अमेरिका कर रहा विदेशों में मंहगाई निर्यात
Explainer : तो यूं अमेरिका दूसरे देशों में एक्सपोर्ट कर रहा महंगाई… बर्बाद हो जाएंगे छोटे देश, बड़ों की होगी बुरी हालत
पवन जायसवाल
हाइलाइट्स
चीन की करेंसी युआन 14 साल के सबसे निचले स्तर पर आई
ब्रिटिश पाउंड सोमवार को रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया था
मौजूदा वैश्विक स्थिति ने उभरते बाजारों के लिए पैदा किया खतरा
इस समय प्रेशर कूकर की तरह है वैश्विक वित्तीय प्रणाली
नई दिल्ली 02 अक्टूबर: दुनिया में इस समय दो सबसे बड़ी समस्याएं हैं। पहली महंगाई (Inflation) और दूसरी मंदी। पूरी दुनिया इस समय महंगाई से परेशान है। महंगाई दर दशकों के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है। वहीं, वैश्विक मंदी (Global Recession) की आशंका धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। इन दिनों अर्थशास्त्रियों के बीच एक चर्चा आम है। कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका दूसरे देशों में महंगाई एक्सपोर्ट कर रहा है। अमेरिका द्वारा उठाए जा रहे कदम पूरी दुनिया के लिए आफत बनकर सामने आ रहे हैं। हम ब्याज दरों में बढ़ोतरी (Interest Rates Hike) की बात कर रहे हैं। जिस तरह अमेरिकी केंद्रीय बैंक आक्रामक होकर ब्याज दरों को बढ़ा रहा है, उससे डॉलर (Dollar) रोज नई ऊंचाईयों को छू रहा है। दूसरी तरफ अन्य देशों की करेंसीज इस तरह उल्टे पैर दौड़ रही है, जैसे भूत देख लिया हो। इसका सीधा असर यह है कि इन देशों में महंगाई तेजी से बढ़ रही है और इकनॉमी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। आइए विस्तार से समझते हैं।
अमेरिका आक्रामक होकर बढ़ा रहा दरें
हाल ही में हमने देखा था कि अमेरिका में महंगाई 40 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। महंगाई दर में अभी भी कोई खास कमी नहीं आई है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) का पूरा फोकस इस महंगाई पर काबू पाने पर है। इसके लिए वह लगातार प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा कर रहा है। हाल ही में यूएस फेड ने ब्याज दर में लगातार तीसरी बार 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। आगे भी फेड ने इसी तरह की बढ़ोतरी के संकेत दिये हैं। इससे अमेरिकी डॉलर बिना लगाम के घोड़े की तरह भागता चला जा रहा है और अन्य देशों की करेंसीज को नीचे धकेल रहा है। यूएस फेड साल 1980 के दशक की शुरुआत में जितना आक्रामक था, उतना ही आज है। दरों में इजाफे से होने वाली उच्च बेरोजगारी और मंदी को सहन करने के लिए यह तैयार है। लेकिन यह इंटरनेशनल ग्रोथ के लिए अच्छा नहीं है। दूसरे देशों को जबरदस्ती अपने यहां दरें बढ़ानी पड़ रही हैं।
दूसरे देशों को जबरदस्ती बढ़ानी पड़ रही दरें
अगर दुनिया के अन्य देश अमेरिका के बाद अपने यहां ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं करें, तो इसके काफी बुरे परिणाम होंगे। विदेशी निवेशक उन देशों में रिटर्न कम होने के चलते अपना निवेश निकालने लगेंगे। इससे देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत विपरीत असर पड़ेगा। यूएस फेड के बाद पिछले हफ्ते स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, नॉर्वे, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, ताइवान, नाइजीरिया और फिलीपींस में केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी शुक्रवार को ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने की पूरी उम्मीद है।
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अमेरिकियों को फायदा बाकी को नुकसान
फेड के इस रुख से डॉलर कई बड़ी करेंसीज की तुलना में दो दशक के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। इससे विदेशों में शॉपिंग करने वाले अमेरिकियों को काफा फायदा हुआ है। अमेरिका के लिए विदेशों से वस्तुएं आयात करना सस्ता हो गया है। वहीं, यह दूसरे देशों के लिए काफी बुरी खबर है। युआन, येन, रुपया, यूरो और पाउंड जैसी करेंसीज के मूल्य में भारी गिरावट आई है। इससे कई देशों के लिए फूड और फ्यूल जैसी आवश्यक वस्तुओं का आयात करना अधिक महंगा हो गया है। यह लगातार बढ़ रहा है। यूएस फेड एक तरह से महंगाई को दूसरे देशों में एक्सपोर्ट कर रहा है। वह अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डाल रहा है।
दशकों के निचले स्तर पर करेंसीज
क्योंकि डॉलर शून्य में मजबूत नहीं हो सकता। यह किसी की तुलना में मजबूत होता है। चीन की करेंसी युआन काफी लुढ़क गई है। चीनी युआन 14 साल के सबसे निचले स्तर पर है। यहां तक कि जापान को भी अपनी करेंसी येन को गिरने से बचाने के लिए डॉलर बेचकर येन खरीदने पड़े हैं। वहीं, यूरोपीय सेंट्रल बैंक के अध्यक्ष क्रिस्टीन लेगार्ड ने चेतावनी दी है कि यूरो में तेज गिरावट महंगाई को बढ़ाने का काम कर रही है। ब्रिटिश पाउंड सोमवार को डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया था।
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दुनिया को मंदी के करीब ले जाने पर आमादा केंद्रीय बैंक… अमेरिका, यूरोप में मंदी से क्या अछूता रहेगा भारत ?
इस समय प्रेशर कूकर की तरह है वैश्विक वित्तीय प्रणाली
यूके की स्थिति दिखाती है कि कैसे वैश्विक निवेशक सरकार की आर्थिक विकास योजना को बाधित कर सकते हैं। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने बाजारों को स्थिर करने की कोशिश में एक इमरजेंसी बांड खरीद कार्यक्रम की घोषणा की है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, वैश्विक वित्तीय प्रणाली इस समय एक प्रेशर कूकर की तरह है। इस समय देशों के पास विश्वसनीय नीतियां होनी चाहिए और किसी भी गलत कदम पर तुरंत सुधार जरूरी है।
उभरते बाजारों के लिए खतरा
मौजूदा वैश्विक स्थिति ने उभरते बाजारों के लिए खतरा पैदा कर दिया है। विश्व बैंक ने हाल ही में आगाह किया था कि साल 2023 में वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ गया है। यह इसलिए है, क्योंकि दुनियाभर के केंद्रीय बैंक महंगाई को थामने के लिए लगातार ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं। वर्ल्ड बैंक ने कहा कि इससे विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच वित्तीय संकटों की एक सीरीज देखने को मिल सकती है। जो अभी भी महामारी से जूझ रहे हैं, उन्हें स्थायी नुकसान पहुंचेगा।
जिनके पास भारी कर्ज उन्हें सबसे अधिक खतरा
सबसे बड़ा खतरा उन देशों को है, जिन्होंने डॉलर में कर्ज लिया है। लोकल करेंसीज में भारी गिरावट से इन कर्जों को वापस चुकाना काफी महंगा हो गया है। इससे सरकारों को अन्य क्षेत्रों में खर्चों में कटौती को मजबूर होना पड़ता है। इससे महंगाई बढ़ेगी और लोगों की जेब पर भारी असर पड़ेगा। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी भी चिंता का विषय है। श्रीलंका में डॉलर की कमी ने इस देश को दिवालिया कर दिया है।
कई देशों ने बढ़ाई दरें
हालांकि, कई देशों ने ब्याज दरों में बड़ी बढ़ोतरी करके जोखिम को कम करने की कोशिश की है। ब्राजील ने इस महीने ब्याज दरों को स्थिर रखा, लेकिन लगातार 12 वृद्धि के बाद ही इसकी बेंचमार्क दर 13.75% पर बनी हुई है। नाइजीरिया के केंद्रीय बैंक ने मंगलवार को दरों में 15.5 फीसदी की बढ़ोतरी की, जो अर्थशास्त्रियों की अपेक्षा से काफी अधिक है।
क्या है उपाय
1980 के दशक की शुरुआत में भी डॉलर ने इसी तरह रुलाया था। उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के नीति निर्माताओं ने मुद्रा बाजारों में एक समन्वित हस्तक्षेप की घोषणा की थी। इसे प्लाजा समझौते के रूप में जाना जाता है। डॉलर की हालिया रैली और अन्य देशों पर आ रहे संकट ने इस बात को हवा दी है कि यह एक और प्लाजा समझौते का समय हो सकता है। लेकिन व्हाइट हाउस ने इस विचार को ठंडे बस्ते में डाल दिया है, जिससे यह अभी संभव नहीं दिखता है।
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Curated byपवन जायसवाल | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: Sep 21, 2022, 6:43 PM
Global Recession News : इस साल करीब 90 केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में इजाफा किया है। इनमें से आधोShow More
Global Recession
दुनिया को मंदी के पास क्यों ले जा रहे केंद्रीय बैंक ?
हाइलाइट्स
यूएस फेड बुधवार शाम करेगा ब्याज दरों की घोषणा
इस साल 90 केंद्रीय बैंकों ने बढ़ाई है ब्याज दरें
दुनिया में मंदी आई तो भारत पर नहीं पड़ेगा अधिक असर
भारत और मालदीव रहेंगे एशिया में सबसे आगे
नई दिल्ली : वैश्विक स्तर पर मंदी (Global Recession) की चर्चाएं धीरे-धीरे तेज हो रही हैं। कहा जा रहा है दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों द्वारा लगातार ब्याज दरों में बढ़ोतरी मंदी के लिए एक खुला बुलावा है। 40 वर्षों की सबसे अधिक महंगाई आने के बाद अमेरिका का केंद्रीय बैंक (US Fed) काफी आक्रामक होकर ब्याज दरें बढ़ा रहा है। इससे बाकी देशों को भी नीतिगत दरों में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है। ऐसे में कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि केंद्रीय बैंक दुनिया को मंदी के करीब ले जाने पर आमादा हैं। अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर धीमी हो जाने या इनके सिकुड़ने के बावजूद केंद्रीय बैंक दरों को बढ़ा रहे हैं। केंद्रीय बैंक महंगाई (Inflation) पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं, लेकिन इससे देशों की विकास दर (Growth Rate) धीमी हो रही है।
इस साल 90 केंद्रीय बैंकों ने बढ़ाई दरें
इस साल करीब 90 केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में इजाफा किया है। इनमें से आधों ने एक बार में कम से कम 0.75 फीसदी का इजाफा किया है। अधिकांश ने एक से अधिक बार ऐसा किया है। इसका परिणाम है कि मौद्रिक नीति 15 वर्षों में सबसे सख्त हो गई है। जेपी मॉर्गन के अनुसार, चालू तिमाही में प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा साल 1980 के बाद की सबसे बड़ी दर वृद्धि होगी और यह यहीं नहीं रुकने वाली है। आज यूएस फेड प्रमुख ब्याज दरों (US Fed interest rates) में तीसरी बार 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है।
कैसे पड़ता है इकोनॉमी पर असर
ब्याज दरें बढ़ने से इकोनॉमी की ग्रोथ रेट कम हो जाने का डर रहता है। इकोनॉमिस्ट प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं, ‘ब्याज दरें बढ़ाने से बाजार में लिक्विडिटी (पैसों की आवक) कम होती है, जिससे देश की विकास दर प्रभावित होती है। ग्रोथ कम रही, तो बेरोजगारी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। प्रति व्यक्ति आय में भी कमी आएगी।’ कोरोना महामारी और भू-राजनीतिक मुद्दों सहित कई कारणों से पहले से ही देशों की इकोनॉमी प्रभावित हैं। ब्याज दरें बढ़ने से इन पर काफी बुरा असर पड़ेगा। यह दुनियाभर में मंदी को आमंत्रित कर सकता है।
अमेरिका और यूरोप में मंदी, क्या भारत पर भी असर?
अमेरिका और यूरो क्षेत्र भले ही मंदी की ओर बढ़ रहे हों, लेकिन भारत पर इसका असर पड़ने की आशंका नहीं है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने मंगलवार को यह बात कही। उसने कहा कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) वैश्विक अर्थव्यवस्था से बहुत ज्यादा जुड़ी हुई नहीं है। एसएंडपी ग्लोबल में मुख्य अर्थशास्त्री एवं प्रबंध निदेशक पॉल एफ ग्रुएनवाल्ड ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी व्यापक घरेलू मांग की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था से बहुत ज्यादा अलग है। हालांकि, भारत ऊर्जा का शुद्ध आयात करता है। आपके पास विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार है। वहीं, आपकी कंपनियां भी अच्छा मुनाफा कमा रही हैं।’’ ग्रुएनवाल्ड ने कहा कि देखा जाए तो भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था से कभी भी पूरी तरह से जुड़ा नहीं था। इसलिए यह वैश्विक बाजारों से तुलनात्मक रूप से स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूरोप में मंदी आती है, तो बहुत कुछ वैश्विक फंड के प्रवाह पर भी निर्भर करेगा।
एडीबी ने घटाया एशिया में ग्रोथ का अनुमान
एशियाई विकास बैंक (ADB) ने एशियाई क्षेत्र के वृद्धि के अनुमान को घटा दिया है। ऐसा यूक्रेन युद्ध, बढ़ती ब्याज दरें और चीन की अर्थव्यवस्था की मंद पड़ी रफ्तार के चलते किया गया है। एडीबी ने विकासशील एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए वृद्धि के अनुमान को पहले के 5.2 फीसदी से घटाकर 4.3 फीसदी कर दिया है। बैंक ने 2023 के लिए वृद्धि दर के अनुमान को 5.3 फीसदी से घटाकर 4.9 फीसदी किया गया है।
30 साल में पहली बार चीन से आगे रहेंगे दूसरे एशियाई देश
एडीबी के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि 3 दशक में ऐसा पहली बार होगा कि अन्य विकासशील एशियाई अर्थव्यवस्थाएं चीन की तुलना में अधिक तेजी से वृद्धि करेंगी। चीन की अर्थव्यवस्था के इस वर्ष 3.3 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है। यह 2021 के 8.1 फीसदी के अनुमान और एडीबी के अप्रैल के पांच फीसदी के अनुमान से कहीं कम है।
अमेरिका के तुरंत बाद भारत क्यों बढ़ा देता है ब्याज दरें? जानिए महंगाई, रेपो रेट, बांड और रुपये के बीच का रिश्ता
भारत और मालदीव रहेंगे एशिया में सबसे आगे
भारत और मालदीव की अर्थव्यवस्था की वृद्धि सबसे तेज रहने का अनुमान लगाया गया है। एडीबी का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सात फीसदी और मालदीव की 8.2 फीसदी रहेगी। वहीं, श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में 8.8 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है।
एशिया में महंगाई कम
एडीबी ने एशिया में महंगाई का जो अनुमान जताया है, वह अमेरिका और अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिए अनुमान से कम गंभीर हैं। 2022 के लिए यह 4.5 फीसदी और अगले वर्ष के लिए इसके चार फीसदी के स्तर पर रहने का अनुमान है। एडीबी की रिपोर्ट में कहा गया कि ज्यादातर दक्षिणपूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की रफ्तार कायम रहेगी, क्योंकि क्षेत्रों को पर्यटन के लिए खोल दिया गया है और मांग में भी सुध
पवन जायसवाल
Global Recession Interest Rates Hike : दुनिया के कई देशों के बाद अब भारत में भी ब्याज दर बढ़ने की पूरी उम्मीद
हाइलाइट्स
चीन की करेंसी युआन 14 साल के सबसे निचले स्तर पर आई
ब्रिटिश पाउंड सोमवार को रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया था
मौजूदा वैश्विक स्थिति ने उभरते बाजारों के लिए पैदा किया खतरा
इस समय प्रेशर कूकर की तरह है वैश्विक वित्तीय प्रणाली
इस समय दो सबसे बड़ी समस्याएं हैं। पहली महंगाई (Inflation) और दूसरी मंदी। पूरी दुनिया इस समय महंगाई से परेशान है। महंगाई दर दशकों के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है। वहीं, वैश्विक मंदी (Global Recession) की आशंका धीरे-धीरे बढ़ रही है। इन दिनों अर्थशास्त्रियों के बीच एक चर्चा आम है। कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका दूसरे देशों में महंगाई एक्सपोर्ट कर रहा है। अमेरिका के उठाए जा रहे कदम पूरी दुनिया के लिए आफत बनकर रहे हैं। हम ब्याज दरों में बढ़ोतरी (Interest Rates Hike) की बात कर रहे हैं। जिस तरह अमेरिकी केंद्रीय बैंक आक्रामक होकर ब्याज दरें बढ़ा रहा है, उससे डॉलर (Dollar) रोज नई ऊंचाईयां छू रहा है। दूसरी तरफ अन्य देशों की करेंसीज इस तरह उल्टे पैर दौड़ रही है,जैसे भूत देख लिया हो। इसका सीधा असर यह है कि इन देशों में महंगाई तेजी से बढ़ रही है और इकनॉमी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। आइए विस्तार से समझते हैं।
अमेरिका आक्रामक होकर बढ़ा रहा दरें
हाल ही में हमने देखा था कि अमेरिका में महंगाई 40 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। महंगाई दर में अभी भी कोई खास कमी नहीं आई है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) का पूरा फोकस इस महंगाई पर काबू पाने पर है। इसके लिए वह लगातार प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा कर रहा है। हाल ही में यूएस फेड ने ब्याज दर में लगातार तीसरी बार 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। आगे भी फेड ने इसी तरह की बढ़ोतरी के संकेत दिये हैं। इससे अमेरिकी डॉलर बिना लगाम के घोड़े की तरह भागता चला जा रहा है और अन्य देशों की करेंसीज को नीचे धकेल रहा है। यूएस फेड साल 1980 के दशक की शुरुआत में जितना आक्रामक था, उतना ही आज है। दरों में इजाफे से होने वाली उच्च बेरोजगारी और मंदी को सहन करने के लिए यह तैयार है। लेकिन यह इंटरनेशनल ग्रोथ के लिए अच्छा नहीं है। दूसरे देशों को जबरदस्ती अपने यहां दरें बढ़ानी पड़ रही हैं।
दूसरे देशों को जबरदस्ती बढ़ानी पड़ रही दरें
अगर दुनिया के अन्य देश अमेरिका के बाद अपने यहां ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं करें, तो इसके काफी बुरे परिणाम होंगे। विदेशी निवेशक उन देशों में रिटर्न कम होने के चलते अपना निवेश निकालने लगेंगे। इससे देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत विपरीत असर पड़ेगा। यूएस फेड के बाद पिछले हफ्ते स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, नॉर्वे, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, ताइवान, नाइजीरिया और फिलीपींस में केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी शुक्रवार को ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने की पूरी उम्मीद है।
अमेरिकियों को फायदा बाकी को नुकसान
फेड के इस रुख से डॉलर कई बड़ी करेंसीज की तुलना में दो दशक के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। इससे विदेशों में शॉपिंग करने वाले अमेरिकियों को काफा फायदा हुआ है। अमेरिका के लिए विदेशों से वस्तुएं आयात करना सस्ता हो गया है। वहीं, यह दूसरे देशों के लिए काफी बुरी खबर है। युआन, येन, रुपया, यूरो और पाउंड जैसी करेंसीज के मूल्य में भारी गिरावट आई है। इससे कई देशों के लिए फूड और फ्यूल जैसी आवश्यक वस्तुओं का आयात करना अधिक महंगा हो गया है। यह लगातार बढ़ रहा है। यूएस फेड एक तरह से महंगाई को दूसरे देशों में एक्सपोर्ट कर रहा है। वह अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डाल रहा है।
दशकों के निचले स्तर पर करेंसीज
क्योंकि डॉलर शून्य में मजबूत नहीं हो सकता। यह किसी की तुलना में मजबूत होता है। चीन की करेंसी युआन काफी लुढ़क गई है। चीनी युआन 14 साल के सबसे निचले स्तर पर है। यहां तक कि जापान को भी अपनी करेंसी येन को गिरने से बचाने के लिए डॉलर बेचकर येन खरीदने पड़े हैं। वहीं, यूरोपीय सेंट्रल बैंक के अध्यक्ष क्रिस्टीन लेगार्ड ने चेतावनी दी है कि यूरो में तेज गिरावट महंगाई को बढ़ाने का काम कर रही है। ब्रिटिश पाउंड सोमवार को डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया था।
इस समय प्रेशर कूकर की तरह है वैश्विक वित्तीय प्रणाली
यूके की स्थिति दिखाती है कि कैसे वैश्विक निवेशक सरकार की आर्थिक विकास योजना को बाधित कर सकते हैं। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने बाजारों को स्थिर करने की कोशिश में एक इमरजेंसी बांड खरीद कार्यक्रम की घोषणा की है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, वैश्विक वित्तीय प्रणाली इस समय एक प्रेशर कूकर की तरह है। इस समय देशों के पास विश्वसनीय नीतियां होनी चाहिए और किसी भी गलत कदम पर तुरंत सुधार जरूरी है।
उभरते बाजारों के लिए खतरा
मौजूदा वैश्विक स्थिति ने उभरते बाजारों के लिए खतरा पैदा कर दिया है। विश्व बैंक ने हाल में चेताया था कि साल 2023 में वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ गया है। यह इसलिए है,क्योंकि दुनियाभर के केंद्रीय बैंक महंगाई थामने को लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं। वर्ल्ड बैंक ने कहा कि इससे विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच वित्तीय संकटों की एक सीरीज देखने को मिल सकती है। जो अभी भी महामारी से जूझ रहे हैं,उन्हें स्थायी नुकसान पहुंचेगा।
जिनके पास भारी कर्ज उन्हें सबसे अधिक खतरा
सबसे बड़ा खतरा उन देशों को है, जिनका कर्ज डॉलर में है। लोकल करेंसीज में भारी गिरावट से इन कर्जों को वापस चुकाना काफी महंगा हो गया है। इससे सरकारों को अन्य क्षेत्रों में खर्चों में कटौती को मजबूर होना पड़ता है। इससे महंगाई बढ़ेगी और लोगों की जेब पर भारी असर पड़ेगा। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी भी चिंता का विषय है। श्रीलंका में डॉलर की कमी ने इस देश को दिवालिया कर दिया है।
कई देशों ने बढ़ाई दरें
हालांकि,कई देशों ने ब्याज दरों में बड़ी बढ़ोतरी करके जोखिम कम करने की कोशिश की है। ब्राजील ने इस महीने ब्याज दरें स्थिर रखी,लेकिन लगातार 12 वृद्धि के बाद ही इसकी बेंचमार्क दर 13.75% पर बनी हुई है। नाइजीरिया के केंद्रीय बैंक ने मंगलवार को दरों में 15.5% बढाई ,जो अर्थशास्त्रियों की अपेक्षा से काफी अधिक है।
क्या है उपाय
1980 के दशक की शुरुआत में भी डॉलर ने इसी तरह रुलाया था। उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के नीति निर्माताओं ने मुद्रा बाजारों में एक समन्वित हस्तक्षेप की घोषणा की थी। इसे प्लाजा समझौते के रूप में जाना जाता है। डॉलर की हालिया रैली और अन्य देशों पर आ रहे संकट ने इस बात को हवा दी है कि यह एक और प्लाजा समझौते का समय हो सकता है। लेकिन व्हाइट हाउस ने इस विचार को ठंडे बस्ते में डाल दिया है,जिससे यह अभी संभव नहीं दिखता है।
Why There Is Possibility Of Recession Around The World Rbi May Increase Interest Rates
दुनिया को मंदी के करीब ले जाने पर आमादा केंद्रीय बैंक…अमेरिका,यूरोप में मंदी से क्या अछूता रहेगा भारत ?
पवन जायसवाल |
दुनिया को मंदी के पास क्यों ले जा रहे केंद्रीय बैंक ?
हाइलाइट्स
यूएस फेड बुधवार शाम करेगा ब्याज दरों की घोषणा
इस साल 90 केंद्रीय बैंकों ने बढ़ाई है ब्याज दरें
दुनिया में मंदी आई तो भारत पर नहीं पड़ेगा अधिक असर
भारत और मालदीव रहेंगे एशिया में सबसे आगे
वैश्विक स्तर पर मंदी (Global Recession) की चर्चाएं तेज हैं। कहा जा रहा है दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों की लगातार ब्याज दरों में बढ़ोतरी मंदी को खुला बुलावा है। 40 वर्षों की सबसे अधिक महंगाई आने के बाद अमेरिका का केंद्रीय बैंक (US Fed) काफी आक्रामक ब्याज दरें बढ़ा रहा है। इससे बाकी देशों को भी नीतिगत दरों में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है। ऐसे में कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि केंद्रीय बैंक दुनिया को मंदी के करीब ले जाने पर आमादा हैं। अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर धीमी हो जाने या इनके सिकुड़ने के बावजूद केंद्रीय बैंक दरों को बढ़ा रहे हैं। केंद्रीय बैंक महंगाई (Inflation) पर काबू पाने को ब्याज दर बढ़ा रहे हैं, लेकिन इससे विकास दर (Growth Rate) धीमी हो रही है।
इस साल 90 केंद्रीय बैंकों ने बढ़ाई दरें
इस साल करीब 90 केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दर बढ़ाई है। इनमें से आधों ने एक बार में कम से कम 0.75 प्रतिशत वृद्धि की है। अधिकांश ने एक से अधिक बार ऐसा किया है। इसका परिणाम है कि मौद्रिक नीति 15 वर्षों में सबसे सख्त हो गई है। जेपी मॉर्गन के अनुसार, चालू तिमाही में प्रमुख केंद्रीय बैंकों की साल 1980 के बाद की सबसे बड़ी दर वृद्धि होगी और यह यहीं नहीं रुकने वाली है। आज यूएस फेड प्रमुख ब्याज दरों (US Fed interest rates) में तीसरी बार 0.75 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकता है।
कैसे पड़ता है इकोनॉमी पर असर
ब्याज दरें बढ़ने से इकोनॉमी की ग्रोथ रेट कम हो जाने का डर रहता है। इकोनॉमिस्ट प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं, ‘ब्याज दरें बढ़ाने से बाजार में लिक्विडिटी (पैसों की आवक) कम होती है, जिससे देश की विकास दर प्रभावित होती है। ग्रोथ कम रही, तो बेरोजगारी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। प्रति व्यक्ति आय में भी कमी आएगी।’ कोरोना महामारी और भू-राजनीतिक मुद्दों सहित कई कारणों से पहले से ही देशों की इकोनॉमी प्रभावित हैं। ब्याज दरें बढ़ने से इन पर काफी बुरा असर पड़ेगा। यह दुनियाभर में मंदी को आमंत्रित कर सकता है।
अमेरिका और यूरोप में मंदी, क्या भारत पर भी असर?
अमेरिका और यूरो क्षेत्र भले ही मंदी की ओर बढ़ रहे हों, लेकिन भारत पर इसका असर पड़ने की आशंका नहीं है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने मंगलवार को यह बात कही। उसने कहा कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) वैश्विक अर्थव्यवस्था से बहुत ज्यादा जुड़ी हुई नहीं है। एसएंडपी ग्लोबल में मुख्य अर्थशास्त्री एवं प्रबंध निदेशक पॉल एफ ग्रुएनवाल्ड ने संवाददाताओं से कहा,‘भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी व्यापक घरेलू मांग की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था से बहुत ज्यादा अलग है। हालांकि,भारत ऊर्जा का शुद्ध आयात करता है। आपके पास विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार है। वहीं,आपकी कंपनियां भी अच्छा मुनाफा कमा रही हैं।’ ग्रुएनवाल्ड ने कहा कि देखा जाए तो भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था से कभी भी पूरी तरह से जुड़ा नहीं था। इसलिए यह वैश्विक बाजारों से तुलनात्मक रूप से स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूरोप में मंदी आती है,तो बहुत कुछ वैश्विक फंड के प्रवाह पर भी निर्भर करेगा।
एडीबी ने घटाया एशिया में ग्रोथ का अनुमान
एशियाई विकास बैंक (ADB) ने एशियाई क्षेत्र के वृद्धि के अनुमान को घटा दिया है। ऐसा यूक्रेन युद्ध, बढ़ती ब्याज दरें और चीन की अर्थव्यवस्था की मंद पड़ी रफ्तार के चलते किया गया है। एडीबी ने विकासशील एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए वृद्धि के अनुमान को पहले के 5.2 प्रतिशत से घटाकर 4.3 फीसदी कर दिया है। बैंक ने 2023 के लिए वृद्धि दर अनुमान 5.3 से घटाकर 4.9 प्रतिशत किया गया है।
30 साल में पहली बार चीन से आगे रहेंगे दूसरे एशियाई देश
एडीबी के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि 3 दशक में ऐसा पहली बार होगा कि अन्य विकासशील एशियाई अर्थव्यवस्थाएं चीन की तुलना में अधिक तेजी से वृद्धि करेंगी। चीन की अर्थव्यवस्था के इस वर्ष 3.3 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। यह 2021 के 8.1 प्रतिशत के अनुमान और एडीबी के अप्रैल के पांच प्रतिशत के अनुमान से कहीं कम है।
भारत और मालदीव रहेंगे एशिया में सबसे आगे
भारत और मालदीव की अर्थव्यवस्था की वृद्धि सबसे तेज रहने का अनुमान लगाया गया है। एडीबी का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सात प्रतिशत और मालदीव की 8.2 प्रतिशत रहेगी। वहीं, श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में 8.8 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है।
एशिया में महंगाई कम
एडीबी ने एशिया में महंगाई का जो अनुमान जताया है, वह अमेरिका और अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिए अनुमान से कम गंभीर हैं। 2022 के लिए यह 4.5 प्रतिशत और अगले वर्ष के लिए इसके चार फीसदी के स्तर पर रहने का अनुमान है। एडीबी की रिपोर्ट में कहा गया कि ज्यादातर दक्षिणपूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की रफ्तार कायम रहेगी, क्योंकि क्षेत्रों को पर्यटन के लिए खोल दिया गया है और मांग में भी सुधार आया है।
(पीटीआई और ब्लूमबर्ग के इनपुट के साथ)
Many Central Banks Including Us Fed Raising Interest Rates Will There Be A Recession In India