डॉ. शमीम की करतूत थी मुरादाबाद दंगा, राजनाथ-माया समेत 14 CM ने दबाया सच
: मुरादाबाद दंगे में 13 स्थानों पर हुई सबसे ज्यादा लूटपाट व आगजनी, महिलाओं को भी बनाया निशाना
जांच रिपोर्ट में दावा किया है कि ईदगाह पर नमाज के बाद जानवर घुसने की अफवाह फैलाई गई थी। इसके बाद हिंसा भड़की थी। मुस्लिम लीग के नेता डॉक्टर शमीम और उसके समर्थकों ने अफवाह फैलाई थी।
Maximum looting and arson took place 13 places in Moradabad riots, women were also targeted
मुरादाबाद दंगे (प्रतीकात्मक) – फोटो : सोशल मीडिया
राजनीति में सबको पछाड़ने को मुरादाबाद में दंगा भड़काने का षड्यंत्र मुस्लिम लीग के डॉक्टर शमीम ने रचा था जिसकी चपेट में पूरा शहर आ गया था। शहर के 13 स्थानों पर सबसे ज्यादा आगजनी, लूटपाट और जनहानि हुई थी। इन स्थानों पर 13 अगस्त के बाद भी घटनाएं होती रही थीं। जिसमें महिलाएं और बच्चे भी लापता हो गए थे.
जांच रिपोर्ट में दावा किया है कि ईदगाह पर नमाज के बाद जानवर घुसने की अफवाह फैलाई गई थी। जिसके बाद शहर में दंगा भड़क गया था। इसके बाद भी मुस्लिम लीग के नेता डॉक्टर शमीम और उसके समर्थकों ने ये अफवाह भी फैलाई थी कि पुलिस कर्मी मुस्लिमों पर सीधे गोली चला रहे है जिसमें तमाम लोगों की मौत हो गई है। इससे शहर के दूसरे हिस्सों में भी दंगा भड़क गया था। लोग अपने घरों से निकले और थानों पर इकट्ठा हो गए थे। इसके बाद उन्होंने थाने, चौकी फूंक दिए थे। सरकारी वाहन और पुलिस वाहनों को निशाना बनाया गया था।
दंगे में सबसे ज्यादा आगजनी, लूटपाट और जनहानि ईदगाह, वरफखाना, पुलिस चौकी गलशहीद, चौराहा फैजगंज, चौराहा, तहसील स्कूल, चौराहा नागफनी, किसरौल, कोतवाली, गंज बाजार, दौलत बाग, कंबल का ताजिया में हुई थी। इस क्षेत्र में 13 अगस्त 1980 के बाद भी घटनाएं होती रहीं थीं। पुलिस कर्मियों पर भी हमले हुए थे।
भगदड़ हुई थीं सबसे ज्यादा मौतें
13 अगस्त 1980 में ईदगाह पर करीब 70 हजार नमाजी मौजूद थे। नमाज के बाद जानवर घुसने की अफवाह से लोग आक्रोशित हो गए थे। इसके बाद पुलिस कर्मियों को ही निशाना बनाने लगे थे। लोग अपनी जान बचाकर भागने लगे। जिससे मौके पर भगदड़ मच गई थी। भगदड़ में बुजुर्ग और बच्चे सड़क पर गिर गए थे। दंगे में मारे गए 83 लोगों में सबसे ज्यादा भगदड़ में लोगों ने जान गंवाई थी।
दंगे के मुकदमे की समीक्षा करेगा अभियोजन विभाग
मुरादाबाद में हुए दंगे में दर्ज किए गए मुकदमों की समीक्षा अभियोजन विभाग करेगा। इसके लिए थाने और कोर्ट से इसकी जानकारी जुटाई जाएगी। मुगलपुरा, कटघर, कोतवाली में 108 केस दर्ज किए गए थे। दोनों पक्षों की सहमति पर कई केसों में एफआर लगा दी गई थी।
अभियोजन विभाग कोर्ट और थानों से जानकारी जुटाएगा। इसके बाद लंबित मामलों में पैरवी कर पीड़ितों को न्याय दिलाया जाएगा। 13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद में हुए दंगे के बाद 108 केस दर्ज किए गए थे। इनमें होमगार्ड, पुलिस और पीएसी की ओर से 14 केस दर्ज कराए गए थे।
हिंदू पक्ष की ओर से 62 और मुस्लिम पक्ष ने 32 केस दर्ज कराए गए थे। इसमें से 32 मामलों में आरोपपत्र कोर्ट में दाखिल किए गए थे। जबकि 76 मामलों में साक्ष्य और गवाह नहीं होने पर फाइनल रिपोर्ट लगाई थी। मुगलपुरा थाने में 1995 से बाद का रिकॉर्ड है।
नागफनी में 2001 और कोतवाली में 1990 के बाद का रिकॉर्ड मौजूद है। जबकि शहर में 13 अगस्त 1980 हुआ था। जिस थानों में केस दर्ज किए गए थे। उन दोनों में रिकार्ड ही मौजूद नहीं है। अभियोजन विभाग सभी केसों की वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी करेगा। जो केस कोर्ट में लंबित हैं। उनकी पैरवी कर पीड़ितों को न्याय दिलाया जाएगा।
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भास्कर एक्सक्लूसिवमुरादाबाद दंगे में 5 महीने में गईं 83 जानें…देखिए तस्वीरें:शव कई दिन तक जहां-तहां पड़े रहे; इंदिरा ने कहा था-मुसलमान असुरक्षित होते तो आबादी दोगुनी न होती
मुरादाबाद18 घंटे पहलेलेखक: उमेश शर्मा
मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को दंगा भड़क गया था। शहर करीब 5 महीने तक सुलगता रहा।- फाइल फोटो
मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को दंगा भड़क गया था। शहर करीब 5 महीने तक सुलगता रहा।- फाइल फोटो
योगी सरकार ने 1980 में हुए मुरादाबाद दंगों की जांच रिपोर्ट विधानसभा में पेश की। इसके बाद से 43 साल पहले हुए मुरादाबाद दंगे फिर सुर्खियों में हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस एमपी सक्सेना ने 20 नवंबर 1983 को ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। लेकिन, 43 साल में किसी भी सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया। मुरादाबाद दंगे से न सिर्फ मुरादाबाद जला था, बल्कि आसपास के कई शहरों को भी इसने अपनी चपेट में लिया था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 16 अक्टूबर 1980 को मुरादाबाद आई थीं। उन्होंने यहां दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था। इंदिरा गांधी ने उसी ईदगाह में एक जनसभा को संबोधित किया था, जहां से दंगे भड़के थे। इसमें कहा था- मुसलमान अपने आप को असुरक्षित न समझें। क्योंकि, यदि मुसलमान असुरक्षित होते तो यहां आजादी के बाद उनकी जनसंख्या में दोगुनी वृद्धि न हुई होती।
हम आपको तस्वीरों के जरिए उस वक्त के हालात बयां करने की कोशिश करेंगे… लेकिन उससे पहले आपको दंगों के बारे में भी फैक्ट पढ़वाते हैं…
रिकॉर्ड में सिर्फ 83 मौतें, सैकड़ों ऐसे जो 43 साल बाद भी घर नहीं लौटे
सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि आजाद भारत के सबसे लंबे दंगों में शुमार होने वाले 1980 के मुरादाबाद दंगे में 83 लोगों की जान गई। 112 लोग घायल हुए। लेकिन, यह वो आंकड़ा है, जो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर तैयार हुआ। इसके इतर सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जो दंगे के दिन 13 अगस्त 1980 को अपने घरों से निकले थे, लेकिन न तो कभी इनकी लाशें मिलीं और न ही 43 साल बीतने के बाद भी ये घर लौटे हैं।
रमा अग्रवाल के पति विजय अग्रवाल घर से सामान लेने निकले थे। 43 साल बाद भी न तो वो घर लौटकर आए हैं और न आज तक उनकी लाश मिली। – Dainik Bhaskar
रमा अग्रवाल के पति विजय अग्रवाल घर से सामान लेने निकले थे। 43 साल बाद भी न तो वो घर लौटकर आए हैं और न आज तक उनकी लाश मिली।
उस वक्त शहर के मंडी चौक मोहल्ले में रहने वाले विजय अग्रवाल घर से कुछ सामान खरीदने निकले थे। विजय अग्रवाल के बेटे संजय अग्रवाल का कहना है कि 43 साल बाद भी न तो उनके पिता घर लौटे हैं और न ही कभी उनकी लाश मिली। ऐसी ही कहानी गलशहीद चौराहा निवासी फहीम हुसैन की है।
फहीम बताते हैं, ”13 अगस्त 1980 को पुलिस वाले उनके घर से उनके दादा अनवार हुसैन, पिता सज्जाद हुसैन, चाचा कैसर हुसैन और नौकर अब्दुल बिहारी को ले गए थे। इसके बाद न तो कभी उनकी डेडबॉडी मिलीं और न ही वो कभी लौटकर घर आए। शहर में ऐसी ही तमाम और भी कहानियां हैं। मिसिंग लोगों की ये तादाद बताती है कि मुरादाबाद दंगे में मरने वालों की संख्या सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़ों से काफी ज्यादा थी।”
फहीम हुसैन के पिता, दादा, चाचा और नौकर को 13 अगस्त 1980 को पुलिस घर से ले गई थी। चारों का आज तक कुछ पता नहीं चला। – Dainik Bhaskar
फहीम हुसैन के पिता, दादा, चाचा और नौकर को 13 अगस्त 1980 को पुलिस घर से ले गई थी। चारों का आज तक कुछ पता नहीं चला।
2 महीने बेकाबू रहे हालात, 5 महीने तक चली हिंसा
13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद में ईदगाह में ईद की नमाज के बाद हिंसा भड़की थी। उस वक्त नमाजियों के बीच सुअर घुस जाने की अफवाह के बाद ईदगाह में भगदड़ मच गई थी। उत्तेजित नमाजियों ने पहले पुलिस को निशाना बनाया था, फिर हिंदू उनके टारगेट पर आ गए थे।
देखते-देखते ही इस हिंसा ने हिंदू-मुस्लिम दंगे का रूप ले लिया था। शहर के सिविल लाइन्स एरिया को छोड़कर बाकी पूरा शहर दंगे की आग में जल उठा था। 13 अगस्त 1980 को शुरू हुए दंगे इतने भयानक थे कि करीब 2 महीने तक हालात पूरी तरह बेकाबू रहे थे। अक्टूबर के मध्य तक पुलिस-प्रशासन हालात पर नियंत्रण पा सका था।
1980 के दंगे का जिक्र छिड़ते ही रमा देवी की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। आसूं पोंछते हुए कहती हैं- वो (विजय अग्रवाल रमा देवी के पति) 43 साल बाद भी लौटकर नहीं आए। सालों तक हर आहट पर लगा मानो वो आ गए हैं। कभी उनकी लाश भी नहीं मिली। – Dainik Bhaskar
1980 के दंगे का जिक्र छिड़ते ही रमा देवी की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। आसूं पोंछते हुए कहती हैं- वो (विजय अग्रवाल रमा देवी के पति) 43 साल बाद भी लौटकर नहीं आए। सालों तक हर आहट पर लगा मानो वो आ गए हैं। कभी उनकी लाश भी नहीं मिली।
लेकिन हिंसा की घटनाएं दिसंबर 1980 के अंत तक रह-रहकर होती रही थीं। मुरादाबाद के दंगे करीब 5 महीने तक चले थे। इसीलिए इसे देश में सबसे लंबे दंगे के रूप में भी देखा जाता है। इस दंगे में दोनों पक्षों की ओर से कुल 207 मुकदमे दर्ज हुए थे। इसमें से कुछ मामले पुलिस की ओर से दर्ज किए गए थे।
पुलिस-प्रशासन ने तब 18 लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत कार्रवाई की थी। इसमें दंगे का सूत्रधार मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शमीम अहमद खान का नाम भी शामिल था। इसके अलावा, कांग्रेस के तत्कालीन शहर अध्यक्ष बाबू अशफाक अंसारी और शहर काजी काजी नुसरत को भी NSA के तहत जेल में रखा गया था।
2 दिन घर में ही पड़ी रही जमीला खातून की लाश
गलशहीद थाने के ठीक सामने जनरल स्टोर चलाने वाले मोहम्मद वसीम ने 1980 के मुरादाबाद दंगे में अपनी वालिदा (मां) जमीला खातून को खोया था। वसीम बताते हैं-13 अगस्त 1980 को ईद थी। जाहिर है सभी लोग बेहद खुश थे और सभी को ईद की नमाज पढ़कर एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देने की जल्दी थी। मेरे वालिद नमाज पढ़ने ईदगाह गए थे और वो नमाज पढ़कर लौट आए थे। मैंने पास की मस्जिद में ही नमाज पढ़ी थी। हम ईद की सिवईयां खाना शुरू करते उसके पहले ही दंगा भड़क चुका था।
घर में बन रहे पकवानों की खुशबू थोड़ी देर में ही चीख पुकार और गोलियों के शोर और बारुद की दुर्गंध तले दब चुकी थी। ईदगाह के पास में ही हमारा घर है। हम लोग डरे सहमे घर में छुप गए और दरवाजे को ठीक से बंद कर लिया। लेकिन, थोड़ी देर में ही दरवाजा तोड़े जाने की आवाजें आने लगीं। मारे डर के हम लोग दौड़कर छत पर पहुंचे और जहां-तहां भाग गए। मेरी वालिदा घर में ही रह गईं। बाद में उनकी लाश घर में पड़ी मिली।”
तस्वीर मोहम्मद वसीम की है। वसीम ने दंगे में अपनी मां जमीला खातून को खोया था।
वसीम बताते हैं- मेरी वालिदा को गोली लगी थी। बाद में हमारा घर जला दिया गया था । 2 दिन तक उनकी लाश घर में ही पड़ी रही। 2 दिन बाद रामपुर नवाब के आने पर ही लाश घर से निकाली जा सकी। वसीम के अनुसार उनके घर पर हमला और आगजनी पीएसी जवानों ने की थी।
2 महीने बाद मुरादाबाद पहुंची थीं तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 16 अक्टूबर 1980 को मुरादाबाद आई थीं। वें दंगा प्रभावित ईदगाह, गलशहीद, बरवलान क्षेत्र घूंमी ं। इसके बाद उसी ईदगाह में एक जनसभा संबोधित की थी, जहां से दंगे भड़के थे।
इंदिरा गांधी ने कहा था कि अपराधियों को सजा दी जाएगी। वे चाहे किसी भी वर्ग के क्यों न हों। पुलिस में सभी लोग खराब नहीं होते,जिनकी गलती है उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा था कि मुसलमान अपने आप को असुरक्षित न समझें। क्योंकि,यदि मुसलमान असुरक्षित होते तो आजादी बाद यहां उनकी जनसंख्या दोगुनी न हुई होती।
जनसभा के बाद पत्रकार वार्ता में इंदिरा गांधी ने कहा था कि दुनिया की कोई भी सरकार अकेले अपने दम सांप्रदायिकता खत्म नहीं कर सकती है। इसके लिए लोगों का परस्पर सहयोग जरूरी है। उन्होंने सरकारी अधिकारियों को भी निष्पक्ष कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे।
तस्वीर 16 अक्टूबर 1980 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मुरादाबाद के दंगा प्रभावित क्षेत्ररदेखने घूमने मुरादाबाद आई थीं।
14 अगस्त को मुरादाबाद पहुंचे थे विश्वनाथ प्रताप सिंह
13 अगस्त 1980 को दंगा भड़कने के बाद अगले दिन 14 अगस्त को देश के तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह मुरादाबाद पहुंचे थे। इनके साथ उस वक्त के दो अन्य केंद्रीय मंत्री भी थे। मंत्रियों के इस दल ने मुरादाबाद के हालात पर पूरी रिपोर्ट तैयार करके प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सौंपी थी। इसके बाद मुरादाबाद में मोहसिना किदवई और राजनारायण भी पहुंचे थे। 15 अगस्त 1980 को लालकिले की प्राचीर से भी इस दंगे का जिक्र हुआ था।
मुस्लिम लीग का डॉ. शमीम दंगे का सूत्रधार
जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट में मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शमीम अहमद खान को मुरादाबाद दंगों का सूत्रधार बताया गया है। शमीम के साथियों डॉ. अज्जी व कुछ अन्य की भी इसमें भूमिका था। दरअसल, डॉ. शमीम अहमद खान शहर विधानसभा से विधायक बनना चाहता था। वो दो बार चुनाव हार चुका था। इसलिए वो मुस्लिमों में अपना जनाधार बढ़ाना चाहता था।
आयोग की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 13 अगस्त 1980 को ईदगाह पर लगे मुस्लिम लीग के कैंप से ही नमाजियों के बीच सुअर घुसने की अफवाह फैलाई गई थी। इसके बाद डॉ. शमीम अहमद और उसके साथी डॉ. अज्जी आदि ने मुस्लिमों को भड़काया कि वो पुलिस-प्रशासन और हिंदुओं पर हमला करें।
तस्वीर 14 अगस्त 1980 की है। मुरादाबाद दंगे के बाद यूपी के तत्कालीन सीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह मुरादाबाद पहुंचे थे। – Dainik Bhaskar
तस्वीर 14 अगस्त 1980 की है। मुरादाबाद दंगे के बाद यूपी के तत्कालीन सीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह मुरादाबाद पहुंचे थे।
आयोग ने कहा- सुअर घुसने की कहानी दंगा भड़काने को रची गई
नमाजियों के बीच में सुअर घुस जाने के मुस्लिम पक्ष के दावे पर आयोग ने कहा है,”ईदगाह पर करीब 80 हजार नमाजी थे। ईदगाह की घटना से संबंधित सभी साक्षियों ने यह कहा है कि नमाजी कतारों में इतने नजदीक बैठे थे कि उनके बीच में किसी का भी गुजरना संभव नहीं था। इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ईद की नमाज के दौरान जबकि सैकड़ों या हजारों लोग सड़क पर तथा फुटपाथ पर रहते हैं, ईदगाह क्षेत्र में कोई सुअर घुस नहीं सकता है। उस समय ईदगाह क्षेत्र में अत्यधिक भीड़ थी। जब नमाजी जमीन पर उखड़ू बैठ जाते हैं तो उस मैदान में एक चीटी भी नहीं घुस सकती है।
इसलिए अभिलेखों के साक्ष्य तथा परिस्थितियों से नमाजियों के बीच सुअर के घुसने की कहानी झूठी साबित हो जाती है। यह निरा कुचक्र है और इसे दंगा भड़काने के लिए इस्तेमाल किया गया था। जिससे कि वाल्मीकियों, जिन्होंने कि मुसलमानों के शौचालयों की सफाई करने से इनकार कर दिया था, उन्हें सबक सिखाया जा सके।”
10 तस्वीरों में देखिए, उस वक्त का दंगा…
तस्वीर 13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद दंगे की है, दंगाइयों ने पुलिस कर्मी की हत्या कर दी थी।
हालात इस कदर खराब थे कि दंगे में के शव कई दिन तक जहां-तहां पड़े रहे थे
हालात इस कदर बेकाबू थे कि दंगे में मरने वालों के शव कई दिन तक जहां-तहां पड़े रहे।
घरों को फूंक दिया गया और करीब 2 महीने तक मुरादाबाद में पूरी तरह अराजकता रही।
कर्फ्यू लगाने के बावजूद स्थिति को नियंत्रित करने में पुलिस को 2 माह लगे।
13 अगस्त को शुरू हुए दंगे अक्टूबर के मध्य तक कंट्रोल में तो आए, लेकिन हिंसा की घटनाएं दिसंबर 1980 तक रुक-रुक कर होती रहीं।
पुलिस ने 18 लोगों पर NSA की कार्रवाई की थी। दंगाइयों से बड़े पैमाने पर हथियार भी मिले
1980 का मुरादाबाद दंगा आजादी के बाद देश का सबसे लंबे वक्त तक चला दंगा माना जाता है।
तस्वीर 1980 की है। मुरादाबाद दंगे के बाद राजनारायण मुरादाबाद पहुंचे थे।
तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह भी मुरादाबाद में दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने पहुंचे थे।