कर्नाटक में महिला फ्री बस यात्रा योजना वापस:कांग्रेस का बना तमाशा
Kharge Dk Shivakumar On Free Scheme Congress Chief Shakti Yojana Bjp Demands Apology
अपने वादों पर कैसे फंस गई कांग्रेस? खड़गे ने दी सीख तो भाजपा ने भी मौका देख मार दिया ‘चौका’
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी पार्टी के नेताओं को चेताया है और कहा है कि सोच समझकर वादे करने चाहिए। बजट पर विचार करके होना चाहिए। वरना बदनामी होती है। मामला कर्नाटक का था जहां राज्य के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बयान पर बवाल मचा है। वहीं, भाजपा ने भी मौका देखते ही कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा।
मुख्य बिंदु
फ्री वाली स्कीम को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष खडगे ने दी सावधानी बरतने की सलाह
जनता को ‘मूर्ख बनाकर’ वोट लेने को कांग्रेस को माफी मांगनी चाहिए: भाजपा
कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री ने फ्री बस सेवा की समीक्षा करने की बात कही, मचा बवाल
नई दिल्ली 01 नवंबर 2024: फ्री वाली स्कीम को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने अपनी ही सरकार की खिंचाई की है। मामला कर्नाटक से जुड़ा है, इससे भाजपा को भी मौका मिल गया और उसने खडगे का बयान हाथों हाथ लपक लिया। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने गारंटियों के नाम पर कई चुनावी वादे किए और सरकार बनी तो गारंटियां शुरू की। उसका असर कर्नाटक सरकार के खजाने पर पड़ना ही था। इस बीच राज्य के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार का एक बयान आया जिस पर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे की प्रतिक्रिया ने भाजपा को कांग्रेस पर व्यंग्य कसने का मौका दे दिया है।
समीक्षा वाला कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री का बयान
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने दो दिन पहले कहा था कि सरकार ‘शक्ति’ योजना पर फिर से विचार करेगी क्योंकि कुछ महिलाओं ने सरकारी बसों में यात्रा को भुगतान की इच्छा व्यक्त की है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार की इस गारंटी में महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा दी जाती है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री की उनके इस बयान को लेकर खिंचाई की कि राज्य सरकार ‘शक्ति’ गारंटी की समीक्षा करेगी।
आप अखबार नहीं पढ़ते क्या
बेंगलुरु में प्रेस कॉन्फ्रेंस में खडगे ने कहा कि आपकी 5 गारंटियां देखते हुए मैंने महाराष्ट्र में 5 गारंटियों की घोषणा की है लेकिन आपने कहा है कि एक गारंटी हटा दी जाएगी। इस पर शिवकुमार ने कहा कि नहीं मेरा मतलब ये नही था। खड़गे ने कहा कि आप अखबार नहीं पढ़ते। यह अखबारों में आया है। इस पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि हम समीक्षा करेंगे। तब इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि जब आप समीक्षा कहते हैं तो यह आलोचना का अवसर खोलता है।
ऐसी घोषणा से बचना चाहिए
खडगे ने कहा कि महाराष्ट्र में मैंने कहा है कि 5,10 या 20 गारंटियों की घोषणा नहीं करनी चाहिए। बजट के आधार पर घोषणा होनी चाहिए। अन्यथा दिवालियापन हो जाएगा। सड़कों के लिए पैसा नहीं होगा तो हर कोई आपके खिलाफ हो जाएगा। साथ ही खडगे ने कहा कि आपने (शिवकुमार) जो कुछ भी कहा है, उससे उन्हें (BJP) मौका मिल गया है। भाजपा ने भी बिना देरी किए कांग्रेस पर निशाना साधा और कहा कि नेताओं को जनता को मूर्ख बनाकर वोट लेने के लिए माफी मांगनी चाहिए।
कांग्रेस पर कुछ ऐसे भाजपा ने साधा निशाना
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने खडगे की टिप्पणी का संदर्भ देते हुए कहा कि कांग्रेस ने पहली बार स्वीकार किया है कि उसकी चुनावी घोषणाएं, जनता की आंखों में धूल झोंकने को होती हैं। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने अपने अध्यक्ष के माध्यम से पहली बार स्वीकार किया है कि उसकी चुनावी गारंटी, जनता की आंखों में धूल झोंकना है। कर्नाटक के अलावा तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की ओर से घोषित चुनावी गारंटियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि घोषणा करके… शुद्ध भाषा में जनता को मूर्ख बनाकर वोट लेना। और बाद में योजना को जमीन पर नहीं उतरना। बस, कागज पर ही रहना। यह कांग्रेस का आज का इतिहास नहीं है। गरीबी हटाओ की घोषणा 1971 में हुई। गरीबी हटी क्या? घोषणा करो, कोई पूछने वाला नहीं है।
Why Muft Ki Revdi Becoming A Problem For India Political Parties Congress Five Guarantee In Karnataka Is Example
Opinion: चुनावी गारंटी… सत्ता में आने के लिए अब मुफ्त की रेवड़ियों पर राजनीतिक दलों को सोचना तो पड़ेगा
Muft ki Revdi Indian Politics: फ्री योजनाएं राज्यों को आर्थिक तंगी की तरफ ले जा सकती हैं। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ‘शक्ति’ गारंटी की समीक्षा करने के फैसले को लेकर चर्चा में है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार और नेताओं को सचेत किया है कि जितनी गारंटी दे सकते हैं, उतनी ही वादा करें।
भारत की राजनीति में जनता को मुफ्त सेवाओं का चलन बढ़ता जा रहा है
मुफ्त की योजनाओं में बिजली, पानी, राशन और बस सेवा शामिल हैं
मुफ्त के चक्कर में कर्नाटक की कांग्रेस सरकार आर्थिक तंगी से जूझ रही है
बिजली फ्री, पानी फ्री, राशन फ्री, बस सेवा फ्री… अगर बस चले तो नेता चुनाव से पहले जनता के 7 खून भी माफ कर दें।सत्ता पर काबिज होने के जुनून के चलते राजनीतिक दलों ने भारत की राजनीति का फोकस मुफ्त की रेवड़ियों की तरफ मोड़ दिया है। फ्री में मिलने वाली सेवाएं कुछ समय तक तो जनता और नेताओं के लिए फायदे का सौदा होती हैं। लेकिन इसके दूरगामी परिणाम काफी घातक साबित हो सकते हैं। फ्री योजनाओं के चक्कर में राज्य कर्जे में डूब सकता है। मूलभूत सुविधाओं को सुचारू रखने के लिए भी पर्याप्त फंड का इंतजाम करना सरकारों के लिए चुनौती बन सकता है। इसका ताजा उदाहरण कर्नाटक से सामने आया है।
कांग्रेस की कर्नाटक सरकार इस वक्त आर्थिक तंगी से जूझ रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ही पार्टी नेताओं और सरकार को सख्त लहजे में खरा-खरा सुना डाला। खरगे ने साफ कहा कि उतनी ही गारंटी का वादा करें, जितना दे सकें। वरना सरकार दिवालियापन की तरफ चली जाएगी। कर्नाटक से ‘मुफ्त की रेवड़ी’ को लेकर जो उदाहरण सामने आया है, उससे सभी राजनीतिक दलों को सबक लेने की जरूरत है।
क्यों चर्चा में है मुफ्त की रेवड़ी
कर्नाटक में ‘शक्ति’ गारंटी की समीक्षा किए जाने संबंधी टिप्पणी को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार की खिंचाई की है। दरअसल, शिवकुमार ने पिछले दिनों कहा था कि सरकार ‘शक्ति’ योजना पर फिर से विचार करेगी क्योंकि कुछ महिलाओं ने सरकारी बसों में यात्रा के लिए भुगतान करने की इच्छा व्यक्त की है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार की इस गारंटी के तहत महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा प्रदान की जाती है। खरगे ने शिवकुमार के इस बयान पर तंज कसते हुए कहा था, ‘आपने कुछ गारंटी दी हैं। उन्हें देखने के बाद मैंने भी महाराष्ट्र में कहा था कि कर्नाटक में 5 गारंटी हैं। अब आपने (शिवकुमार) कहा कि आप एक गारंटी छोड़ देंगे।’ एक बार फिर देश के सियासी गलियारों में ‘मुफ्त की रेवड़ी’ चर्चा में है।
How Freeby Politics And Revdi Culture May Prove Dangerous Himachal Is Example
रेवड़ी पॉलिटिक्स कितनी खतरनाक, हिमाचल प्रदेश में दिख गया ट्रेलर! कब सुधरेंगी पार्टियां?
हिमाचल प्रदेश में मुफ्त की रेवड़ियों की वजह से आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है। मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों ने दो महीने की सैलरी नहीं लेने का ऐलान किया है। विधायकों से भी ऐसा ही करने की अपील की गई है। हिमाचल प्रदेश की मौजूदा हालत राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ जनता के लिए भी चेतावनी की तरह है।
हिमाचल प्रदेश में गड़बड़ा गया राज्य सरकार का बजट
मुख्यमंत्री और मंत्री नहीं लेंगे दो महीने की सैलरी
मुख्यमंत्री सुक्खू ने सभी विधायकों से भी ऐसा करने की अपील की
मुफ्त की रेवड़ियां कैसे पांव की बेड़ियां बन जाती हैं, इसका उदाहरण है हिमाचल प्रदेश। जब सत्ता में आने का शॉर्ट कट बन जाती हैं रेवड़ी पॉलिटिक्स तो संकट आएगा ही। आज नहीं तो कल। हिमाचल प्रदेश एक चेतावनी है। हिमाचल प्रदेश एक सबक है। अगर गैर-जिम्मेदार तरीके से, चुनावी फसल काटने के मकसद से मुफ्त की रेवड़ियों का चलन चलता रहा, लोकलुभावन वादों की आंच पर पॉलिटिक्स चमकाने की रेसिपी पकती रही तो हालत खराब होंगे। जनता मुफ्त की रेवड़ियों के चक्कर में पार्टियों की झोली वोट से तो भर देगी लेकिन उसकी कीमत भी उसे ही चुकानी पड़ेगी। अभी दो साल भी नहीं बीते जब ब्रिटेन में टैक्स कटौती जैसी मुफ्त की रेवड़ियों के वादों को पूरा नहीं कर पाने और उल्टे उसके चक्कर में अर्थतंत्र गड़बड़ा जाने के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने इस्तीफा दे दिया था। लेकिन भारत में तो इस तरह के इस्तीफे की बात कभी सपने में भी नहीं सोची जा सकती।
खैर, हिमाचल प्रदेश पर आते हैं। वह चर्चा में है। चर्चा में इसलिए कि सूबे की खस्ता-हाल आर्थिक स्थिति के मद्देनजर मुख्यमंत्री, मंत्री, बोर्डों को चेयरमैन और वाइस-चैयरमैन के साथ-साथ चीफ पार्लियामेंट सेक्रटरी दो महीने का वेतन-भत्ता नहीं लेंगे। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राज्य के सभी विधायकों से भी ‘जनहित’ में दो महीने की सैलरी नहीं लेने की अपील की है। लेकिन मंत्रियों, विधायकों के 2 महीने की सैलरी नहीं लेने से होगा क्या? ये ऊंट के मुंह में जीरा भी तो नहीं है। इससे भले ही राज्य की खस्ताहाल इकॉनमी पर कोई असर नहीं पड़े लेकिन मुख्यमंत्री और कैबिनेट ये संदेश देने और हमदर्दी हासिल करने में जरूर कामयाब हो सकते हैं कि उनके लिए जनता की भलाई सबसे ऊपर है!
मुफ्त की रेवड़ियों की सौगात बनी आफत!
2022 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करके कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया। सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री बने। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती चुनाव में जनता को लोकलुभावन वादों के रूप में दी गईं ‘चुनावी गारंटियों’ को पूरा करने की थी। नौकरी-रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था बेहतर करने जैसे वादे बढ़-चढ़कर किए गए थे लेकिन कई वादे ऐसे थे जो पहली ही नजर में रेवड़ी कल्चर की चाशनी में डूबे दिख रहे थे। मसलन, 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली, 19-60 उम्र की महिलाओं के लिए हर महीने 1500 रुपये, ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करना आदि। अब सरकार बनने के महज 2 साल के भीतर नौबत ये आ गई कि मुख्यमंत्री और मंत्रियों को दो महीने की सैलरी नहीं लेने का ऐलान करना पड़ रहा है।
हिमाचल प्रदेश का सालाना बजट 58,444 करोड़ रुपये है। इसमें से करीब 42 हजार करोड़ तो सिर्फ सैलरी, पेंशन और पुराने कर्ज चुकाने के मद में चला जा रहा है। अब आप खुद की कल्पना कीजिए कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क, इन्फ्रास्ट्रक्चर और बाकी विकास कार्य कैसे होंगे? महिलाओं के लिए डायरेक्ट कैश बेनिफिट के मद में सालाना 800 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। ओल्ड पेंशन स्कीम और मुफ्त बिजली का खर्च ऊपर से। सिर्फ महिलाओं के लिए 1500 रुपये महीने वाली योजना, मुफ्त बिजली और ओल्ड पेंशन स्कीम पर ही सरकार का तकरीबन 20 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहा है। ऊपर से राज्य कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है। आलम ये है कि केंद्र सरकार को राज्य के कर्ज लेने की सीमा को घटाने पर मजबूर होना पड़ा है। मार्च 2024 तक हिमाचल प्रदेश पर 86,600 करोड़ रुपये का भारी-भरकम खर्च है। आरबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में सूबे में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के समय राज्य पर 68,896 करोड़ रुपये का कर्ज था। दो साल से भी कम समय में कर्ज का बोझ करीब 18 हजार करोड़ रुपये और बढ़ गया है। राज्य में आर्थिक संकट गहरा गया है। हालत ये है कि राज्य सरकार 28 हजार कर्मचारियों के पेंशन, ग्रैच्युटी और दूसरे मद के 1000 करोड़ रुपये दे ही नहीं पाई है।
मुफ्त की रेवड़ी बनाम जन-कल्याण की बहस
मुफ्त बिजली-पानी जैसी रेवड़ियों का रिवाज तेजी से बढ़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार फ्रीबी पॉलिटिक्स यानी मुफ्त की रेवड़ियों के कल्चर को लेकर चेता चुके हैं। रेवड़ी कल्चर पर समय-समय पर बहस भी छिड़ती है। राजनीतिक दल अक्सर मुफ्त की रेवड़ियों की अक्सर ये कहकर बचाव करते हैं कि ये जनता की भलाई के लिए है। ये भी सवाल उठाते हैं कि ‘हमारी सौगात रेवड़ी, लेकिन आपकी सौगात स्कीम’ क्यों? मुफ्त बिजली अगर मुफ्त की रेवड़ी है तो मुफ्त अनाज मास्टरस्ट्रोक क्यों? ये बहस चलती रहेगी लेकिन हकीकत यही है कि चादर से बाहर पैर पसारेंगे तो दिक्कत तो होगी ही। गरीब और वंचित तबके की भलाई वाली योजनाएं देश या राज्य के विकास के लिए जरूरी हैं और सरकारों का फर्ज भी हैं लेकिन इसमें और रेवड़ी वाले चुनावी हथियार में फर्क समझना होगा। सियासी फायदे जैसे शॉर्ट-टर्म उद्देश्यों के खातिर चलने वाली लोकलुभावन योजनाओं से जनहित नहीं होने वाला बल्कि ये आगे चलकर जनता पर ही बोझ बनेगा। मुफ्त की रेवड़ी बनाम जन-कल्याणकारी योजना की बहस चलती रहेगी लेकिन हिमाचल प्रदेश एक सबक की तरह है कि मुफ्त की रेवड़ी कल्चर किस तरह कंगाल बना सकती है।
हमाम में सब नंगे
वैसे मुफ्त की रेवड़ियों की वजह से सिर्फ हिमाचल खस्ताहाल नहीं हुआ है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस ने मुफ्त की रेवड़ियों के वादे को चुनावी हथियार बनाया है। हमाम में सब नंगे हैं। कांग्रेस हो या बीजेपी, आम आदमी पार्टी हो या कोई और पार्टी। महाराष्ट्र में बीजेपी गठबंधन सरकार में शामिल है। उसने भी हाल में महिलाओं के लिए कैश बेनिफिट ट्रांसफर योजना का ऐलान किया है। मध्य प्रदेश में इस तरह की योजना पहले से लागू है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार इस तरह की योजना पर काम कर रही है। उसके तो सत्ता में आने और बने रहने का श्रेय ही मुफ्त बिजली-पानी जैसे वादों और स्कीम को जाता है। पंजाब में भी यही हाल है। दक्षिण के कई राज्यों में तो टीवी, फ्रीज, साड़ी, आभूषण देने जैसे चुनावी वादे आम हैं। कुल मिलाकर, तकरीबन सभी पार्टियां मुफ्त की रेवड़ियों को सत्ता में आने की सीढ़ी के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं। उन सभी के लिए चेतने का समय है। जनता के लिए भी चेतने का समय है कि मुफ्त की रेवड़ियों के लालच में उनका बुरा हाल हो सकता है।
चुनाव आयोग को भी सख्ती दिखानी पड़ेगी। उसने सख्त रुख अपनाने का संकेत दिए थे। अक्टूबर 2022 में आयोग ने राजनीतिक दलों को लेटर लिखा था कि सिर्फ वादों से काम नहीं चलेगा, ये भी बताना होगा कि वे आखिर पूरे कैसे होंगे? उनके लिए पैसे कहां से आएंगे? यानी पार्टियों को चुनावी वादों को पूरा करने का पूरा रोडमैप बताने को कह दिया था। कह दिया कि चुनाव में सिर्फ वैसे ही वादे किए जाएं जिन्हें पूरा करना मुमकिन हो। लेकिन आयोग के खत से कई पार्टियां ऐसे तिलमिला गईं कि उसे ‘लोकतंत्र की ताबूत में कील’ करार दे दिया। तमाम पार्टियां ऐसे भड़क गईं जैसे मुफ्त की रेवड़ियों के वादे उनके जन्मसिद्ध अधिकार हों। बाद में चुनाव आयोग के सख्त तेवर बरकरार नहीं रह पाए, जबकि उसकी अब सबसे ज्यादा जरूरत है।
जब ‘मुफ्त की रेवड़ी’ पर ब्रिटेन के पीएम को देना पड़ा इस्तीफा
चलते-चलते ब्रिटेन का वह दो साल पुराने किस्से की याद भी ताजा कर लेते हैं जिसका सबसे ऊपर की लाइनों में जिक्र था। अक्टूबर 2022 में ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री लिज ट्रस को पद संभालने के महज एक-डेढ़ महीने में ही इस्तीफा देना पड़ा। 6 सितंबर 2022 को उन्होंने ब्रिटेन के पीएम पद की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने महंगाई से निजात दिलाने, खस्ताहाल अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने का वादा किया था। हिचकोले लेती इकॉनमी के बावजूद टैक्स कटौती जैसे लोकलुभावन वादे किए थे। आलोचक चेता रहे थे लेकिन उन्हें अनसुना कर टैक्स कटौती का ऐलान भी कर दिया। लेकिन इससे हालात बिगड़ गए। महंगाई बेकाबू हो गई, शेयर बाजार लुढ़कने लगे, मुद्रा कमजोर पड़ने लगी, अर्थव्यवस्था डंवाडोल होने लगी। महंगाई से त्रस्त जनता कराहने लगी। हालत सुधरता न देख, ट्रस ने वित्त मंत्री क्वासी क्वार्टेग को बर्खास्त कर दिया। जेरमी हंट को नया वित्त मंत्री बनाया लेकिन नए-नवेले वित्त मंत्री ने सार्वजनिक तौर पर प्रधानमंत्री के पैसे कई फैसलों को गलत करार दे दिया। ट्रस को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी। बहुत किरकिरी हुई। उन्होंने टैक्स कटौती के ऐलान को वापस ले लिया। लेकिन अपनी हो रही किरकिरी को देखते हुए आखिरकार 20 अक्टूबर 2022 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
कब शुरू हुआ मुफ्त रेवड़ी का कल्चर?
चुनावों में मुफ्त की सौगात का चलन तेजी से बढ़ रहा है, जिसकी शुरुआत तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता ने की थी। उन्होंने मुफ्त साड़ी, प्रेशर कुकर जैसी चीजें देकर इस चलन की नींव रखी थी। बाद में, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में मुफ्त बिजली और पानी का वादा करके 2015 का चुनाव जीता। केरल में भी वाम दलों ने मुफ्त राशन किट देकर जीत हासिल की।
यहां भी दिखाया मुफ्त रेवड़ी ने असर
केरल में 2021 के विधानसभा चुनावों में भी मुफ्तखोरी का असर दिखा। लोकसभा चुनावों में हार के दो साल बाद सत्ताधारी वाम लोकतांत्रिक मोर्चा ने सब्सिडी वाले चावल और खाद्य किट मुफ्त में देने का वादा करके लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की। पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को भी प्रचंड बहुमत मिला था। आप ने सत्ता में आने पर पंजाब के लोगों को 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली और 18 साल या उससे ज्यादा उम्र की हर महिला को 1,000 रुपये प्रति माह देने का वादा किया था।
‘…पानी के ‘बढ़े हुए’ बिल भी माफ कर देंगे’
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दिल्ली में बिजली के बिल फ्री करने वाली स्कीम से आम आदमी पार्टी (AAP) को दिल्ली में जबदस्त सीटें मिली थीं। इसे देखते हुए अन्य राजनीतिक दलों ने भी फ्री की स्कीम को तवज्जो देना शुरू कर दिया। हाल ही में आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपनी पदयात्रा में दिल्लीवालों को वादा किया है कि वह पानी के ‘बढ़े हुए’ बिल भी माफ कर देंगे। साथ ही उन्होंने दावा किया कि बीजेपी अगर दिल्ली में सत्ता में आती है, तो वह ‘आप’ सरकार की मुफ्त बिजली, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और महिलाओं के लिए बस यात्रा की योजनाओं को बंद कर देगी। दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।
बीजेपी भी पीछे नहीं
फ्री सेवाओं के मामले में बीजेपी भी पीछे नहीं है। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले 5 साल तक फ्री राशन वाली स्कीम को बढ़ा दिया था। दरअसल भारत सरकार ने कोरोना काल में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना शुरू की थी जिसके तहत हर गरीब जरूरतमंद इंसान को 5 किलोग्राम तक मुफ्त राशन देती है। सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को 1 जनवरी 2024 से अगले पांच सालों तक के लिए बढ़ा दिया गया है। हाल ही में बीजेपी हरियाणा में प्रचंड जीत मिली है। चुनाव से पहले बीजेपी ने हरियाणा में जो संकल्प पत्र जारी किया था, उसमें कहा था कि वह हर महीने महिलाओं को लाडो लक्ष्मी योजना में 2100 रुपये देगी। ताज्जुब की बात यह है कि बीजेपी पहले मुफ्त की योजनाओं के खिलाफ थी, लेकिन धीरे-धीरे वह भी इस राह पर चल पड़ी।