क्या ग़लती की पेटीएम और बायजूज ने
पेटीएम का संकट कितना गहरा है, आख़िर इस हालत में कैसे पहुँची
पहले बायजूज और अब पेटीएम,भारतीय अर्थव्यवस्था के चमकते सितारे कहे जाने वाले ये दोनों स्टार्ट-अप्स संकट से क्यों घिरते जा रहे हैं?
पेटीएम हाल के दिनों में भारतीय स्टार्ट-अप्स की सफलता की सबसे बड़ी कहानी रही है लेकिन अब इसके पेमेंट्स बैंक के बंद होने की नौबत आ गई है.
आख़िर क्या वजह है कि भारत में डिज़िटल इकोनॉमी की रफ़्तार पर सवार इन स्टार्ट-अप्स की कामयाबी की कहानी अब कमजोर पड़ती नज़र आ रही है.
भारत में स्टार्ट-अप्स की कामयाबी में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के ज़ेहन में आज ऐसे ही सवाल कौंध रहे हैं.
पहले पेटीएम का मामला. पेटीएम का पेमेंट्स बैंक रेगुलेटरी मामलों में फँस गया है. बड़ी तादाद में केवाईसी उल्लंघन के मामलों की वजह से पेटीएम पर मनी लॉन्ड्रिंग का शक पैदा हो गया है.
इन आशंकाओं की वजह से आरबीआई ने पेटीएम बैंक के पेमेंट्स बैंक के ज़्यादातर ऑपरेशनों पर रोक लगा दी है.
पेटीएम के पेमेंट्स बैंक को एक मार्च 2024 से नए डिपोजिट लेने, फंड ट्रांसफर और नए ग्राहक बनाने से रोक दिया गया है.
आरबीआई ने पेटीएम को एक ऑडिट फर्म नियुक्त करने का निर्देश दिया है ताकि गड़बड़ियों का पता किया सके.
पेटीएम के पेमेंट्स बैंक में कई गड़बड़ियां पाई गई हैं. इस मामले के जानकार सूत्रों के मुताबिक़ लाखों अकाउंट के केवाईसी नहीं हुए थे.
कई लाख अकाउंट का पैन वेलिडेशन फेल हो गया था और कई सौ खातों का एक ही पैन नंबर था. कई मामलों में तो हज़ारों अकाउंट्स का एक ही पैन नंबर था.
पेटीएम ने 2010 में अपना काम शुरू किया था लेकिन इसकी वॉलेट सर्विस तब परवान चढ़ी जब नवंबर 2016 में मोदी सरकार ने देश में नोटबंदी का एलान किया.
इस दौरान पूरे देश में 500 और 1000 रुपये के नोट को चलन से हटा दिया गया था.
इस दौरान कैशलेस ट्रांजेक्शन के ज़ोर पकड़ने का सबसे ज़्यादा फ़ायदा पेटीएम की पैरेंट कंपनी वन-97 कम्युनिकेशन कंपनी को मिला.
पेटीएम बहुत जल्द भारत में डिज़िटल पेमेंट सर्विस का ‘पोस्टर ब्वॉय’ बन गया और देश के कोने-कोने में ‘पेटीएम करो’ की आवाज़ गूंजने लगी.
इससे पहले मई 2016 में पेटीएम पेमेंट्स बैंक को लॉन्च करने की जानकारी देते समय जब इसके फाउंडर विजय शेखर शर्मा से पत्रकारों ने पूछा कि आरबीआई के कड़े नियमन (रेगुलेशन) की वजह से कई कंपनियां अपने लाइसेंस सरेंडर कर इस बिज़नेस से निकल रही हैं, तो उन्होंने कहा था कि पेटीएम का शानदार सफ़र जारी रहेगा जब तक कोई ‘रोड ब्लॉक’ (अड़चन) न आ जाए.
जनवरी 2017 में पेटीएम के पेमेंट्स बैंक को लाइसेंस मिला और उसी साल मई में इसने काम करना शुरू कर दिया.
इस बीच,चीन की दिग्गज टेक कंपनी अलीबाबा और जापानी निवेशक कंपनी सॉफ्टबैंक की फंडिंग से पेटीएम की पैरेंट कंपनी वन-97 कम्युनिकेशन फाइनेंशियल सेक्टर की बेहद ताक़तवर कंपनी बन कर उभर चुकी थी.
लेकिन सात साल बाद ही पेटीएम की शानदार कामयाबी के रास्ते में ‘रोड-ब्लॉक’ आ गया.
पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा (फाइल फोटो)
दरअसल पेटीएम की समस्या 2022 में इसके आईपीओ लॉन्च होने के बाद ही शुरू हो गई थी.
मार्च 2022 में जब इसका आईपीओ लॉन्च होने के चंद दिनों के बाद ही इसके शेयरों की कीमत 2150 रुपये की लिस्टिंग प्राइस एक चौथाई रह गई थी.
उस समय भी आरबीआई ने तुरंत प्रभाव से इसके पेमेंट्स बैंक को नए ग्राहक बनाने से रोक दिया था.
कहा जा रहा था कि पेमेंट्स बैंक ने अली बाबा को अहम जानकारियां लीक की थी. अलीबाबा की उस समय पेटीएम में 27 फ़ीसदी हिस्सेदारी थी.
अब एक बार फिर पेटीएम के शेयर धड़ाधड़ गिर रहे हैं. सोमवार को पेटीएम के शेयरों की क़ीमत 761 रुपये से घट कर 438 रुपये पर पहुंच गई थी. पिछले तीन सेशनों में ये गिरावट देखी जा रही थी.
आरबीआई की कार्रवाई के बाद पेटीएम की पैरेंट कंपनी वन-97 कम्युनिकेशन लगातार ‘क्राइसिस मैनेजमेंट’ में लगी है.
कंपनी के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप की ख़बरें हैं और कहा जा रहा है कि ईडी कंपनी की जांच कर सकती है. हालांकि वन-97 कम्युनिकेशन ने इन ख़बरों को बेबुनियाद बताया है.
बायजूज का चढ़ना और उतरना
गिरावट की दूसरी कहानी एडटेक कंपनी बायजूज से जुड़ी है. कभी भारत की सबसे सफल स्टार्ट-अप्स मानी जाने वाली ये कंपनी कई चुनौतियों से जूझ रही है.
कंपनी के पास कैश नहीं है. अपनी वित्तीय रिपोर्टिंग करने में ये देरी कर रही है और अपने कर्ज़दाताओं से झगड़े में फँसी है. कंपनी 2022 में 22 अरब डॉलर की थी. लेकिन इसकी क़ीमत 99 फ़ीसदी घट गई.
वित्त वर्ष 2021-22 में बायजूज को 5298.43 करोड़ रुपये की आय हुई थी लेकिन घाटा 8245 करोड़ रुपये का हो गया था. खर्च 94 फीसदी बढ़ कर 13,668 करोड़ रुपये पर पहुंच गया था.
रिपोर्ट्स के मुताबिक़ निवेशकों की ये चिंता है कि कंपनी बची रहे ताकि उनका कुछ पैसा तो वसूल हो. उन्हें ये भी डर है कि कहीं कंपनी के फाउंडर बायजू रवींद्रन भी अपना पद न गँवा दें.
इन सारे संकटों के बीच बायजूज के ख़िलाफ़ आईटी सर्विस कंपनी सर्फर टेक्नोलॉजी ने नए सिरे से एनसीएलटी में दिवालिया प्रक्रिया आगे बढ़ाने की अपील की है.
बायजूज़ की सफलता भी 2020 में कोरोना महामारी के दौरान परवान चढ़ी जब देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से स्कूल-कॉलेज बंद हो गए थे.
स्टूडेंट्स ने ऑनलाइन पढ़ना शुरू किया और फिर कंपनी ने एक ही साल के भीतर एक अरब डॉलर से अधिक की पूंजी जुटा ली थी. इस दौरान बायजूज की कई प्रतिस्पर्द्धी कंपनियां बाज़ार से बाहर हो गईं.
इस दौरान इसने एक के बाद एक कई अधिग्रहण किए. कंपनी ने अपना खर्च भी कई गुना बढ़ा लिया था. एक समय में बायजूज संभवत: भारत के टीवी चैनलों पर सबसे अधिक दिखने वाले ब्रैंड में शामिल हो गया था. .
पेटीएम और बायजूज ने क्या ग़लती की?
बायजूज के संस्थापक बायजू रवींद्रन (फाइल फोटो)
आख़िर पेटीएम और बायजूज ने क्या ग़लती की, जिससे वो आज मुसीबत में नजर आ रही हैं.
अर्थशास्त्री और स्टार्ट-अप्स गुरु कहे जाने वाले शरद कोहली ने इसकी वजह समझाते हुए बताया, ”पेटीएम ने आरबीआई के कुछ कंप्लायंस फॉलो नहीं किए. दो साल पहले पेटीएम के पेमेंट्स बैंक को लेकर कुछ सवाल-जवाब किए गए थे. उन्होंने इसका भी जवाब नहीं दिया और जो चेतावनी दी गई थी उसके मुताबिक़ भी खुद को नहीं सुधारा. इसी का खमियाजा आज उसे भुगतना पड़ रहा है.’’
बायजूज की नाकामी की वजह समझाते हुए वो कहते हैं, ”बायजूज का मॉडल बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी हो गया था. कंपनी ने एक के बाद एक अधिग्रहण शुरू कर दिए थे और निवेशकों ने भी इसमें पैसे लगाने लगे थे. कंपनी की वैल्युएशन भी 22-23 अरब डॉलर के क़रीब पहुंच गई थी. लेकिन कंपनी ये भूल गई कि उसका जो ऑपरेशन का मॉडल था वो कोविड के दौरान का मॉडल था.’’
वो कहते हैं, ”लेकिन कोविड के बाद बच्चों का स्कूल जाना शुरू हो गया और फिजिकल क्लासरूम में पढ़ाई शुरू हो गई. बच्चों ने ऑनलाइन पढ़ना छोड़ दिया. जबकि कंपनी को लग रहा था कि बच्चे शायद अब कभी स्कूल नहीं जाएंगे. ऑनलाइन पढ़ाई कम होते ही कंपनी का घाटा शुरू हो गया. दूसरी ओर, इस बीच उसने अपने खर्चे भी बढ़ा लिए थे.
वो कहते हैं, ‘’एक सड़ी मछली सारे तालाब को गंदा करती है. भारत में एक लाख 15 हजार रजिस्टर्ड स्टार्ट-अप्स हैं. अमेरिका और चीन के बाद भारत में सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इको सिस्टम है. कुछ स्टार्ट-अप चमकते हैं. कुछ बड़े हो जाते हैं.और पेटीएम जैसे कुछ स्टार्ट-अप अपने ऑपरेशन की वजह से सवालों के घेरे में आ जाते हैं.’’
एंजेल निवेशक मॉडल के आलोचक डॉ. अनिरुद्ध मालपानी कहते हैं कि बायजूज और पेटीएम दोनों के संकट में फँसने के अलग-अलग कारण रहे हैं.
वो कहते हैं, ”बायजूज ने शुरू में काफ़ी मिस-सेलिंग की. उसके बिज़नेस मॉडल में मौलिकता नहीं थी. वो ख़ान एकेडेमी का कॉपी-पेस्ट मॉडल था. फ़र्क़ सिर्फ़ ये था कि बायजूज स्टूडेंट्स को टैबलेट दे रही थी.’’
मालपानी कहते हैं, ”फिर इसमें निवेशक कूद पड़े. एक निवेशक ने अपने पैसे को दोगुना, दूसरे ने चौगुना किया. उनमें एक भेड़चाल शुरू हो गई. हर निवेशक दूसरे को देख कर पैसा लगा रहा था ये सोच कर कर जब सब पैसे लगा रहे हैं तो निश्चित तौर पर ये वेंचर सफल होगा. लेकिन कंपनी का ऑपरेशन मॉडल फेल हो गया और निवेशकों के पैसे फंस गए. ’’
पेटीएम में कुछ समय तक काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन धीरे-धीरे ये भी संकट में फिर गया. पेटीएम की पैरेट कंपनी कैसे मुसीबत में फंसी?
मालपानी कहते हैं, ”पेटीएम उस सेक्टर में काम कर रहा था, जो रेगुलेशन के हिसाब से काफ़ी संवेदनशील है. यानी वहां नियम, कायदे-कानून पर आरबीआई की कड़ी नज़र रहती है. फिनटेक कंपनियों को आरबीआई के सारे नियमों का पालन करना पड़ता है. पेटीएम ने नियमों का पालन नहीं किया और आरबीआई की निगरानी की जद में आ गया. यहीं से इसकी समस्या शुरू हो गई.’’
मालपानी कहते हैं कि बायजूज के मामले में रेगुलेटर यानी शिक्षा मंत्रालय और ई-कॉमर्स मंत्रालय ने कोई कार्रवाई नहीं की. वरना बायजूज इतने बड़ी तादाद में ग्राहकों को धोखा नहीं दे सकती थी. जिस समय ये सब हो रहा था शिक्षा मंत्रालय सो रहा था.
बायजूज को उसके गलत रेवेन्यू मॉडल की वजह से भी नाकामी मिली.
पत्रकार और रिसर्च कंपनी ‘मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट’ के संस्थापक प्रदीप साहा कहते हैं, ”बायजूज की व्यवस्था में एक दिक्क़त थी. उसका रेवेन्यू मॉडल सही नहीं था. बिज़नेस मॉडल में भी खामी थी. कंपनी की सेल्स स्ट्रैटिजी भी सही नहीं थी. कंपनी मिस सेलिंग कर रही थी. वो अपनी क्षमता से ज़्यादा अधिग्रहण कर रही थी. उन्होंने अपनी क्षमता से ज्यादा कंपनियां ख़रीदनी शुरू कर दीं. उन कंपनियों को ख़रीदने के लिए बहुत ज़्यादा पैसा चाहिए. लिहाजा कंपनी ने 1.2 अरब डॉलर का लोन ले लिया और आख़िर में वो लोन चुकाने में खुद को नाकाम पाने लगी थी.’’
भारत में स्टार्ट-अप्स सिस्टम
पेटीएम और बायजूज के संकट में फंसने के बाद कुछ लोगों ने देश के स्टार्ट-अप्स सिस्टम को लेकर आशंकाएं ज़ाहिर की हैं. उनका कहना है कि देश में ये सिस्टम फेल हो रहा है.
हालांकि विशेेषज्ञ इस तरह की आशंकाओं को सिरे से ख़ारिज करते हैं.
स्टार्ट-अप्स गुरु कहे जाने वाले शरद कोहली कहते हैं, ”एक-दो स्टार्ट-अप्स कंपनियों के फेल होने को आप पूरे सिस्टम की नाकामी नहीं करार दे सकते. बहुत सारे कामयाब स्टार्ट-अप हैं जो भारत और उसके बाहर भी अपना नाम बना रहे हैं.’’
वो कहते हैं, ”स्टार्ट-अप्स बिज़नेस में कामयाबी की दर 30-40 फ़ीसदी ही है. 60 से 70 फ़ीसदी स्टार्ट-अप्स नाकाम रहते हैं. लेकिन जितने भी बड़े और अच्छे स्टार्ट-अप होते हैं वो काफ़ी कामयाबी के साथ बिज़नेस करते हैं और बड़ी तादाद में लोगों को रोज़गार देते हैं.
वो कहते हैं, ”हालांकि पेटीएम और बायजूज जैसे स्टार्ट-अप्स भी बीच में आ जाते हैं जो जानबूझकर या शरारत की वजह से अपना नुकसान कर लेते हैं. इससे थोड़ी बहुत भारत के स्टार्ट-अप्स इको सिस्टम की बदनामी होती है लेकिन भारत का स्टार्ट-अप्स सिस्टम और एंट्रोप्रेन्योरल स्पिरिट मज़बूत है. एक-दो स्टार्ट-अप्स के ख़राब काम से इसे नुक़सान नहीं होने वाला.’’
भारत के स्टार्ट-अप्स के ढहने की आशंका को अनिरुद्ध मालपानी भी बेबुनियाद बताते हैं.
वो कहते हैं,’’ जिस तरह से सारी शादियों का अंत तलाक़ में नहीं होता उसी तरह सभी स्टार्ट-अप्स का हश्र ख़राब नहीं होता. वो स्टार्ट-अप्स नाकाम रहे हैं, जिनमें काफ़ी ज्यादा वेंचर कैपिटल कंपनियों का पैसा लगा था. जो बहुत लालची थे. जिन्होंने बहुत सारा उठाया और कम समय में ढेर सारा पैसा कमाने की कोशिश की. जब आप काफ़ी पैसा कमाने की कोशिश करते हैं तो आपको इसी अनुपात में इसे गंवाना भी पड़ता है. और मुसीबत यहीं से शुरू होती है.’’
वो कहते हैं, ‘’कई स्टार्ट-अप्स निवेशकों से पैसा लेते हैं और कहते हैं कि वो उनका पैसा दोगुना-चौगुना कर देंगे. इसके लिए उन्हें कई और वादे करने पड़ते हैं और ये फिर पूरे नहीं होते. ऐसे स्टार्ट-अप्स का आधा पैसा विज्ञापन, मार्केटिंग और प्रेस रिलीज में ही ख़र्च हो जाता है. वे यूज़र के लिए कोई वैल्यू ऐड नहीं करते. तो पूरा मसला वैल्यूएशन का हो गया है वैल्यू का नहीं.’’
मालपानी कहते हैं कि कि वो भारत में स्टार्ट-अप्स को लेकर काफ़ी आशावादी और उम्मीद से भरे हैं. वो कहते हैं कि निवेशक और इन कंपनियों की सेवा लेने वाले लोग अब सवाल पूछने लगे हैं. वो मैच्योर हो गए हैं. उन्हें बेवकूफ बनाना आसान नहीं है. वो इन कंपनियों से पूछ रहे हैं कि आप ऐसा क्या कर रहे हैं, जिससे आप पेटीएम और बायजूज जैसै हालात को ख़ुद को बचा सकें.
प्रदीप साहा का भी मानना है कि भारत में स्टार्ट-अप्स सिस्टम फेल नहीं हो रहा है. वही स्टार्ट-अप कंपनियां फेल हो रही हैं, जिनका बिजनेस मॉडल ठीक नहीं है.
वो कहते हैं, स्टार्ट-अप्स के लिए ये चुनौतियों का दौर है. दुनिया भर में स्टार्ट-अप्स को फंडिंग की समस्या आ रही है. कई ऐसी चीजें हैं,जिनसे स्टार्ट-अप्स कंपनियां प्रभावित हो रही हैं.’’
साहा कहते हैं, ”पेटीएम और बायजूज की नाकामी को देख कर आप ऐसा नहीं कह सकते कि भारत में स्टार्ट-अप्स इको सिस्टम फेल हो रहा है. पेटीएम और बायजूज जैसी स्टार्ट-अप्स कंपनियों ने ग़लती की है. इनके फाउंडर्स को इसे स्वीकार करके उन्हे सुधारना चाहिए. इस सेक्टर को नए लोगों को इतिहास से सबक लेना चाहिए. इतिहास यही दिखाता है कि हमें क्या नहीं करना चाहिए.अगर बायजूज को देखेंगे तो आपको पता चलेकि एडटेक में क्या नहीं करना चाहिए था.’’