खंडहरों में दबा इतिहास और पीड़ा:हर खंडहर देवालय का है गौरवपूर्ण इतिहास

Discovery Of Ancient Temples In Muslim Areas Reignites Historical Claims Causing A Stir From Sambhal To Kashi

मत सम्मत: खंडहरों में दबा इतिहास; संभल से काशी तक मंदिरों की खोज जारी, क्या है सच?
संभल सहित कश्मीर घाटी के बाहर विभिन्न मुस्लिम मोहल्लों में जीर्ण-शीर्ण मंदिरों की मिलती घटनाएं चर्चा का विषय बनी हुई हैं। प्रशासनिक अभियान के अंतर्गत विशेष रूप से सम्पूर्ण उत्तरप्रदेश में पहचान किए गए भग्न मंदिरों की स्थिति और हिंदू समुदाय में विरोध और अनुशीलन का माहौल उत्पन्न हो चुका है।

संभल से काशी तक हर मुस्लिम मुहल्ले में मिल रहे मंदिर
हर देवालय का एक इतिहास, अतीत गाथा के प्रमाण
मंदिरों के साथ कई कूप और तीर्थ स्थाल मिले
1991 का पूजा स्थल अधिनियम बड़ी बाधा

नई दिल्लीः हिंदू पौराणिक मान्यताओं का एक विशिष्ट नगर संभल है। यहां से जुड़ी भविष्यवाणियों के नाते यह भारत भूमि के तीर्थाे मे बेहद खास है। किंतु इन दिनों ये शहर कुछ अन्य कारणों से सुर्खियों मे है। यह चर्चा हिंदू समुदाय के साथ होने वाले दंगे अथवा पलायन को लेकर कतई नही है।

 

संभल से काशी तक हर मुस्लिम मुहल्ले में मिल रहे मंदिर

दरअसल स्वतंत्रता उपरांत कश्मीर घाटी के बाहर सर्वाधिक हिंदू उत्पीड़न की घटना वाली जगहों में से एक संभल है। फिलहाल खबरों मे यहां के अतिवादी मुसलमानों का मनमानापन भी नही है। यहां अतिक्रमण मुक्ति अभियान के दौरान प्रशासन को एक जीर्ण शीर्ण मंदिर मिला है। तब से एक सिलसिला सा चल पड़ा है। संभल से काशी तक हर मुस्लिम मुहल्ले में ऐसे मंदिर मिल रहे है। केवल कानपुर नगर के अंदर ही ऐसे 125 भग्न देवस्थान मिले है। किंतु सभी मंदिरों की दारुण गाथा एक सी है।

हर देवालय का एक इतिहास, अतीत गाथा के प्रमाण

देव विग्रह अस्त व्यस्त अथवा टूटे पड़े है अन्यथा देवताओं की मूर्तियां गायब है। हर देवालय अतिक्रमण और कूड़े के अंबार के बीच है। यही नहीं यहां जाने के मार्ग भी जान बूझ कर बंद कर दिया गया है। जबकि इनमें से हर देवालय का अपना एक इतिहास है। ये आस्था के संग अतीत गाथा के प्रमाण है। इनमें से कई मंदिर पांच सौ वर्ष पुराने तो कुछ पुराणों में वर्णित देवस्थल है। ऐसे में इन मंदिरों के साथ किये गए कुकृत्य के लिये सवाल तो बनता है।

पुरातत्व विभाग वास्तविक स्वरूप के आकलन में लगा

बात सवालों की करें तो इस घटना उपरांत देश भर से विरोध के स्वर उठे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा के पटल पर इसकी चर्चा की है। उन्होंने कहा कि इन मंदिरों ने वास्तविकता को सामने ला दिया है। वहीं हिंदू जनमानस इसके उपरांत स्वतः स्फूर्त संगठित और आंदोलित हो चला है। प्रशासन के सहयोग से मंदिरों के मिलने का सिलसिला जारी है। पुरातत्व विभाग इनके वास्तविक स्वरूप के आकलन के निर्धारण में लगा है।

मंदिरों के साथ कई कूप और तीर्थ स्थल मिले

मंदिरों के साथ ही अन्य पुराने निर्माण भी प्राप्त हो रहे है। ऐसे कई कूप भवन और अन्यन्य हिंदू धार्मिक चिह्न सामने आये हैं। अकेले संभल मे ही अबतक कई कूप और तीर्थ स्थान मिले है। एक प्राचीन बावड़ी साथ से लगता एक भूमिगत सुरंग भी खुदाई के दौरान प्राप्त हुआ है। यहां इससे जुड़े कई कक्ष भी मिले है। मान्यता अनुसार अत्याचार के नाश के लिए ईश्वर के अवतरण की पावन भूमि यह नगरी है। इस नगर मे 68 तीर्थ स्थान 19 कूप और 36 पुरों का वर्णन है। संयोग से ये सभी खोज बिना मंदिर मस्जिद विवाद के ही जारी है।

इस बीच भारत के तथाकथित छद्म धर्मनिरपेक्ष दल और मुस्लिम पक्ष इसको लेकर मौन है। किंतु इसके ठीक उलट आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत मुखर है। उन्होंने इसे लेकर घोर आपत्ति व्यक्त की है। जिसके बाद विपक्षी दलों ने आरएसएस चीफ के बयान का स्वागत किया है। जबकि मुस्लिम धार्मिक नेताओं की तरफ से इसे महज एक छलावा बताया जा रहा है। वहीं हिंदू वर्ग में इसको लेकर रोष है। यहां तक की संघ और भाजपा समर्थक भी इससे सहमत नहीं है। आरएसएस के अंग्रेजी भाषी मुख्यपत्र ऑर्गनाइजर मे इसे सभ्यतागत न्याय की लड़ाई कहा गया है।

 

दरअसल पिछले हजार वर्ष मे इस देश ने अगनित आघात झेले है। इस दौरान आक्रान्ताओं ने बड़ी संख्या में उपासना स्थलों को तोड़ा है। यहां मंदिर केवल आस्था के केंद्र नही सांस्कृतिक और सामुदायिक गतिविधियों के केंद्रबिंदु भी रहे है। दुर्भाग्य से भारत लंबे समय के लिए पराधीन और विदेशी प्रभाव में भी रहा है। इस नाते इन पर कोई सार्थक पहल नहीं हो पाई।

 

किंतु श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन और यहां भव्य मंदिर के नवनिर्माण ने एक मार्ग दिखाया है। प्रसिद्ध इतिहासकार सीताराम गोयल की अरुण शौरी और राम स्वरूप के साथ लिखी पुस्तक हिंदू टेम्पल व्हाट हैपेंड टू देम मे ऐसे 1800 देवस्थानों का जिक्र है। यदि समय रहते ऐसे हर निर्माण का सर्वेक्षण पूरा नहीं किया गया तो पुरानी संरचना को नुकसान पहुंचने का खतरा है।

 

ऐसे सभी मामले संविधान के दायरे में कानून सम्मत दृष्टिकोण के साथ बढ़ाये गए है। कही कोई आंदोलन, उत्तेजना अथवा साम्प्रदायिक तनाव नही है। ऐसे में भला समुदाय विशेष की भावना आहत होने या फिर उनके तरफ से हिंसा के प्रयास के नाते न्याय से कैसे विमुख हुआ जा सकता है। यह तो नागरिक कर्तव्य और मौलिक अधिकारों पर सीधे चोट है।

 

1991 का पूजा स्थल अधिनियम सबसे बड़ी बाधा

ऐसे कई उदाहरण दुनिया भर में मौजूद है। स्पेन में 700 वर्षों के बाद आक्रांत मुस्लिम शासन के दौर की इमारतें गिराई गई। रूस में साम्यवाद जैसे पाशविक ग़ैररूसी विचार के दौरान की मूर्तियाँ और स्मारक सब तोड़ डाले गए। बात भारत की हो तो यहां भी वास्तव में ऐसे हर नवनिर्माण का उद्देश्य केवल जनमानस में भय उत्पन्न करना और भारत की पहचान को नष्ट करना ही रहा है। इस विषय में देश के प्रबुद्ध वर्ग संग विभिन्न समुदाय और न्यायपालिका को भी सोचना चाहिए।

 

वैसे इसके निराकरण मे एक बड़ी बाधा सन् 1991 का पूजा स्थल अधिनियम है। कांग्रेस शासन में संसद से पारित इस कानून के नाते यह स्वतंत्रता के समय की यथास्थिति को बहाल रखने की बात करता है। तत्कालीन सरकार ने राजनैतिक कारणों से इसे लागू किया था। अयोध्या राम जन्मभूमि तथा जम्मू कश्मीर राज्य को छोड़ पूरे देश के हिंदू मंदिरों को इसके अधीन रखा गया है। इस नाते अब तक ये विवाद लगातार जारी है। इस बीच न्यायालय में आ रहे मसलों पर निर्णय तो नही हो सकता है किंतु सर्वेक्षण हो रहे थे।

केंद्र सरकार का जवाब अदालत के फैसले में अहम भूमिका निभाएगी

दरअसल इसका मार्ग भी सर्वाेच्च न्यायालय के रास्ते निकला था। मई 2022 मे काशी के ज्ञानवापी मंदिर सुनवाई के दौरान तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने एक टिप्पणी की थी। इसके अनुसार यह अधिनियम किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के निर्धारण पर प्रतिबंध नहीं लगाता है। यह अधिनियम 15 अगस्त 1947 तक किसी पूजा स्थल की स्थिति की जांच पर रोक भी नहीं लगाता है। किंतु यह प्रावधान यथास्थिति मे परिवर्तन पर रोक संग न्याय के विरुद्ध है। जिसमें समय के साथ बदलाव की आवश्यकता है।

 

किंतु इस बीच अदालतों में ऐसे बढ़ रहे मामलों के नाते सर्वाेच्च न्यायालय ने इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया है। इस बीच कोर्ट में ना तो नये मामले लिये जायेगे और ना ही किसी पुराने मसले पर निर्णय आएगा। यही नहीं किसी भी विवादित स्थल पर सर्वेक्षण भी फिलहाल नहीं होगा। इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णायक फैसला कई बिंदुओं पर निर्भर करेगा। विभिन्न पक्षों को सुनने के साथ ही केंद्र सरकार के जवाब की भी इसमें एक अहम भूमिका होगी। वैसे केंद्र सरकार के पास एक विकल्प संसद से इस कानून के निरस्तीकरण का है।

लेखक-अमिय भूषण, भारतीय संस्कृति परंपरा अध्येता

जिसे फारसी इतिहासकार ने कहा था रोम से भी सुंदर और समृद्ध, उसे इस्लामी आक्रांताओं ने बना डाला ‘खंडहरों का शहर’: मंदिरों के नगर को बर्बरता से लूटा
28 August, 2022
सुधीर गहलोत
विश्व धरोहर हम्पी (फोटो साभार: न्यूज मिनट/ओपेन मैगनजीन)
कर्नाटक का हम्पी ( Humpi, Karnataka) को कभी ‘मंदिरों का नगर’ (City of Temple) कहा जाता था, आज इसे ‘खंडहरों का शहर’ (City of Ruins) कहा जाता है। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची (UNESCO World Heritage Sites) में शामिल इस स्थान को देखकर इसके अतीत के वैभव का अंदाजा लग सकता है।

समय परिवर्तनशील होता है और उसकी अपनी गति होती है। समय ने कुछ ऐसी गति पकड़ी कि यह शहर मुस्लिम आक्रमणकारियों के निशाने पर आ गया और इसे लूटने के बाद शहर का पूरी तरह विध्वंस कर दिया गया। आज हम्पी में भव्य मंदिरों एवं प्रासादों के अवशेष हैं।

हम्पी का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। इसका वर्णन रामायण और पुराणों में ‘पम्पा देवी तीर्थ क्षेत्र’ के रूप में किया गया है। इसे ‘किष्किंधा’ भी कहा गया है। यहाँ ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के अशोक महान के समय के प्रमाण मिल चुके हैं। 15वीं शताब्दी में यह शहर कर्नाटक के विजयनगर के अंतिम प्रमुख हिंदू साम्राज्य का अभिन्न अंग था।

तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा हम्पी आज 1,600 से अधिक जीवंत अवशेषों का साक्षी है, जिनमें दुर्ग, राजमहल, राजप्रासाद, मंदिर, स्तंभ, मंडप, स्मारक, जल संरचनाएँ आदि शामिल हैं। इन खंडहरों में भी भव्यता है, जो गौरवशाली इतिहास के चमकते पृष्ठ हैं।

रोम से भी खूबसूरत और समृद्ध था हम्पी
विजयनगर साम्राज्य पर 1509-29 तक कृष्णदेव राय का शासन था। उस साम्राज्य के अधीन वर्तमान कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के भूभाग आते थे। हम्पी विजयनगर साम्राज्य का प्रमुख केंद्र था। यहाँ रोम से लेकर पुर्तगाल के व्यापारी आते थे। कहा जाता है कि विजयनगर साम्राज्य में हम्पी अपने वैभव के चरमोत्कर्ष पर था और उसे रोम से भी सुंदर शहर कहा जाता था।

15वीं शताब्दी में विजयनगर का दौरा करने वाले फ़ारसी यात्री अब्दुर रज्जाक ने अपने संस्मरणों में हम्पी और विजयनगर का वर्णन किया है। रज्जाक ने लिखा है, “यह देश इतनी आबादी वाला है कि एक इसके बारे में एक विचार व्यक्त करना असंभव है।ठ

वह आगे लिखता है, “राजा के खजाने में कई कक्ष हैं, जिनमें पिघलाए हुए सोने से भरा हुआ है। देश के सभी निवासी, चाहे उच्च हों या नीच, यहाँ तक कि बाज़ार के कारीगर तक अपने गले, हाथ, कलाई, उंगलियों और कानों में आभूषण पहनते हैं।”

अब्दुर रज्जाक ने राजधानी की भव्यता को लेकर कहा था, “विजयनगर के समान दुनिया में कोई शहर नहीं है। यह ऐसा है कि आँख की पुतली ने कभी इस तरह की जगह नहीं देखी और ना ही बुद्धि के कान को कभी यह सूचित गया है कि पूरी दुनिया में इसके बराबर भी कुछ मौजूद है।”

हम्पी का विध्वंस
कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद विजयनगर साम्राज्य के शासक आलिया राम राय बने। आलिया राम राय के शासनकाल में सन 1565 में बीदर, बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर और बरार के मुस्लिम शासकों की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर पर आक्रमण कर दिया।

ये पाँचों राज्य कभी दिल्ली सल्तनत मुहम्मद बिन तुगलक के अधीन थे, लेकिन बाद में खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। विजयनगर साम्राज्य और दक्कन सल्तनत की सेनाओं के बीच भयानक लड़ाई हुई, जिसे ‘तालिकोटा की लड़ाई’ के नाम से जाना जाता है।

युद्ध के दौरान राम राय के दो मुस्लिम सेनापतियों ने अचानक पक्ष बदल लिया और वे मुस्लिम हमलावरों से जा मिले। इन दोनों ने राम राय को पकड़ लिया और युद्ध के मैदान में ही उनका सिर काट कर हत्या कर दी गई। इसके बाद विजयनगर की सेना में भगदड़ मच गई और हार हुई।

हार के बाद सल्तनत की सेना ने हम्पी को खूब लूटा और इसे खंडहर में बदल दिया। अपनी पुस्तक ‘द फॉरगॉटेन एम्पायरट‘ में रॉबर्ट सेवेल ने लिखा है, “आग और तलवार के साथ वे (मुस्लिम) विनाश को अंजाम दे रहे थे। शायद दुनिया के इतिहास में ऐसा कहर कभी नहीं ढाया गया। इस तरह एक समृद्ध शहर का लूटने के बाद नष्ट कर दिया गया और वहाँ के लोगों का बर्बर तरीके से नरसंहार कर दिया गया।”

शहर के प्रमुख ऐतिहासिक केंद्र
हम्पी में लगभग 1600 हिंदू, बौद्ध और जैन मंदिर थे। ये वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूना थे। इसकी झलक आज भी इनके अवशेषों में मिलती है। ग्रेनाइट के पत्थरों को काटकर दिए गए रूप शिल्पकला की अद्भुत समृद्धता का बखान करती हैं यहाँ की मूर्तियाँ। इनमें कुछ मंदिर बेहद महत्वपूर्ण हैं।

विट्ठल मंदिर: शहर के सबसे भव्य एव प्रभावशाली मंदिरों में से एक विठ्ठल मंदिर है। इसे 16वीं शताब्दी में बनाया गया था। उसकी बनावट अद्भुत और समृद्ध वास्तुकला के सौंदर्य को उजागर करता है।इसके आगे एक विशाल प्रांगण एवं मंदिर का केंद्र है। इसे हम्पी रथ भी कहा जाता है।

विरुपाक्ष मंदिर: विरुपाक्ष मंदिर भगवना विष्णु को समर्पित है। इसे राजा कृष्णदेव राय ने 1509 में अपने अभिषेक के दौरान बनवाया था। हेमकुटा पहाड़ियों के नीचे बसे हम्पी में अनेक छोटे-छोटे मंदिर हैं।

इसके पूर्व में पत्थर का एक विशाल नंदी है और दक्षिण में भगवान गणेश की प्रतिमा है। यहाँ अर्ध सिंह और अर्ध मनुष्य की देह धारण किए नरसिंह की 6.7 मीटर ऊँची मूर्ति है। इन्हें उग्र नरसिंह भी कहा जाता है।

लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर, विशाल शिवलिंग, मूपवित्र केंद्र, अच्युत राय के मंदिर, ससिवेकलु गणेश, महानवमी, ग्रनारीस, हरिहर पैलेस, रिवरसाइड खंडहर, जज्जल मंडप, पुरंदरदास मंडप, तालरिगट्टा गेट सहित सैकड़ों दर्शनीय स्थल हैं।

Topics:Hindu Karnataka Muslim Temple UNESCO कर्नाटक यूनेस्को हिंदू

 

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