गीता प्रेस गोरखपुर पर नहीं कोई आर्थिक संकट,68 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें कर चुका प्रकाशित
गीता प्रेस को आर्थिक समस्या, बंद होने के कगार पर? जर्मन मशीनों को देख गोरखपुर सांसद ने बताई वर्तमान स्थिति
गीता प्रेस के द्वारा मार्च 2019 तक लगभग 68 करोड़ 28 लाख पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है (फोटो साभार : गीता प्रेस)
गोरखपुर 10 जूूून। गोरखपुर स्थित गीता प्रेस के प्रतिनिधि मंडल ने मंगलवार (08 जून) को गोरखपुर सांसद रविकिशन को गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित सचित्र पुस्तक की पहली प्रति भेंट की। गीता प्रेस के व्यवस्थापक ललमनी तिवारी ने कहा कि आधुनिक मशीनों के द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री सहित देश के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भेंट की जा रही है।
इस खबर के माध्यम से हम आपको बता दें कि कई बार हमने सोशल मीडिया में गीता प्रेस के बंद होने या उसके संचालन में आर्थिक समस्या आने की खबरें देखीं और सुनीं। हालाँकि हर बार गीता प्रेस ने ही इन खबरों को निराधार बताया और कहा कि गीता प्रेस पर कोई संकट नहीं है। गीता प्रेस ने कई बार यह स्पष्टीकरण दिया कि धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन का कार्य पूरे सामर्थ्य के साथ चल रहा है। गीता प्रेस ने यह भी बताया कि प्रेस न तो सरकारी और न ही गैर-सरकारी सहायता स्वीकार करती है।
ऐसी ही कुछ अफवाहों और बेतुकी चर्चाओं के चलते गोरखपुर के सांसद रविकिशन ने गीता प्रेस का दौरा किया। टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार रोहन दुआ ने रविकिशन का वीडियो ट्विटर पर शेयर किया, जहाँ वो गीता प्रेस के बारे में पूरी जानकारी देते हुए दिख रहे हैं।
BRK: Gita Press is alive, kicking with sale. Ringing cash registers with as much fanfare as earlier
Gorakhpur MP @ravikishann settles the dust over printing press
“Gita press has got machines imported from Germany,Japan etc. Spending 80L on mnthly salaries and lakhs in sales” pic.twitter.com/9QPKHCxwJH
— Rohan Dua (@rohanduaT02) June 9, 2021
रविकिशन ने मीडिया को बताया कि 2,00,000 वर्ग फुट में फैले गीता प्रेस के दौरे में उन्होंने कई ऐसी मशीनें देखीं जो जर्मनी, जापान और इटली से आई थीं। इन मशीनों की कीमत 5-15 करोड़ रुपए तक है। रविकिशन ने बताया कि गीता प्रेस हर महीने भारत भर में लगभग 80 लाख रुपए तनख्वाह बाँटता है। रविकिशन ने मीडिया के माध्यम से यह जानकारी भी दी कि प्रेस द्वारा 15 भाषाओं में करोड़ों किताबें प्रकाशित की जा रहीं हैं, जो भारत के अलावा विदेशों में भी भेजी जा रहीं हैं।
साथ ही उन्होंने कहा कि वो मीडिया के माध्यम से सभी को यह अवगत करना चाहते हैं कि बहुत ही कम दाम में पुस्तक उपलब्ध कराने के बावजूद भी गीता प्रेस पूरी तरह से संचालित है और उसके आर्थिक संकट की बातें मात्र अफवाह हैं। गीता प्रेस के कर्मचारियों के माध्यम से रविकिशन ने यह भी बताया कि गीता प्रेस किसी भी प्रकार का कोई अनुदान नहीं लेता है और यदि कोई गीता प्रेस के लिए अनुदान की माँग भी करता है तो वह पूरी तरह भ्रामक है।
रोहन दुआ ने अपनी ही कुछ पुरानी रिपोर्ट्स ट्वीट कीं। इनमें बताया गया था कि विमुद्रीकरण (नोटबंदी) और जीएसटी लागू होने के बाद भी गीता प्रेस के कार्य में कोई रुकावट नहीं आई। रिपोर्ट में बताया गया कि हालाँकि 8 नवंबर 2016 को विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद दिसंबर महीने में पुस्तकों की बिक्री में कुछ कमी आई थी लेकिन जनवरी में प्रेस ने धार्मिक पुस्तकों की बिक्री के सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। इसी तरह जीएसटी लागू होने के बाद प्रकाशन का खर्च थोड़ा बढ़ा लेकिन इसके बाद भी पुस्तकों की बिक्री में कोई कमी नहीं आई।
रोहन दुआ की रिपोर्ट
गीता प्रेस, गोरखपुर
गीता प्रेस, सोसायटीज रजिस्ट्रेशन ऐक्ट 1860 के अंतर्गत स्थापित गोबिन्द भवन कार्यालय की एक इकाई है, जो वर्तमान में पश्चिम बंगाल सोसायटी ऐक्ट 1960 के तहत संचालित होती है। गीता प्रेस की स्थापना श्रीजयदयालजी गोयन्दका ने सन् 1923 में की थी। गीता प्रेस का मुख्य उद्देश्य ही सस्ते से सस्ते साहित्य के माध्यम से धर्म का प्रचार करना है। गीता प्रेस के अनुसार उनके द्वारा पुस्तकों के मूल्य प्रायः लागत से भी कम रखे जाते हैं लेकिन फिर भी कभी भी गीता प्रेस पर कोई आर्थिक संकट नहीं आया।
गीता प्रेस की वेबसाइट में दी गई जानकारी के अनुसार प्रेस के द्वारा मार्च 2019 तक लगभग 68 करोड़ 28 लाख पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। इनमें से सर्वाधिक लगभग 14 करोड़ से अधिक श्रीमद्भगवतगीता और लगभग 10 करोड़ से अधिक श्रीरामचरितमानस की पुस्तकों का प्रकाशन किया गया। पुस्तक प्रकाशन के अलावा संस्था कई आश्रम, सेवा संस्थान, आयुर्वेद चिकित्सालय और प्रवचन स्थल भी चलाती है। यहाँ लोगों के न केवल शारीरिक अपितु मानसिक शांति के लिए भी क्रियाकलाप आयोजित किए जाते हैं।
आज भारत भर में यदि सनातन के वेद, पुराणों और ग्रंथों का ज्ञान सुलभता से सभी तक पहुँच सका है तो इसमें गीता प्रेस का योगदान अभूतपूर्व है। स्टेशन स्टॉल, किताब की दुकानों और गीता प्रेस के आधिकारिक थोक एवं फुटकर विक्रेताओं के माध्यम से अनेक धर्म पुस्तकें आज भारत के घर-घर में प्रचलित हैं। अब तो गीता प्रेस के ऑनलाइन स्टोर से भी ये पुस्तकें खरीदी जा सकती हैं। जब भी कभी पौराणिक सत्यता और प्रमाणिकता की बात आती है तो सभी को एक ही नाम पर भरोसा समझ आता है, गीता प्रेस।