परमाणु भट्टियों का जाल बिछाने

Why India Behind Small Nuclear Reactor Global Leader Narendra Modi Donald Trump Deal
छोटी सी भट्ठी के पीछे क्यों पड़ा है भारत…क्या ग्लोबल लीडर बनने की है चाहत, मोदी-ट्रंप की डील से समझिए मायने
छोटे परमाणु रिएक्टर भारत के भविष्य की रीढ़ माने जा रहे हैं। खुद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बारे में बजट में संकेत दिया था। अब इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मुहर लगा दी है। जानते हैं-

क्या होते हैं स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर, जानिए
भारत की ऊर्जा जरूरतों के लिए ये जरूरी क्यों
भारत का 2047 तक मिशन क्या है, समझिए

नई दिल्ली: परमाणु रिएक्टर एक विशाल हाई तकनीक वाली चाय की केतली की तरह है। परमाणु संयंत्र पानी को गर्म करके भाप बनाने के लिए परमाणुओं को बांटते रहते हैं। भाप से बिजली पैदा करने के लिए टर्बाइन को घुमाया जाता है। भारत बढ़ती ऊर्जा डिमांड को पूरा करने और पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सक्रिय रूप से अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़ा रहा है। सरकार ने 2031-32 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को मौजूदा 8,180 मेगावॉट से बढ़ाकर 22,480 मेगावॉट करने के लिए कदम उठाए हैं। इस विस्तार में गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में कुल 8,000 मेगावॉट के दस रिएक्टरों का निर्माण और उसे चालू करना शामिल है। इसके अतिरिक्त 10 और रिएक्टरों के लिए पूर्व-परियोजना गतिविधियां शुरू हो गई हैं, जिन्हें 2031-32 तक पूरा करने की योजना है। इसके अलावा सरकार ने आंध्र प्रदेश राज्य में श्रीकाकुलम जिले के कोव्वाडा में अमेरिका के सहयोग से 6 x1208 मेगावॉट का परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस और अमेरिका के दौरे पर परमाणु ऊर्जा को लेकर सहयोग पर बात की है। जानते हैं-

छोटी भट्ठी में ऐसा क्या, जिसके लिए जोर लगा रहा भारत
भारत को परमाणु ऊर्जा में अग्रणी बनने की ज़रूरत है क्योंकि यह एक विश्वसनीय और पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा स्रोत है। दरअसल, भारत में बिजली का पांचवां सबसे बड़ा स्रोत परमाणु ऊर्जा है। यह देश के कुल बिजली उत्पादन में करीब 2-3% का योगदान देता है। एक तो यह यह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है और दूसरा यह रेगुलर इलेक्ट्रिसिटी की आपूर्ति करता है। यह भूमि और प्राकृतिक संसाधनों जैसे पर्यावरणीय सोर्स पर सबसे कम असर डालती है। यही वजह है छोटे परमाणु रिएक्टरों को परमाणु भट्ठी भी कहा जाता है, जो रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करते हैं।

क्या होते हैं भारत स्मॉल रिएक्टर, जो ला सकते हैं क्रांति
भारत लघु रिएक्टर(BSR) मूल रूप से कॉम्पैक्ट परमाणु रिएक्टर हैं , जिन्हें पारंपरिक बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की तुलना में छोटे पैमाने पर बिजली पैदा करने के लिए डिजाइन किया गया है। बीएसआर भारत की आजमाई हुई और परखी हुई 220 मेगावाट दबावयुक्त भारी पानी रिएक्टर (पीएचडब्ल्यूआर) प्रौद्योगिकी पर आधारित होंगे, जिनमें से 16 इकाइयां देश में पहले से ही चालू हैं। अब इसमें निजी क्षेत्र की भी भागीदारी होगी।

क्या होते हैं छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर, यहां जानिए
Small Modular Reactor (SMR) को छोटे परमाणु रिएक्टर या परमाणु भट्ठी कहा जाता है। इनसे अधिकतम 300 मेगावाट बिजली पैदा होती है। वे हर दिन 72 लाख किलोवॉट बिजली पैदा कर सकते हैं। तुलनात्मक रूप से बड़े आकार के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का उत्पादन 1,000 मेगावॉट से अधिक होता है और वे हर दिन 2.4 करोड़ किलोवॉट बिजली पैदा कर सकते हैं। एसएमआर का आकार लगभग 20 मेगावॉट से लेकर 300 मेगावॉट तक हो सकता है। तकनीक के आधार पर हल्के पानी, तरल धातु या पिघले हुए नमक सहित कई संभावित शीतलकों का इसमें इस्तेमाल किया जाता है।
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भारत को छोटे रिएक्टरों की जरूरत क्यों है
1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम में पहले परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति नहीं थी। इस कदम से भारत में परमाणु ऊर्जा के वित्तपोषण और विकास में तेजी के लिए नए रास्ते खुलने की उम्मीद है। दरअसल, बीएसआर पारंपरिक तौर पर बड़े पैमाने के परमाणु संयंत्रों की तुलना में कई फायदे देते हैं। वे साइटिंग के मामले में अधिक लचीले हैं, उन्हें तेजी से शुरू किए जा सकेंगे और इन पर लागत भी कम आती है। ये रिएक्टर दूरदराज के क्षेत्रों में बिजली उपलब्ध कराने या सीमेंट और इस्पात जैसे बड़े उद्योगों के लिए कैप्टिव पावर इकाइयों के रूप में काम करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी हो सकते हैं।
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भारत का 2047 तक क्या है लक्ष्य, कैसे होगा पूरा
बीते साल ही मोदी सरकार में मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा को यह जानकारी दी थी कि भारत का नेट जीरो ट्रांजिशन के लिए 2047 तक एक लाख मेगावाट परमाणु उर्जा क्षमता का लक्ष्य है। भारत की स्थापित परमाणु उर्जा क्षमता 2031- 32 तक तीन गुनी बढ़ जाएगी। 2031-32 तक वर्तमान स्थापित परमाणु उर्जा क्षमता 8,180 मेगावाट से बढ़कर 22,480 मेगावाट तक पहुंच जाएगी। वहीं, 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत के उर्जा क्षेत्र में बदलाव किया जाएगा। पिछले 10 साल के दौरान भारत की परमाणु उर्जा क्षमता 70 प्रतिशत बढ़ी है। यह 2013-14 के 4,780 मेगावाट से बढ़कर वर्तमान में 8,180 मेगावाट पर पहुंच गई। परमाणु उर्जा संयंत्रों से वार्षिक विद्युत उत्पादन भी 2013-14 के 34,228 मिलियन यूनिट से बढ़कर 2023-24 में 47,971 मिलियन यूनिट तक पहुंच गया है।

अभी देश में तैनात है 24 रिएक्टर, 10 और बनेंगे
देश में वर्तमान में 24 परमाणु उर्जा रिएक्टरों की कुल स्थापित परमाणु उर्जा क्षमता 8,180 मेगावाट है। लिखित उत्तर के अनुसार वर्तमान में भारतीय परमाणु उर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) की कुल 15,300 मेगावाट क्षमता के 21 परमाणु रिएक्टर अलग-अलग फेज में है। इसके अलावा (भारतीय नाभकीय विद्युत निगम लिमिटेड के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर सहित कुल 7,300 मेगावाट क्षमता के 9 रिएक्टर निर्माणाधीन हैं। 8,000 मेगावाट क्षमता के 12 रिएक्टर परियोजना पूर्व गतिविधियों के तहत हैं।

परमाणु दायित्व कानून में ढील देगा भारत!
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में न्यूक्लियर डील के लायबिलिटी क्लॉज यानी परमाणु दायित्व कानून में संशोधन करने का ऐलान किया था। दरअसल, जब कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो परमाणु दायित्व कानून के तहत भारत में विदेशी कंपनियों पर भारी जुर्माने का प्रावधान है। यह इतना ज्यादा है कि 14 सालों में कोई कंपनी भारत में निवेश कर ही नहीं पाई है। अब मोदी के अमेरिका दौरे पर इसकी राह आसान हुई है।

कितनी परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करना चाहता है भारत
दरअसल, भारत का लक्ष्य साल 2047 तक कम से कम 100 गीगावाट की परमाणु एनर्जी क्षमता हासिल करना है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है। परमाणु ऊर्जा से जुड़े बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है। जैसे ही भारत अपने परमाणु दायित्व कानून में संशोधन करेगा, इससे विदेशी कंपनियां आने लगेंगी, जो भारी भरकम जुर्माने के डर से निवेश के लिए डरती हैं।

सरकार इसीलिए बजट में दे रही है भर-भरकर पैसे
केंद्रीय बजट 2025-26 की एक प्रमुख विशेषता परमाणु ऊर्जा मिशन की शुरुआत है, जो लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) के अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) पर केंद्रित है। सरकार ने इस पहल के लिए 20,000 करोड़ रुपए निर्धारित किए हैं, जिसका लक्ष्य 2033 तक कम से कम 5 स्वदेशी रूप से डिजाइन और परिचालन एसएमआर विकसित करना है।

ग्लासगो शिखर सम्मेलन के मुताबिक बढ़ रहा भारत
भारत की यह पहल 2030 तक 500 गीगावॉट गैर जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा उत्पादन प्राप्त करने और 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% अक्षय ऊर्जा से पूरा करने की भारत की प्रतिबद्धता के अनुसार ही है। 2021 में ग्लासगो सीओपी 26 शिखर सम्मेलन में भी इसी पर सहमति बनी थी। बीएसआर के अलावा भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) बंद हो रहे कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को पुनर्जीवित करने और दूरदराज के स्थानों में बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) विकसित कर रहा है।
दिनेश मिश्र

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