राजनीतिक बयानबाजी का सेना के मनोबल पर क्या असर होता है?

क्या राजनीतिक बयानबाजी से सेना का मनोबल कमजोर होता है? चीन से टेंशन के बीच समझिए अंदर की बात

चीन के साथ सीमा विवाद के बीच अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में चीनी सैनिकों और भारतीय सेना के बीच झड़प के बाद दोनों देशों में फिर से तनाव चरम पर है। इस मुद्दे पर विपक्ष भी केंद्र सरकार के साथ ही पीएम पर हमलावर रुख अपनाए हुए है। संसद में भी यह मुद्दा उठ चुका है।
हाइलाइट्स
चीनी सेना की तरफ से 9 दिसंबर को अरुणाचल के तवांग सेक्टर में हुई थी झड़प
भारतीय सेना की तरफ से LAC पर चीनी सैनिकों को दिया गया था करारा जवाब
कांग्रेस ने चीन के मसले को लेकर केंद्र पर लगाया था जानकारी छुपाने का आरोप

नई दिल्ली 20 दिसंबर: चीन के साथ सीमा विवाद के बीच अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में एलएसी पर चीन ने घुसपैठ की कोशिश है। भारतीय सेना की तरफ से चीनी सैनिकों को करारा जवाब दिया गया। इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी एलएसी पर झड़प को लेकर बयान दिया। विपक्षी दल इसको लेकर अपने-अपने तरीके से बोल रहे हैं। देश के भीतर इस तरह के भ्रमित करने वाले बयान क्या असर दिखाते हैं? तवांग सेक्टर और एलएसी पर क्या सुरक्षा के और उपाय किये जाने चाहिए इन सब बातों को लेकर रिटायर्ड फाइटर पायलट और रक्षा मंत्रालय में मुख्य प्रवक्ता रहे विंग कमांडर प्रफुल्ल बक्शी ने नवभारत टाइम्स के सीनियर जर्नलिस्ट नरेश तनेजा के साथ बातचीत की।

चीन शुरू से ही रहा है आक्रामक?

चीन के इस आक्रामक रुख को लेकर प्रफुल्ल बख्शी ने कहा कि चीन को कोई उकसावा नहीं हुआ है। भारत की आजादी के बाद से ही चीन अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश करता रहा है। चीन तिब्बत के साथ अरुणाचल के इलाके पर अपना दावा करता रहा है। चीन अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता रहा है। प्रफुल्ल बख्शी ने कहा कि एलएसी पर सीमा तय नहीं है और चीन इसका फायदा उठाकर अपना कब्जा करना चाहता है। उन्होंने कहा कि चीन की यह नीति रही है कि बिना लड़े दुश्मन को डरा दो और कब्जा कर लो।

1962 में चीन से क्यों हारा भारत?

रक्षा मंत्रालय में मुख्य प्रवक्ता रहे बख्शी ने कहा कि 1962 में भारत की हार की वजह का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने अपनी वायु सेना का इस्तेमाल नहीं किया। उसके बाद चीन निरंतर नाथू को लेने का प्रयास किया। 1967 में चीन ने नाथूला में यहीं किया था, जो इस समय तवांग में हुआ। उस समय भी धक्का-मुक्की होती थी। नाथूला में दोनों तरफ के सैनिकों के बीच विवाद के बाद चीन की तरफ से गोलीबारी में 50 सैनिक मारे गए। भारत ने जवाबी कार्रवाई में चीन के 500 जवानों को मार गिराया। हालांकि, उस समय सरकार की तरफ से कोई ऐक्शन नहीं करने का आदेश आया था। इससे पहले ही सेना की तरफ से कार्रवाई की जा चुकी थी।

राजनीतिक बयानबाजी का सेना पर असर नहीं

सेना को लेकर हो रही बयानबाजी पर प्रफुल्ल बख्शी ने कहा कि इस पर पहले हंसी आती है। उन्होंने कहा कि ये सब जो कुछ हो रहा है वह राजनीति से प्रेरित है। इस तरह की बयानबाजियों से सेना का आत्मविश्वास नहीं गिरता है। सेना इस तरह की बयानबाजियों को पूरी तरह से नजरअंदाज करती है। प्रफुल बख्शी ने यह सवाल उठाया कि 48 हजार वर्ग किलोमीटर तो पिछली सरकार चीन को दे चुकी है। उन्होंने कहा कि पहले डोकलम फिर गलवान और अब तवांग में सरकार के आदेश के अनुसार चीन को पीछे धकेला है। उन्होंने कहा कि अभी भी कई धारणाएं स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि सीमा को लेकर विवाद तो है। उन्होंने कहा कि सेना की तरफ से कार्रवाई में कोई कमी नहीं रही। उन्होंने कहा कि जो भी कमियां हैं उसको पूरा करने की कोशिश हो रही है।

अंतरराष्ट्रीय छवि पर तो असर पड़ता है

प्रफुल्ल बख्शी ने कहा कि इस तरह की राजनीतिक बयानबाजी का सेना पर भले ही असर ना हो लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका असर पड़ता है। इससे संदेश जाता है कि बाएं हाथ को पता नहीं है कि दायां हाथ क्या कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना को इस तरह की बातों से गुस्सा आता है। सेना को दुख होता है और हमारे ही लोग इस तरह से व्यवहार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को कमजोर करने की कोशिश करता है। उन्होंने कहा कि दुनिया जानती है कि लोकतांत्रिक देश में इस तरह की बातें होती हैं।

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