विश्वासघातियों की गवाही से हुई थी भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी
अपनों के धोखे से फांसी चढ़े भगत सिंह, 20 हजार में बिके गद्दार, 50 साल बाद जागा एक का जमीर, फिर…
अपनों के धोखे से फांसी चढ़े भगत सिंह, 20 हजार में बिके गद्दार, 50 साल बाद जागा एक का जमीर, फिर…
भारतीय इतिहास का एक पूरा अध्याय गद्दारों से भरा पड़ा है. गद्दार शब्द के पर्याय के रूप में जयचंद से लेकर मीर जाफर तक के नाम लिए जाते हैं. स्वंतत्रता आंदोलन के वक्त भी कई ऐसे गद्दार पैदा हुए जिसकी कीमत देश को चुकानी पड़ी है।
देश के इतिहास का एक प्रमुख अध्याय गद्दारों से भरा हुआ है. कई की गद्दारी की कीमत देश के लिए महंगी पड़ी है.
देश के इतिहास का एक प्रमुख अध्याय गद्दारों से भरा हुआ है. कई की गद्दारी की कीमत देश के लिए महंगी पड़ी है.
ठीक 94 साल पहले वह महीना भी अप्रैल था और तारीख थी आठ. उसी दिन देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने एसेंबली बिल्डिंग में विस्फोट किया और गोरी शासन व्यवस्था को सीधी चुनौती दी. मौजूदा संसद भवन को ही उस वक्त सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली कहा जाता था. इससे पहले 23 मार्च 1931 को इस महान क्रांतिकारी ने महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए अपने साथी राजगुरु के साथ मिलकर ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर सैंडर्स को गोली मार दी थी. इसी सैंडर्स हत्याकांड में भगत सिंह और उनके दो साथियों को फांसी की सजा दी गई. मगर, आज की हमारी बातचीत भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी को लेकर नहीं है बल्कि हम आज इन तीनों महान क्रांतिकारियों को फांसी दिलवाने में उनके साथ गद्दारी करने वाले गद्दारों के बारे में बात करने वाले हैं.
दरअसल, सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली में सांकेतिक बम विस्फोट करने के बाद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने सरेंडर कर दिया था. उनका मकसद देश के युवाओं में आजादी की अलख जगाना था और इसी उद्देश्य से उन्होंने विस्फोट करने के बाद सरेंडर भी किया था. लेकिन, करीब दो साल की अदालती कार्यवाही के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और उनके दोनों साथियों को लाहौर जेल में फांसी की सजा दे दी गई. इसी दो साल की अदालती कार्यवाही के दौरान उनके साथ छल हुआ. उनके अपने कुछ साथी अंग्रेजों से मिल गए और वह भगत सिंह के खिलाफ गवाह बन गए.
भगत सिंह के पांच साथी अंग्रेजों से मिले
ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक मुकदमें की सुनवाई के दौरान ब्रिटिश पुलिस ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के पांच सदस्यों को अपने पाले में कर लिया. इन पांचों को लालच दिया गया और ये पांचों अपने ही नेता भगत सिंह के खिलाफ मुकदमें की सुनवाई के दौरान ब्रिटिश पुलिस के गवाह बन गए. इन पांचों की गद्दारी के कारण ही मुकदमें में भगत सिंह को दोषी करार दिया गया. ये पांचों के नाम थे – जय गोपाल, फनिंद्रनाथ घोष, मनमोहन बनर्जी, कैलाश पति और हंसराज बोहरा. इनमें से पहले चार गवाहों को ब्रिटिश पुलिस ने 20-20 हजार रुपये दिए. पांचवें गवाह हंसराज बोहरा ने रिश्वत नहीं ली और उसने शर्त रखी कि वह भगत सिंह के खिलाफ तभी गवाही देगा, जब उसे लंदर स्कूल ऑर जर्नलिज्म में दाखिला दिलावा दिया जाए. ब्रिटिश पुलिस ने इसकी भी शर्त मान ली.
भगत सिंह और उनके साथियों के साथ गद्दारी करने के कारण इन पांचों को आधुनिक भारतीय इतिहास का गद्दार माना जाता है. इन गद्दारों में से फनिंद्र नाथ घोष को इसकी कीमत उसी समय ही चुकानी पड़ी थी. एचएसआरए के सदस्य और क्रांतिकारी बैकुंठ शुक्ला ने घोष की 1932 में हत्या कर दी थी. शुक्ला ने खुलेआम कहा था कि घोष को उन्होंने उसकी गद्दारी के कारण मारा.
पांचवें गद्दार ने मांगी माफी
मजेदार बात यह है कि इन पांचों में से सबसे कपटी हंसराज बोहरा था. उसने भगत सिंह के खिलाफ गवाही के लिए कोई धन तो नहीं लिया बल्कि जर्नलिज्म पढ़ने लंदन चला गया. लंदन स्कूल ऑफ जर्नलिज्म से पढ़ाई करने और काफी समय तक लंदन में रहने के बाद बोहरा आजादी के बाद भारत आया और कई प्रमुख समाचार पत्रों के साथ काम किया. 70 के दशक में वह कई समाचार पत्रों में विदेशी मामलों का एडिटर रहा. फिर वह लंबे समय तक अमेरिका में रहा. वह वाशिंगटन में लंबे समय तक कई भारतीय समाचार पत्रों का प्रतिनिधि रहा. वह फिर वाशिंगटन में ही रहने लगा. फिर 1980 के दशक में जीवन के अंतिम वर्षों में घोष को अपनी गद्दारी का अहसास हुआ. उसने पश्चाताप के लिए खुशदेव के भाई एक लंबा पत्र लिखा और अपनी करनी थे लिए माफी मांगी.
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