पंजाब का ईसाईकरण हुआ तेज

 

Ground Report: ईसाई बहुल होते जा रहे पंजाब के सीमावर्ती गांव, ‘मन बदलने’ के मास्टर हैं पास्टर
दिल्ली से महज कुछ घंटों की दूरी पर बसा पंजाब आंच पर रखी हांडी की तरह खदबदाता रहता है. कभी ड्रग्स, कभी NRI आबादी तो कभी अलगाव की मांग. इस शोरगुल के बीच वहां कुछ और भी बदल रहा है. बेहद नामालूम ढंग से सूबे की बड़ी आबादी ईसाई हो चुकी. इन ‘बदले हुओं’ की पहचान मुश्किल है. वे नाम-धाम नहीं बदलते, बस घरों से गुरु ग्रंथ साहिब को हटा जीसस को ले आते हैं.

पंजाब में एक खास तरह के चर्च तेजी से फैल रहे हैं. (Photo- AFP)
मृदुलिका झा
जालंधर, तरन तारन और अमृतसर.,14 फरवरी 2025,
पंजाब की पहचान है उसकी सिख आबादी और उपजाऊ जमीन. जमीन पहले ही जहरीली हो चुकी. अब सिख आबादी भी कथित तौर पर खतरे में है. साल 2011 में हुई जनगणना में वहां लगभग डेढ़ फीसदी ईसाई थे. कहा जा रहा है कि अब वे 15 पार कर चुके. लेकिन इससे सिखों पर क्या फर्क! दरअसल ये सिख ही हैं, जो काफी तेजी से चर्चों और मिनिस्ट्रीज की तरफ जाने लगे. इसमें भी बॉर्न क्रिश्चियन्स और कन्वर्टेड्स के बीच रार छिड़ी हुई है. पीढ़ियों से ईसाई रहते आए लोगों का आरोप है कि ‘नए-नयों’ की वजह से उनके धर्म का नाम खराब हो रहा है.

पहली कड़ी में आपने जाना कि पंजाब की रगों-रेशों में कैसे ईसाई धर्मांतरण का जाल फैल चुका है. खुद aajtak.in की रिपोर्टर को यीशु की शरण में आने का न्यौता मिला.

इस किस्त में जानिए, कैसे बदलते हुए भी अदृश्य बनी हुई है पंजाब की डेमोग्राफी! सिख-बहुल राज्य के लोग क्यों धड़ल्ले से किसी और मजहब की तरफ जा रहे हैं? कैसे काम करता है कन्वर्जन का जाल और कहां से आती है बड़ी फंडिंग?

इन तमाम क्या को खोजते हुए हम पहुंचे तरन तारन, अमृतसर के जल्लूपुर खेड़ा और जालंधर. वहां हमने पास्टरों, मसीह को मानने वालों समेत लोकल नेताओं से भी बात की.

मेरे फादर को दुष्ट आत्मा ने पकड़ रखा था. टेस्ट कराते तो कुछ भी नहीं आता था. फिर भी हम इलाज करवाते रहे. ‘धार्मिकता’ भी करते रहे. आखिरकार वे चल बसे. साल 1989 में उसी शैतान ने मुझे भी पकड़ लिया. मेरी भी सांस रुकने लगी. सब कुछ वैसा ही हो रहा था, जो फादर साहब के साथ होता था. जिसने जो कहा, हमने किया. तांत्रिक से लेकर पीर-फकीर सबको दिखाया.

साल 2005 की बात है, जब किसी ने मुझे गुड न्यूज दी. चर्च में जाकर यीशु से प्रार्थना को कहा.

मैं पक्का सिख था. मसीह के बारे में सोचता कि वो अंग्रेजों के गुरु हैं. लेकिन हालत इतनी खराब थी कि सोचा, ये भी आजमा लूं. हम बॉर्डर के पास बसे एक कस्बाई चर्च पहुंचे. पास्टर ने वचन पढ़े ही थे कि मुझे शांति मिलने लगी. लगा, जैसे सिर से भारी बोझ उतर रहा हो. घर लौटकर भी मैं प्रार्थना दोहराता रहा, और दुष्ट आत्मा खुद-बखुद मुझे छोड़कर चली गई. इस बात को 20 साल हो चुके, मैं बिल्कुल ठीक हूं.

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पास्टर सरबजीत सिंह हाथों में होली बाइबल लिए हुए अपनी कहानी सुना रहे हैं. जगह- तरन तारन का गोइंदवाल साहिब. ये वो इलाका है, जिसे पंजाब का पंथक बेल्ट माना जाता रहा, जहां सिख धर्म अपने सबसे गहरे रूप में मौजूद है.

यहां कई गुरुद्वारे हैं. लेकिन शायद उतने ही या कहीं ज्यादा चर्च होंगे!

गलियों में बने होम-चर्च किसी आम घर की तरह दिखेंगे. क्रॉस का साइन भी यहां शायद ही दिखे. भीतर जाइए तो न तो जीसस की मूर्ति लगी होगी, न ही लकड़ी की टिपिकल बेंच और मोमबत्तियां ही टिमटिमाएंगी. यहां दरी बिछी होगी, जिसपर पगड़ी लगाए करतार सिंह और कुलमीत कौर प्रेयर करती मिलेंगी. ये पेंटेकोस्टल चर्च है. और सरबजीत सिंह यहां मौजूद कई पास्टरों में से एक हैं.

वे फेथ हीलिंग पर जोर देते हैं. यानी भरोसा करो और यीशु उसे पूरा करेगा. वे कहते हैं- इसी चर्च में कैंसर की एक मरीज आई. वो वैसे तो ईसाई ही थी लेकिन उसे भरोसा नहीं था. यहां आकर एक हफ्ते प्रार्थना सुनने के बाद उसने टेस्ट कराए. कैंसर खत्म हो चुका था.

सरबजीत के पास कहानियों का पूरा पिटारा है, जिसमें तीन चरित्र हैं- आम आदमी, जो हारी-बीमारी से तंग हो, वे खुद जो मसीह और लाचार के बीच कनेक्ट हों, और यीशु, जो कहानी के हीरो हैं.

पास्टर कोट-पैंट पहने हुए हैं, और दाढ़ी-पगड़ी भी नहीं रखते. तो क्या आपने धर्म बदल दिया?

कई बार पूछने पर गोलमोल जवाब लौटता है- बाइबल में कहीं नहीं लिखा कि धर्म बदलो तभी दुष्ट आत्मा से छुटकारा मिलेगा.

मतलब आप अभी भी सिख ही हैं!

धर्म तो नहीं बदला, लेकिन अब मैं इसी रास्ते पर चलता हूं. खुद प्रभु ने मुझे चुना है. अब बाइबल में जो लिखा है, वही करता हूं.

आपका परिवार-बच्चे, क्या वे भी इसी रास्ते पर चलते हैं?

हां. वे भी यही कर रहे हैं. हम सबको विश्वास कि यीशु परमेश्वर हैं.

वहीं बैठे जसवंत सिंह लगातार अरदास कर रहे हैं. पूछने पर वे प्रेयर के लिए यही शब्द इस्तेमाल करते

वे कहते हैं – 72 साल मेरी उम्र है. अभी भी मैं कुछ भी कर सकता हूं. घर में जिन लड़कियों ने मसीह को अपना लिया, उनकी पढ़ाई हो चुकी, शादियां हो गईं. वहीं इससे बाहर रहता लड़का शैतान के चंगुल में आकर मर गया.

सिख धर्म छोड़कर यीशु को कब अपनाया?

आंखों पर गहरा काला चश्मा लगाए जसवंत लगभग ऐंठते हुए बताते हैं- बाकी सब तो कंकड़-पत्थर हैं, यही असल परमेश्वर हैं. मैं 25 साल पहले ये जान चुका. अब बाकियों को भी गुड न्यूज देता हूं.

‘गुड न्यूज देना’! चाहे आप चर्च से बाहर हों, या उसके भीतर, लगभग हर टकराने वाला आपसे ये शब्द जरूर बोलेगा.

वैसे तो इसका मतलब यीशु की चर्चा है, लेकिन मोटे तौर पर देखें तो ये प्रचार है, जिसके बारे में पहली किस्त में हम मार्केटिंग स्कीम शब्द इस्तेमाल कर चुके.

सिख स्कॉलर और रिसर्चर डॉ. रणबीर सिंह फोन पर बातचीत के दौरान खुद ये टर्म इस्तेमाल करते हैं.

वे कहते हैं- विदेशी फंडिंग आती है, जो किसी बड़े पास्टर के पास जाती है. उससे जुड़े हुए बाकी पास्टरों के पास ये काम होता है कि वे 10, 20 या 50 अपने बूतेभर पिंड एडॉप्ट कर लें. एडॉप्ट करने का मतलब वे उनपर अपना पूरा जोर लगा दें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने धर्म से जोड़ें. पंजाब की बॉर्डर बेल्ट जैसे अमृतसर, तरनतारन, पठानकोट, फिरोजपुर और गुरदासपुर में ऐसा जमकर हो रहा है.

वे कमजोर तबके को टारगेट करते हैं. उन्हें स्कूल की फीस, नौकरी, कपड़े और फॉरेन स्टडी का लालच देते हैं. इनको वीजा भी बहुत जल्दी मिल जाता है, जो बाकियों के लिए मुश्किल है. एक को कुछ मिलता है, तो वो दूसरे परिवार को बताता है. ऐसे कड़ी से कड़ी बनती चली जाती है और चुपके से पूरा गांव बदल जाता है. वे दिखेंगे सिख ही, लेकिन घर और दिल के भीतर बदल चुके होंगे. अकेले गुरदासपुर में आज छह से सात सौ घर हैं, जो चर्च बन चुके.

डॉ सिंह का दावा चौंकाने वाला है.

वे मानते हैं कि साल 2023 से दो ही सालों के भीतर साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोग ईसाई धर्म से जुड़ चुके. अकेले तरनतारन में 10 साल में इस आबादी में 102 फीसदी बढ़ हुई. ये पंथक बेल्ट है.

लोकल स्तर पर हुई इस रिसर्च पर सरकारी मुहर नहीं, लेकिन ग्राउंड पर एक खास पैटर्न जरूर दिख जाएगा. वो भी कुछ घंटों के भीतर.

पंजाब में बीते कुछ सालों में ही कई चर्च और मिनिस्ट्रीज खुल चुकीं. इन्हें चलाने वाले लोग वे हैं, जो नॉन-क्रिश्चियन थे, लेकिन अब लाखों या करोड़ों का धर्म बदल चुके. कम से कम अनाधिकारिक तौर पर.

जालंधर की अंकुर नरूला मिनिस्ट्रीज के पापाजी हैं अंकुर नरूला. खत्री परिवार में जन्मे नरूला ने साल 2008 में उन्होंने चंद फॉलोवर्स के साथ शुरुआत की, लेकिन कुछ ही साल के भीतर ये संख्या लाखों में बदल गई. उनका एक यूट्यूब चैनल है, जिसके लाखों सब्सक्राइबर्स हैं. चंडीगढ़ में पास्टर बजिंदर सिंह मिनिस्ट्रीज है, जिनके यूट्यूब चैनल पर साढ़े तीन मिलियन से ज्यादा लोग जुड़े हैं. बहुत से और बड़े पास्टर हैं. खास बात ये है कि सभी पंजाब के अलग-अलग जिलों को टारगेट करते हैं.

इन सभी में एक बात और कॉमन है. ये पेंटेकोस्टल चर्च से जुड़े हुए हैं.

यह प्रोटेस्टेंट शाखा का हिस्सा है, जो बाकियों से कुछ ज्यादा लाउड है.

इसमें पवित्र आत्मा और उसके चमत्कारों की बात होती है.

पास्टर एक अलग जबान में प्रेयर करता है, जो किसी की समझ में नहीं आती. ग्लोसोलालिया कहलाती ये बोली कथित तौर पर सीधे ईश्वर से बातचीत कराती है. यानी किसी को ठीक करते हुए पास्टर ऐसे मंत्र बोल सकते हैं, जो असल में कोई भाषा ही नहीं.

कई टोने-टोटके भी हैं, जैसे काउंसलिंग के लिए आई एक महिला अपनी सास का शैतान भगाने के लिए मंतर मांगने आई थी. कोई औरत अपनी बंधी कोख खुलवाने पहुंची हुई थी.

यहां प्रॉफेटिक प्रेयर भी होती है, जिसमें पास्टर भविष्यवाणियां करता है. कुल मिलाकर, चर्च की इस शाखा में वो सारे तामझाम और रस-रंग हैं जो पंजाब की जोशीली आबादी को खींच सके.

अमृतसर, तरनतारन और जालंधर के सिख इसपर नाराज भी हैं, लेकिन ये गुस्सा दूध में पानी की मिलावट से ज्यादा नहीं.

गोइंदवाल साहिब के रिटायर्ड मिलिट्री पर्सन बलविंदर सिंह कहते हैं- हमारे गांव में ज्यादातर लोग कन्वर्ट हो रहे हैं. वे इतने कट्टर हो जाते हैं कि प्रसाद फेंक देते हैं. लेकिन हां, रविवार को खीर बने तो लंगर खाने में यही लोग सबसे आगे रहते हैं. हमें बहुत फील होता है. धर्म छोड़ रहे हैं तो पगड़ी और सिख धर्म से जुड़ी पहचान भी छोड़ दें.

बलविंदर जैसे और कई चेहरे हैं जो मानते हैं कि अकाली दल के रहते हुए इलाके में कई सारे चर्च बन गए. लोकल लीडरों पर भी वे भड़के हुए रहते हैं.

इस बारे में हमने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर से बात की. वे इसे ‘लाई-लग’ मानती हैं. बकौल बीबी कौर, लोग देखा-देखी ऐसा कर रहे हैं. लालच भी बड़ी वजह है.

लेकिन क्या इसमें कुछ जिम्मेदारी एसजीपीसी की नहीं?

इससे इनकार करते हुए पूर्व अध्यक्ष कहती हैं- एसजीपीसी ऐतिहासिक गुरुद्वारों का मैनेजमेंट देखती है. सारे गुरुद्वारे वो अकेली मैनेज नहीं कर रही. कमेटी ने स्कूल-कॉलेज, अस्पताल सब बनवाए. वो सबके लिए खुले हैं लेकिन जिनकी अपनी सोच रोगी है, वो फरेबों में आ जाता है.

साथ ही ये भी है कि वहां हिप्नोटाइज करने का भी खेल हो रहा है. खुद कुछ सिख प्रचारकों ने ये बात कही कि वहां जाने वाले लोगों को हिप्नोटाइज कर लिया जाता है, जिससे वे सब मानने लगते हैं.

तो सिख आबादी को कोई खतरा नहीं?

नहीं. जिन लोगों को मानसिकता ही कमजोर है, उनके लिए क्या कर सकते हैं. हम खुद भी देखते हैं. इतने लोग भी कन्वर्ट नहीं हो रहे. हमारे गांव में कोई एक होगा, या दो होंगे. सारा गांव तो नहीं चला गया होगा.

क्या वाकई गांव में इक्का-दुक्का लोग ही चर्च से जुड़े हुए हैं! इसे समझने के लिए हम बेगोवाल में पैदल ही आगे बढ़ते हुए आसपास किसी चर्च का पता पूछते हैं.

बमुश्किल एकाध किलोमीटर पर एक होम-चर्च मिला, जिसके पास्टर हैं जसविंदर सिंह. वे कंबल में दुबके हुए आस-पड़ोस को प्रभु वचन सुना रहे थे. पूछने पर वे सीधे कहते हैं- इसी एरिया में हजारों लोग हैं, जो चर्च आते हैं. वचन सुनते और अरदास करते हैं.

प्रेयर को अरदास कहने वाले जसविंदर लेकिन कन्वर्जन की बात पर चुप हो जाते हैं. बार-बार पूछने पर जवाब आता है- नहीं, मैं जिस धर्म में पैदा हुआ, वही हूं. यीशु किसी का धर्म नहीं, मन बदलते हैं.

तो पास्टर बनने के लिए आपको धर्म नहीं बदलना पड़ा.

हिचकिचाहट…

अच्छा, ये बताएं कि आप मूर्तिपूजा तो करते होंगे!

नहीं. वो हम नहीं करते. मेरी मां क्रिश्चियन थी तो मैं भी जन्म से वही रहा.

यानी दस्तावेजों पर आप ईसाई हैं?

नहीं. हम वाल्मिकी समाज से आते हैं.

चर्चों पर आरोप है कि उनकी तरफ से धर्म बदलने के लिए कुछ लेनदेन भी होता है!

ऐसा अब तक तो साबित नहीं हुआ. मैं अपनी बात कहूं तो मैं खुद फुल-टाइम यीशु का प्रचारक हूं लेकिन कभी कुछ नहीं मिला.

तब आपका घर-बार कैसे चलता है?

विश्वासी लोग हमें दान-चंदा देते रहते हैं. कुछ भाई भी हैं, जो विदेशों में हैं. वे भी मदद करते हैं. ये चर्च भी उन्हीं की हेल्प से बना.

घर से सटा हुआ चर्च कंपाउंड इतना बड़ा कि दिल्ली के कई तीन-बेडरूम फ्लैट उसमें समा जाएं. विदेश में रहने वाले कुछ भाइयों की मदद से बने चर्च में सेवकई करते पास्टर पेंटेकोस्टल शाखा के हैं.

क्या पेंटेकोस्टल और बाकी चर्चों के बीच खाई बन रही है?

इससे इनकार करते हुए वे कहते हैं- दोनों ही प्रभु को मानते हैं, बस उनका तरीका अलग है, और हमारा अलग. बाकी दूरी तो कुछ नहीं है.
पास्टर भले ही मिठार-मिठार बात करें, लेकिन बाकी चर्चों और पेंटेकोस्टल के बीच लगभग जंग छिड़ी हुई है. नई-नवेली इस शाखा की टीमटाम बेहद तेजी से पंजाब को अपनी गिरफ्त में ले चुकी. कुछ इसका गुस्सा भी है, और कुछ ये तुनक भी कि जादू-टोने वाली मिनिस्ट्रीज के चलते असल ईसाई बदनाम हो रहे हैं.

बहुत से कथित बॉर्न क्रिश्चियन्स कन्वर्टेड्स पर सवाल उठाते हैं. यहां तक कि पास्टरों पर जाली सर्टिफिकेट का आरोप भी लग रहा है.

पंजाब क्रिश्चियन्स यूनाइटेड फ्रंट के अध्यक्ष जॉर्ज सोनी कहते हैं- पंजाब में लगभग हर मोहल्ले में पेंटेकोस्टल चर्च मिल जाएंगे.

ऐसा यूं ही नहीं हो रहा. फॉरेन के लोग इंट्रेस्टेड होते हैं कि वे ईसाई धर्म के लिए इतने चर्चों को सपोर्ट करें. वे पास्टर को सैलेरी देते हैं, जो पांच से दस हजार तक हो सकती है. जिन लोगों के पास काम-धंधा नहीं, उनके लिए ये बड़ी रकम है. लेकिन उनकी वजह से हमारी कम्युनिटी को नुकसान हो रहा है.

नए पास्टरों के पास न ट्रेनिंग है, न वे खास पढ़े-लिखे हैं. चंगाई के नाम पर वे बिजनेस कर रहे हैं. पहले हमारी इज्जत थी कि एजुकेटेड हैं, शांतिप्रिय हैं. अब वो इमेज धुंधला रही है.

जॉर्ज इन मिनिस्ट्रीज के चलन पर भी सवाल उठाते हैं.

उनके पास एक पूरी टीम होती है, जो सारा मैनेजमेंट देखती है. वे तय करते हैं कि कहां से पैसे आएं, कैसे लोगों के चमत्कारों को शूट करना है. गवाहियां होती हैं तो चारों तरफ बड़ी-बड़ी स्क्रीन पर सब दिखता रहता है. यहां तक कि पास्टर बनाने का भी बिजनेस चल पड़ा. जाली सर्टिफिकेट देकर हजारों-हजार को पास्टर बनाया जा रहा है।

फंडिंग और किस-किस तरह से आती है?

ले-हैंड जिसमें पास्टर किसी के लिए स्पेशल प्रेयर करते हैं, उसके लिए भी पैसे लिए जाते हैं. नाम नहीं लूंगा लेकिन कइयों ने कुछ साल पहले तक सिल्वर, गोल्ड और डायमंड मेंबरशिप रखी हुई थी. ज्यादा पैसे देंगे तो आपके पास्टर के साथ अलग से मीटिंग करने या खाना खाने भी मिलेगा. कई मिनिस्ट्रीज साथ में अलग बिजनेस भी करती हैं, जैसे कोई तेल बेचता है, कोई कुछ और.

एक मजेदार बात ये है कि मिनिस्ट्रीज चला रहे ये पास्टर खुद कहते हैं- बोओगे तो कई गुना मिलेगा. असल में ये दबी हुई अपील है कि हमें पैसे दो.

पंजाब में इस तरह के कितने चर्च या मिनिस्ट्री होंगी?

छोटे चर्चों की तो काउंटिंग कर ही नहीं सकते. कई जिलों में हर मोहल्ले में दो से तीन चर्च मिल जाएंगे. छोटे चर्च से शुरुआत होती है. वो मॉडल कामयाब हो जाए तो मिनिस्ट्रीज बन जाती हैं.

इन गड़बड़ियों को ठीक करने के लिए क्या आप लोग कोई एक्शन ले रहे हैं?

हां. हमने क्रिश्चियन लीडर काउंसिल बनाई है, जो इसपर काम शुरू कर रही है.

लेकिन शक के दायरे में कैथोलिक चर्च भी रह चुके है, उनपर भी लालच देकर कन्वर्ट करने का आरोप लगता रहा!

ये सब तो सिर्फ आरोप हैं. कैथोलिक चर्च मेंबरशिप भी आसानी से नहीं देते. आप जाएंगे तो कई साल तक बुलाते रहेंगे. वे पहले परखेंगे कि आपको वाकई इसमें दिलचस्पी है, या किसी लालच में आ रहे हैं. उसके बाद ही आप पूरी तरह जुड़ सकेंगे.

जालंधर में हमारी एक ऐसे पास्टर से भी मुलाकात जो स्वीकारता है कि कन्वर्जन तो हो रहा है.

पेंटेकोस्टल चर्च से जुड़ा ये शख्स इशारों में कहता है- ये तो सच है कि पास्टर बनने का टेस्ट होता है. बंदे को चर्च में फादर के साथ भी समय बिताना होता है. लेकिन कोई पास्टर बनेगा, या नहीं, ये इसपर तय होता है कि वो कितनों का ब्रेनवॉश कर सकता है. हम एक घर में जाकर बेइज्जती के बाद भी हार नहीं मानते. बार-बार उसे टारगेट करते हैं. कोई तो नाजुक पॉइंट आएगा, जब वो खुद को कमजोर महसूस करे. बस, हमारा काम उसे तभी घेर लेना है.

 

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Ground Report: पंजाब में धर्मांतरण पर पहचान का पर्दा, कागजों पर सिख ही रहना चाहते हैं कन्वर्टेड ईसाई, ताकि न विवाद हो, न आरक्षण छूटे!
पंजाब की ड्योढ़ी में मसीही बैठकी आज की बात नहीं. 18वीं सदी में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान मिशनरियों को छूट मिल गई और उन्होंने जमकर प्रचार शुरू किया. लुधियाना और अमृतसर उनका हेड ऑफिस था. मामला इतना बढ़ा कि आर्य समाज ने शुद्धि आंदोलन शुरू कर दिया. जो जहां था, वहीं सिमटकर रह गया. लेकिन कुछ दशकों के लिए ही. अब कथित तौर पर हर बड़े शहर के हर मोहल्ले में एकाध होम चर्च और कोई न कोई मिनिस्ट्री मिलेगी.
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पंजाब के सरहदी क्षेत्रों में ईसाई धर्म फैल रहा है.
पंजाब के सरहदी क्षेत्रों में ईसाई धर्म फैल रहा है.
मृदुलिका झा
मृदुलिका झा
जालंधर, तरन तारन और अमृतसर.,
15 फरवरी 2025,
(अपडेटेड 15 फरवरी 2025, 5:12 PM IST)
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14 साल पहले हुई जनगणना में पंजाब में सिख आबादी लगभग 57 फीसदी थी, हिंदू 38.5 प्रतिशत, वहीं क्रिश्चियन समुदाय डेढ़ फीसदी से भी कम था. अब ईसाई धर्म को मानने वाले 15 फीसदी से ऊपर जा चुके. खास बात ये है कि इन नए-नकोरों ने दस्तावेजों पर फिलहाल कुछ नहीं बदला.

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डर है कि अगले कुछ दशकों में कहीं ये सूबा सिखों से खाली न हो जाए!

तो क्या पंथ पर काम करने वाले लोग इससे अनजान हैं? या फिर दूसरे पाले के पास कुछ इतना चमकदार है, जो लोग उनकी तरफ खिंच रहे हैं!

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साल 2000 के आसपास कनाडा और अमेरिका से होते हुए ईसाई धर्म की एक अलग शाखा पंजाब में दस्तक देने लगी. दस्तक क्या, किवाड़ भड़भड़ाकर भीतर ही घुस आई. अब कथित तौर पर सिख धर्म छोड़कर बड़ी आबादी पेंटेकोस्टल चर्चों और मिनिस्ट्रीज से जुड़ चुकी. aajtak.in ने पिछली दो किस्तों में परत-दर-परत खंगाला कि इनका सारा नेटवर्क कैसे काम करता है और कैसे ये शाखा बिना गुल-गपाड़े के हावी हो रही है.

देश में मुस्लिम धर्म परिवर्तन को लेकर को इतनी दांता-किलकिल हो रही है, लेकिन इसपर खास चर्चा नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि कैंसर की लास्ट स्टेज की तरह जब तक इसका पता लगे, मर्ज सारे शरीर में फैल चुका हो!

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रुटीन चेकअप आखिर कितना रेगुलर है! इसे लेकर हमने पंजाब में धर्म परिवर्तन रोकने वाली संस्थाओं से लेकर कानूनी एक्सपर्ट से बात की. साथ ही अमृतपाल सिंह के गांव जल्लूपुर खेड़ा भी पहुंचे. याद दिला दें कि खडूर साहिब के सांसद का बड़ा वादा युवाओं को पंथ में लौटाना भी रहा.

हाल-हाल में इसपर थोड़ी-बहुत बात होने लगी लेकिन पंजाब में ईसाई धर्म 19वीं सदी से ही फैल रहा था. 1834 में अमेरिकी प्रोटेस्टेंट मिशनरी राज्य आए और लुधियाना से ऑपरेट करने लगे. ब्रिटिश रूल के दौरान कैथोलिक मिशनरी भी काम करने लगे. दलित सिख सॉफ्ट टारगेट थे.

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मुफ्त पढ़ाई और इलाज सबसे बड़ा ट्रैप थे.

कैथोलिक से लेकर प्रोटेस्टेंट मिशनरी दलितों को इसके लिए खुद से जोड़ने लगे. मामला इतना बढ़ा कि सतह के ऊपर भी दिखने लगा. आखिरकार साल 1875 में आर्य समाज की नींव डली. स्वामी दयानंद सरस्वती इसके फाउंडर थे जो वैसे तो हिंदू धर्म में सुधार और वेदों की तरफ लौटने की बात करने थे, लेकिन इसका बड़ा मकसद ईसाई और इस्लामिक धर्म परिवर्तन पर रोक लगाना था.

दयानंद पंजाब से नहीं थे, लेकिन उनकी मुहिम इस राज्य में काफी तेजी से फैली. प्योरिफिकेशन सेरेमनी चलाई जाती, जिसमें धर्म बदल चुके लोग वापस सिख या हिंदू जड़ों की तरफ लौटते. पंजाब के बड़े लीडर लाला लाजपत राय भी इससे जुड़े हुए थे, जिससे राज्य में ईसाई धर्मांतरण कमजोर पड़ने लगा था.

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आजादी के लिए लड़ाइयों के बीच भी मिशन सक्रिय तो रहा लेकिन काफी लीडर वापस लौट चुके थे.

ईसाई धर्मांतरण ने साल 2000 के आसपास फिर जोर मारा.

पंजाब से विदेश जाकर बस रहे लोग भी इसकी बड़ी वजह थे. अस्सी के दशक से पंजाबी कनाडा और अमेरिका जाकर सैटल होने लगे. इन देशों में क्रिश्चियनिटी की खास शाखा पेंटेकोस्टल काफी फैल रही थी. फेथ हीलिंग, भविष्यवाणियों और टोने-टोटकों पर चलने वाली इस सोच की खास बात थी कि ये हर देश या स्टेट के मुताबिक फ्लेवर ले लेती.

बाहर से लौटे लोग भी इस आंदोलन को फैलाने लगे. अस्सी से नब्बे के दशक के बीच सूबा वैसे भी काफी अस्थिर था. अलगाववाद और उग्रवाद से लोग तंग थे.

ऐसे में पेंटेकोस्टल चर्च के चमत्कार घाव पर मुलायम फाहे की तरह लगे. लोग जुड़ने लगे और जुड़ते ही चले गए. बाहर से आ रही फंडिंग ने इसे और ताकत दी. होमवर्क किया जा चुका था. दलित सिखों पर खास टारगेट किया गया.

कई एक्सपर्ट मानते हैं कि बराबरी के दावों के बावजूद पंजाब में बहुत सी गैर-बराबरी रही. यहां तक कि मजहबी सिखों के लिए मरी (श्मशान घाट) और गुरुद्वारे भी अलग थे. तुलनात्मक तौर पर गरीब तो वे थे ही. पेंटेकोस्टल चर्चों ने समानता और बढ़िया जिंदगी का वादा किया और समुदाय इसमें शामिल होता चला गया.

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साल 2000 से एकाध दशक के भीतर ही कई सामूहिक बपतिस्मा हुए. हालांकि ये दिलचस्प रहा कि चर्चों ने उन्हें अपनी बाहरी पहचान न बदलने पर जोर दिया.

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आज पूरे राज्य में लगभग 32 प्रतिशत दलित आबादी है. इनमें मजहबी सिख समेत कई समुदाय शामिल हैं. इनका बड़ा हिस्सा नाम से बलजीत या कुलजीत है, लेकिन घरों के भीतर ये पूरी तरह मसीह से जुड़ चुके.

पंथक बेल्ट, जो अपने ऐतिहासिक गुरुद्वारों और सिख उपदेशों के पालन के लिए जानी जाती है, वहां भी दलित जनसंख्या काफी है. चूंकि ये समुदाय धार्मिक तौर पर काफी संजीदा रहा, लिहाजा उसे खुद से जोड़ने के लिए पेंटेकोस्टल चर्चों ने कई प्रयोग किए. खासकर बेबी स्टेप्स लेना.

चर्च खुद को यीशु दा मंदिर कहेंगे, या फिर मसीह दी लंगर. आम चर्चों से अलग पेंटेकोस्टल शाखा खुद को लोकल मूड के मुताबिक कस्टमाइज करना जानती है. यहां मसीह की किताबें पंजाबी और हिंदी में मिलेगीं. यहां तक कि प्रेयर को अरदास कहने पर भी उन्हें कोई एतराज नहीं. छोटे-छोटे कदम ताकि लंबी जंग जीती जा सके. वही हो भी रहा है.

पंजाब में कई मिनिस्ट्रीज बन चुकीं, जिसके लीडर खुद सिख हैं. उनके मानने वाले लाखों में है. 24 घंटे प्रेयर हॉटलाइन चलती है जो वाकई में अस्पताल की इमरजेंसी जितनी तेज है.

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रिपोर्टर ने खुद जालंधर की अंकुर नरूला मिनिस्ट्रीज को देखा. 70 या शायद 100 एकड़ में फैले मिनी-एंपायर के पास्टर उर्फ पापाजी हैं अंकुर नरूला. वे सिर पर कुछ सेकंड्स के लिए हाथ रख दें, इसके लिए लोग महीनों-सालों क्यू में रहने को तैयार. मिनिस्ट्री में बन रहे चर्च के बारे में दावा है कि वो दुनिया के सबसे बड़े चर्चों में हो सकता है. इसके अलावा भी चारों तरफ चलता कंस्ट्रक्शन. इसमें लगे हुए मजदूर भी गुड न्यूज और ब्लेस यू बोलते हुए.

किसी नदी के किनारे जैसे बस्तियां बसती हैं, वैसे ही इस मिनिस्ट्री के पहलू में भी कई-कई बस्तियां बसी हुई.

यहां बूढ़े अपना आखिरी समय सार्थक करते हुए. युवा नई गुंजाइशें तलाशते हुए. और बच्चे पूरी तरह यीशु के रंग में रंगे हुए. हर मंगलवार, गुरुवार और इतवार को यहां मेला सजता है, जिसमें हुजूम का हुजूम काउंसलिंग या पापाजी के दर्शन के लिए उमड़ आता है.

religious conversion in punjab why pentecostal churches are growing ground report part three Photo India Today

इन मिनिस्ट्रजी के पास इतना पैसा कहां से आता है, इसकी कोई पक्की जानकारी कहीं नहीं.

पंजाब क्रिश्चियन्स यूनाइटेड फ्रंट के अध्यक्ष जॉर्ज सोनी के मुताबिक, वे भक्तों से ही काफी पैसे कमाते हैं.

यहां तक कि पास्टर के साथ कुछ मिनट बिताने से लेकर लंच के लिए कीमत देनी होती है. कुछ अपने तेल-साबुन भी बेचते हैं. तो कुछ के पास कथित तौर पर विदेशी चंदा आता है. कुछ मिनिस्ट्रीज पर यदा-कदा छापे भी पड़े लेकिन कुछ हासिल नहीं.

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क्या सूबे के लीडरों को इसकी भनक नहीं?

इसका जवाब तलाशते हुए हमने कई नेताओं से बात की, जो धर्म का दबदबा बनाए रखने पर काम कर रहे हैं.

दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी का बड़ा लक्ष्य पंजाब की डेमोग्राफी में हो रहे इस बदलाव को रोकना है.

इसके अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका कहते हैं- हमने पिछले एक साल में 1100 बंदों की घरवापसी कराई. स्कूल-कॉलेजों में हम अवेयरनेस कैंप भी लगा रहे हैं. दिल्ली की कमेटी तो भरसक ये काम कर रही है लेकिन असल जिम्मेदारी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की है. उसके कई सालों तक सुध नहीं ली तो मामले बढ़ते चले गए.

कालका मानते हैं कि इन बदले हुओं का दिखाई न देना बहुत बड़ी दिक्कत है. वे कहते हैं- अगर पगड़ियां उतरनी शुरू हो जाएं तो दिखने लगेगा. यही वजह है कि चर्च जानबूझकर उनकी सिख पहचान से छेड़छाड़ नहीं कर रहे. लेकिन आप ही सोचिए, जिनके घर से गुरु वाणी हट गई, उसका बच्चा सिख कैसे हो सकेगा! आइडेंटिफाई न हो सकना खतरनाक है. सरकार को इसके लिए स्पेशल पैकेज देना ताकि सिख अपने धर्म का प्रचार कर सकें.

आइडेंटिफाई न हो सकना बिल्कुल वैसा ही है, जैसे बिना लक्षण के किसी मर्ज का शरीर में .

पंथक बेल्ट तरनतारन में कई ऐसे अनुयायी सिख पहचान बनाए रखने को अलग-अलग तर्क देते हैं.

गोइंदवाल साहिब की मनप्रीत के ड्रॉइंगरूम में ही जीसस की तस्वीर टंकी हुई. साल 2022 में इस महिला ने परिवार समेत यीशु को मानना शुरू कर दिया. सिख पहचान की बात पर वे कहती हैं- जो परमेश्वर हैं, वे जीवन बदलते हैं, धर्म नहीं. हम यीशु को ही मानेंगे लेकिन सिख भी रहेंगे.

तो क्या आप गुरुपर्व मनाती हैं?

नहीं. हम गुरुओं की इज्जत करते हैं लेकिन ये भी सच है कि वहां रहते हमें वो भरोसा, वो आराम नहीं मिला, जो यहां मिल रहा है.

मनप्रीत जैसे कई चेहरे अलग-अलग तरीके से दोहराते हैं कि यीशु मन बदलते हैं, मजहब नहीं. ये अलग है कि वे कागजों के अलावा बाकी हर जगह मजहब भी बदल चुके.

खडूर साहिब के  खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल सिंह ने कुछ साल पहले जब अपनी मुहिम शुरू की थी, तो सिख युवाओं को पंथ में वापस लौटाना भी एक मुद्दा था.

अमृतपाल फिलहाल जेल में हैं. उनकी गैरमौजूदगी में कहीं ये मुद्दा कमजोर तो नहीं पड़ गया, ये जानने को हम उनके पिता तरसेम सिंह से मिले. वे फिलहाल सांसद की तरफ से लगभग सारा कामकाज संभाल रहे हैं.

तरसेम कहते हैं- धर्म परिवर्तन लोगों का व्यक्तिगत मामला है और इसमें कोई इश्यू नहीं होना चाहिए. हालांकि कन्वर्जन को गलत हथकंडे अपनाना, किसी को लालच देना, ये गलत है. कई ऐसी चीजें हो रही हैं. लोगों को बीमारी ठीक होने के नाम पर या दूसरे लालच देकर बदला जा रहा है.

अमृतपाल की मौजूदगी में चीजें ठीक होने लगी थीं. बहुत से सिख और हिंदू नौजवान धर्म से ज्यादा पक्की तौर पर जुड़ रहे थे, लेकिन शायद सरकार को ये पसंद नहीं आया और उसने अमृतपाल को जेल में डलवा दिया.

तरसेम सिंह और भी कई संस्थाओं को घेरते हैं, जैसे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी. बकौल तरसेम, कमेट की तरफ से उतना प्रचार नहीं हुआ, जिससे नौजवान भटकन में आ गए.

पंजाब का हाल कलई उतरे तांबे जैसा होने के पीछे कई वजहें हैं. मामले का कानूनी एंगल समझने को हमने एक्सपर्ट की राय ली.

सुप्रीम कोर्ट के वकील शशांक शेखर झा के अनुसार पंजाब क्या लगभग सारे देश में एक पूरा का पूरा क्रिश्चियन कन्वर्जन माफिया सक्रिय है.

वे कहते हैं- हमारे पास केंद्रीय कोई ऐसा कानून नहीं, जो लालच से धर्मांतरण पर रोक लगा सके. जैसे AIDS जैसी बीमारी को ठीक करना एक फेक क्लेम है. इस अंधविश्वास पर अगर कोई और बात करे तो उस पर रोक है, लेकिन इसी जाली दावे से पास्टर धर्म बदलें तो उस पर पाबंदी नहीं. कन्वर्जन के भी बहुत सारे तरीके हो चुके. फेथ हीलिंग के अलावा और कई तरह के लालच दिए जाते हैं.

कुछ राज्यों में इस पर कानून हैं, लेकिन सेंट्रल लेवल पर न होने का नुकसान हो रहा है.

ये खासकर पिछड़े वर्ग को टारगेट करते हैं. इसमें भी वे जोर देते हैं कि पहचान न छोड़ी जाए. इसका भी कारण है. अनुसूचित जाति (एससी) अगर धर्म बदल ले तो उसे आरक्षण नहीं मिल सकेगा. कन्वर्जन माफिया उन्हें लालच देता है कि वे ऊपरी तौर पर पहचान न बदले बगैर ईसाई धर्म का हिस्सा बन जाएं. इन्हें आजकल न्यू क्रिश्चियन कहा जा रहा है. ये कन्वर्ट भी हो चुके, और रिजर्वेशन भी पा रहे हैं.

नया धर्म अपना चुके लोग खुलकर आ सकें, इसके लिए एक मांग उठ रही है कि दलित क्रिश्चियन्स को भी आरक्षण मिले.

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक कमेटी बनाई हुई है जिसे रिपोर्ट को तीन साल दिये गए थे. वे बताएंगे कि धर्मांतरित मुस्लिम या ईसाई बन चुके लोगों को भी क्या दलित फायदा मिलता रहना चाहिए.

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