजेपी मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाते रही है और ऐसे वक्त में जब दोनों साथ होंगे तो हमला पहले से कहीं अधिक तेज होगा।

केंद्र सरकार की ओर से देशभर में आतंकी मॉड्यूल पर चोट हुई। बिहार के अंदर भी कार्रवाई हुई है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि मुस्लिम समाज के दबाव के कारण नीतीश कुमार ने ऐसा किया हो। उनके अपने क्षेत्र में भी काफी वोट है यह एक बहुत बड़ा कारण है। अपने पुराने वोट बैंक को वापस लाने के लिए ऐसा कदम उठाया हो।
संगीत रागी, राजनीतिक विश्लेषक

 

PFI मॉड्यूल… सिर्फ मांग ही नहीं करेगी बीजेपी

बिहार में पिछले दिनों पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) मॉड्यूल को लेकर बीजेपी और जेडीयू में असहमति दिखी। बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी, प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और दूसरे नेताओं ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। वहीं बिहार के तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री जामा खान ने कहा कि पीएफआई को लेकर जांच जारी है और इसमें यह क्लियर नहीं कि वह राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल है या नहीं। इसलिए यह घोषणा नहीं कर सकते हैं कि संगठन अवैध है। खान ने एक कदम आगे बढ़कर कहा कि आरएसएस, बजरंग दल, पीएफआई जैसे कोई भी संगठन राजनीतिक दलों से जुड़े हैं तो इस लाइन पर भी जांच होनी चाहिए। कुछ राजनीतिक दलों के कुछ नेताओं की मांग पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।

पटना एसएसपी ने भी पीएफआई के ट्रेनिंग की तुलना आरएसएस से कर दी जिसके बाद बिहार में काफी राजनीतिक बवाल देखने को मिला। बीजेपी इन मामलों पर उस तरीके से सामने नहीं आ सकी वजह शायद नीतीश कुमार थे। ऐसे मुद्दे जहां बीजेपी अधिक हमलावर दिखती है लेकिन बिहार में ऐसा नहीं हो रहा था। अब पीएफआई समेत दूसरे मुद्दों को लेकर बीजेपी कहीं अधिक आक्रामक दिखेगी।

योगी की तारीफ पर जब नीतीश ने कह दी यह बात

देश में जब लाउडस्पीकर मामले पर योगी सरकार की तारीफ हो रही थी उस वक्त नीतीश कुमार ने इस मुद्दे को बेकार और बकवास करार दिया। नीतीश कुमार जबसे लालू प्रसाद यादव के घर इफ्तार पार्टी में शामिल होकर लौटे थे उस वक्त से ही राजनीतिक अटकलों का बाजार गर्म था। लाउडस्पीकर मुद्दे को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की तारीफ और बिहार में बीजेपी नेताओं ने भी राज्य में योगी मॉडल लागू करने की मांग कर दी। इस मुद्दे पर नीतीश कुमार से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ‘इस पर क्या बात करें, ये फालतू की चीज है। बिहार में हम किसी के भी धार्मिक मामलों में दखल नहीं देते। कुछ लोग समझते हैं कि विवाद पैदा करना ही उनका काम है।

लाउडस्पीकर मामला हो या हनुमान चालीसा … बिहार में बीजेपी इन दो मुद्दों पर खामोश ही नजर आई। उनके नेताओं की ओर से मांग हुई लेकिन वह खानापूर्ति ही नजर आई। हालांकि आगे अब ऐसा बिहार की राजनीति में बीजेपी की ओर से नहीं देखने को मिलेगा।

नीतीश का नाम लेकर बीजेपी पर किया वार

नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होने का जो फैसला किया है उसके पीछे एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि जेडीयू को कमजोर करने की कोशिश हो रही थी। हालांकि सिर्फ यही एक वजह नहीं है। नीतीश कुमार भी राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं और उनको भी यह पता था कि उनका वोट बैंक बीजेपी की ओर शिफ्ट हो रहा है। साथ ही उनको मुस्लिम वोट बैंक खिसकने का भी डर सता रहा था। हालांकि नीतीश कुमार के साथ रहने पर बीजेपी पर भी निशाना साधा जाता रहा है। इस कड़ी में पिछले दिनों शिवसेना की ओर से करारा हमला किया गया।

उद्धव ठाकरे को जब सत्ता गंवानी पड़ी और हिंदुत्व को लेकर उन पर सवाल हुए तब उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्तों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने नारा दिया था कि हमें संघमुक्त भारत का निर्माण करना है। क्या बीजेपी को उस वक्त की याद नहीं आती। किस मुंह से बीजेपी नीतीश के साथ ही सरकार बनाकर बैठी है। साल 2016 की बात है जब नीतीश कुमार ने एक कार्यक्रम में ‘संघ मुक्त’ भारत की बात कही थी और गैर भाजपा दलों के एकजुट होने की अपील की थी। हिंदुत्व को लेकर जब उद्धव पर आरोप लगे तब उन्होंने नीतीश के नाम का सहारा लेकर बीजेपी पर पलटवार किया।

बिहार में दिन बदलने के साथ ही राजनीति भी बदल गई है। आरजेडी-जेडीयू के साथ आने के बाद बीजेपी के सामने कई चुनौती होगी। कल तक बिहार से लेकर दिल्ली तक संभल-संभल कर बोलने वाले बीजेपी नेताओं के सुर वैसे नहीं रहेंगे और बीजेपी बिहार में हिंदुत्व की राह पर कहीं अधिक आक्रामक नजर आ सकती है।

Bjp Plan For Bihar Nitish Kumar Resigns Breaks Alliance Hindutva Agenda

 

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