कैंसर चिकित्सक डॉ. पुनीत गुप्ता ने पढ़ ली हडप्पा लिपी?

NewsindiaDoctor Claims Decipherment Of Indus Script Mentions Rishabhdev Ram And Ayurveda In Inscriptions
इंटरव्यू: अभी तक किसी को कामयाबी नहीं मिली… हड़प्पा की गुत्थियों को सुलझाने का दावा
कैंसर चिकित्सक डॉ. पुनीत गुप्ता ने हड़प्पा लिपि को पढ़ने का दावा किया है, जिसमें उन्होंने मानव शरीर और स्वर तंत्र की भूमिका बताई है। उन्होंने लिपि में द्विकक्षीय अबीगुडा फोनेटिक राइटिंग सिस्टम की पहचान की है।

हड़प्पा की लिपि को पढ़ने के कई प्रयास हो चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी को कामयाबी नहीं मिली है। अब पेशे से कैंसर चिकित्सक डॉ. पुनीत गुप्ता ने इस गुत्थी को सुलझाने का दावा किया है, जिसका अभी तक ‘peer review’ नहीं हुआ है यानी इस क्षेत्र के जानकारों ने उनके दावे की पुष्टि नहीं की है। इस पर उनसे NBT के लिए बात की मंजरी चतुर्वेदी ने। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश :

आपने हड़प्पा लिपि को पढ़ने का दावा किया है। आप डॉक्टर हैं, क्या आपके पास इसकी विशेषज्ञता है? आप कैसे इसमें कामयाबी का दावा कर रहे हैं…
मेरा एक पेशंट रूस से आया था। वह गले के कैंसर के चलते बोल नहीं पा रहा था। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान हमें बताया जाता है कि इंसान का ऊपरी जबड़ा स्थिर रहता है और सिर्फ निचला जबड़ा गति करता है। इंसान जबड़े की गति, जीभ और फेफड़े से निकली हवा के प्रेशर से कोई भी स्वर निकाल सकता है। जब उस मरीज का कैंसर ठीक हो गया तो वह फिर से बोलने लगा। इसी दौरान ध्यान में आया कि व्यक्ति जब भी कोई अक्षर बोलता है तो उसकी दो ध्वनियां होती हैं। एक, उस अक्षर को बोलने से पहले और एक उसके बाद। इसी समझ ने मुझे हड़प्पा की ब्राह्मी लिपि के संकेतों और उनसे संबंधित ध्वनियों की गुप्त कुंजी को डीकोड करने में मदद की। मैंने पाया कि उस लिपि में हर विशिष्ट ध्वनि के लिए दो स्वतंत्र चिह्न निर्दिष्ट किए गए हैं। इससे द्विकक्षीय अबीगुडा फोनेटिक राइटिंग सिस्टम कहा जाता है। इतना ही नहीं, उन्होंने लेखन में बीच-बीच में एक अक्षर की दिशा बदलकर यह बताने की भी कोशिश की कि इस लिपि की दिशा क्या है। किसी भी भाषा को हम कैसे लिखते हैं, इसका ज्ञान हमें अक्षरों की दिशा से मिलता है।

मैंने पाया कि उस लिपि में हर विशिष्ट ध्वनि के लिए दो स्वतंत्र चिह्न निर्दिष्ट किए गए हैं। इससे द्विकक्षीय अबीगुडा फोनेटिक राइटिंग सिस्टम कहा जाता है। इतना ही नहीं, उन्होंने लेखन में बीच-बीच में एक अक्षर की दिशा बदलकर यह बताने की भी कोशिश की है कि इस लिपि की दिशा क्या है।
कैंसर चिकित्सक डॉ. पुनीत गुप्ता

किसी भी खोज पर मुहर तब तक नहीं लगती, जब तक इस फील्ड से जुड़े हुए लोग उसे मान्यता न दें। क्या आपके नतीजों का peer review हो चुका है?
अभी जो संस्कृति मंत्रालय का तीन दिन का सम्मेलन हुआ, उसमें मुझसे कहा गया कि मैं अपना पेपर सरकार को दूं, जिसे एक्सपर्ट कमिटी पढ़ेगी और राय देगी। उनकी ओर से ओके होने के बाद ही आपको पेपर प्रेजेंट करने का मौका मिलेगा। मेरे अलावा तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा और लोगों को भी मौका दिया गया।

आपने कहा कि हड़प्पा सभ्यता को डीकोड करने में आप मानव शरीर, खासकर स्वर तंत्र और जबड़े आदि की बनावट को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़े। क्या आप मानते हैं कि उस समय में हड़प्पा सभ्यता वैज्ञानिक रूप से इतनी उन्नत थी?
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हड़प्पन लोगों ने उस समय क्रूड किस्म के मिनी रोबॉट तक तैयार कर लिए थे। इस दौर के जो अवशेष मिले हैं, उनमें बाकायदा रेड स्टोन के धड़ मिले हैं। वे बिल्कुल वैसे ही हैं, जैसे आजकल कपड़ों के शोरूम दिखने वाले सजे-धजे पुतलों के होते हैं। उन्हें गणित से लेकर ज्योतिष, मेडिकल तक की जानकारी थी। यहां एक मेडिकल सील मिली है इसके आगे-पीछे प्रसव प्रक्रिया को दिखाया गया है। इसमें बच्चों के जन्म से लेकर उसकी नाल काटने का सीन तस्वीरों में दिखाया गया है। हड़प्पा स्क्रिप्ट में एक जगह जिक्र आता है कि प्रसव महिला दो बार दहाड़ती है। एक जब जन्म देती है और दूसरा डिलिवरी के बाद जब प्लेसेंटा बाहर आता है। उसमें साफ कहा गया है कि उसकी दूसरी दहाड़ का इंतजार करो। तकरीबन आधे घंटे के इंतजार के बाद अगर प्लेसेंटा बाहर नहीं आता, फिर उसे बाहर निकाला जाना चाहिए। मेडिकल तौर पर हम सब जानते हैं कि डिलिवरी के बाद अगर मां के शरीर से तुरंत नाल खींच दी जाएगी तो अत्यधिक ब्लीडिंग के चलते मां की मृत्यु हो सकती है। इसी तरह से अगर कुछ देर बाद प्लेसेंटा को बाहर ना निकाला गया तो इन्फेक्शन और सेप्टीसीमिया के चलते भी मां की मृत्यु हो सकती है।

हड़प्पा सभ्यता की गुत्थियों को डीकोड करने में आपको कितना समय लगा? अपने किन-किन चीजों की मदद ली?
मैं पिछले 12 सालों से इस पर काम कर रहा हूं। इस दौरान मैंने सभी 4000 शिलालेखों को डीकोड किया है। मैंने हड़प्पा के शून्य को लिखित रूप में पहचाना और पहली बार सभी 700 से अधिक संकेतों के लिए लेखन को पूरी तरह से डीकोड किया गया है।

इन लिपियों के जरिए क्या आप उस समय के समाज, इसकी विशेषताओं और परंपराओं के बारे में क्या पता चलता है?
मैंने हड़प्पा शिलालेखों का अक्षरशः वाचन प्रस्तुत किया, जिसमें जिन (ऋषभ) श्रमण परंपरा, दत्तात्रेय, ललिता-त्रिपुरा, कार्तिकेय, परशुराम और वैदिक (ऋषि अत्रि, गैर-वैदिक तंत्र के जनक दत्तात्रेय) परंपरा के साथ-साथ सुरक्षित देवता और आयुर्वेद की 107 मर्म अवधारणा का उल्लेख है। दत्तात्रेय की तीन संयुक्त मुख वाली प्रतिमा, हिंदू त्रिदेवों अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र की संयुक्त शक्तियों वाले देवता का प्रतिनिधित्व करती है। शिलालेख मिले हैं, जिनमें जैन तीर्थंकर ऋषभ देव जी का जिक्र है। राम का जिक्र है, जिसे शूरा राम कह कर संबोधित किया गया है। संख्या का ज्ञान उन लोगों को था, तभी दस अग्नि व दस कागा जैसी परंपराओं का जिक्र मिलता है।

संस्कृत-हिंदी सहित तमाम भारतीय भाषाएं ‘जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है’ के सिद्धांत पर आधारित हैं। क्या हड़प्पा के समय में प्रचलित लिपि भी उसी परंपरा की ओर संकेत करती है?
संस्कृत व दूसरी भाषाओं की तरह इस काल की भाषा में भी जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है। जहां तक भारतीय परंपरा को समझने की बात है तो हमें अपने यहां पांडुलिपि लेखन के लिए बहुभाषी कीबोर्ड की जरूरत है। अब एक कीबोर्ड हड़प्पा ब्राह्मी, ब्राह्मी, प्राकृत, संस्कृत, तमिल, हिंदी, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और अतीत के साथ-साथ वर्तमान की सभी विशेषक आधारित भारतीय लिपियों को लिखने में मदद कर सकता है। दूसरी भाषा के कीबोर्ड के जरिए हम यह काम सटीक तरीके से नहीं कर सकते।

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