कैराना में सपाई इकरा शामली छोड़ हर विस क्षेत्र में भाजपाई प्रदीप पर भारी पड़ी
सपा ने यूं ही नहीं पलटा पासा,यहां BJP-RLD गठबंधन एक सीट पर सिमटा;चार पर Iqra Hasan की जीत का ये है रहस्य
Kairana MP Iqra Hasan प्रदीप चौधरी अपनी गृह विधानसभा क्षेत्र तक में बुरी तरह से पिछड़े हैं तो वहीं इकरा हसन ने अपनी गृह विस कैराना से लेकर ननिहाल नकुड़ तक जीती है। लोकसभा चुनाव-2019 पर गौर करें तो भाजपा चार सीटों पर जीती थी लेकिन इस बार पासा पलटा और इकरा के हिस्से में बढ़त का रिकार्ड बन गया है।
शामली 07 जून 2024। लोकसभा चुनाव-2024 में भारतीय जनता पार्टी पांच विधानसभा सीट में से महज एक पर सिमट गई। भाजपा-रालोद के लाखों मतों से जीत के दावों की पोल ईवीएम ने खोल दी। पांच साल पहले अकेले भाजपा ने चार विधानसभा में कमल खिलाया था। चर्चा है कि सपा के बढ़े ग्राफ से चिंतित भाजपा हाईकमान ने विस्तृत गोपनीय रिपोर्ट मांगी है।
कैराना लोकसभा सीट पर हार के बाद ज्वलंत सवाल उठ रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी से नाराजगी, भीतरघात-गुटबाजी के कारण हार की रिपोर्ट शुरुआती दौर से मिल रही थी, लेकिन भाजपा-रालोद गठबंधन के मतों का समीकरण पेश कर नेता लाखों की जीत के दावे करते रहे। कैराना लोकसभा क्षेत्र की मतगणना के बाद ईवीएम के आंकड़े जनता के सामने हैं।
प्रदीप चौधरी अपने विस क्षेत्र तक में पिछड़े
प्रदीप चौधरी अपनी गृह विधानसभा में बुरी तरह से पिछड़े हैं, तो वहीं इकरा हसन अपनी गृह विस कैराना से लेकर ननिहाल नकुड़ तक जीती। लोकसभा चुनाव-2019 पर ध्यान दें तो भाजपा चार सीटों पर जीती थी, लेकिन इस बार पासा पलटा और इकरा के हिस्से में बढ़त का रिकार्ड बन गया। 2019 में इकरा की मां पूर्व सांसद तबस्सुम हसन कैराना विस में ही भाजपा के प्रदीप से पीछे रह गई थीं।
इस चुनाव में तबस्सुम हसन केवल नकुड़ में ही बढ़त बना पाई थी, जबकि बाकी विस में उन्हे हार का सामना करना पड़ा था। इस बार मतगणना के बाद ईवीएम के आंकड़े देखें तो नकुड़ विस में इकरा हसन को 126320 मत मिले हैं, वहीं भाजपा को यहां 95529 मत मिले। इकरा ने अपनी पैतृक सीट कैराना में 116265 मत पाये हैं, जबकि भाजपा के प्रदीप चौधरी को 85616 वोट मिले।
यहां इकरा 30649 मतों से जीती। 2019 में कैराना प्रदीप चौधरी की जीत में महत्वपूर्ण रहा था, क्योंकि वे यहां से 15481 मतों से जीते थे। थानाभवन में इकरा चौधरी को 85904 मत मिले, यहां प्रदीप चौधरी ने 85217 मत पाये हैं। यहां इकरा ने 687 मतों से बढ़त बनाई। गंगोह विधानसभा क्षेत्र में प्रदीप चौधरी का निवास है। यहां से वे दो बार विधायक भी रह चुके है।
फिर भी उन्हें यहां भी हार मिली हैं। आंकड़ों में झांके तो यहां इकरा को 117901 वोट मिले हैं, वहीं प्रदीप को 100986 मत मिले। यहां से इकरा 14618 से जीती। शामली विस में प्रदीप चौधरी जीते, यहां उन्हें 11226 मतों से जीत मिली, जबकि साल 2019 के चुनाव में उन्हें 36312 मतों से रिकार्ड जीत मिली थी।
भाजपा संगठन भले ही यहां पीठ थपथपा रहा हो, लेकिन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सपा का ग्राफ यहां भी बढ़ा ही हैं। इसी से भाजपा हाईकमान एकाएक गिरे इस ग्राफ से खासा चिंतित हैं। क्षेत्रवार कहां किसकी जिम्मेदारी रहीं थी,इसकी भी समीक्षा होगी। कमल को डुबाने में गुटबाजी, भीतरघात, विरोध जगजाहिर हैं। इसलिए हाईकमान के निर्देश पर इन बिंदुओं पर निकाय, ग्रामीण अंचल व बूथवार पड़ताल शुरू की जा चुकी है।
14 प्रत्याशियों को डाकमत से मिले 4233 मत
कैराना लोकसभा सीट पर चुनाव लड रहे सपा, भाजपा, बसपा समेत 14 प्रत्याशियों को कुल 4233 डाकमत मिले हैं। पांचों विधानसभा क्षेत्र से मिले मतों इकरा को 1126, प्रदीप को 2822, श्रीपाल को कुल 222 मत मिले हैं। इस तरह सपा की इकरा को 528013, भाजपा के प्रदीप को 458897 कुल मत मिले हैं।
कैराना लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी पार्टी ‘विभीषणों’ के राजनीतिक भंवर में फंसकर रह गए। राजनीतिक महत्वकांक्षा के चलते पार्टी के कुछ क्षेत्रीय नेताओं ने उनकी चुनावी नैया में छेद किया। परिणामत:, प्रदीप चौधरी को 69,216 मतों की भारी हार झेलनी पड़ी। समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी चौधरी इकरा हसन ने अपने प्रतिद्वंदी भाजपा उम्मीदवार प्रदीप चौधरी को 69,216 मतों से पराजित किया। इकरा हसन को कुल 5,28,013 वोट मिली, जबकि प्रदीप चौधरी 4,58,897 मतों पर सिमट गए। चर्चा है कि प्रदीप चौधरी को हार के द्वार तक पहुंचाने में उनकी पार्टी से जुड़े कुछ क्षेत्रीय नेताओं का कम योगदान नही रहा। इन नेताओं ने अपने प्रभाव के इलाके में भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ खूब प्रचार किया।
यहीं नही, लोगों को विपक्षी प्रत्याशी के समर्थन में वोट करने को भी प्रेरित किया। आखिरकार, राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने को उनके किये गए प्रयास सफल हो जाये। इन नेताओं ने पार्टी के प्रत्याशी की चुनावी नैया के पतवार बनने की बजाय उसमें छेद किया, जिसके चलते प्रदीप चौधरी पार्टी के ‘भितरघातियों’ के राजनीतिक भंवर में फंसकर रह गए। पार्टी भितरघातियों के कारनामा पूरी तरह जग जाहिर है, जिसके बारे में चुनावी परिणाम के बाद क्षेत्रीय लोग खूब चर्चा कर रहे है। ऐसे में सवाल उठता है कि संगठन का शीर्ष नेतृत्व क्या पार्टी प्रत्याशी को पराजय के दावानल में धकेलने वाले इन ‘विभीषणों’ के विरुद्ध भी कोई सख्त निर्णय लेगा? अगर ऐसा नही हुआ तो ये लोग स्वयं को पार्टी से ऊपर समझकर भविष्य में भी इस तरह के पार्टी विरोधी कृत्यों करते रहेंगे। हालांकि बताया जा रहा है कि पार्टी हाई कमान तक चुनाव में बगावत करने वाले ऐसे लोगो की पूरी सूची पहुंच चुकी है, जिस पर निकट भविष्य में संगठन की अनुशासनात्मक समिति द्वारा कठोर निर्णय लिए जाने की संभावना है।
निष्क्रियता भी रहा कारण
क्षेत्र में सक्रिय न रह पाना भी रही हार की प्रमुख कारण
निवर्तमान सांसद प्रदीप चौधरी के क्षेत्र में सक्रिय न रहने को लेकर भी अक्सर चर्चा में होती रही है। क्षेत्र के हिन्दू गुर्जर बाहुल्य कण्डेला, हिंगोखेड़ी, शेखूपुरा, जगनपुर, ऊँचागांव, बीनड़ा, बुच्चाखेड़ी, सहपत आदि गांवों में शादी-विवाह अथवा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल न होने को लेकर भी सांसद के प्रति लोगो में गहरी नाराजगी रही है, जिसे लेकर इन गांवों के युवा सोशल मीडिया में अपनी कड़वाहट चुनाव से पूर्व व्यक्त कर चुके थे। इन सबके बावजूद सांसद ने लोगों के अंतर्मन में बने मनमुटाव को दूर करने की कोई खास कोशिश नही की गई, जिस कारण क्षेत्र के युवाओं ने मतदान में कोई खास रुचि नही दिखाई। सांसद के क्षेत्रीय प्रतिनिधियों ने भी उन्हें हमेशा गुमराह किये रखा। उसके लिए भी सांसद ही उत्तरदायी हैं। क्षेत्रीय प्रतिनिधियों ने उन्हें वास्तविक स्थिति का आभास नही होने दिया। परिणामत: भाजपा सांसद को चुनाव में भारी हार का सामना करना पड़ा।