इतिहास: क्रूर, अंध इस्लामी, बर्बर सत्ता पिपासु था औरंगजेब

जलील किया, सिर काटकर शाहजहां को भेजा… संभाजी ही नहीं भाई दाराशिकोह के साथ भी औरंगजेब ने की थी क्रूरता
औरंगजेब के सामने दाराशिकोह का कटा हुआ सिर लाया गया तो वह खून सना था. औरंगजेब उसे कुछ देर देखता रहा और फिर कहा, इसका खून साफ कर ठीक से लाया जाए. हुक्म की तामील हुई और इस बार सिर लाया गया तो औरंगजेब ने इसे गौर से देखकर पहचान की और तसल्ली कर कि कटा सिर दाराशिकोह का ही है, उसने अगला आदेश दिया. सिर आगरा ले जाने का…
औरंगजेब ने अपने भाई दाराशिकोह के साथ की थी क्रूरता
विकास पोरवाल
नई दिल्ली,06 मार्च 2025,कहते हैं कि ‘राजनीति है ही गड़े मुर्दे उखाड़े जाने का नाम’ और बीते महीने रिलीज फिल्म ‘छावा’ ने सियासत में ऐसी हलचल मचाई कि इसने मुगलिया सल्तनत के एक तुर्क ‘औरंगजेब’ को फिर से चर्चा के बाजार में ला खड़ा किया है.

महाराष्ट्र में सपा नेता अबू आजमी ने बयान दिया कि ‘मैं 17वीं सदी के मुगल बादशाह औरंगजेब को क्रूर, अत्याचारी या असहिष्णु शासक नहीं मानता. इन दिनों फिल्मों के माध्यम से मुगल बादशाह की विकृत छवि बनाई जा रही है.’

सपा नेता अबू आजमी के बयान पर हंगामा
आजमी का बयान विरोधी दलों ने लपक लिया. तब से अबू आजमी माफी मांग चुके, सफाई दे चुके, लेकिन बहस इससे एक कदम और आगे बढ़ चुकी है. औरंगजेब के क्रूर होने न होने को लेकर सवाल उठे . इस सवाल के जवाब में इतिहासकार यदुनाथ सरकार की औरंगजेब के जीवन पर आधारित किताब का रेफरेंस ले सकते है. इसके अलावा कई ब्रिटिश और इतालवी इतिहासकारों ने भी औरंगजेब से जुड़े उस किस्से को अपनी किताबों में बयां किया, जो सीधे उससे और उसके बड़े भाई दाराशिकोह से जुड़ा है.

केंद्र सरकार खोज रही थी दाराशिकोह की कब्र
बीते दो साल पहले तक एक खबर काफी चर्चा में रही थी थी केंद्र सरकार इस सवाल का जवाब तलाश करवा रही है कि आखिर मुगल दौर के सबसे जहीन और विद्वान शहजादे दाराशिकोह की असली कब्र कहां है? एएसआई पूर्व रीजनल डायरेक्टर केके मुहम्मद ने तब मीडिया बातचीत में कहा था कि जहां तक उनकी कब्र की तलाश का सवाल है, तो सरकार और एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) हैंड हेल्ड एक्सरे डिवाइस की मदद से दिल्ली में हुमायूं के मकबरे के पीछे स्थित कब्रों की एक्स-रे इमेज ले सकते हैं और इसका सर्वे भी करा सकते हैं.

उनके मुताबिक, ऐतिहासिक दस्तावेजों की मानें तो मुगलकाल में दाराशिकोह के अलावा ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता, जिसमें किसी मुगल शहजादे का सिर कलम कर सिर्फ धड़ दफनाया गया हो. एक्स-रे इमेज में जिस कब्र में बिना सिर वाला कंकाल नजर आए उसे ही दारा की कब्र मान लेना चाहिए.

दारा शिकोह का सिर काटा किसने?
सवाल का जवाब है औरंगजेब आलमगीर. दारा शिकोह शाहजहां का सबसे बड़ा बेटा था. शाहजहां उसे बहुत चाहता था और उसे ही शहंशाह बनाना चाहता था. दाराशिकोह की सभी धर्मों में रुचि थी और उसने कई हिंदू धर्म ग्रंथों के उर्दू-फारसी अनुवाद भी कराए थे.  दाराशिकोह को अमन पसंद जाना जाता है. शाहजहां को तो औरंगजेब ने आगरा में कैद कर दिया था और खुद को बादशाह घोषित कर दिया था.

छावा फिल्म में भी है दाराशिकोह के सिर काटने का जिक्र
सत्ता संघर्ष में उसने दारा शिकोह को लड़ाई में हरा कैद किया, दिल्ली की सड़कों पर घुमाया और आखिरी में सिर काट दिया. इतिहासकारों के अनुसार औरंगजेब ने दारा शिकोह का कटा सिर शाहजहां को थाल में सजाकर पेश किया था. छावा फिल्म के भी एक सीन में औरंगजेब कहता है कि मैंने अपने भाई दाराशिकोह का सिर काटकर उसे अपने पिता शाहजहां को तोहफे में भेज दिया था.

शाहजहां का अजीज बेटा था दाराशिकोह
दाराशिकोह और औरंगजेब के जीवन पर किताब (दारा शुकोह, द मैन हू वुड बी किंग) लिखने वाले लेखक अवीक चंदा ने बताया था कि दाराशिकोह का व्यक्तित्व सत्ता और सियासत वाला बिल्कुल नहीं था. इसके उलट वह थोड़े वहमी थे. दारा बादशाह शाहजहां के बड़े बेटे और उनके अजीज थे. औरंगजेब की उनसे बचपन से ही अदावत थी. दाराशिकोह को शाहजहां हमेशा अपने करीब रखता था, वहीं औरंगजेब 16 साल उम्र से ही जंगी मोर्चे पर भेजा जाने लगा था.

घटना, जिससे खिंच गई औरंगजेब और दारा के बीच दरार
अवीक चंदा के अनुसार ‘शाहजहां ने सोलह साल उम्र में औरंगजेब को दक्कन भेजा. उसने वहां बड़े सैन्य अभियान का नेतृत्व किया, इसी तरह मुराद बख़्श गुजरात और शाहशुजा बंगाल गया, लेकिन दारा, को शाहजहां ने अपने साथ दरबार में ही रखा.’ दारा और औरंगजेब में अदावत की नींव वर्षों पहले तब पड़ गई थी, जब एक दिन मुगलिया परिवार हाथियों की जंग देखकर मनोरंजन कर रहा था, तभी औरंगजेब एक बिदके हाथी की चपेट में आ गया. उसने बहादुरी से स्थिति का सामना किया और लोगों ने उसे बचा भी लिया . उसके आस-पास लोगों का मजमा जुट गया। औरंगजेब ने देखा कि पास खड़े दाराशिकोह ने औरंगजेब को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

इतिहासकारों के अनुसार जवानी की ओर बढ़ रहे औरंग के दिल में उस दिन बड़े भाई दारा के लिए जो दरार पड़ी, आगे चलकर वही दोनों के बीच सत्ता संघर्ष की गहरी खाई में तब्दील हो गई. औरंगजेब ने दारा के साथ सत्ता को हुए युद्ध में उसे हराया तो इतिहासकारों ने इसका भी बहुत बारीकी से वर्णन किया है.

औरंगजेब के हाथों बुरी तरह हारा था दाराशिकोह
इतालवी इतिहासकार निकोलाओ मनूची ने इस संघर्ष पर लिखा है कि, शुरू में दारा थोड़े भारी पड़े, लेकिन फिर औरंगजेब अपनी पूरी सैन्य ताकत और युक्ति के साथ मैदान में आ डटा. उसने कई तरह की रणनीतियां अपनाकर दारा के दल में खलबली मचा दी । एक समय तो ऐसा आया कि सैनिकों ने देखा कि हाथी की पीठ पर दारा का हौदा खाली है. उन्हें लगा कि उत्तराधिकार लड़ाई में मुगलिया सल्तनत का बड़ा दावेदार दाराशिकोह मारा गया । उनके पांव उखड़ने लगे. औरंगजेब ने मौके का फायदा उठाकर तेजी से तोपों और बंदूकों से हमला किया. दारा शिकोह की सेना तितर-बितर हो गई और वह उत्तराधिकार की लड़ाई हार गया.

दाराशिकोह की हुई दुर्दशा
दारा की हार के बाद की स्थिति का बहुत करीबी वर्णन मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने औरंगज़ेब की जीवनी में किया है. उनके मुताबिक, ‘घोड़े से कुछ मील आगे जाने पर दाराशिकोह आराम फरमाने पेड़ के नीचे रुके और बैठ गए. दारा बहुत हैरान-परेशान हो चुके थे । सिर पर लगा कवचनुमा टोप खोलना चाहते थे, क्योंकि ये उनके माथे में बहुत देर से चुभ रहा था और खाल खरोंच  रहा था. लेकिन दाराशिकोह पर ऐसी थकान चढ़ी थी कि वह सिर तक हाथ भी नहीं ले जा सकता था.’

सरकार आगे लिखते हैं, ‘आख़िरकार रात के नौ बजे  दारा कुछ घुड़सवारों के साथ चोरों की तरह आगरा के किले के मुख्य द्वार पहुंचे. उनके घोड़े बुरी तरह थके हुए थे और उनके सैनिकों के हाथों में कोई मशाल नहीं थी. पूरे शहर में सन्नाटा पसरा था मानो वो शोक मना रहा हो. बिना कोई शब्द दारा अपने घोड़े से उतरे और  घर में घुस कर उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया. दारा शिकोह मुग़ल बादशाहत की लड़ाई हार चुके थे.’

ये तो शुरुआत थी, औरंगजेब दाराशिकोह की और भी दुर्दशा करने वाला था. इधर-उधर भागते और बचते-छिपते दारा को आखिरकार एक दिन पकड़ कर दिल्ली लाया गया. यहां से दाराशिकोह से और बुरा सुलूक हुआ.

दाराशिकोह के साथ बेटे को भी दी गईं यातनाएं
फ्रेंच इतिहासकार फ्रांसुआ बर्नियर की किताब ‘ट्रेवल्स इन द मुग़ल इंडिया’ में दाराशिकोह के साथ हुए बुरे सुलूक मर्माहत जिक्र आया है. उनकी किताबों में है कि औरंगजेब के आदेश पर दारा को एक हथिनी पर बैठाया गया, उसके पीछे एक और हाथी पर दारा के 14 वर्षीय बेटा बिठाया गया । औरंगजेब का एक गुलाम इनके पीछे नंगी तलवार लेकर चला. दारा शिकोह को फटे हाल, नंगे बदन दिल्ली की सड़कों पर घुमाया गया । साथ ही उसके 14 वर्षीय बेटे को भी जलील किया गया.

...और काट दिया गया दाराशिकोह का सिर
अगस्त की चिलचिलाती धूप में दारा और उसके बेटे से बुरा सुलूक दिल्ली ने अपनी झुकी आंखों से देखा । सड़क किनारे खड़े लोगों को इस पर बहुत रोना आया. औरंगजेब के आदेश पर दाराशिकोह को उसके बेटे के साथ जेल में डाल दिया गया. किताब में दर्ज है कि, इसके बाद दाराशिकोह पर इस्लाम विरोधी होने के आरोप तय किए गए । यह भी तय हुआ कि दारा शिकोह को मौत के घाट उतार दिया जाए. औरंगज़ेब ने अपने गुलाम नज़र बेग को आदेश दिया कि वो दारा शिकोह का कटा सिर देखना चाहते हैं.

औरंगजेब के सामने कटा हुआ सिर लाया गया तो वह खून से सना था. औरंगजेब उसे कुछ देर देखता रहा और फिर कहा, खून साफ कर ठीक से लाया जाए. हुक्म की तामील हुई । फिर सिर लाया गया तो औरंगजेब ने इसे गौर से देखकर पहचाना । तसल्ली कर कि कटा सिर दाराशिकोह का ही है, उसने  सिर आगरा ले जाने का आदेश दिया…

औरंगजेब ने शाहजहां को तश्तरी में सजाकर भेजा था दाराशिकोह का सिर
इस घटना का लोमहर्षक वर्णन इतालवी इतिहासकार निकोलाओ मनूची ने अपनी किताब स्टोरिया दो मोगोर में किया है. वह लिखते हैं कि “आलमगीर ने  एतबार ख़ां को शाहजहां को पत्र भेजने की जिम्मेदारी दी. उस पत्र के लिफाफे पर लिखा हुआ था कि औरंगज़ेब, आपका बेटा, आपकी खिदमत में यह तश्तरी भेज रहा है, जिसे देख कर उसे आप कभी नहीं भूल पाएंगे.

पत्र को पा बूढ़े शाहजहां ने कहा- खुदा का शुक्र है कि मेरा बेटा अब तक मुझे याद करता है. तभी उनके सामने एक ढकी हुई तश्तरी पेश की गई. शाहजहां ने उसका ढक्कन हटाया तो उनकी चीख निकल गई, तश्तरी में उनके सबसे बड़े बेटे दारा का कटा हुआ सिर  था.”

ताजमहल में दफनाया दारा का सिर
मनूची आगे लिखते हैं, ‘दारा का बाकी का धड़ हुमायूं के मकबरे में दफनाया गया लेकिन औरंगजेब के हुक्म पर दारा का सिर ताज महल परिसर में गाड़ा गया. उनका मानना था कि जब भी शाहजहां की नजर अपनी बेगम के मकबरे पर जाएगी, उन्हें ख्याल आएगा कि उनके सबसे बड़े बेटे का सिर भी वहां सड़ रहा है.’ हालांकि दाराशिकोह की असली कब्र कहां है, इसे लेकर इतिहासकार कभी भी एकमत नहीं रहे हैं, लेकिन ये घटना औरंगजेब की क्रूरता साबित करने को काफी है.

औरंगजेब को काशी विश्वनाथ मंदिर से सबसे ज्यादा नफरत क्यों थी? मूर्तियों का सोना-चांदी मस्जिद में लगाने का आदेश दिया

Aurangzeb Temple Destruction: औरंगजेब के पूरे शासनकाल में हिन्दू मंदिर निशाने पर रहे. मंदिरों को खंडहर बनाने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक लूटी गई मूर्तियों से सोना-चांदी निकालकर मस्जिदों में लगाने का आदेश तक दे दिया था, लेकिन उसे सबसे ज्यादा नफरत वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर से थी. जानिए, ऐसा क्यों था और देश के किन-किन मंदिरों को अपना निशाना बनाया.

औरंगजेब को काशी विश्वनाथ मंदिर से सबसे ज्यादा नफरत क्यों थी? मूर्तियों का सोना-चांदी मस्जिद में लगाने का आदेश दिया

औरंगजेब के निशाने पर सोमनाथ, विश्वनाथ, केशवराय समेत देश के कई मंदिर रहे.

मंदिर ध्वस्त करने का औरंगजेब का हुक्म किसी खास मंदिर या इलाके तक सीमित नहीं था. उसने अपनी हुकूमत के सभी 21 सूबेदारों को मंदिरों के विध्वंस के साथ ही हिंदुओं की शिक्षण संस्थाएं बंद कराने को लिखा था. इस्लाम के प्रचार-प्रसार को सिर्फ मूर्तिपूजा रोकना ही उसने काफी नहीं माना. हिंदू पर्वों-त्योहारों और रीति-रिवाजों पर भी रोक लगाई. उनकी हर आस्था पर चोट पहुंचाई. हिंदू शिक्षा संस्थाओं से उसे शिकायत थी कि वहां झूठी किताबें पढ़ाई जाती हैं. वो सिर्फ हुक्म जारी करके खामोश नहीं बैठा. उस पर अमल की भी जानकारी लेता रहा.

हालांकि मंदिर गिराए जाने के बाद भी खंडहरों के बीच हिन्दू पूजा-अर्चना करते रहे. सत्रहवीं सदी के आखिरी दिनों में उसने गुजरात के गवर्नर को लिखा कि अगर काफिरों ने सोमनाथ में पूजा जारी रखी हो तो उसे ऐसा जमींदोज कर दो कि उसका नामों-निशां न बचे.

शुरुआत में नए मंदिरों पर रोक का आडंबर

इस्लाम को राजधर्म घोषित करने और शरीयत शासन के औरंगजेब फैसले के बाद काफिर (हिंदू), उनके पूजा स्थल ,शिक्षण संस्थाएं और तीज-त्योहार सभी निशाने पर थे. मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने औरंगजेब के भरोसेमंद मुस्तइद ख़ां की किताब “मासिर-ए-आलमगीरी” के हवाले से लिखा कि शुरुआत में उसने काफिरों के नए मंदिरों के निर्माण पर रोक का आडंबर किया था.

शरीयत की इस हिदायत को उसने दोहराया था कि जो मंदिर लंबे अरसे से मौजूद हैं उन्हें नहीं तोड़ा जाना चाहिए लेकिन नए मंदिर नहीं बनने दिए जाएं. दूसरी ओर 28 फरवरी 1659 के उसके फरमान में पुराने मंदिरों की मरम्मत पर रोक और कटक से मेदनीपुर के बीच गांव-कस्बों में पिछले दस-बारह सालों में बने सभी मंदिर गिराने का आदेश था.

मंदिर गिराओ, हिंदुओं को दबाओ

8 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने इस सिलसिले का दूसरा कड़ा हुक्मनामा जारी किया. थानों के फौजदारों, मुसद्दियों , करोड़ी और गुमाश्तों को संबोधित करते हुए इसमें लिखा गया कि काफिरों के सभी शिवालय और मंदिर गिरा दिए जाएं और उनकी धार्मिक प्रथायें दबायी जाए. मराठों, जाट और सिखों के विरोध के बीच उसके तेवर और कड़े हुए. वो मानने लगा कि मंदिर और हिंदू शिक्षण संस्थाएं काफिरों के जुड़ाव और प्रचार के केंद्र हैं जो उसके शासन को खतरा और इस्लाम के विस्तार की राह का रोड़ा हैं. औरंगजेब के रुख ने मातहत अफसरों और कारिन्दों को मनमानी और ज्यादती की खुली छूट दी. मंदिर विध्वंस का कार्य इतना बड़ा था कि उसके लिए एक अलग महकमा खोलना पड़ा.

सोमनाथ, विश्वनाथ, केशवराय सब निशाने पर

काठियावाड़ का प्रसिद्ध और प्राचीन सोमनाथ मंदिर, बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवराय मंदिर औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त किए गए. बनारस के विश्वनाथ मंदिर को नष्ट करने का औरंगजेब का पहला आदेश 8 अप्रैल 1669 को जारी हुआ. इसी सिलसिले के 2 सितंबर 1669 के उसके दूसरे आदेश के बीच के पांच महीनों में विश्वनाथ मंदिर को लगातार नष्ट किया गया.

बनारस पर खासतौर पर उसकी कोप दृष्टि थी. इसकी एक वजह प्रतिद्वंदी भाई दारा शिकोह का इस स्थान से जुड़ाव और वहां संस्कृत और हिंदू धर्म-दर्शन का अध्ययन किया जाना भी था. हालांकि इस समय तक दारा को वह मार चुका था लेकिन औरंगजेब को इस बात से शिकायत और नाराजगी थी कि उसके बाद भी वहां की शिक्षण संस्थाओं में दूर-दूर से हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पहुंचते हैं और वहां गलत तालीम दी जाती है.

सिर्फ मंदिर नहीं गिराए, पूजा भी रुकवाई

औरंगजेब को उदार बताने वाले बनारस को लेकर औरंगजेब की नाराजगी की वजह दारा का वहां से जुड़ाव और वहां से मिले हिंदू समर्थन को भी मानते हैं. लेकिन देश भर के मंदिरों के प्रति उसकी कोप दृष्टि के मद्देनजर यह वजह बेदम दिखती है. औरंगजेब बनारस तक नहीं थमा. मथुरा के केशवराय मंदिर को तुड़वाने के साथ उसने मथुरा का नाम भी इस्लामाबाद किया. सोमनाथ मंदिर को पहली बार 1665 में गिराने का आदेश दिया और फिर आगे इस बात का वह पता लगाता रहा कि वहां हिंदुओं की पूजा जारी तो नहीं है?

जयपुर के नजदीक मलरीना मंदिर, अहमदाबाद का चिंतामण मंदिर,बड़नगर का हृदयेश्वर मंदिर, उदयपुर झील किनारे के तीन मंदिर, सवाई माधोपुर का मलासा मंदिर,उज्जैन और आसपास के अनेक मंदिर,कूच बिहार,उदयपुर,जोधपुर,गोलकुंडा,बीजापुर और महाराष्ट्र के अनेक मंदिर उस बड़ी सूची का एक छोटा सा हिस्सा हैं, जहां मंदिर औरंगजेब के आदेश पर खंडहरों में बदल दिए गए.

टूटी मूर्तियां मस्जिद के फर्श और सीढ़ियों पर

औरंगजेब ने अपने वफादार राजपूत मित्रों के इलाकों में भी कोई रियायत नहीं की. आमेर राज्य उसके पूर्वजों के वक्त से मुगलों के प्रति वफादार था. लेकिन जून 1680 में उसने आमेर के सभी मंदिर तुड़वा दिए. 1674 में गुजरात के हिंदुओं को धर्मार्थ वजहों से दी गईं जमीनें जब्त कर ली . मुस्तइद ख़ां ने अपनी किताब ” मासिर-ए-आलमगीरी” में लिखा है कि खान-ए-जहां जोधपुर में मंदिरों के विध्वंस के बाद वापसी में कई गाड़ियां भरकर टूटी मूर्तियां लाया.

खुश औरंगजेब ने कहा कि इसमें जो सोने, चांदी, पीतल और पत्थर की हैं,उन्हें जामा मस्जिद के चौक और सीढ़ियों पर लगाया जाए ताकि पैरों से रौंदी जा सकें. मुस्तइद ख़ां के मुताबिक शहंशाह के धर्म की ताकत और अल्लाह के उस पर करम को देखकर हिंदू राजाओं को काठ मार गया और वे दीवार की तरफ मुंह करके बुतों के मानिंद भौंचक्के रह गए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *