न्यायाधीशों के लिए गलत धारणाएं क्यों बनती हैं? हमें तो पता है

“मेरा असहमति का अधिकार”
न्यायाधीशों के लिए गलत धारणा
क्यों बनी, चीफ जस्टिस इस पर
पहले विचार करें –
अदालतें और न्यायाधीश क्या
स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं –
#जस्टिस आर एफ नरीमन –

कल जस्टिस रोहिंटन फली(आर ऍफ़ ) नरीमन के
रिटायरमेंट पर बोलते हुए चीफ
जस्टिस एन वी रमना ने कहा कि
न्यायाधीशों के बारे में गलत
धारणाओं को ख़त्म करना जरूरी
हैै।

जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन के सेवानिवृत्ति समारोह ने उनके सम्मान में दो शब्द कहे, यहां तक तो ठीक है लेकिन उन्होंने न्यायाधीशों के लिए गलत धारणाओं पर भी चिंता जता दी। अब कुर्सी पर बैठा वाचाल जज तो खुद को सर्वशक्तिमान समझता है। सांप्रदायिक पूर्वाग्रही नरीमन ने भी खुद को प्रगतिशील जताने में बहुसंख्यकों की भावनाओं को रोंदने का कोई मौका खाली नहीं जाने दिया।

उन्होंने कई उदाहरण दे कर कहा
कि लोगों में ये गलत धारणा रहती
है कि न्यायाधीशों का जीवन बहुत
आसान होता है –नरीमन के लिए
बताया कि उन्हें तत्कालीन चीफ
जस्टिस वेंकटचलैया ने नियमों में
बदलाव कर 45 की जगह 37 वर्ष
आयु में वरिष्ठ अधिवक्ता बना दिया
था –

जस्टिस रमना ने कहा नरीमन के
जाने से उन्हें लगता है जैसे वो
न्यायिक संस्था की रक्षा करने वाले
शेरों में एक को खो रहे हैं —

पहली बात तो ये समझ नहीं आया
कि आखिर चीफ जस्टिस को कैसे
पता चलता है कि लोगों में गलत
धारणाएं हैं —

दूसरी बात ये कि गलत अवधारणाएं
जनमानस में क्यों व्याप्त हुई, उन पर
पहले चीफ जस्टिस को विचार करना
चाहिए -अदालतों और जजों के
कामकाज का अवलोकन करना
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए
जरूरी है –

एक नहीं अनेक मसले देखने को
मिल सकते हैं जिनसे पता चलता
है सुप्रीम कोर्ट भी अपनी तरह से
“सेकुलर लबादा” ओढ़े हुए रहता
है —

जस्टिस नरीमन का हाल ही का
आचरण ये साबित करता है कि
वो एक हिन्दू विरोधी जज थे —
क्या इसलिए कि वो एक पारसी
हैं?

शबरीमाला मंदिर को अपवित्र करने
की मंशा से दायर गैर हिन्दू महिलाओं
की याचिका पर फैसले में नरीमन
भागीदार थे जबकि एक मुसलमान
वसीम रिजवी की कुरान की आयतों
के खिलाफ याचिका सुनने से ही
मना कर दिया —

उत्तर प्रदेश की कांवड़ यात्रा पर
स्वतः संज्ञान ले कर फैसला कर
दिया मगर केरल में ईद पर दी
गई रियायतों पर कोई ठोस कदम
नहीं उठाया —

और तो और केंद्रीय विद्यालयों पर
होने वाली इस प्रार्थना पर रोक
लगाने के लिए याचिका भी सुनवाई
के मंजूर कर संविधान पीठ को भेज
दी —
“असतो मा सद्गमय तमसो मा
ज्योतिर्गमय”

ये इसलिए किया गया कि अनुच्छेद
28 (1) के अनुसार सरकार द्वारा
संचालित संस्था में धार्मिक शिक्षा
नहीं दे सकते —

मतलब सरकार से मदरसों को
पैसा मिल सकता है और इमामों
को सरकार के खाते से सैलरी मिल
सकती है —

साढ़े 27 साल की सजा पाया हुआ
लालू यादव मस्ती में बाहर घूम कर
पूरी राजनीति कर रहा है जिसे अब
कोई बीमारी नहीं है —
फिर ऐसी अवधारणाएं तो बनेगी
ही जनता में –कैसे बदल सकते
हैं उन्हें –

(सुभाष चन्द्र की फेसबुक वॉल से)
“मैं वंशज श्री राम का”
13/08/2021

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