अमेरिका
कनाडा में पटेल परिवार की ठंड से जमकर मौत, क्या कह रही है पुलिस
कुछ लोगों का यह कहना है कि पटेल परिवार सीमा पार करने के लिए करीब 11 घंटे तक पैदल चला
कनाडा के अधिकारियों का मानना है कि अमेरिका सीमा से चंद क़दम पहले मृत पाए गए एक भारतीय परिवार की घटना मानव तस्करी से जुड़ी है.
39 वर्षीय जगदीश पटेल, 37 वर्षीय वैशालीबेन पटेल और उनके बच्चे 11 साल की बेटी विहांगी और 3 साल के बेटे धार्मिक की अमेरिकी सीमा से लगे कनाडा के मेनिटोबा शहर में ठंड से जमने से मौत हो गई.
कनाडाई अधिकारियों का मानना है कि भारतीय परिवार के चार सदस्यों की मौत का मानव तस्करी से संबंध है. चारों की मौत कनाडा के मैनिटोबा के पास अत्यधिक ठंड में जमने की वजह से हुई.
ये परिवार जिस रात पैदल अमेरिका जाने की कोशिश कर रहा था, तब तापमान माइनस 35 डिग्री सेल्सियस पहुँच गया था.
कनाडा में भारतीय उच्चायोग ने मारे गए परिवार के सदस्यों की पहचान बताई जिसकी बाद में कनाडा की रॉयल कनेडियन माउंटेड पुलिस (आरसीएमपी) ने भी पुष्टि कर दी.
जयंती पटेल और उनका परिवार
गुरुवार को आरसीएमपी सुप्रिटेंडेट रॉब हिल ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया कि पटेल परिवार सबसे पहले 12 जनवरी को विमान से कनाडा के टोरंटो शहर पहुँचा था. यहां से परिवार पश्चिमी कनाडा के मैनिटोबा गया और फिर 18 जनवरी के आसपास सीमावर्ती शहर इमर्सन की तरफ बढ़ा. अगली रात को उनके शव मिले.
इमर्सन में कनाडा-अमेरिका सीमा के पास कोई वाहन नहीं मिला, जिससे ऐसा लगता है कि कोई व्यक्ति उन्हें गाड़ी से किसी जगह छोड़ गया, और वहाँ वो पैदल ही आगे बढ़ने लगे.
रॉब हिल ने कहा, “एक ऐसा परिवार जो कनाडा से परिचित नहीं था, वो एक लंबे समय तक सफ़र करता रहा.” ऐसा समझा जाता है कि शायद किसी ने उनकी मदद की होगी,
बर्फ़ की मोटी चादरों में जांच के लिए पुलिस स्नोमोबाइल और अन्य वाहनों का इस्तेमाल कर रही है
19 जनवरी को ही मानव तस्करी के आरोप में पकड़ा गया था एक शख़्स
19 जनवरी की शाम को ही सात भारतीयों के एक अन्य समूह को भी बॉर्डर एजेंटों ने पकड़ा था.
हालांकि, आरसीएमपी ने इस सवाल पर कोई जवाब नहीं दिया कि क्या पटेल परिवार का मामला इन सात लोगों के समूह वाले केस से जुड़ा है.
फ़्लोरिडा के निवासी 47 वर्षीय स्टीव शैंड को एक वैन में 15 लोगों को भर सीमा तक ले जाते हुए मानव तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
यह मामला उसी रात का है, जिस रात पटेल परिवार के शव मिले. शैंड के वैन में दो भारतीय यात्री भी थे और उनके बूट में खाने और पानी के डिब्बे थे.
पटेल परिवार की मौत से मैनिटोबा में रह रहे भारतीय परिवार सकते में हैं
इंडिया एसोसिएशन ऑफ मैनिटोबा के अध्यक्ष रमनदीप ग्रेवाल ने बीबीसी को बताया, “यहां अधिकतर लोग खुद को दोषी महसूस कर रहे हैं, जैसे कुछ गलत हो गया हो.”
हालांकि, यह सवाल अब तक बना हुआ है कि कनाडा में कड़ाके की ठंड के बावजूद पटेल परिवार पैदल ही सीमा पार करने क्यों निकल पड़ा. रमनदीप ने कहा कि उन्होंने ऐसी बातें भी सुनीं कि यह परिवार 11 घंटे तक पैदल चला.
पटेल परिवार के लिए इस हफ्ते प्रार्थना सभा का आयोजन करने वाले कनाडा में रह रहे भारतीय प्रवासी हेमंत शाह बताते हैं कि इसी तरह के सवालों ने विनिपेग में रह रहे भारतीयों को भी बेचैन कर दिया है.
वह कहते हैं, “यहां कई सारे पटेल परिवार रहते हैं, बहुत सारे भारतीय-कनाडाई हैं. सब बातें कर रहे हैं, अपनी-अपनी कहानियां बना रहे हैं.”
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कनाडा में अलग तरह का मामला
दरअसल, अमेरिका के दक्षिणी सीमा से जोखिम उठाकर दूसरे पार जाना अब आम बात है लेकिन उत्तर में अभी भी ऐसे कम ही मामले सामने आते हैं.
शाह कहते हैं, “मैंने कनाडा में ऐसा कभी नहीं देखा था. यह पहली बार है.”
आरसीएमपी ने यह जानने के लिए बड़े पैमाने पर जांच शुरू कर दी है कि आखिर पटेल परिवार अमेरिका और भारत के साथ समन्वय करते हुए कनाडा कैसे पहुंचा. अभी तक यह पता नहीं लग सका है कि मारे जाने वाले लोगों का कनाडा या अमेरिका में कोई अपना रहता था या नहीं.
भारतीय दूतावास से एक अधिकारी की अगुवाई में विशेष टीम को जांच में कनाडाई प्रशासन को सहयोग के लिए मैनिटोबा भेजा गया है.
टोरंटो में भारत का वाणिज्य दूतावास भी मदद के लिए परिवार के संपर्क में बना हुआ है.
बीते हफ्ते, अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी अधिकारियों ने कहा था कि वे पटेल मामले के साथ ही एक बड़े मानव तस्करी अभियान की जांच में जुटे हुए है. इस अभियान में स्टीव शैंड के शामिल होने का संदेह है.
अदालत के दस्तावेज़ों के मुताबिक, जिस जगह से स्टीव शैंड को पकड़ा गया, वहां दिसंबर और जनवरी में मानव तस्करी के तीन अन्य मामले भी सामने आए थे.
इंडिया एसोसिएशन के रमनदीप ग्रेवाल उम्मीद जताते हैं कि आने वाले समय में इस तरह का कदम उठाने वाले परिवार अपने फैसले पर दोबारा विचार करेंगे.
वे कहते हैं, “अगर कोई और भी इसी तरह सीमा पार करना चाहता है, तो मत जाओ, उन लोगों की बात मत सुनो जो कहते हैं कि वे आपकी मदद कर सकते हैं.”
BBC News, हिंदी
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गुजरात का लापता पटेल परिवार और उनका अमेरिकन ड्रीम
रॉक्सी गागडेकर छारा और भार्गव पारिख
बीबीसी संवाददाता, कलोल (गुजरात) से
26 जनवरी 2022
जयंती पटेल और उनका परिवार
इमेज स्रोत,KARTIK JANI
इमेज कैप्शन,
जयंती पटेल और उनका परिवार
गुजरात में गांधीनगर के कलोल तहसील के डिंगुचा गांव में घुसते ही एक सुनसान पड़े बंद गेट वाले बंगले का नज़रों से छूट जाना मुश्किल होगा.
यह बंगला वहां एक ही कतार में बने कई घरों में से एक है. बीते कुछ दिनों से यह घर मीडिया की सुर्खियों में है. यह वही घर है जहां रहने वाले एक परिवार के चार लोग बीते कुछ दिनों से कनाडा से लापता हैं और आशंका जताई जा रही है कि माइनस 35 डिग्री में बर्फ़ीले तूफ़ान का सामना करते हुए हो सकता है इनकी मौत हो गई हो.
इस घर के चार लापता लोगों में जगदीश पटेल, उनकी पत्नी वैशाली पटेल, उनकी बेटी और तीन साल का उनका बेटा शामिल हैं.
हालांकि, भारत सरकार या कनाडा में भारतीय दूतावास या गुजरात सरकार में से किसी की ओर से इस परिवार की मौत की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है
गुजरात में गांधीनगर के कलोल तहसील के डिंगुचा गांव
गुजरात में गांधीनगर के कलोल तहसील के डिंगुचा गांव
पिता बलदेवभाई का क्या है कहना?
बीबीसी की टीम जब इस गांव में पंहुची तो पाया कि गांव वाले इस परिवार को लेकर चिंतित थे. बीते कुछ दिनों में इस परिवार के बारे में और मालूम करने के लिए कई पत्रकार इस गांव में आ चुके हैं.
हमने जगदीश पटेल के पिता बलदेवभाई से बात कर इस घटना के बारे में और जानकारी ली.
बलदेवभाई पटेल कहते हैं, “मेरा बेटा 10 दिन पहले अपनी पत्नी, बेटी विहंग और बेटे धार्मिक के साथ कनाडा गया था. उसने मुझे फ़ोन पर बताया था कि उसे कनाडा का वीज़ा मिल गया है.”
“जगदीश ने ये भी बताया कि कनाडा पहुंचने पर वो मुझसे विस्तार से बातचीत करेगा, लेकिन बीते चार दिनों से हमारी जगदीश के साथ बात नहीं हुई है. हम अपने संबंधियों के ज़रिए जगदीश के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिशें कर रहे हैं.”
बलदेवभाई एक किसान हैं जिनके पास 20 बीघा ज़मीन है. जगदीश, जो बलदेवभाई की किसानी में सहायता करते थे, अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए कलोल शहर में बस गए थे.
जगदीश की कलोल में बिजली के सामान की दुकान थी.
जगदीश पटेल का घर
बलदेवभाई कहते हैं कि उन्हें यह नहीं पता है कि जगदीश और उनके परिवार ने कनाडा के लिए वीज़ा का आवेदन कब दिया.
गांव वालों के मुताबिक़, परिवार 10 दिन पहले विज़िटर वीज़ा पर कनाडा गया था, लेकिन बीते पांच दिनों से यहां उनके परिवार को उनका कोई अता-पता नहीं है.
डिंगुचा ग्राम पंचायत के एक सदस्य ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि जब परिवार के सदस्यों की जगदीश से कोई बात नहीं हो सकी तब उन्होंने विदेश मंत्रालय से आधिकारिक मेल के ज़रिए संपर्क करने का फ़ैसला किया और मेल भेजा गया.
उन्होंने कहा, “हमने सोचा कि इससे मदद मिलेगी क्योंकि यहां सभी इस बात को लेकर डरे हुए थे कि कहीं वो मुसीबत में ना पड़ गए हों, तो हमने विदेश मंत्रालय को लिखने का फ़ैसला लिया.”
बीबीसी से उन्होंने कहा, “जगदीशभाई का कलोल में अपना घर है जो डिंगुचा गांव से क़रीब 12 किलोमीटर दूर है. किसानी में अपने पिता की मदद करने के साथ ही पर्व-त्योहार के दौरान वे कपड़े भी बेचते थे. वे कलोल में मर्दों के कपड़ों के थोक व्यापारी भी थे.,
अमरत पटेल
विदेश जाने का दबाव
हमने गांव के कुछ अन्य लोगों से भी बात की.
एक अन्य व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ”इस गांव के हर परिवार की यही कोशिश होती है कि विदेश में उनका अपना कोई न कोई क़रीबी संबंधी हो. ऐसे भी उदाहरण हैं जब शादी के उम्र के हो चुके लड़के को लड़की केवल इसलिए नहीं मिली कि विदेश में उनके घर का कोई सगा-संबंधी नहीं था.”
हमने कुछ और लोगों से बात करके यह जानने की कोशिश की कि आखिर यहां के परिवारों पर विदेश में किसी न किसी सदस्य के होने का दबाव क्यों है. यहां हर एक व्यक्ति को अमेरिकी वीज़ा से जुड़े नियमों की जानकारी है. उनके पास अलग-अलग वीज़े की जानकारी है. वो इससे अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं कि किस वीज़े से ग्रीन कार्ड या अमेरिकी नागरिकता मिलेगी.
ऐसे ही एक व्यक्ति ने बताया कि केवल वो व्यक्ति ही गांव में रह जाता है जो विदेश जाने के लिए फ़ंड इकट्ठा करने में सक्षम नहीं है.
मज़दूरों के ठेकेदार केएल पटेल ने बताया कि वो गांव में एक क़ब्रिस्तान बना रहे हैं, जिसके लिए पैसे गांव के एनआरआई लोगों ने दिए हैं.
पटेल कहते हैं कि डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक की लागत से एक मंदिर का निर्माण भी कराया जा रहा है.
जयेश चौधरी
अमेरिका कैसे पहुँचे
जब हमने डिंगुचा ग्राम पंचायत के एक प्रतिनिधि से पूछा कि ‘ये अमेरिका कैसे पहुँचे थे’ तो उन्होंने कहा कि यहाँ का हर बच्चा विदेश जाने के सपने के साथ जन्म लेता है.
उन्होंने कहा, ”यहाँ हर कोई एजेंट को देने के लिए पैसे बचाता है ताकि वो अमेरिका में एंट्री दिलवा सके. यहाँ से पहले कई लोग बिना मुकम्मल दस्तावेज़ के अमेरिका गए और इनमें से ज़्यादातर लोग अच्छा कर रहे हैं.”
अमरत पटेल 1988 में अमेरिका गए थे और अब वह वहाँ के नागरिक हैं. दो साल के भीतर ही उन्हें ग्रीन कार्ड मिल गया था. बाद में उन्होंने अपने परिवार वालों को बुला लिया. उनका परिवार भी अब अमेरिकी नागरिक है. पटेल वहाँ फूड का कारोबार चला रहे हैं. अब वह रिटायर हो गए हैं और अपने गाँव में कम से कम पाँच महीने से हैं. उन्होंने कहा कि ”यहाँ से जो भी अमेरिका जाता है, उसे शुरुआती मदद की ज़रूरत होती है और हमलोग उसे वहाँ मदद करते हैं. ”
अरमत पटेल ने कहा, ”यहाँ से अमेरिका आने पर लोग शुरुआत में अलग-अलग दुकानों पर काम करते हैं. तब वे अकुशल श्रमिक के तौर पर काम करते हैं और बाद में ट्रेनिंग लेना शुरू करते हैं. सभी लोग अमेरिका अवैध रूप से ही नहीं जाते हैं. बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जो वैध दस्तावेज़ के साथ गए हैं.”,
पटेल परिवार अभी क्या कर रहा है?
इस घटना के बाद गाँव के लोग भारत सरकार से आधिकारिक पुष्टि का इंतज़ार कर रहे हैं. जगदीश पटेल के माता-पिता अपना गाँव छोड़ अहमदाबाद में रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं. डिंगुचा गाँव के तहसीलदार जयेश चौधरी ने कहा, ”चार शवों के बारे में अंतरराष्ट्रीय मीडिया में रिपोर्ट छपी है. कहा जा रहा है कि चार लोग कनाडा गए थे और पिछले कुछ दिनों से ग़ायब हैं.”