आप हैदर अली,टीपू सुल्तान के 38 साल जानते हैं,वाडियार के 400 साल नहीं
#वाडयर नाम सुना है कभी ? अच्छा #टीपू और #हैदर ?
अब जरा जोड़िये कि हैदर और टीपू ने मिलकर कितने साल शासन किया होगा ? दोनों ने मिलकर 38 साल शोषण किया था | (टाइपिंग मिस्टेक नहीं है, शोषण ही लिखा है )
उसका ठीक दस गुना कीजिये तो जितना होगा उतना वाडयर का शासन काल था | आप चालीस साल जानते हैं, चार सौ नहीं जानते | इंटरेस्टिंग… वैरी इंटरेस्टिंग
अपनी #सभ्यता, #संस्कृति और #इतिहास को जो कौमें भूला देती है (या भुलाने देती है) उनका भविष्य कभी उज्जवल नहीं हो सकता ।
गूगल करेंगे तो पता चलेगा की इन महाशय ने हिन्दू धर्म को सुदूर कम्बोडिया तक फैलाया था जहाँ आज भी आपको शिव और विष्णु की प्रतिमाएं मिल जाएँगी ।
मतदान स्याही…इस स्याही का उत्पादन और वितरण करने वाली एकमात्र कंपनी है.मैसुर {कर्नाटक}पेँट्स एँड वार्निश लिमिटेड..मैसुर के पूर्व महाराजा नलवाड़ी कृष्णराजे वाडेयर और भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने सन् 1937 मे इस कंपनी की स्थापना की थी..1947 मे इसे सार्वजनिक उपक्रम का रुप दिया गया.1953 मे इसके राष्टियकरण के बाद इसके उत्पादन का अधिकार सिर्फ एमपीविएल नेशनल फिजिकेल लेबोरेटरी मे विकसित इस स्याही का इस्तेमाल 1962 के आम चुनावो मे होना शूरू हुआ…10मिलिग्राम कि किमत लगभग 50/-पड़ती है.और इसको बनाने का तरीका सिर्फ एक व्यक्ति को पता होता है.व है कंपनी के क्वालिटि कंट्रोल मेनेजर जो सेवानिर्विती {रिटायर्ड}के वक्त अपने उत्तराधिकारी को य जिम्मेदारी सौपते है…पीढ़ी दर पीढ़ी……
मैसूर में में विजयदशमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। मैसूर राजघराने के वाडियार जी महल में भव्य आयोजन करते हैं। देश विदेश से मेहमान आते हैं।
ये पर्व महिषासुर के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। मैसूर में आज भी राजघराने की परम्परा है।
कभी कर्नाटका मैसूर राज्य में था। फिर 1973 में मैसूर कर्नाटका का हिस्सा बन गया।
मैसूर का इतिहास बहुत शानदार है नंदा वंश भी यहाँ से जुड़ा है जिस को मगध में लिखा गया। राजा कृष्णदेव राय भी यहीं के थे। बहुत शानदार इतिहास रहा। यहाँ के इतिहास में टीपू सुलतान को घुसाया गया।
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1973 में मैसूर को हटा कर कर्नाटक को राज्य बना दिया। 1973 में ही भारत सरकार को राष्ट्र पशु की याद आई।
तब ही टीपू सुल्तान के चिन्ह को भारत का राष्ट्र पशु घोषित कर दिया गया। बाघ टीपू सुल्तान का राज्य चिन्ह था। ध्वज का और सैनिको की वर्दी भी में बाघ है। ये इतिफाक हो सकता है मगर राष्ट्र पशु 1973 में घोषित हुआ और 1973 में मैसूर कर्णाटक हुआ था।
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अब महिषासुर की बात भी कर लेते हैं इस राज्य में महिषासुर की पूजा होती है। महिषासुर का बाप रंभ असुरो का राजा था। एक दिन उस ने एक भैंस से सबंध बनाये । या भैंस का रेप किया । जिस कारण वामियो के बाप महिषासुर का जन्म हुआ। महिषा मतलब भैंस होता है। तब ही ये कभी भैंस बन जाता था कभी असुर।
महिषासुर का वध विजयदशमी है।
बाघ टीपू सुल्तान का राज्य चिन्ह था जिस को राष्ट्र पशु बना दिया। 1973 से पहले शेर भारत का राष्ट्रीय पशु था।
टीपू सुल्तान
आज भारत की अधिकांश जनता इसे हीरो और राष्ट्र भक्त मानती है। इसके बारे मे जितना भी आप इन्टरनेट पर पढने की कोशिश करे ज्यादातर लोग और साइट्स भगवान गिडवानी की लिखी किताब THE SWORD OF TIPU SULTAN की ही कहानी सुनाते या उसके आगे जा कर महीमामंडण करते मिलेंगे।
भगवान गिडवानी अपनी किताब के बारे मे कहते है यह उनकी तेरह साल की मेहनत का फल है।
ऐतिहासिक उपन्यास अक्सर ऐतिहासिक तथ्य और कल्पनाओं का मिश्रण होती हैं ।
गिडवानी भी अपवाद नही हैं ।
मजे कि बात यह है कि गिडवानी कभी केरल नही गये और खास कर मालाबार क्षेत्र नही गया।
बची खुची सच्चाई संजय खान की टेली सिरीज़ जो इसी the sword of tipu SULTAN के नाम से बनी थी उसने कर दी।
टीपू सुल्तान अपने पिता हैदर अली जो वाडियार राज्य का एक साधारण सैनिक हुआ करता था उसकी दुसरी पत्नी फखरूनिशा का बेटा था।
हैदर अली को दो शादीयो के बाद भी कोइ बेटा नही था। फिर अपने एक मातहत ने उसे कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले के नायकाना हटटी गांव के संत थिपपे रूद्रा स्वामी से मिलने को कहा।
कन्नड मे थिपपे का मतलब होता है कचरे का मैदान जिसके पास स्वामी जी रहा करते थे। इनकी कृपा से हैदर अली को बेटा हुआ तो उसने उन्ही के नाम पर इसका नाम थिपपे सुल्तान रखा।
लेकिन अंग्रेजों ने थिपपे को थिपपू और बाद मे यह टीपू सुल्तान कहा जाने लगा।
केरल और दक्षिण भारत में यह एक घृणित नाम माना जाता है और शायद ही आपको इस नाम का कोई व्यक्ति मिले। यह उतना ही घृणित नाम है जैसे कोई अपने बच्चों का नाम रावण या कैकेयी नही रखता ।
कृष्ण राज वाडियार चतुर्थ (4 जून 1884 – 3 अगस्त 1940 कन्नड़: ನಾಲ್ವಡಿ ಕೃಷ್ಣರಾಜ ಒಡೆಯರು बेंगलोर पैलेस), नलवडी कृष्ण राज वाडियार कन्नड़: ನಾಲ್ವಡಿ ಕೃಷ್ಣರಾಜ ಒಡೆಯರು के नाम से भी लोकप्रिय थे, वे 1902 से लेकर 1940 में अपनी मृत्यु तक राजसी शहर मैसूर के सत्तारूढ़ महाराजा थे। जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था तब भी वे भारतीय राज्यों के यशस्वी शासकों में गिने जाते थे। अपनी मौत के समय, वे विश्व के सर्वाधिक धनी लोगों में गिने जाते थे, जिनके पास 1940 में $400 अरब डॉलर की व्यक्तिगत संपत्ति थी जो 2010 की कीमतों के अनुसार $56 बिलियन डॉलर के बराबर होगी।
वे एक दार्शनिक सम्राट थे, जिन्हें पॉल ब्रन्टॉन ने प्लेटो के रिपब्लिक में वर्णित आदर्श को अपने जीवन में उतारने वाले व्यक्ति के रूप में देखा गया था। अंग्रेजी राजनीतिज्ञ लॉर्ड सैम्यूल ने उनकी तुलना सम्राट अशोक से की है। महात्मा गांधी उन्हें राजर्षि या “संत जैसा राजा” कहते थे और उनके अनुयायी उनके राज्य को राम राज्य के रूप में वर्णित करते थे, जो भगवान राम द्वारा शासित साम्राज्य के समान था।
कृष्णा चतुर्थ मैसूर के वाडियार राजवंश के 24वें शासक थे जिसने मैसूर राज्य पर 1399 से 1950 तक शासन किया।
1876-77 के अकाल और महाराजा चामराजा वोडेयार IX, की मृत्यु के पश्चात् कृष्णराज वोडेयार IV जो तब तक मात्र ग्यारह साल के बालक थे 1895 में सिंहासन पर आरुढ़ हुए. 8 फ़रवरी 1902 को कृष्णराजा वाडेयार के सत्ता संभालने तक उनकी माता महारानी केमपराजाम्मान्नियावारु ने उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन किया।[2] 8 अगस्त 1902 को जगन मोहन महल (अब जयचामाराजेंद्र आर्ट गैलरी) में आयोजित एक समारोह में वायसराय लॉर्ड कर्जन द्वारा कृष्णा चतुर्थ को मैसूर के महाराजा के रूप में सम्पूर्ण शासनाधिकार सौंपे गए।
अपने शासन के अंतर्गत, कृष्णराज वोडेयर ने मैसूर को उस समय के एक सबसे प्रगतिशील और आधुनिक राज्य में बदलने का कार्य आरंभ कर दिया. उनके समय में मैसूर ने उद्योग, शिक्षा, कृषि और कला आदि कई दिशाओं में उन्नति की। इस अवधि में शिक्षा के बुनियादी ढांचे में किए गए अग्रणी काम ने 20 वीं सदी में भारत के प्रमुख प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में इसकी स्थिति मजबूत बनाने में कर्नाटक की बहुत मदद की है।[3] राजा एक निपुण संगीतकार थे और अपने पूर्ववर्तियों की तरह ललित कलाओं के विकास को काफी प्रोत्साहित किया।[4] इन सभी कारणों के लिए, उनके शासन को अक्सर ‘मैसूर के स्वर्णयुग’ के रूप में वर्णित किया गया है।[5] कृष्णा राजा वाडियार बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयऔर मैसूर विश्वविद्यालय के पहले कुलपति थे। जिनमें से पहला किसी भारतीय राज्य द्वारा चार्टर्ड पहला विश्वविद्यालय था। बेंगलोर का भारतीय विज्ञान संस्थान जिसकी पहल कार्यकारी शासक के रूप में उनकी माता के कार्यकाल में की गई थी, 1911 में 371 एकड़ (1.5 वर्गकिमी.) भूमि और निधियों के उपहार के साथ उनके शासनकाल में आरंभ हुआ। वे भारतीय (कर्नाटक और हिंदुस्तानी दोनों) और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के संरक्षक थे।
मैसूर ऐसा पहला भारतीय राज्य था, जिसके पास 1881 में एक प्रतिनिधि सभा, एक लोकतांत्रिक मंच था। कृष्णराज वाडियार चतुर्थ के शासनकाल के दौरान, विधानसभा का विस्तार किया गया और 1907 में परिषद विधान के गठन के बाद द्विसदनीय बन गई। यह प्रवरों का एक सदन था जिसने राज्य में कई नए कानून बनाए. उनके शासनकाल के दौरान मैसूर एशिया में पनबिजली पैदा करनेवाला पहला भारतीय राज्य और मैसूर सड़कों पर रोशनी वाला पहला एशियाई शहर बन गया, जिन्हें 5 अगस्त 1905 को पहली बार जलाया गया था।
पूर्व उल्लेख के अनुसार राजा कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत दोनों के पारखी थे और कुछ लोगों द्वारा उनके शासनकाल को “कर्नाटक के शास्त्रीय संगीत के स्वर्णयुग” के रूप में वर्णित किया है।
संस्कृत भाषा और साहित्य की शिक्षा को इतना प्रोत्साहन पहले कभी नहीं मिला था। श्री तिरुमलाई कृष्णामाचार्य के माध्यम से योग और चित्रकला को (विशेष रूप से उनके द्वारा संरक्षित, राजा रवि वर्मा द्वारा) समृद्ध किया गया था। वे आठ वाद्यों -बांसुरी, वायलिन, सैक्सोफोन, पियानो, मृदंगम, नादस्वर, सितार, और वीणा के दक्ष वादक थे।[तथ्य वांछित]वास्तव में वे सैक्सोफोन वादक के रूप में कर्नाटक संगीत बजानेवाले श्री लक्ष्मीनरसिम्हैया राजमहल संगीत दल (बैंड) का हिस्सा थे। कादरी गोपालनाथ उनसे प्रभावित होकर सैक्सोफोन में प्रवीण बने थे। नट्टन खान और उस्ताद विलायत हुसैन खान सहित आगरा घराने के कई विख्यात सदस्य मैसूर के महाराज के मेहमान बने थे। प्रसिद्ध अब्दुल करीम खान और गौहर जान भी उनके मेहमान रहे थे। भारत के एक महानतम सितार वादक बरकतुल्लाह खान 1919 से 1930 में अपनी मृत्यु तक महल के संगीतकार रहे. उनके दरबार में प्रसिद्धि प्राप्त करनेवाले कुछ महान संगीतकारों में वीणा शमन्ना, वीणा शेषान्ना, मैसूर कारीगिरी राव, वीणा शुभन्ना, बिदाराम कृष्णप्पा, मैसूर वासुदेवाचार्य, वीणा सुब्रमण्यम अय्यर, डॉ॰ मुथैया भगवतार, वीणा शिवरमैया, वीणा वेंकटागिरिप्पा, बेलकावाडी श्रीनिवास आयंगर, चिक्का रामा राव, मैसूर टी. चौवदियाह, बी. देवेंद्रप्पा, गोट्टुवाडयम नारायणा आयंगर और तिरुवय्यर सुब्रमाया अय्यर तथा अन्य शामिल हैं।
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आलेख अलग अलग उपलब्ध स्रोत से प्राप्त सूचनाओं पर आधारित है।