हिंसा

BJP के साथ विपक्षी राज्यों में भी हुई हिंसा, मणिपुर और नूंह में हुई हिंसा के पीछे लंबी प्लानिंग और तैयारियों का संकेत

अवधेश कुमार

पहले मणिपुर और उसके बाद हरियाणा (नूंह) की हिंसा ने देश के सामूहिक मानस को हिला दिया है। यह प्रश्न इस समय आम है कि आखिर भाजपा शासित राज्यों में ऐसी घटनाएं ज्यादा क्यों हो रही हैं?

हिंसा का सिलसिला

भाजपा शासित राज्यों- हरियाणा और मणिपुर के अलावा उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र में हाल में सांप्रदायिक हिंसा हुई है।
दिल्ली में फरवरी 2020 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान हुए दंगों से लेकर पिछले वर्ष हनुमान जयंती शोभायात्रा और इस वर्ष मुहर्रम तक हिंसा की एक श्रृंखला है। दिल्ली में भले आप की सरकार हो, कानून व्यवस्था केंद्र की भाजपा सरकार की ही जिम्मेदारी है।
सांप्रदायिक हिंसा से मुक्त और सुरक्षित प्रदेश माने जाने वाले गुजरात में भी धार्मिक उत्सवों के दौरान ऐसी घटनाएं हुईं ।
उत्तर प्रदेश में पिछले वर्ष जून में नूपुर शर्मा प्रकरण को आधार बनाकर कानपुर में भीषण हिंसा हुई। प्रयागराज में इसी को लेकर तोड़फोड़, पथराव और पेट्रोल बम फेंके जाने की घटनाएं हुईं।
ऐसा नहीं है कि हिंसा दूसरे राज्यों में नहीं हुई। नव संवत्सर और हनुमान यात्रा पर पिछले वर्ष राजस्थान और अग्निवीर योजना पर बिहार में हिंसा हुई। रामनवमी यात्रा पर बिहार और बंगाल हिंसा का शिकार हुआ। यानी यह कहना ठीक नहीं है कि हिंसा केवल ऐ के राज्यों में ही हो रही है। फिर भी अगर भाजपा शासित राज्यों की ज्यादा बात हो रही है तो उसकी कुछ वजहें हैं।

भाजपा शासित राज्यों की हिंसा,ज्यादा विस्तारित एवं भीषण थी।
मणिपुर और हरियाणा की हिंसा को दो समुदायों या जातियों के बीच होने वाला सामान्य संघर्ष या टकराव नहीं कहा जा सकता। नूंह में कथित तौर पर जलाभिषेक यात्रा के दौरान टकराव ने हिंसक रूप ले लिया।
हिंसा के ये पैटर्न कारणों और परिणामों को नए नजरिये से समझने को विवश करते हैं। हिंसा से जुड़े ऐसे कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं, जिनसे काफी कुछ समझ आता है।
घरों की छतों और धार्मिक स्थलों से भारी मात्रा में पत्थर, पेट्रोल बम एवं अन्य हथियार चलते दिखे। यह एक-दो दिनों की तैयारी से संभव नहीं है।
जिस तरह मिनटों में बड़े-बड़े वाहन, मकान, दुकान और थाने तक जलने लगे, वह प्रशिक्षित व्यक्तियों से ही संभव है।
हिंसक तत्वों का एक तबका सुरक्षा बलों से भी टकरा रहा है। ऐसा तभी संभव है,जब पुलिस आदि का भय खत्म हो रहा हो।
हिंसा के विरुद्ध जो प्रतिक्रियाएं विदेश में सुनाई पड़ीं,वे एकपक्षीय रही हैं। उदाहरण के लिए,मणिपुर की घटना पर यूरोपीय संसद और ब्रिटिश संसद ही नहीं,चर्च ऑफ इंग्लैंड तक की प्रतिक्रिया आई। इससे इनकी ताकत का प्रमाण मिलता है।
इन सबका अर्थ यही है कि देश में अंदर ही अंदर हिंसा की तैयारियां हुईं हैं। इसके कुछ कारण साफ नजर आते हैं।

अभी तक की सरकारें मुसलमानों के आवश्यक विषयों को भी स्पर्श करने से बचती थीं। भाजपा सरकारों ने अनेक विषयों पर खुलकर बोला है और कई साहसी उठाए हैं। उदाहरण के लिए, एक साथ तीन तलाक खत्म करना।
इससे कुछ भयभीत होकर बचाव व लड़ाई के सामान इकट्ठा करते हैं, कुछ समाज विरोधियों के साथ चले जाते हैं।
हिंदुत्व के नाम पर हीरो बनने वाले कुछ लोग ऐसे वक्तव्य देते रहे हैं,जिनसे एक समूह के अंदर गुस्सा,भय और उत्तेजना पैदा होती है। ऐसे लोगों का संघ और भाजपा से संबंध नहीं होता पर आम धारणा यही है कि ये उन्हीं के लोग हैं।
इन सबके साथ ही यह भी सच है कि भाजपा और हिंदुत्ववादी शक्तियां दुष्प्रचारों का खंडन करने में सफल नहीं हैं। नूपुर शर्मा प्रकरण के बाद भाजपा के प्रवक्ता मुसलमानों से जुड़े विषयों पर टीवी डिबेट तक में नहीं जाते। इस कारण पूरा नैरेटिव एकपक्षीय हो जाता है। नूंह की हिंसा पर भी भाजपा का कोई मान्य प्रवक्ता डिबेट में नहीं था। कई राज्य सरकारों ने संबंधित सूचनाओं को गंभीरता से नहीं लिया। इस कारण से न सरकारी मशीनरी लोगों तक पहुंची और न ही सुरक्षा व्यवस्था आवश्यकता के अनुरूप हुई। अगर सरकार एवं संगठन का तंत्र लोगों तक पहुंच कर गलतफहमी दूर करने का अभियान चलाता तो हिंसा होती नहीं और होती भी तो उसका स्वरूप और विस्तार इतना भीषण नहीं होता। ऐसा कहने वाले भी हैं कि चुनाव के लिए भाजपा ही दंगा करवा रही है। इसका भी विश्लेषण किया जा रहा है कि इससे चुनाव में किसको लाभ होगा। गुजरात दंगों के बाद भाजपा लगातार प्रदेश में चुनाव जीती और मुजफ्फरनगर दंगों का लाभ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को लोकसभा चुनाव में केवल उत्तर प्रदेश नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी मिला।

मजबूत इकोसिस्टम

वैसे गुजरात दंगों के बाद 2004 लोकसभा चुनाव भाजपा हारी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार चली गई। लेकिन ऐसे नैरेटिव वालों का इकोसिस्टम मजबूत है। जरूरी है कि ‌भाजपा हिंसा के कारणों व तरीकों की गहन समीक्षा करे। खतरों एवं चुनौतियों के अनुरूप सुरक्षा व्यवस्था के साथ प्रभावी नैरेटिव निर्माण तंत्र खड़ा करने की भी आवश्यकता है।

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