जगन्नाथ
#जगन्नाथ Juggernaut
19वीं सदी के आरम्भ में ही अंग्रेज़ों ने देखा कि भारत की विशाल अर्थ व्यवस्था का आधार मंदिर हैं तो उन्होंने हमारे मंदिर सरकारी क़ब्ज़े में लेने शुरू कर दिये ।
उस समय भारत की मुद्रा, धूर्त अंग्रेज़ों की मुद्रा से भी अधिक शक्तिशाली थी ।
जगन्नाथ पुरी दर्शन पर अंग्रेज़ों ने टैक्स लगा दिया ।
टैक्स से पहले 1803 में कंपनी राज में अंग्रेज़ों ने जगन्नाथ मंदिर लूटा भी था ।
आज अंग्रेज़ी भाषा में एक शब्द प्रयोग होता है juggernaut । इस शब्द की महिमा देखें कि आज अत्यंत शक्तिशाली वस्तु के बारे में लिखने में इस शब्द का प्रयोग होता है ।
सव अर्थात् यज्ञ से भी ऊपर उत्सव अर्थात् ईश्वर की चलायमान मूर्ति । भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की रथयात्रा आज भी निकलती है और उत्सव रूप भगवान सड़क पर आते हैं ।
सुनने में आ रहा है कि 200 वर्षों ( गोरे और काले अंग्रेज़ों ) के चंगुल से पुरी धाम मुक्त हो चुका है ।
और , चूँकि केवल हम ही ऐसे लोग हैं जिसमें सर्वसमाज के सर्वकल्याण की भावना है अत: हम धीरे-धीरे अपने सभी मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करवाने में सफल हो सकेंगे ।
✍🏻राजशेखर
रथ यात्रा के बारे में थोड़ा जानते समझते ही आपके कई मिथकों पर से पर्दा हट जाएगा। बिलकुल आँखें चुंधियाने वाली स्थिति भी हो सकती है इसलिए अगर शेखुलर मित्र इस बारे में पढ़ें देखें तो कृपया अपना टिन का चश्मा लगाए रखें।
जैसे एक तो आपको ये पता चल जायेगा कि मंदिर सरकारी कब्ज़े में होते हैं। पुरोहित काफ़ी कम (3500 से 56 रुपये तक) की तनख्वाह पर काम करते हैं। उनकी भर्ती की परीक्षा होती है। जो आप मंदिर में दान देते हैं वो शहर के डीएम या डीसी टाइप किसी सरकारी अफसर के जरिये सरकारी कोष में जाता है। जैसा की शेखुलर अफवाह है वैसे किसी पंडित के घर नहीं जाता।
जगन्नाथ मंदिर में आम पंडितों से ऊपर एक “दैतापति” लोग होते हैं। मजेदार चीज़ कि दैतापति ब्राह्मण हों ये जरूरी नहीं। तो जो सिर्फ़ ब्राह्मणों के पंडित-पुजारी होने का वहम है वो भी टूट जायेगा। इनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर आपने पहले भी देखी ही होंगी। किसी मोटे से पंडित की तस्वीरों का जो वहम है वो भी उतरे इसलिए इस साल भी इसे लगा दिया है।
रथ यात्रा का समय है इसलिए पुरी के जगन्नाथ मंदिर का भी जिक्र होगा | कई पुरानी किताबों में भी इस मंदिर का जिक्र है | R H Major द्वारा संकलित पुस्तक “Narratives of Voyages in India in Fifteenth Century”, नामक पुस्तक में भी पुरी के मंदिर का वर्णन है | इस किताब को आप मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | किताब के मुताबिक उस समय तक मंदिर में किसी भी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित नहीं था | यानि कोई अछूत टाइप चीज़ का जिक्र नहीं है ! इसके कारणों को देखेंगे तो आपको आर्थिक इतिहास देखना होगा |
सन 1750 तक भारत, आर्थिक रूप से , विश्व का (चीन के बाद) सबसे ताकतवर राष्ट्र था और पूरी दुनिया का 25 % GDP का उत्पादन करता था | इस दौर में अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर मात्र 2% GDP का उत्पादन करते थे | ब्रिटिश नीतियों कि वजह 1900 आते आते भारत का हिस्सा घटकर मात्र 2% रह गया , और अमेरिका और ब्रिटेन का शेयर बढ़कर 41 % हो गया | मात्र डेढ़ सौ सालों में, भारत का per capita industrialization, 700% घट गया | जाहिर है इस से भीषण बेरोजगारी भी हुई होगी | इसी बेरोजगार और बेरोजगारी से तबाह दरिद्र जनसमुद्र को दल हित चिन्तक “दलित” बुलाते हैं |
अब अगर इतिहास लिखने के तरीके को देखिएगा तो नजर आएगा कि किताबों में जगह जगह कुछ नंबर सुपरस्क्रिप्ट में लिखे होते हैं | ये वो रिफरेन्स होते हैं जिन किताबों का सन्दर्भ इतिहासकार दे रहा होता है | जैसे मेरा ऊपर वाला पैराग्राफ Augus Madisson की किताब Contours of the World Economy I-2003 AD से लिया हुआ है | ऐसे सन्दर्भ देने में भारत का हर आर्थिक इतिहासकार डॉ. हैमिल्टन बूचनान का सन्दर्भ जरूर दे रहा होता है | उन्होंने सन 1807 मे पूरे भारत का लेखा जोखा लिया था | आश्चर्यजनक तथ्य है कि उन्होंने भी भारत में किन्हीं अछूतों का वर्णन नहीं किया है | क्यो ? क्या वो अंधे थे? कि अछूत थे ही नहीं ?
यदि यह हिन्दू धर्म की आदिकालीन परंपरा है , तो ये इन ऐतिहासिक दस्तावेजों से क्यों गायब है ?
✍🏻आनन्द कुमार
रोचक एतिहासिक ज्ञान…
१८०८ में ईस्ट इंडिया कंपनी पूरी के जगन्नाथ मंदिर को अपने कब्जे में लेती हे और फिर लोगो से कर बसूला जाता हे, तीर्थ यात्रा के नाम पर.. चार ग्रुप बनाए जाते हैं.. और चौथा ग्रुप जो कंगाल हे उनकी एक लिस्ट जारी की जाती हे….
१९३२ में जब डॉ आंबेडकर अछूतों के बारे में लिखते हैं, तो वे ईस्ट इंडिया के जगनाथ पुरी मंदिर के दस्तावेज की लिस्ट को अछूत बना कर लिखते हैं….
भगवान् जगन्नाथ के मंदिर की यात्रा को यात्रा कर में बदलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफ़ा हुआ और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला जिससे अरबो रूपये सीधे अंग्रेजो के खजाने में बने और इंग्लैंड पहुंचे.
यात्रियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता था .
प्रथम श्रेणी = लाल जतरी (उत्तर के धनी यात्री )
द्वितीय श्रेणी = निम्न लाल (दक्षिण के धनी यात्री )
तृतीय श्रेणी = भुरंग ( यात्री जो दो रुपया दे सके )
चतुर्थ श्रेणी = पुंज तीर्थ …(कंगाल की श्रेणी जिनके पास दो रूपये भी नही , तलासी लेने के बाद )..
चतुर्थ श्रेणी के नाम इस प्रकार हे .
१. लोली या कुस्बी ,२ कुलाल या सोनारी ३ मछुवा ४ नामसुंदर या चंडाल 5 घोस्की 6 गजुर ७ बागड़ी 8 जोगी 9 कहार १० राजबंशी ११ पीरैली १२ चमार 13 डॉम 14 पौन १५ टोर १६ बनमाली १७ हड्डी
प्रथम श्रेणी से १० रूपये , द्वितीय श्रेणी से 6 रूपये , तृतीय श्रेणी से २ रूपये और चतुर्थ श्रेणी से कुछ नही ..
जो कंगाल की लिस्ट है जिन्हें हर जगह रोका जाता था और मंदिर में नही घुसने दिया जाता था। आप यदि उस समय 10 रूपये भर सकते तो आप सबसे अच्छे से ट्रीट किये जाओगे।
डॉ आंबेडकर ने अपनी lothian commtee report में यही लिस्ट का जिक्र किया हे…और कहा हे , कंगाल पिछले १०० साल में कंगाल ही रहे……
In regard to the depressed classes of Bengal there is an important piece of evidence to which I should like to call attention and which goes to show that the list given in the Bengal Census of 1911 is a correct enumeration of caste which have been traditionally treated as untouchable castes in Bengal. I refer to Section 7 of Regulation IV of 1809 (A regulation for rescinding Regulations IV and V of 1806 ; and for substituting rules in lieu of those enacted in the said regulations for levying duties from the pilgrims resorting to Jagannath, and for the superintendence and management of the affairs of the temple; passed by the Governor-General in Council, on the 28th of April 1809) which gives the following list of castes which were debarred from entering the temple of Jagannath at Puri : (1) Loli or Kashi, (2) Kalal or Sunri, (3) Machhua, (4) Namasudra or Chandal, (5) Ghuski, (6) Gazur, (7) Bagdi, (8) Jogi or Nurbaf, (9) Kahar-Bauri and Dulia, (10) Rajbansi, (II) Pirali, (12) Chamar, (13) Dom, (14) Pan, (15) Tiyar, (16) Bhuinnali, and (17) Hari.
The enumeration agrees with the list of 1911 Census and thus lends support to its correctness. Incidentally it shows that a period of 100 years made no change in the social status of the untouchables of Bengal.
वही कंगाल बाद में अछूत बने। ध्यान दीजिये महार शब्द का उल्लेख तक नही है। (सबसे रोचक)
ध्यान दीजिये रोचक हे..
ईस्ट इंडिया कंपनी की report…
सीधे वेबसाइट पर जा कर पढ़ सकते हैं
lothian commetee. report..
✍🏻डॉ सुरेंद्र सिंह सोलंकी
परात्पर ब्रह्म ने साकार रूप धरा और अपने बंधु-भगिनी सहित भारत के पूर्वी तट पर स्थित पुरी में आ विराजे। स्थल का नाम ही पड़ गया जगन्नाथ पुरी।
उत्सव की भव्यता ऐसी कि रथ के नाम पर पूरे-पूरे विशालकाय मंदिर ही पहियों पर चला करते हैं। उन्हें चलाता है समर्पित दैतापतियों का अतिमानवीय बल और करोड़ों जन की आस्था।
यूँ तो जगत के नाथ हैं पर मानव संवेदनाओं को सहेजने के लिए बालक बन जाते हैं! फिर नहाते हैं, बीमार पड़ते हैं, औषध लेकर स्वस्थ होते हैं और सज-संवरकर निकल पड़ते हैं भक्तों को देखने, मौसी से मिलने।
पर क्या जगन्नाथ का कौतुक यहीं तक सीमित है? यहाँ जो कुछ दृश्य है, उसके पीछे अदृश्य का अनंत फलक विस्तारित है। तो वहाँ जो दिखे, उसके आगे भी देखिए।
जैसे, रथयात्रा के मार्ग को पुरी के गजपति महाराज स्वर्ण की झाडू से बुहारते चलते हैं यह दृश्य है। एक शासक , सेवक बन गया है। उसकी विनम्रता दिख रही है। किंतु उस विनम्रता का आधार है गजपतियों का गौरवशाली वीरतापूर्ण इतिहास। उनका शौर्य और रणकौशल। वह स्वर्ण जो झाडू में मढ़ा है ना, वह मढ़ने के लिए भी योग्यता चाहिए। यह इतिहास खोजकर पढ़िए।
ऐसे ही, नेपाल और पुरी के मध्य श्रद्धा का एक अदृश्य सेतु है। पुरी का सेवा अधिकार गजपति शासक के अतिरिक्त नेपाल शासक को हुआ करता था। ( अविनाश भारद्वाज शर्मा दादा ने इसपर विस्तार से लिखा है।
सोचिए, किस प्रकार हजारों वर्षों तक संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप धर्म के इन अदृश्य धागों से जुड़ा था और आधुनिक नीतियों ने इसे किस तरह खण्ड-खण्ड कर दिया है। भला हो ओडिशा के सरल हृदय धार्मिक जनों का जो मिशनरी पिशाचों की टेढ़ी नजर के बावजूद अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बचाए हुए हैं।
अस्तु। भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम है नंदिघोष। बलदाऊ का रथ है तालध्वज। सुभद्रा के रथ का नाम बड़ा अनूठा है- दर्पदलन।
इनके नामों के पीछे का दर्शन क्या होगा? सोचिए तो ! लिखिए भी। 🙂
जय जगन्नाथ 🙏🏻🚩
✍🏻तनया प्रफुल्ल गडकरी
