बसंत पंचमी, आस्था का विज्ञान और हमारी परंपरा
वसंत पंचमी की दो यादें हैं, जिनका आज भी पालन करता हूं। बेर फल खाने की शुरुआत..भोग लगाकर। इससे पहले बेर को हाथ ना लगाना। दूसरे, आज के दिन पुस्तकों से अवकाश। पर्व, त्योहार जो स्मृतियों में बसे रहते हैं। यही वो बचे-खुचे अनुशासन हैं, जो दिवंगत मां को जीवित रखे हुए है।
बसंत पंचमी मंगलमयी हो।🚩
आज वसंत पंचमी है- सरस्वती पूजन का दिन।
हमारे ऋषियों ने ऐसे ही उपासनाओं के दिनों में वर्ष को बाँटा और प्रकृति की शक्तियों की उपासना से जनजीवन को भरनेवाली संस्कृति बनाई।
विलायती लोग कैसी संस्कृति बनाते हैं – बर्थ डे से वाथ डे तक, न जाने क्या क्या । मुझे ये सब पसंद नहीं आता क्योंकि प्राणी प्रकृति का उत्पादन है, प्रकृति के साथ जीना मरना है।
भारत की प्रकृति न रेगिस्तानी है न बर्फानी है यह समशीतोष्ण है षड् ऋतुओं की रानी है। हमें अपनी प्रकृति के रस- भाव में रहने दो ! हमारे आगे “धोखा नाच” न करो ।
देवयज्ञ की विज्ञान कथा!
हम पृथ्वीवासी मकर रेखा से चलते- चलते कर्क रेखा तक यानि शनि मार्ग की तपन से चंद्रमा के शीतल ठौर तक पहुंचते हैं।
हम कितने संवत्सर गोल-गोल घूमेंगे ? हम कर्क रेखा से भूमध्य तक आते हैं वहाँ उज्जैन में महाकाल का दर्शन होता है
अर्थात कर्क और भूमध्य रेखाओं की कटान बिन्दु पर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
हर हर महादेव!
वसंत संपात यानि मकर में सूर्य या कहिए पृथ्वी के पहुंने पर वसंत ऋतु आरंभ होती है।
कर्क चंन्द्रमा से ठंढ़ाए हुए मन को मकर शनि से गर्मी मिलने लगी, तब क्या हुआ?
कामदेव ने दे दनादन पांच फूलों के बाण समाधिस्थ महादेव को मारा।
बाबा ने तीसरा नेत्र खोला। कामदेव भस्म हो गए। रति विलाप करने लगी।
दयालु महादेव ने कामदेव को जीवित कर दिया, लेकिन उन्हें देह नहीं दिया।
कामदेव को देह होता तो वह सर्वत्र व्याप्त नहीं हो पाते। अदेही कामदेव सर्वत्र व्याप्त हो गए।
शनिदेव बड़े ऊरठ हैं। उनकी मति में रति नहीं, गति ही गति है।
उनकी पत्नी कुपित हो गई, शनि को शाप दिया- जैसे तुम मुझे विरह में जलते रहते हो, तुम भी जलते रहोगे। तब से शनि जलते रहते हैं।
शनि को सरसों के तेल से नहलाया जाता है कि उन्हें गंधक मिले।
सरसों के तेल में गंधक/सल्फर होता है। गंधक भूमि तत्त्व है। भूमि गंधवती है।
धरा की देहगंध से शनि शांत हो जाते हैं।
अब देखिए कि मकर शनि की राशि है। शनि और भौम यानि मंगल में नहीं पटती।
कैसे पटेगी, जब मंगल भूमि पुत्र हैं और शनि सूर्य पुत्र।
दोनों की दो प्रकृतियाँ हैं, एक भौम, दूसरा सौर है, दोनों में बड़ी दूरी है। भौम और सौर में कैसे पटेगी!
लेकिन वही मंगल शनि की राशि मकर में बड़े सृजनशील होकर उच्च मन से रमते हैं।
देव यज्ञ के इस विषय को काॅस्मिक सेक्सुओलाॅजी कहा जा सकता है।
यह विषय आधुनिक, वैज्ञानिक, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को पागल बना देगा।
लेकिन, हम पैगन पारंपरिक लोग आनंद से शिवरात्रि मनाते हैं, वसंत पंचमी को सरस्वती पूजन करते हैं, अंत में होली मनाकर नए संवत्सर में प्रवेश कर जाते हैं।
हमारे महादेव ने कामदेव को अदेही कर दिया है।
यह कथा है या खगोलीय सत्य तथ्य?
कहीं ऐसा तो नहीं कि आधुनिक वैज्ञानिक कुहरे में हमारा उपास्य ज्योतिर्मान भारत खो गया है?
आज वसंत पंचमी है, सरस्वती पूजन का दिन।
वसंत संपात का पाँचवाँ दिन।
वसंत संपात में पृथ्वी सूर्य के निकट होने लगती है, ताप बढ़ने लगता है। सूर्य ही वागग्नि का स्त्रोत है। पृथ्वीवासियों को सूर्य से ही वाग् शक्ति मिलती है।
वाक् > वाग् > वाङ् एक ही शब्द है प्रयोग भिन्न है। वाङ् का विदेशी उच्चारण है- लांग् > लाङ्। लाङ् से शब्द बना है- लैंग्वेज।
भाष् से भाषा शब्द बना है, वाक्> वाङ् > लांग् से लैंग्वेज शब्द की निकटता है, भाषा से नहीं ।
माता सरस्वती को ही वागेश्वरी, वाग्देवी कहा जाता है।
वसंत संपात के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ब्रह्माण्डीय पंचमहाभूतों में सप्त स्वरों और सप्त रश्मियों- अर्थात- ष ऋ ग म प ध नि और इ नी ख ह पी स्व र: की शक्ति संरचना कैसी होती है, क्यों यज्ञ विज्ञान में “पञ्च ऋतव:” की मान्यता है? यह विचारणीय है।
ये सब मैं क्यों लिख रहा हूँ? इसलिए कि हम वीणावदिनी सरस्वती की मूर्ति की पूजा करते हैं।
आधुनिक विज्ञान माननेवाले और मूर्तिभंजक लोग हमारी आस्था पर निर्मम आघात करते हैं।
हमें अपनी आस्था के गहरे विज्ञान के प्रति अवश्य उत्सुक रहना चाहिए।
✍🏻प्रमोद दुबे