दौला शाह दरगाह के चूहें

डोले शाह के चूहें
“डोले शाह के चूहें” (या शाह दौला के चूहे) पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में गुजरात शहर स्थित शाह दौला की दरगाह से जुड़ा एक विवादास्पद और दुखद विषय है।दरगाह और मान्यताशाह दौला (असली नाम: हजरत सैयद कबीरुद्दीन) एक 17वीं सदी के सूफी संत थे। उनकी दरगाह पर यह मान्यता प्रचलित है कि बांझ महिलाएं यहां मन्नत मांगने से औलाद प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन शर्त यह है कि पहली संतान को दरगाह पर “चढ़ाना” पड़ता है (यानी सेवा के लिए छोड़ना पड़ता है)। अगर ऐसा न किया जाए तो बच्चा विकलांग पैदा होगा या बाद की संतानें प्रभावित होंगी।

“चूहे” कौन हैं?

इन “चूहों” (चुआ या रैट चिल्ड्रन) को माइक्रोसेफली (microcephaly) नामक जन्मजात विकृति से पीड़ित बच्चे या वयस्क कहा जाता है। इस बीमारी में सिर असामान्य रूप से छोटा होता है, चेहरा नुकीला और चूहे जैसा लगता है, साथ ही मानसिक और शारीरिक विकलांगता होती है। ये लोग दरगाह के आसपास या पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में भीख मांगते दिखते हैं। लोग इन्हें पैसे या सामान देते हैं क्योंकि इन्हें “दिव्य आशीर्वाद” प्राप्त माना जाता है और इनसे दान न देना अशुभ समझा जाता है।विवाद और सच्चाईकई लोक कथाओं और रिपोर्टों में आरोप लगता है कि दरगाह प्रशासक या गिरोह स्वस्थ बच्चों के सिर पर लोहे की टोपी या बैंड बांधकर कृत्रिम रूप से विकृति पैदा करते हैं ताकि वे आजीवन भीख मांगकर दरगाह की आय बढ़ाएं। हालांकि कुछ शोध (जैसे ब्रिटिश विद्वान एम. माइल्स की 170 वर्षों की डॉक्यूमेंट्री स्टडी) कहते हैं कि ये आरोप अतिरंजित हैं। दरगाह शुरू में ऐसे प्राकृतिक रूप से विकलांग बच्चों की देखभाल करती थी (जिन्हें परिवार छोड़ देते थे), लेकिन बाद में शोषण बढ़ गया।आधुनिक समय में यह मानवाधिकार उल्लंघन और बाल शोषण का मामला माना जाता है। पाकिस्तान में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, लेकिन दरगाह की धार्मिक लोकप्रियता के कारण पूरी तरह रोका नहीं जा सका।

साहित्य में उल्लेख

प्रसिद्ध लेखक सआदत हसन मंटो की मशहूर छोटी कहानी “शाह दौले का चूहा” इसी विषय पर आधारित है, जिसमें एक महिला औलाद की चाहत में दरगाह पर मन्नत मांगती है और उसके परिणामों का चित्रण है।यह एक संवेदनशील और दुखद सामाजिक-धार्मिक प्रथा है जो अंधविश्वास, गरीबी और शोषण को उजागर करती है।

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