राम मंदिर,जी 20,नई संसद….2024 को फील गुड फैक्टर पर काम करेगी भाजपा
नई संसद, G20, राम मंदिर… नए साल में कैसे मिशन 2024 के लिए मोदी फैक्टर को मजबूत करेगी भाजपा?
अनुराग मिश्र |
भाजपा हर चुनाव को एक मिशन की तरह लेती है और आम चुनाव को ज्यादा ही गंभीरता से लिया जाता है। मिशन 2024 के लिए भाजपा रणनीति के तहत आगे बढ़ रही है। 2023 एक ऐसा साल होगा जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी अपनी और अपने सबसे बड़े नेता पीएम नरेंद्र मोदी की छवि को और बड़ा बनाने की कोशिश करेगी।
हाइलाइट्स
जी20 समिट के रूप में भाजपा को मिला है बड़ा मौका
2023 में मोदी की छवि को और बड़ा बनाने को होगी कोशिश
मिशन 2024: राम मंदिर और नया संसद भवन भी तैयार हो जाएगा
नई दिल्ली: भाजपा की अपनी एक स्टाइल है, जो मोदी-शाह के दौर में काफी सफल कही जा सकती है। बिना रुके, लगातार चुनावी रणनीति पर आगे बढ़ते रहना… जिस दिन गुजरात विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग खत्म होने वाली थी, उसी दिन दोपहर बाद भाजपा अगले चुनाव की तैयारियों में जुट जाती है। पीएम नरेंद्र मोदी सुबह गुजरात में वोट करते हैं और दिन चढ़ते ही दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों को लेकर एक अहम बैठक में शामिल होते हैं। 2014 से अब तक कुछ इसी तरह चलता आ रहा है। कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के नेतृत्व में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ लेकर निकली है। कहा जा रहा है कि 2024 के आम चुनावों में राहुल गांधी और उनकी पार्टी को कुछ फायदा हो सकता है। लेकिन भाजपा की रणनीति एक कदम आगे की है। उसने 2024 के लोकसभा चुनावों में जीत के लिहाज से कठिन मानी जाने वाली सीटों का अपना टारगेट 144 से बढ़ाकर 160 कर दिया है। 2024 के लिए भाजपा की रणनीति को समझें तो नया संसद भवन, जी20 का स्टेज, राम मंदिर का निर्माण ऐसे कई मुद्दे हैं जिसके आधार पर भाजपा एक दमदार नरैटिव के साथ नए साल का स्वागत करने वाली है।
लोगों के भीतर फीलगुड वाला फैक्टर
राजनीतिक मामलों की एक्सपर्ट नीरजा चौधरी ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा है। इसमें वह मुंबई के ताज होटल में जी-20 के प्रतिनिधियों की हाल में हुई बैठक का जिक्र करते हुए लिखती हैं कि तीन दिनों तक हुई इस बैठक के दौरान मुंबई चमक रही थी। आलोचक कह सकते हैं कि एयरपोर्ट के करीब झुग्गियों को बड़ी होर्डिंग से छिपाया गया था, कुछ इसी तरह डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के समय अहमदाबाद में देखने को मिला था। लेकिन इससे ऐतिहासिक इमारत की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई और स्थानीय लोगों के भीतर भी फीलगुड का सेंस कमजोर नहीं हुआ।
ग्रोथ के तमाम मसलों पर चर्चा के बाद जी-20 डेलिगेट्स ने 2000 साल पुरानी कान्हेरी गुफाएं देखीं और तस्वीरें लीं। यह बौद्ध जगत से भारत के प्राचीन कनेक्शन को सामने लाता है। ताज महल होटल को इस इवेंट के लिए चुनने की भी बड़ी वजह समझी जा सकती है। 2008 में पाकिस्तान से आए आतंकियों के हमले का यह गवाह बना था। यहां बुलाकर भारत ने दुनिया को संदेश देने की कोशिश की है कि आज के समय में आतंकवाद का सामना पूरी दुनिया को मिलकर करना है और यह वैश्विक चुनौती है।
2024 से पहले 2023 कितना खास
अब एक नया साल शुरू होने वाला है। 2023 न सिर्फ नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सत्ताधारी पार्टी भाजपा के लिए महत्वपूर्ण होगा बल्कि विपक्ष को भी अपनी तैयारियों को मजबूत करने के लिए यह साल मिलेगा। इसके ठीक बाद 2024 का सियासी संग्राम होना है। नीरजा चौधरी लिखती हैं कि पिछले वर्षों में हमने देखा है कि ‘हिंदू हृदय सम्राट’ मोदी, राष्ट्रवादी मोदी के राज में पुलवामा अटैक के बाद सर्जिटकल स्ट्राइक हुई। कोविड के विनाशकारी माहौल में फ्री राशन की योजना चली, जिससे मोदी की कल्याणकारी छवि बनी। इससे पहले गैस सिलेंडर दिया जाना शुरू हो चुका था। इससे भी पहले जन धन योजना और ऐसी कई योजनाओं से कुछ-कुछ पैसा बहुतों के हाथों में पहुंचा।
मोदी चाहते हैं, लोग अच्छा सोचें
मोदी चाहते हैं कि आर्थिक संकट का सामना करने के बावजूद लोग उनके बारे में अच्छा सोचें। नीरजा लिखती हैं कि वह अच्छा फील कराने के लिए बड़े सपने बेचते हैं। ओबीसी मोदी आगे और भी बहुत कुछ कर सकते हैं। जनवरी 2023 में यह होने की उम्मीद है क्योंकि ओबीसी आरक्षण के भीतर कोटा के पुनर्वितरण को तय करने के लिए चल रहे मामले में जस्टिस जी रोहिणी का फैसला आ सकता है और यह अति पिछड़ी जातियों को आकर्षित करने में भाजपा के लिए मददगार साबित हो सकता है।
जी-20 अध्यक्षता से भाजपा को क्या फायदा?
आगे 2023 में मोदी (के नेतृत्व में भारत) को विश्व गुरु के रूप में पेश करने की कोशिश हो सकती है। भारत के जी-20 का अध्यक्ष होने के दौरान, अगले साल विदेश नीति भाजपा के नरैटिव को आगे बढ़ा सकती है। वैसे, सभी जानते हैं कि औद्योगिक देशों एवं प्रभावशाली विकासशील देशों के शक्तिशाली समूह जी-20 का नेतृत्व या अध्यक्षता बारी-बारी से मिलती है और भारत को 2023 का साल मिला है। लेकिन क्या इससे 2024 के मध्य में होने वाले आम चुनावों में मदद मिलेगी? इस सवाल के बारे में सोचा जा सकता है।
दरअसल, यह एक अवसर है जिसे सत्ता पक्ष ने भुनाने की कोशिश की है और प्रधानमंत्री जी-20 के सितंबर में होने वाले शिखर सम्मेलन को महत्वपूर्ण मील का पत्थर बनाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। इसकी सांस्कृतिक विरासत, इसके विकास और अपने शहर के साथ-साथ पर्यटन स्थलों को सजाकर प्रदर्शित करने के लिए पूरे देश में सालभर में 200 कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है। उम्मीद की जा रही है कि इससे पर्यटकों की संख्या भी बढ़ेगी।
‘दुनिया में भारत का मान’ वाला फैक्टर
लेकिन यह सुनिश्चित करने की भी पूरी कोशिश हो सकती है कि प्रधानमंत्री की पहले से कहीं बड़ी छवि को पेश किया जाए जो अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, यूके और जर्मनी समेत शक्तिशाली देशों के नेताओं की मेजबानी करते दिखेंगे। इस शिखर सम्मलेन को दिलचस्पी के साथ पूरी दुनिया देखेगी। लेकिन भारत के हर घर में यह और करीब से देखा जाएगा। पहले से ही काफी युवा यह कहते हैं कि वे मोदी के प्रति आकर्षित हैं क्योंकि उन्होंने दुनिया में भारत की छवि को बढ़ाया है।
सत्तारूढ़ पार्टी की छवि को बेहतर करने के लिए शायद विरोधियों के खिलाफ ईडी के छापे और विपक्ष पर तीखे हमले जैसे विवादित मुद्दे जी-20 की चमक में छिप जाएं।
2023 में भाजपा के लिए तीन इवेंट्स
एक नहीं, ऐसी तीन घटनाएं हैं जिनके इर्द-गिर्द 2023 में भाजपा का नरैटिव सामने आ सकता है। फरवरी-मार्च में नई संसद भवन का उद्घाटन होना है, सितंबर के महीने में जी20 समिट है और फिर अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन 2024 की शुरुआत में होने की संभावना है। अयोध्या में लंबे समय से अटके पड़े राम मंदिर के निर्माण के जरिए भाजपा यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि वह जो कहते हैं वह करते हैं।
राज्यों में चुनाव भी
इन सबके बीच राज्यों में चुनाव भी हैं। 2023 की गर्मियों में कर्नाटक में चुनाव हैं। चूंकि जी-20 की अध्यक्षता दिसंबर 2023 तक चलेगी, ऐसे में सितंबर के शिखर सम्मेलन के बाद भी पार्टी तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और एमपी में होने वाले चुनावों को देखते हुए मोमेंटम बनाए रखना चाहेगी। इन चुनावों में बीजेपी का काफी कुछ दांव पर लगा है क्योंकि ये मिशन 2024 की बड़ी लड़ाई को पावर देंगे।
पिछले छह महीने से पार्टी उन 144 लोकसभा सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है जहां भाजपा 2019 के चुनाव में दूसरे या तीसरे नंबर पर आई थी। इस टारगेट को बढ़ाया गया है, वो भी तब जब बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) के साथ गठबंधन टूट चुका है। वहां पार्टी अपने बूते चुनाव लड़ने की तैयारी में है। इन मुश्किल सीटों के लिए केंद्रीय मंत्रियों को प्रभारी बनाया गया है और अमित शाह-जेपी नड्डा रिपोर्ट ले रहे हैं। मकसद साफ है कि यहां मुश्किल क्या है और क्या किया जाए कि पार्टी को इन सीटों पर जीत मिले। इनमें से ज्यादातर सीटें दक्षिणी राज्यों और पश्चिम बंगाल में हैं जहां भाजपा मजबूत नहीं रही है। बिहार और तेलंगाना पर विशेष फोकस है।
भाजपा की चुनौतियां
भाजपा के प्लान को चीन, कोविड और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चुनौतियां मिल रही हैं। चीन ने तवांग में माहौल खराब करने की कोशिश की है। उधर, उसके यहां अचानक कोरोना के मामले बढ़ने लगे हैं और अमेरिका में मंदी के हालात को देखते हुए 2023 में आर्थिक रिकवरी कैसे होती है, यह देखना होगा। इसमें विपक्ष को अपनी रणनीति स्पष्ट रखनी होगी तभी 2024 में भाजपा को कड़ी चुनौती दी जा सकेगी
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