ज्ञान:मक्कारों के जवाब तो लाला लाजपतराय एडवांस में ‘दुखी भारत ‘ में दे गये
तो साल 1927 में अमेरिकी महिला लेखक मिस कैथरीन मेयो ने एक चर्चित किताब लिखी मदर इंडिया। इस किताब में बताया गया कि कैसे भारत जातिवाद, महिला शोषण, गरीबी, दरिद्रता का घर है और जस्टिफिकेशन था कि क्यों अंग्रेजों को भारत में अपना राज जारी रखना चाहिए ताकि भारत की जनता को सभ्य समाज बनाया जा सके। ये किताब इतनी चर्चित और अंग्रेजों की पसंद की थी कि स्वयं चर्चिल ने ब्रिटिश संसद में इस किताब की प्रति लहराकर भारत पर अंग्रेजों के राज को सही बताया था।
इस किताब के जवाब में लाला लाजपत राय ने अगले साल 1928 में एक किताब लिखी जिसका नाम था दुखी भारत। अब सौल साल के बाद हमें ये किताब उठा कर एक बार देखनी चाहिए। कैथरीन मेयो द्वारा भारत के चित्रण पर लाला लाजपत राय का जवाब पढ़ने लायक है और ध्यान देने लायक बात ये है कि आज भी आपको भारत से प्यार करने वाला कोई भी आम सा आदमी बिल्कुल इन्ही सब सवालों के जवाब देता मिल जाएगो जो लाला लाजपत राय 1928 में दे रहे थे।
देवदासी प्रथा, अछूत, शिक्षा का अधिकार नहीं, हिन्दू-विधवा (रत्ना पाठक का हालिया बयान जोड़ लें) , मां मानते हो और गाय को सड़क पर छोड़ देते हो, अंग्रेज न होते तो भारत कभी एक देश हो ही नहीं सकता था। ये ही सारे सवाल आज भी किए जाते हैं बस अंतर ये है कि तब अंग्रेज इन बातों के पीछे छिपकर अपनी मक्कारी को जस्टिफाई कर रहे थे और आज भारत में ही एक तबका तैयार किया गया है जो भारत के बड़े-बड़े विश्वविद्यायलों में बैठकर मिस मेयो के मदर इंडिया की सोच को हमारी देश के बच्चों में डालते हैं साथ में ये ही लोग दावा भी करके हैं कि अंग्रेजों से ये लोग लड़े थे।
और मिस मेयो का भारत का जवाब लिखने वाले लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने वाले भगत सिंह को अपना विचारधारा का भी बता देते हैं।
100 साल पहले सेम कहानी चल रही थी। अपनी एक किताब में श्रीमती एनी बिसेंट इस बात का जवाब लिख रही थी कि अंग्रेज चले गए तो ‘ब्राह्मणवादी ताकतों का राज आ जाएगा’ कैसे अंग्रेज इस खौफ की आड़ में अपना राज बचाए हुए है।
बिल्कुल ये ही शब्दावली, ये ही सवाल आज भी भी जस के तस हैं
बस तब जवाब देने वाले लाला लाजपत राय अकेले थे
आज अनगिनत हैं
ये ब्राह्मणवादी और अंधविश्वासी भारत ही बिना किसी स्वार्थ के विश्व को राह दिखाएगा।
इस किताब में एक चैप्टर में लाला लाजपत राय ने लिखा भी है कि क्यों शक्तशाली भारत विश्व के लिए आवश्यक है।
✍🏻अविनाश
‘Hello I am leaving on 11th November’ वाला पोस्ट आपने कई लोगों की सोशल मीडिया वाल पर पढ़ लिया होगा | ये है क्या ? अगर आपको भी ये अजीब सा मज़ाक लगा हो तो थोड़ा सा पीछे जाइए | पीछे मतलब कबीर के युग में | फिर आप कबीर के के दोहे याद कीजिये |
एक जो प्रसिद्ध सा दोहा था वो कुछ ऐसा कहता है :-
कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ |
जो घर बारे आपना, सो चले हमारे साथ ||
आपको क्या लगता है कबीर आपको अपना घर जला के अपने साथ कहीं की यात्रा पर चलने कह रहे हैं ? जाहिर है जवाब नहीं है | वो किसी घर को जलाने की बात नहीं कर रहे | वो prejudice को, inhibitions को, आपकी मूर्खता को जलाने और पीछे छोड़ने की बात करते हैं | आखरी बार पांच सौ पन्ने कब पढ़े थे पूरे पूरे वो भी सोचिये | जिसकी रोज की जॉगिंग की आदत है उसके सात एक दिन में अचानक पांच किलोमीटर आप नहीं दौड़ सकते ये भी याद रखिये |
अगर आपको कबीर, नानक, तुलसीदास, या कहिये कि किसी भी लेखक का लिखा समझना है तो आपको पूरी बात पढ़नी होगी | अगर दोहा है तो पूरा सन्दर्भ पढ़ना होगा फिर दोहे को देखिये | अगर चौपाई है तो चार लेने में से एक लाइन पढ़ के हा हुसैन का विलाप मत शुरू कर दीजिये | कई बार लोगों का पढ़ने का अभ्यास कम होता है | आखरी किताब पूरी बरसों पहले पढ़ी थी | शब्दों के अर्थ और उनके प्रयोग की जानकारी कभी रही भी होगी तो भूल गए होंगे इतने साल में |
कई बार आपको शब्द ही नहीं शब्दों के बीच में भी पढ़ना होगा | जो लिखा गया है वही नहीं, जो बिना लिखे कह दिया गया वो भी पढ़ना होगा | कम से कम शब्दों में कई बार ज्यादा बात कही जाती है | जंगल की आग जैसा फैलना कहने के लिए एक शब्द दवानल भी काफी होगा | लेकिन दवानल का मतलब पता हो तब ना ? कम अभ्यास और उस से भी कम पृष्टभूमि की जानकारी पर पूरा कैसे समझ लिया ?
पूरा पूरा समझने के लिए कई बार लिखे हुए को बार बार पढ़ने की जरूरत भी होती है | कई बार पूरा समझाने के लिए लेखक अपने लिखे को बार बार सुधारता भी है | जिसे कई बार हजारों सालों में सुधार गया है ऐसा कुछ पढ़ रहे हैं तो गलती ढूंढ पाने की संभावना कितनी होगी ? और हमने जो फेसबुक पोस्ट आज लिखा मगर फिर खुद ही भूल गए और दोबारा देखा ही नहीं, उसके पूरा सही होने की संभावना कितनी होगी ?
बाकी शब्दों के बीच पढ़ने की बात पर आश्चर्य है तो, ऊपर के किसी भी पैराग्राफ में “मूर्ख” या “घमंडी” जैसे शब्द तो कहीं इस्तेमाल नहीं हुए हैं ना ? क्या कहा गया है वो फिर कैसे समझ आया ?
✍🏻आनन्द कुमार