तिरुपति लड्डू विवाद से फिर प्रांसगिक हुआ मंदिर मुक्ति आंदोलन

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क्या है फ्री टेंपल मूवमेंट? तिरुपति लड्डू विवाद के बीच जोर पकड़ रही है चर्चा
आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के लड्डूओं में मिलावट का खुलासा हुआ है। प्रसाद में फिश ऑयल और जानवरों की चर्बी पाई गई है। इस विवाद के बाद मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग उठी है। आंध्र प्रदेश सरकार ने रिपोर्ट जारी की है, जिसमें मिलावट की पुष्टि हुई है।

मुख्य बिंदु
तिरुपति मंदिर के प्रसाद लड्डू में पशु चर्बी के इस्तेमाल पर घमासान
चंद्रबाबू नायडू के इस दावे पर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया
विवाद पर फिर उठी मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग

नई दिल्ली : आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के लड्डूओं में मिलावट पर बड़ा खुलासा हुआ है। प्रसाद में फिश ऑयल और जानवरों की चर्बी मिलने की पुष्टि हुई है। इससे पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने विधायक दल की बैठक में यह आरोप लगाया था कि पिछली वाईएसआरसीपी के नेतृत्व वाली जगनमोहन रेड्डी सरकार के दौरान तिरुपति के श्रीवेंकटेश्वर मंदिर में पवित्र प्रसाद लड्डू बनाने में घटिया सामग्री और जानवरों की चर्बी का उपयोग किया गया। इस पूरे विवाद के बीच एक बार फिर से देशभर के मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किए जाने की मांग उठने लगी है।

आंध्र प्रदेश सरकार ने जारी की रिपोर्ट
गुरुवार को, टीडीपी के तहत आंध्र प्रदेश सरकार ने प्रयोगशाला रिपोर्ट जारी की। इसमें वाईएसआरसी शासन के दौरान सप्लाई किए गए घी में लार्ड (सूअर की चर्बी), टैलो (गोमांस की चर्बी) और मछली के तेल सहित बाहरी फैट की उपस्थिति दिखाई गई। लड्डू के स्वाद के बारे में शिकायतों के बाद 23 जुलाई को किए गए विश्लेषण में नारियल, अलसी, रेपसीड और कपास के बीज जैसे वनस्पति स्रोतों से फैट भी पाई गई। आंध्र प्रदेश सरकार या तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी), जो प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर का प्रबंधन करता है, की ओर से हालांकि प्रयोगशाला रिपोर्ट पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई। जून में टीडीपी सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी जे. श्यामला राव को टीटीडी का नया कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया था। गुणवत्ता संबंधी चिंताओं को दूर करने के प्रयासों के तहत, लड्डू के स्वाद और बनावट से जुड़ी समस्याओं की जांच के आदेश दिए गए।

क्या है फ्री टेंपल मूवमेंट
देशभर में मंदिरों पर से सरकार के नियंत्रण से मुक्त करने की मांग को लेकर पिछले एक दशक से आंदोलन हो रहे हैं। लोगों की मांग है कि सरकार इन मंदिरों को अपने नियंत्रण से मुक्त करे। इससे मंदिर बोर्ड में हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। कई लोग मानते हैं, ‘हिंदू मंदिरों की स्वतंत्रता’ आंदोलन न तो 2014 के बाद शुरू हुआ कोई नया संघर्ष है और न ही यह सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा है। सुधार के बाद के भारत में जहां राज्य अपनी अधिकांश संपत्तियों, कंपनियों और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को उदार बना रहा है, मंदिर अभी भी उसके नियंत्रण में हैं। मंदिरों को मुक्त करने के आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि हिंदू मंदिरों पर नियंत्रण धार्मिक क्षेत्र में ‘लाइसेंस परमिट राज’ का आदर्श उदाहरण है।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू से बात की है और तिरुपति लड्डू मुद्दे पर पूरी रिपोर्ट मांगी है। केंद्र इस मामले की जांच करेगा और उचित कार्रवाई करेगा।
जेपी नड्डा, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है लड़ाई
मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग कर रहे लोगों का कहना है कि भारतीय लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष राज्य 1947 से अस्तित्व में है जबकि अधिकांश हिंदू मंदिर सदियों पुराने हैं। यह तथ्य कि वे अभी भी फल-फूल रहे हैं, इस बात का प्रमाण है कि दशकों तक स्थानीय भक्तों द्वारा उनका प्रबंधन कैसे किया गया था। दूसरी तरफ सरकार की तरफ से नए-नए कानून के जरिये मंदिरों पर नियंत्रण का दायरा बढ़ाया जा रहा है। मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है। शीर्ष अदालत की तरफ से भी मंदिरों पर सरकार के नियंत्रण को अनुचित ठहराय जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट में जज रहे रिटार्यड जस्टिस एसए बोबडे ने 2019 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर से संदर्भ में कहा था कि मैं नहीं समझ पाता कि क्यों सरकारी अफसरों को मंदिर का संचालन करना चाहिए? एक अनुमान के अनुसार देशभर के करीब 4 लाख मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण है। इससे पहले साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में तमिलनाडु के नटराज मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने को लेकर फैसला सुनाया था।

सनातन धर्म रक्षण बोर्ड की मांग
आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने तिरुपति लड्डू विवाद के बीच ‘सनातन धर्म रक्षण बोर्ड’ की स्थापना की मांग की। उन्होंने आश्वासन दिया कि आंध्र सरकार इस घटना में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। जन सेना पार्टी के प्रमुख ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि तिरुपति बालाजी प्रसाद में एनिमल फैट (मछली का तेल, सूअर की चर्बी और गाय की चर्बी) मिलाए जाने की बात से हम सभी बहुत परेशान हैं। वाईसीपी सरकार की तरफ स गठित टीटीडी बोर्ड को कई सवालों के जवाब देने होंगे।

लड्डू का इतिहास
आंध्र प्रदेश के तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर के पवित्र मंदिर में चढ़ाया जाने वाला ‘लड्डू प्रसादम’ अपने अनोखे स्वाद के लिए प्रसिद्ध है, जिसे पूरे भारत और विदेशों में भक्त पसंद करते हैं। ये प्रतिष्ठित लड्डू मंदिर की रसोई में सावधानीपूर्वक तैयार किए जाते हैं, जिसे ‘पोटू’ के नाम से जाना जाता है। तिरुपति लड्डू की पेशकश 300 साल से अधिक पुरानी है। इसकी शुरुआत 1715 में हुई थी। 2014 में, तिरुपति लड्डू को जीआई का दर्जा प्राप्त हुआ। इससे किसी और को उस नाम से लड्डू बेचने पर रोक लगा दी गई। टीटीडी प्रतिदिन तिरुमाला में लगभग 3 लाख लड्डू तैयार करता है और बांटता है। लड्डू की बिक्री से प्रतिवर्ष लगभग 500 करोड़ रुपये की कमाई होती है।

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