नेपाल क्यों है भारत का बड़ा शत्रु?

What Pakistan And China Spies Doing In Nepal Tension For India Why Kathmandu Become A New Hub For Cia Isi Mi6 Agents

भारत को टेंशन…पाकिस्तान-चीन के जासूस नेपाल में क्या कर रहे हैं, CIA, ISI, MI6 एजेंटों के लिए काठमांडू बना अड्डा?
1999 में नेपाल की राजधानी काठमांडू से भारतीय विमान उड़ा था, मगर उसे रास्ते में ही हाईजैक कर लिया गया। इसके बाद दुनिया जानती है कि कितनी अपमानजनक शर्तों के बाद हमें भारतीय बंधकों को छुड़ाने में कामयाबी मिली थी। हमें तीन खूंखार आतंकियों को छोड़ना पड़ा था, जिसके जख्म रह-रहकर आज तक सालते हैं। जानते हैं

नेपाल क्यों बन रहा अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों का ठिकाना
क्या नेपाल में गोपनीय खबरों की हो रही खरीद-फरोख्त
इस तरह की गतिविधियों से भारत को कितना नफा-नुकसान
नई दिल्ली: 22 नवंबर, 1979 को अमेरिका के एक प्रतिष्ठित अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में खबर छपी। इसका शीर्षक था-‘हू वाज द सीआईए इन्फार्मर इन इंदिरा गांधी कैबिनेट’। इस लेख से पहले टॉमस पॉवर्स ने सीआईए प्रमुख रिचर्ड हेल्म्स की जीवनी ‘द मैन हू केप्ट द सीक्रेट्स’ में लिखा था कि 1971 में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में एक सीआईए एजेंट था। दरअसल, 1970 के दशक से ही अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA भारत सरकार में अपनी पैठ जमाने की कोशिश करती रही है। ये सीक्रेट एजेंसी का एक और ठिकाना हुआ करता था-हिमालय के पहाड़ों से घिरा छोटा सा देश नेपाल।
इसके बाद मई, 1998 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार थी, तब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था, जिसकी अमेरिका को भनक तक नहीं लगी। इस बात को लेकर भारत और नेपाल में मौजूद अमेरिकी एजेंटों की जमकर किरकिरी हुई। उन्हें फेल माना गया, क्योंकि वो इस बारे में अमेरिका को पहले से आगाह नहीं कर पाए थे। जानते हैं नेपाल के सीक्रेट एजेंट्स का गढ़ बनने की कहानी, जो भारत के लिए टेंशन की बात हो सकती है।

नेपाल बना जासूसों का अड्डा, नकली मुद्रा का सेंटर
भारत और चीन के बीच रणनीतिक रूप से स्थित हिमालयी राज्य नेपाल अंतरराष्ट्रीय जासूसी, खुफिया जानकारी जुटाने के साथ-साथ मनी लॉन्ड्रिंग, तस्करी और नकली मुद्रा जैसी अवैध गतिविधियों के लिए एक सेफ हैवेन है। मित्र और दुश्मन देशों के फील्ड ऑपरेटिव या एजेंटों के लिए काठमांडू में एक-दूसरे के साथ लुका-छिपी खेलना काफी आम बात है।

 

क्यों नेपाल है ऐसी खुफिया एजेंसियों के लिए सेफ हैवेन
नेपाल की सीमाएं कई जगहों पर खुली हुई हैं। इसके अलावा, इसकी चीन से भौगोलिक निकटता है। इस वजह से नेपाल पश्चिमी और पूर्वी देशों की खुफिया एजेंसियों के लिए अपने नेटवर्क स्थापित करने और अपनी जासूसी गतिविधियां चलाने के लिए एक आदर्श स्थान बनाती हैं। यहां पर ब्रिटेन की MI6, अमेरिका की CIA, पाकिस्तान की ISI, चीन की MSS, रूस की KGB और भारत की RAW के एजेंट्स होने की रिपोर्ट आती रहती हैं। हालांकि, सबसे ज्यादा बदनाम आईएसआई है, जिसके एजेंट्स बड़ी संख्या में यहां मौजूद माने जाते हैं।

नेपाल में लोगों से ज्यादा दुनिया के सीक्रेट एजेंट्स
भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के पूर्व एजेंट लकी बिष्ट ने नवभारत टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि भारत के लिए पाकिस्तान और चीन से ज्यादा बड़ा खतरा इस वक्त नेपाल है। नेपाल में दुनिया की सीक्रेट सर्विसेज के इतने सारे एजेंट है कि ऐसा लगता है कि नेपाल में वहां के लोग कम और सीक्रेट सर्विसेज के एजेंट ज्यादा रहते हैं।
भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नेपाल का इस्तेमाल करती है ISI
फरवरी 2000 की शुरुआत में ही तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने संसद में बोलते हुए कहा था-अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) की ओर से भारत के खिलाफ नेपाल और बांग्लादेश का दुरुपयोग करने के बारे में जानती है और चिंतित है। नेपाल में ISI गतिविधियों पर अंकुश लगाने से संबंधित मुद्दे को भी हायर लेवल पर उठाया गया है।

नेपाल बना भू-राजनीतिक युद्ध का मैदान
EFSAS की एक स्टडी के अनुसार, नेपाल का भू-राजनीतिक महत्व, भारत और चीन के बीच रणनीतिक स्थान, साथ ही तिब्बत से निकटता और अपेक्षाकृत कमजोर सुरक्षा बुनियादी ढांचा इसे वैश्विक शक्तियों की ओर से सीक्रेट मिशनों के लिए एक आदर्श मैदान बनाता है। हाल के वर्षों में नेपाल ने अधिक संतुलित विदेश नीति अपनाकर विदेशी प्रभाव के जटिल जाल से निपटने का प्रयास किया है। सरकार ने अपनी खुफिया एजेंसियों को मजबूत करने, सीमा सुरक्षा में सुधार करने और किसी एक विदेशी शक्ति पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश की है। हालांकि, इस क्षेत्र में चल रही भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए यह संभावना है कि नेपाल निकट भविष्य में अंतरराष्ट्रीय जासूसी का केंद्र बिंदु बना रहेगा।
खालिस्तानी आतंकियों की आवाजाही नेपाल के रास्ते से
EFSAS के मुताबिक, आईएसआई ने भारत को आतंकवादियों के माध्यम से निशाना बनाने के लिए नेपाल को दूसरे मोर्चे के रूप में इस्तेमाल करना 1980 के दशक के मध्य से शुरू किया और यह आज तक जारी है। खालिस्तानी आतंकवादियों की भारत से आवाजाही के लिए नेपाल को एक ठिकाने के रूप में इस्तेमाल किया गया। 1990 के दशक के मध्य तक भारत में भारी मात्रा में विस्फोटकों, हथियारों और नकली मुद्रा की तस्करी करने में आईएसआई की अहम भूमिका रही है।

1990 के दशक में तेजी से बढ़ीं नेपाल में आईएसआई की गतिविधियां
2011 में विकीलीक्स के जारी किए गए अमेरिकी केबल में अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट शामिल थी, जिसमें भारत के खिलाफ आतंकवादी कारनमों को अंजाम देने और बढ़ावा देने के लिए ISI की ओर से नेपाल के इस्तेमाल पर रोशनी डाली गई थी। 8 जुलाई 1997 को जारी किए गए ऐसे ही एक केबल पर भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत फ्रैंक विस्नर ने हस्ताक्षर किए थे, जिसमें दावा किया गया था कि 1999 में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी- 814 से पहले ISI ने नेपाल को भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बना दिया था।

काठमांडू में कालीन का कारोबार करता था पाक आतंकी
केबल में खुलासा किया गया था कि पाकिस्तान में ISI की ओर से बनाया गया एक ऐसा संगठन जम्मू और कश्मीर इस्लामिक फ्रंट (JKIF) था, जिसका काठमांडू में मजबूत आधार था। अमेरिकी राजदूत ने कहा था किजेकेआईएफ का सरगना जावेद क्रवाह खुद काठमांडू में कालीन का कारोबार करता था। उन्होंने आगे बताया कि जेकेआईएफ को पाकिस्तान से आईएसआई और टाइगर मेमन की ओर से नियंत्रित किया जाता था, जो 1993 के मुंबई सीरियल बम धमाकों का मुख्य आरोपी है।

आईसी-814 विमान के अपहरण में था आईएसआई का हाथ
24 दिसंबर 1999 को काठमांडू से नई दिल्ली जा रहे इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 का अपहरण वह निर्णायक मोड़ साबित हुआ, जिसने नेपाल में आईएसआई की जहरीली गतिविधियों को दुनिया के सामने उजागर कर दिया। अमृतसर, पाकिस्तान के लाहौर और यूएई के दुबई में अपहरणकर्ताओं द्वारा रोके जाने के बाद विमान को अंततः अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया। विमान के कंधार में उतरने के बाद आईएसआई के दो वरिष्ठ अधिकारी भी वहां पहुंचे थे।

इन तीन आतंकियों को मजबूरी में छोड़ना पड़ा था
विमान के कंधार पहुंचने तक अपहरणकर्ताओं ने एक यात्री की चाकू मारकर हत्या कर दी थी, जबकि 26 लोगों को दुबई में छोड़ दिया गया था। कंधार का चुनाव एक सचेत निर्णय था, क्योंकि यह अफगान तालिबान का गढ़ था, जो उस समय अफगानिस्तान में सत्ता में था। एक सप्ताह तक चले गतिरोध के बाद भारत ने तीन खूंखार आतंकवादियों मौलाना मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर को रिहा करने की अपहरणकर्ता की मांग को पूरा किया। इसके बाद विमान में सवार बंधकों को 31 दिसंबर 1999 को रिहा कर दिया गया।

नेपाल में बढ़ते चीनी जासूस से परेशान नेपाल
जब से चीन का बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव यानी बीआरआई लॉन्‍च हुआ है तब से ही वह मुख्य तौर पर इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। हालांकि, चीन की आक्रामक आर्थिक एकाधिकारवादी महत्वाकांक्षाओं ने नेपाल के लिए ज्यादा समस्याएं पैदा कर दी हैं। नेपाल चीन के साथ दो बॉर्डर पॉइंट्स साझा करता है। इसके साथ ही नेपाल में भी चीनी नागरिकों की मौजूदगी में इजाफा देखा गया है। साल 2014-15 के बाद से चीनी की तरफ से फंडिंग वाले प्रोजेक्‍ट्स में तेजी से इजाफा हुआ है। माना जाता है कि ये चीनी नागरिक नेपाल में चीन के लिए जासूसी काम करते हैं। खुद नेपाल भी इससे परेशान है, मगर वहां का राजनीतिक नेतृत्व चीन से ज्यादा प्रभावित रहता है।

भारत में घुसने की कोशिश में था चीन का जासूस
बीते साल जुलाई में भारत-नेपाल बॉर्डर पार कर पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में घुसने वाले चीन के एक नागरिक को गिरफ्तार किया गया था। इस घटना के सामने आते ही मामले ने तूल पकड़ लिया है। संदिग्ध की पहचान 39 साल के योंगशिन पेंग के तौर पर हुई है, जो चीन के लिए जासूसी करता था।

 

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