भाजपा के ‘मठाधीशों’ की राजनीति में डगमग तीरथ-1
दो साल तक ‘अब बदला’,’तब बदला’ के बाद उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन तो हुआ मगर हालात नहीं बदले। भाजपा हाईकमान के प्रचंड जनादेश वाली सरकार की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत से वापस लेकर तीरथ सिंह रावत को सौंपने के बाद राज्य के हालात और भी बदतर दिख रहे हैं। राज्य का सिस्टम तो गर्त में है ही,‘मठों’ यानी सियासी ध्रुवों की सियासत के चलते राज्य में भाजपा की सियासी डगर भी कठिन होती जा रही है।
जनता के बीच नायक की छवि बनाने की कोशिश में नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत अपने ही फैसलों,घोषणाओं और बयानों पर घिरे। वह कहना कुछ चाहते और कह कुछ और जाते। कभी उनकी जुबान फिसली तो कभी उनके सामान्य ज्ञान और आधी आबादी को लेकर सोच पर सवाल उठे । तीरथ के बोलों पर सड़क से संसद तक उबाल उठा,सोशल मीडिया और टीवी चैनलों में तीरथ जबरदस्त तरीके से ट्रोल हुए। यह सही है कि तीरथ से लगातार चूक हो रही है मगर उनका ट्रोल होना सिर्फ चूक ही नहीं बल्कि उनके खिलाफ एक सोची समझी सियासत भी रही।
यहां तक कहा गया कि यह सब अगले मुख्यमंत्री के लिए हो रहा है। आगे क्या होगा यह तो नहीं कहा जा सकता।हां, त्रिवेंद्र के फैसलों को पलटते हुए पारी शुरू करने वाले तीरथ पहले ही पायदान पर डगमगाते दिखे । पूर्व के मुख्यमंत्रियों की तरह ही उनकी भी फजीहत शुरू हो गई। उनके कोरोना पॉजिटिव होकर एकांतवास में जाने को ‘डैमेज कंट्रोल’ की रणनीति माना गया।
उधर अचानक त्रिवेंद्र से राज्य की कमान हटाकर तीरथ को मिली तो त्रिवेंद्र को ले सहानुभूति का माहौल बना। ‘तीरथ से तो त्रिवेंद्र ही भले’ के सर्वे भी निकलने लगे लेकिन त्रिवेंद्र के लिए सहानुभूति तब खत्म हो गई जब उनके करीबियों के कारनामे खुलने लगे। उनके सलाहकारों और करीबियों ने चार साल में किस तरह करोड़ों के वारे-न्यारे किए इसके सनसनीखेज खुलासे होने से ‘जीरो टॉलरेंस’ के नारे वाले त्रिवेंद्र खुद कटघरे में आ गए।
कुल मिलाकर सियासी तौर पर उत्तराखंड बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में है। प्रचंड बहुमत के बावजूद सियासी षडयंत्रों और अस्थिरता के बीच राज्य की पूरी व्यवस्था झूल रही है। अलग-अलग पावर सेंटर बने मठों की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा राज्य की सियासत पर भारी है। भाजपाई सियासत के मठों की कहानी फिर कभी,अभी इतना ही कि मठों की सियासत से सत्ता का खेल बिगड़ता दिख रहा है। राज्य में भाजपाई सियासत में ध्रुव बने कुछ नेताओं की छवि दिनों-दिन खराब हो रही है तो दिल्ली में बैठे उत्तराखंड के कुछ नेताओं की इमेज बिल्डिंग चल रही है।
चलिए,उत्तराखंड में सत्ता के बिगड़ते खेल पर नजर दौड़ाते हैं। स्थिति यह है कि पूरे प्रदेश में त्रिवेंद्र सिंह रावत की फोटो के साथ ‘बातें कम और काम ज्यादा’ के होर्डिंग्स हट चुके। उनकी जगह तीरथ की फोटो के साथ ‘सबका साथ,सबका विकास और सबका विश्वास’ स्लोगन वाले होर्डिंग्स ने ले ली। प्रदेशभर में बदले स्लोगन और होर्डिंग्स सियासी बदलाव की पूरी कहानी बयां कर गए।
दुर्भाग्य देखिए,उत्तराखंड में होर्डिंग्स तब बदल रहे थे,जब त्रिवेंद्र के साथ ही उत्तर प्रदेश में पारी शुरू करने वाले योगी जनता के सामने चार साल का रिपोर्ट कार्ड रख रहे थे। योगी दावा कर रहे थे कि यूपी में जो दशकों में न हुआ वह पिछले चार साल में हुआ । चार साल में उत्तर प्रदेश देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका । ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग में यूपी दूसरे स्थान पर। बेरोजगारी दर 17.5 प्रतिशत से घटकर मार्च 2021 में 4.1 प्रतिशत तक आई।
यूपी की योगी सरकार उपलब्धियां गिना रही थी तो उत्तराखंड में सरकार बीते चार वर्षों पर बात करने से बच रही थी। चार साल पूरे होने पर त्रिवेंद्र सरकार के तय कार्यक्रम,मुख्यमंत्री बदलते ही निरस्त कर करोड़ों रुपये की प्रचार सामग्री रातों-रात ठिकाने लगा दी गई।
ऐसा नहीं कि उत्तराखंड में सरकार की कोई उपलब्धि नहीं थी, मगर सरकार किस मुंह से उन्हें गिनाती। त्रिवेंद्र को हटा भाजपा हाईकमान खुद ही उन पर प्रश्न लगा चुका था। त्रिवेंद्र की विदाई न होती तो निसंदेह उत्तराखंड में भी बड़ा जलसा होता। सरकार और संगठन दोनो जश्न मनाकर उपलब्धियां गिनाते। सरकार की ‘इमेज बिल्डिंग’ पर सरकारी खजाना लुटता, करोड़ों की बंदरबांट होती। इसके लिए तैयारियां पूरी थी मगर नियति में कुछ और ही था।
विडंबना देखिए,जब त्रिवेंद्र सरकार के चार साल पूरे होने का जश्न तय था, तब तक त्रिवेंद की विदाई हो चुकी थी। दस दिन पहले मुख्यमंत्री बने तीरथ रावत अपने बयानों को ले सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके से ट्रोल हो गये। तीरथ विवाद में तो आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना भगवान राम और कृष्ण से करने पर, इसके बाद तो यह सिलसिला ही बन गया। इस बयान पर तीरथ के पुतले फुंकने शुरू हुए ही थे कि सीएम का लड़कियों के रिप्ड जींस पहनने को लेकर एक बयान जबरदस्त तरीके से मीडिया में वायरल हो गया।
हालांकि यह बयान उन्होंने पहनावे को संस्कृति से जोड़ते हुए अलग संदर्भ में दिया लेकिन पहले से तैयार महारथियों ने इसे आधी आबादी के खिलाफ बता खूब हवा दी । फटी जींस और हैशटैग रिप्ड जींस तीरथ सोशल मीडिया पर कई दिन ट्रेंड रहे । तीरथ ने खेद जता मामले को शांत करने की कोशिश की कि इस बीच दो नए बयान और आ गए जिनसे तीरथ की पूरे देश में किरकिरी हो गई।
दरअसल एक सरकारी कार्यक्रम में तीरथ अपने भाषण में कह गए कि भारत दो सौ साल तक अमेरिका का गुलाम रहा। इतना ही नहीं, इसी भाषण में उन्होंने यह भी कहा, ‘लॉकडाउन में सरकार ने दो यूनिट वालों को 10 किलो राशन दिया और 20 यूनिट वालों को एक कुंतल। इस पर लोगों को एक दूसरे से जलन होने लगी कि 20 यूनिट वालों को एक कुंतल क्यों ? इसमें दोष किसका है ?उन्होंने बीस पैदा किए और आपने दो..’
इसका अर्थ निकाला गया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन्हें जलन हो रही है गलती उनकी है, उन्हें भी बीस बच्चे पैदा करने चाहिए थे। मुख्यमंत्री के दोनों बयान लपके गए। आम लोगों में तीखी प्रतिक्रिया के साथ तीरथ के सामान्य ज्ञान पर भी सवाल उठाए गए। तीरथ को सियासी मात देने वालों के लिए ये बयान हथियार बन गए । ……..जारी
लेखक योगेश भट्ट