पहलगाम हमले में पहचान के रखें सैकुलर तत्व,यही हैं fifth columist
Pahalgam Terror Attack Terrorists Target Killing Of Hindus In Jammu Kashmir Questions Raised On This Claim On Social Media
OPINION : पहलगाम में हिंदुओं को चुनकर नहीं मारा, सबूत कहां है… आतंकियों को ‘सेक्युलर’ बनाने वालों शर्म कर लो
पहलगाम हमले के बाद एक्स समेत कई सोशल मीडिया पर एक ग्रुप ने पीड़ित परिवार के दुखभरे बयानों पर सवाल खड़े किए। ऐसे लोगों का दावा है कि आतंकियों ने पर्यटकों की जान लेने से पहले किसी का धर्म नहीं पूछा। उन्होंने मीडिया में आए हमले के वीडियो में भी हिंदू-मुस्लिम वाली लाइन तलाशने की कोशिश की। उन्होंने दावा कि कुछ खास वर्ग के लोगों ने हिंदू पहचान का नैरेटिव गढ़ा है।
श्रीनगर: पहलगाम के आतंकी हमले के दौरान दहशतगर्दों ने सैलानियों को चुन-चुनकर मारा। बैसरन घाटी में घूम रहे हिंदूओं की पहचान के लिए आतंकियों ने कलमा पढ़ने को कहा। जो नहीं पढ़ पाए, आतंकियों की गोली के शिकार बने। रिपोर्टस के अनुसार, आतंकियों ने करीब 20 मर्दों के कपड़े भी उतरवाए और खतना चेक किया। वारदात के बाद हमले में बचे कई चश्मदीदों ने बताया कि M4 असॉल्ट राइफल और AK-47 से लैस आतंकियों ने पूछा था कि इनमें से कौन-कौन हिंदू है? इस आतंकी हमले की देश के हर तबके ने एकसुर में निंदा की। राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों ने भी धर्म पूछकर मारने को कायराना बताया। मगर सोशल मीडिया में एक तबका यह बताने में जुट गया कि आतंकियों ने मारने से पहले धर्म की बात नहीं की। उन्होंने इस कड़वे सच को प्रोपगैंडा साबित करने की कोशिश की, जो हैरान करने वाला रहा।
Pahalgam terror attack Hindus killed by terrorists
पहलगाम में हिंदुओं के टारगेट किलिंग पर सोशल मीडिया में क्या चल रहा है
इंडिया के मुसलमान भी नहीं संभाल पाए गुस्सा और..
पहलगाम आतंकी हमले के बाद सहमे चेहरे, सिसकती महिलाओं और डरे बच्चों की तस्वीर देखकर पूरा देश गम में डूब गया। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, हर आदमी ने इस घटना पर अपना आक्रोश जताया। राजनीतिक मतभेद के बाद भी बीजेपी के घोर विरोधी पार्टियां भी सरकार के साथ खड़ी हो गई। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने भी भरोसा दिया कि वे सरकार के हर एक्शन के साथ हैं। असदुद्दीन ओवैसी धर्म पूछकर गोली मारने वाले आतंकियों को ‘कुत्ता’ और ‘हरामXX’ कहने से नहीं हिचके। कश्मीर के राजनीतिक दल और अलगाव वादियों पार्टियों ने भी इस हमले के विरोध में तल्ख बयान दिए। मगर सोशल मीडिया में आतंकियों को ‘धर्मनिरपेक्ष’ साबित करने वाले बड़ी ही बेशरमी से सबूत मांगते रहे। कई महानुभाव ऐसे रहे, जिन्होंने इस जघन्य घटना को मोदी विरोध का सबसे सटीक मौका मान लिया।
सरकार की आलोचना हो सकती है मगर …
पहलगाम में 26 मौतों के बाद इंटेलिजेंस फेल्योर के लिए सरकार की आलोचना हो सकती है, मगर आतंकियों को ‘सेक्युलर’ होने का सर्टिफिकेट तो नहीं दिया जा सकता है। राहुल गांधी के बात से भी सभी सहमत होंगे कि आतंकियों ने इस वारदात से देश को धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश की है। इसका मुंहतोड़ जवाब एकजुट होकर दिया जा सकता है। मगर एक तथ्य के तौर पर इस सच को सिरे से नकारा नहीं जा सकता है। सोशल मीडिया में पाकिस्तान प्रेम दिखाने वालों का कहना है कि आतंकी बिना जाति-धर्म देखे जान लेते हैं। उनका अजब सवाल है कि 20-25 मिनट के फायरिंग के दौरान उन्हें धर्म जानने का वक्त कैसे मिला? अभी तक जो वीडियो सामने आए हैं, उसमें गोलीबारी के बाद लोग बदहवास ही नजर आए, आतंकियों के सवाल वाला विजुअल भी नहीं आया? अब उन्हें कौन समझाए कि पहलगाम के बैसरन में सैलानी घूम रहे थे, वह अपनों की मौत से पहले वीडियो शूट करने नहीं गए थे।
हिंदू पूछकर मारा, क्यों झूठ बोलेंगे मृतकों के परिजन
आतंकी हमले में मरने वालों के परिवार के बयानों पर जिन्हें भरोसा नहीं है, ऐसे लोगों को कैसे समझाया जा सकता है? मारे गए लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी क्यों झूठ बोलेगी? केरल के रामचंद्रन की पत्नी को झूठ बोलने से क्या मिलेगा? कोलकाता के बितान अधिकारी की पत्नी सोहिनी अपने पति को खोने के बाद हिंदू-मुस्लिम क्यों करेगी? सूरत के शैलेश भाई कलठिया के 9 साल के बेटे ने हमले की जो कहानी सुनाई, उससे किसका कलेजा नहीं फट जाएगा। हमले की तस्वीरें देखकर हर भारतीय गुस्से में है। लोग अपने गुस्से पर काबू रख रहे हैं, इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि सेक्युलर होने के प्रेशर में हम आतंकियों और पाकिस्तान को माफ कर दें। केंद्र सरकार को मरने वाले हर भारतीय के खून का हिसाब आतंकियों से लेना ही होगा। याद रखें, चंद जयचंदों के अलावा पूरा देश पक्ष-विपक्ष एकमत है।
कश्मीर में हिंदू विरोध से ही आतंकवाद ने उठाया था सिर
एक बात और याद रखें कि आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता। जब भारत सरकार और सुरक्षा एजेंसियां एक्शन लेगी तो उसमें धर्म नहीं तलाशे। जब आतंकवाद की जड़ों में कील कांटे ठोंके जाएंगे तो अपने सेक्युलर मन और विचार पर काबू रखें। जब कभी आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक जंग होगा, तब हमें याद रखना होगा कि यह कश्मीर और मुसलमान के खिलाफ नहीं होगा। 90 के दशक में आतंकवाद ने कश्मीर में हिंदुओं की हत्या के साथ ही अपना सिर उठाया था। आज भी लाखों कश्मीरी पंडित देश के कई हिस्सों में शरणार्थी हैं। आईएसआई और पाकिस्तानी सेना हमेशा धर्म के नाम पर ही युवाओं को बरगलाती रही है। जब पुलवामा हमला हुआ तो किसी ने धर्म की चर्चा नहीं की। अब पीड़ितों का परिवार ही सबूत है, आतंकियों को सेक्युलर साबित करने की कोशिश बेशर्मी ही मानी जाएगी।
विश्वनाथ सुमन
लेखक के बारे में
विश्वनाथ सुमन
प्रिंट और डिजिटल में 18 वर्षों का सफर। अमर उजाला, नवभारत टाइम्स ( प्रिंट), ईटीवी भारत के अनुभव के साथ