पांच राज्यों के चुनाव में हिंदुत्व जीतेगा या जातियां?
5 राज्यों के चुनाव में हिंदुत्व के मुकाबले जाति, किसकी होगी जीत
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
आम चुनाव अगले साल की शुरुआत में हैं, लेकिन उससे पहले पांच राज्यों – मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम- के विधानसभा चुनावों का बिगुल बज गया है। नवंबर में होने जा रहे इन चुनावों के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों तैयार हैं। लगता है कि आजादी के बाद पहली बार यह चुनावी जंग लगभग पूरी तरह जाति पर केंद्रित होगी। I.N.D.I.A. गठबंधन ने जाति की राजनीति पर बड़ा दांव खेला है। बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं जबकि केंद्र सरकार और कर्नाटक सरकार ने आर्थिक-सामाजिक सर्वे और जाति जनगणना कराकर भी उसके आंकड़े ठंडे बस्ते में डाल रखा है। जाति जनगणना की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 63 फीसदी है जिसमें 27.12 फीसदी पिछड़ा वर्ग और 36.01 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग है। दलितों की संख्या 19.65 फीसदी, सामान्य वर्ग 15.52 फीसदी और आदिवासी 1.68 फीसदी हैं।
OBC फैक्टर
इस जाति जनगणना के बाद नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने कहा है कि इस रिपोर्ट से गरीबों के लिए योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी और अब केंद्र सरकार को यह काम देशभर में करना चाहिए। कांग्रेस पार्टी ने भी सोमवार को CWC की मीटिंग के बाद देशव्यापी कास्ट सर्वे कराने की मांग रखी। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में कहा है कि विकास विरोधी लोग आज भी जात-पात के नाम पर देश को बांट रहे हैं। दूसरी ओर, राहुल गांधी ने जिसकी जितनी आबादी, उसका उतना हक का नारा दिया है। गौर करने की बात है कि जबसे I.N.D.I.A. गठबंधन बना है, तभी से वह राजनीति को जाति जनगणना और OBC आरक्षण की तरफ मोड़ने की कोशिश कर रहा है। विपक्ष को लगता है कि BJP की हिंदुत्व की राजनीति की वजह से उसकी लगातार हार हो रही है। यही वजह है कि जातीय जनगणना कराने के साथ ही महिला आरक्षण में OBC कोटा का प्रावधान जोड़ने की मांग उसने की है। सच है कि BJP ने हिंदुत्व की राजनीति के जरिये पिछड़ी जातियों को काफी हद तक साध लिया है। वहीं, विपक्षी पार्टियां BJP के वर्चस्व को तोड़ने के लिए 34 साल पुराने मंडल हथियार का नए सिरे से सहारा ले रही हैं। हालांकि इसे लेकर I.N.D.I.A. गठबंधन की अपनी परेशानियां भी हैं।
इसकी बेंगलुरु की बैठक में देश में जातिगत जनगणना कराने की मांग उठी थी, लेकिन मुंबई बैठक में इस पर मतभेद उभरे तो इसे राजनीतिक प्रस्ताव से हटा दिया गया। तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव) ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। तय किया गया कि इस पर समन्वय समिति सभी सहयोगी दलों से बातचीत करके रास्ता निकालेगी।
2011 की UPA सरकार के दौरान जाति और सामाजिक-आर्थिक सर्वे हुआ था, लेकिन उसे तकनीकी कारण बताकर सार्वजनिक नहीं किया गया।
कर्नाटक में भी सिद्दारमैया सरकार अपने पिछले कार्यकाल में ही जातीय जनगणना करवा चुकी है, लेकिन उसकी रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई है।
विपक्ष की मांग है कि 2011 के सर्वे को प्रकाशित किया जाए या फिर से पूरे देश में जाति जनगणना की जाए। मकसद है जाति के आधार पर अन्य पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ दिलाने की मांग उठाई जाए। राहुल गांधी ने इसी रणनीति के तहत संसद में महिला बिल पर बहस के दौरान केंद्र के विभिन्न विभागों के कुल 90 सचिवों में सिर्फ 3 OBC होने का मुद्दा उठाकर माहौल गरम कर दिया। इसके जवाब में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी आंकड़ों की झड़ी लगा दी।
मोदी कैबिनेट में 29 मंत्री OBC समूह से आते हैं।
BJP के 29 फीसदी यानी 85 सांसद OBC हैं।
पार्टी के कुल 1358 विधायकों में से 365 यानी 27 फीसदी OBC के हैं।
उसके 163 MLC यानी विधान परिषद सदस्य हैं जिनमें 65 OBC हैं।
उनकी बातों का मतलब यह था कि हिंदुत्व की राजनीति में OBC की खास जगह है। लेकिन विपक्ष इस मुद्दे से हटने को तैयार नहीं। उसकी रणनीति इसी से समझी जा सकती है कि BJP के तमाम पैंतरों के जवाब में वह एक से एक नए मुद्दे उठाकर राजनीति को जाति की पटरी पर लाने का प्रयास जारी रखे हुए है।
ध्यान रहे, 2014 के पहले BJP को लोकसभा में कभी बहुमत नहीं मिला था। सत्ता की चाहत में उसने बड़ा कार्ड खेला। नरेंद्र मोदी की एक बड़ी ताकत उनकी हिंदुत्व समर्थक छवि थी, लेकिन यह तथ्य भी अपनी जगह था ही कि वह OBC समुदाय के हैं। BJP का यह कार्ड ऐसा चला कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव ही नहीं, तमाम विधानसभा चुनावों में भी उसका प्रदर्शन बेहतर हुआ। एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक 2019 लोकसभा चुनाव में BJP गठबंधन को सवर्णों का 61 फीसदी, OBC का 58 फीसदी, आदिवासियों का 49 फीसदी, दलितों का 41 फीसदी और मुस्लिमों का 10 फीसदी वोट मिला था। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद OBC नेताओं को सरकार, संगठन में भी अहमियत दी जा रही है।
ताकत या कमजोरी
जाहिर तौर पर मोदी सरकार की पहल ने विपक्षी खेमों का गणित खराब कर दिया है। धर्म और जाति के इस मिले-जुले समीकरण को काटने के लिए विपक्ष अब कास्ट सर्वे का ऐसा मुद्दा लाया है, जो OBC वोटरों तक उसकी सीधी पहुंच सुनिश्चित कर सकता है। लेकिन सवाल है कि जो पार्टियां एक परिवार और एक जाति में फंस गई हैं क्या वे सारी OBC जातियों में पैठ बना पाएंगी? क्या ये पार्टियां टिकट बंटवारे के दौरान OBC की सारी जातियों और OBC महिलाओं को तरजीह दे पाएंगी? इसका जवाब अगले चुनावों के दौरान ही मिलेगा। कास्ट सर्वे के असर की सीमाएं भी उसी से स्पष्ट होगी।
(लेखक राजनीतिक और चुनाव विश्लेषक हैं)