उत्तराखंड: अतीत और वर्तमान

200 साल पुरानी उत्तराखंड की ये 10 तस्वीरें, आज भी हैं ताजा देखिए!

उत्तराखंड राज्य की 200 साल तक पुरानी तस्वीरें आज आपके सामने होंगी जैसे कि आप जानते हैं उत्तराखंड जिसका उल्लेख वेद, पुराणों विशेषकर केदारखण्ड के नाम से हुआ है। देवताओं की आत्मा हिमालय के मध्य भाग में गढ़वाल अपने ऐतिहासिक एंव सांस्कृतिक महत्व तथा प्राकृतिक सौंदर्य में अद्भुत है।

55845 वर्ग किलोमीटर

1856-1884 के दौरान ब्रिटिश गढ़वाल में कुछ खोजी अंग्रेज द्वारा ली गई तस्वीरें 1856-1884 तक ब्रिटिश गढ़वाल हेनरी रैमजे के शासन में रहा तथा यह युग ब्रिटिश सत्ता के शक्तिशाली होने के काल के रूप में पहचाना गया।

महान संतों, देवताओं, ऋषियों, मुनियों, योगियों, तपस्वीयों, अवतारों की तपोस्थली होने के कारण यह भूमि देव भूमि के नाम से विख्यात है। इस भूमि की पवित्रता एवं प्राकृतिक विशेषता के कारण यहाँ के निवासियों में भी इसका प्रभाव परिलक्षित होता है अर्थात् प्रकृति प्रदत शिक्षण से यहाँ के निवासी ईमानदार, सत्यवादी, शांत स्वभाव, निश्छल, कर्मशील एवं ईश्वर प्रेमी होते हैं।

यहाँ कई शिलालेख, ताम्रपत्र व प्राचीन अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। जिससे गढ़वाल की प्राचीनता का पता चलता है। गोपेश्वर में शिव-मंदिर में एक शिला पर लिखे गये लेख से ज्ञात होता है कि कई सौ वर्ष से यात्रियों का आवागमन इस क्षेत्र में होता आ रहा है। मार्कण्डेय पुराण, शिव पुराण, मेघदूत व रघुवंश महाकाव्य में यहाँ की सभ्यता व संस्कृति का वर्णन हुआ है।

उत्तराखंड की प्राचीन जातियों में किरात, यक्ष, गंधर्व, नाग, खस, नाथ आदी जातियों का विशेष उल्लेख मिलता है। आर्यों की एक श्रेणी गढ़वाल में आई थी जो खस (खसिया) कहलाई। यहाँ की कोल भील, जो जातियाँ थी कालांतर में स्वतंत्रता प्राप्ति के बात हरिजन कहलाई।

देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग यात्री के रूप में बद्रीनारायण के दर्शन के लिए आये उनमें से कई लोग यहाँ बस गये और उत्तराखंड को अपना स्थायी निवास बना दिया। ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी यहाँ रहने लगे। मुख्य रूप से इस क्षेत्र में ब्राह्मण एवं क्षत्रीय जाति के लोगों का निवास अधिक है।

कनकपाल ने 756 ईस्वी तक चाँदपुर गढ़ी में राज किया। कनकपाल की 37 वीं पीढ़ी में महाराजा अजयपाल का जन्म हुआ। इस लम्बे अंतराल में कोई शक्तिशाली राजा नहीं हुआ। गढ़वाल छोटे-छोटे ठाकुरी गढ़ों में बंटा था, जो आपस में लड़ते रहते थे। कुमाऊं के कत्यूरी शासक भी आक्रमण करते रहते थे। कत्यूरियों ने ज्योतिष्पुर (वर्तमान जोशीमठ) तक अधिकार कर लिया था।

राजा कनकपाल की 37 वीं पीढ़ी में 1500 ईस्वी के महाराजा अजयपाल नाम के प्रतापी राजा हुए। गढ़वाल राज्य की स्थापना का महान श्रेय इन्ही को है। 1803 में महाराजा प्रद्दुम्न शाह संपूर्ण गढ़वाल के अंतिम नरेश थे जिनकी राजधानी श्रीनगर थी। राजा प्रद्दुम्न शाह देहरादून के खुड़ब़ड़ा के युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और गढ़वाल में गोरखों का शासन हो गया। इसके साथ ही गढ़वाल दो भागों में विभाजित हो गया।

इसके बाद ब्रिटिश शासन की सहायता से, जनरल जिलेस्पी और जनरल फ्रेजर के युद्ध संचालन के बल पर गढ़वाल को गोरखों की अधीनता से मुक्त करवाया। इस सहायता के बदले अंग्रेजों ने अलकनंदा व मंदाकिनी के पूर्व दिशा का सम्पूर्ण भाग ब्रिटिश साम्राज्य में मिला दिया, जिससे यह क्षेत्र ब्रिटिश गढ़वाल कहलाने लगा और पौड़ी इसकी राजधानी बनी।1856-1884 तक ब्रिटिश गढ़वाल हेनरी रैमजे के शासन में रहा तथा यह युग ब्रिटिश सत्ता के शक्तिशाली होने के काल के रूप में पहचाना गया।

इसी दौरान गढ़वाल में कुछ खोजी अंग्रेज आये जिन्होंने कई सारी तस्वीरें ली, पेंटिंग्स बनायीं और पुस्तकें भी लिखी। आज भी यह ब्रिटिश लाइब्रेरी और ब्रिटिश आर्मी के संग्रहालय एवं वेबसाइट में उपलब्ध हैं।

1857 में जब देश में कंपनी सरकार की जगह `महारानी का राज´ कायम हुआ, अंग्रेज पहाड़ों के प्रति और अधिक उदार हो गऐ। उन्होंने यहां कई सुधार कार्य प्रारंभ किऐ, जिन्हें पूरे देश से इतर पहाड़ों पर अंग्रेजों द्वारा किऐ गऐ निर्माणों के रूप में भी देखा जा सकता है।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा चौखुटिया में मिले हजारों साल पुरानी सभ्यता के अवशेष,दबा मिला प्राचीन नगर 

चौखुटिया में खुदाई में मिले शिव मंदिर ——
उत्तराखंड के अल्मोड़ा में सैकड़ों साल पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। जल्द ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण उत्तराखंड के अल्मोडा जिले में रामगंगा नदी के तट पर स्थित गेवाड घाटी में इसको ढूंढने के लिए खुदाई करेगी।

उत्तराखंड के अल्मोडा जिले में रामगंगा नदी के तट पर स्थित गेवाड घाटी में खुदाई की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के मुताबिक यहां मिट्टी के नीचे एक प्राचीन शहर दबा हो सकता है। इस शहर को खोजने के लिए एएसआई विशेषज्ञों की एक टीम पहले ही घाटी का सर्वेक्षण कर चुकी है। इस खोई हुई बस्ती का पता लगाने के लिए जल्द ही कवायद शुरू हो सकती है।

गेवाड घाटी के नीचे एक प्राचीन शहर था – एएसआई
देहरादून सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् मनोज सक्सेना का कहना है कि “हमारी सर्वेक्षण रिपोर्ट काफी ठोस है। अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली घाटी के आगे के अध्ययन के लिए एक उन्नत सर्वेक्षण चल किया जा रहा है। उत्खनन के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।”

उनका कहना है कि रामगंगा के साथ 10 किमी तक फैले इस क्षेत्र में समतल भूमि शामिल है जिसमें 9वीं और 10वीं शताब्दी के कई मंदिर हैं, जो इनका निर्माण कत्यूरी शासकों द्वारा किया गया था। सदियों पुराने मंदिरों के समूह की उपस्थिति ये दर्शाती है कि मंदिरों के निर्माण से पहले भी वहां कोई सभ्यता रही होगी

इलाके से मिले हैं कई मंदिर
आपको बता दें कि रामगंगा नदी के तट पर स्थित गेवाड घाटी के इस इलाके में पहले भी खुदाई की थी। साल 1990 में भी यहां पर एक सर्वे किया गया था। इसके बाद साल 2017 में भी यहां पर सर्वे के बाद खुदाई की गई। जिसमें छोटे-छोटे शिव मंदिर मिले हैं। जिनकी ऊंचाई एक से दो फीट के लगभग है। खदाई में मिले इन मंदिरों के 900 से 1000 साल पुराने होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

खुदाई के दौरान मिले कक्ष और बड़े जार समेत कई सामान
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रोफेसर राकेश चंद्र भट्ट जो कि यहां पर 1993 में सर्वेक्षण करने वाली टीम का हिस्सा थे उन्होंने बताया कि खुदाई के दौरान उन्हें माध्यमिक दफनियां, कक्ष और बड़े जार मिले। जिनमें मृतकों के अवशेष रखे गए थे।

इसके साथ ही उन्हें चित्रित मिट्टी के बर्तन और कटोरे भी मिले थे। जो मेरठ के हस्तिनापुर और बरेली के अहिच्छत्र में गंगा के दोआब में पाए जाने वाले मिट्टी के बर्तनों के समान हैं। जो पहली-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के हैं। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि उस समय उन्हें वहां पर कोई मानव बस्ती नहीं मिली थी। लेकिन उनके निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि एक खोया हुआ शहर खोजे जाने का इंतजार कर रहा है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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