बाधक या साधक?अर्थव्यवस्था में क्या करते हैं वयोवृद्ध?
लेख: क्या इकॉनमी के लिए बोझ हैं बुजुर्ग
लेखक: दीपांकर गुप्ता
बुजुर्गों के प्रति भेदभाव को लेकर एक जोरदार अफवाह फैली हुई है। हमसे कहा जा रहा है कि बुजुर्ग लंबा जीने की जिद पाले हुए हैं। इससे उनकी संख्या इतनी ज्यादा हो गई है, जिसका बोझ युवा नहीं उठा सकते। यह बात न केवल आर्थिक रूप से गलत है, बल्कि इंसानों में पाई जाने वाली मौलिक विशेषता को भी कम करके आंकती है।
अनूठा है इंसान
हम इस चीज को अनदेखा कर देते हैं कि केवल हमारी प्रजाति में ही युवाओं पर बुजुर्ग हावी होते हैं। आनुवंशिक रूप से इंसानों के सबसे करीब silverback गोरिल्ला हैं। उनमें भी नेतृत्व को युवा प्रतिद्वंद्वियों के आगे झुकना पड़ता है। युवा ज्यादा मजबूत और समूह की मादाओं के लिए अधिक आकर्षक होते हैं। इस मामले में हम इंसान प्रकृति में अनूठे हैं। यहां बुजुर्गों की अधिक चलती है। अमेरिका में इस समय 75 बरस से अधिक उम्र के दो पुरुष धरती पर सबसे शक्तिशाली पद के लिए एक-दूसरे से भिड़ रहे हैं। कॉरपोरेट वर्ल्ड की बात की जाए तो वहां पके बालों वाले CEO ज्यादा विश्वसनीय माने जाते हैं।
इकॉनमी में योगदान
हमारे लिए उम्र सम्मान दिलाती है, अपमान नहीं जैसा कि गोरिल्लाओं में होता है। लेकिन, सवाल है कि रिटायरमेंट और कमजोर होते शरीर का क्या? इसका जवाब है कि उस समय भी बुजुर्ग योगदान देते रहते हैं। वे अर्थव्यवस्था को चलाते हैं। दवा उद्योग अपनी दवाएं बेचने के लिए बुजुर्गों पर निर्भर है। कुछ उदाहरण देख लीजिए, अमेरिका में हाइपरटेंशन की दवा lisinopril हर साल लगभग 9 करोड़ बार प्रिस्क्राइब की जाती है। इसी तरह से भारत में हर बरस करीब ढाई लाख घुटना प्रत्यारोपण होते हैं।
बुजुर्गों का बाजार
बुजुर्गों पर आधारित बाजार तेजी से बढ़ रहा है। एक अनुमान है कि अगले सात बरसों में यह मार्केट सालाना 6.2% बढ़ सकता है। भारत में इस तरह का बाजार अब भी एक नई चीज है, लेकिन 2030 तक इसके 12 बिलियन डॉलर का हो जाने की उम्मीद है। अगर मौजूदा स्थिति बनी रहती है, तो भारत में बुजुर्गों की खर्च करने की क्षमता 2050 तक एक ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी।
सरकार की मदद
बुजुर्ग आबादी अपने पेंशन फंड के जरिये भी इकॉनमी में योगदान देती है। इस फंड से सरकार को कम ब्याज दर पर लंबी अवधि में निवेश के लिए पैसा मिलता है। कई non-OECD देशों में पेंशन फंड की ग्रोथ ने GDP को भी पीछे छोड़ दिया है। कनाडा से लेकर युगांडा और भारत तक, ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां पेंशन फंड से देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर को डिवेलप करने में मदद की जा रही।
अमीर उपभोक्ता
दुनियाभर में बुजुर्ग सबसे अमीर आयु वर्ग हैं। साल 2020 में कुल उपभोक्ता वर्ग 3.9 बिलियन था। 2030 तक यह आंकड़ा बढ़कर 5.6 बिलियन हो जाएगा। उस वक्त तक 76% बुजुर्ग इस उपभोक्ता वर्ग में शामिल होंगे। किसी भी और कैटिगरी की तुलना में उनकी संख्या 11% अधिक होगी।
खर्च में आगे
बुजुर्गों की खर्च करने की शक्ति बहुत बड़ी है। अमेरिकन थिंकटैंक Brookings की एक रिपोर्ट कहती है कि 2020 में बुजुर्ग 8.7 ट्रिलियन डॉलर खर्च कर रहे थे। 2030 तक उनकी खर्च करने की क्षमता 15 ट्रिलियन डॉलर तक हो जाएगी। जापान में बूढ़ी होती आबादी को लेकर बहुत बातें की जाती हैं, लेकिन वहां खर्च में pensioners का योगदान 40% से ज्यादा है। 2002 से यह डेटा डबल हो चुका है।
सिल्वर इकॉनमी
अमेरिका में 1965 से पहले पैदा हुए लोग साल-दर-साल अपना खर्च बढ़ा रहे हैं। यही कारण है कि कुछ अमेरिकी silver economy को अपना गुप्त हथियार कहते हैं। यह इकॉनमी बुजुर्गों से जुड़े उत्पादों और सेवाओं की होती है। इसका इस्तेमाल तब किया जाता है, जब देश की अर्थव्यवस्था inflation, deflation और दूसरी आर्थिक दिक्कतों में घिर जाती है। कोविड के दौरान इस सिल्वर इकॉनमी ने कई देशों के लिए सिल्वर बुलेट का काम किया होगा और संकट से उबारने में मदद की होगी।
सरकारी प्रयास
वरिष्ठ नागरिकों की अंगुली पकड़कर डिजिटल हेल्थ मार्केट भी तेजी से बढ़ रहा है। भारत में साल 2027 तक स्वास्थ्य सेवाओं के 1.74 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशा है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने बुजुर्गों के लिए Senior Age Growth Engine या SAGE की शुरुआत की है। इसका काम है बुजुर्गों के लिए उपभोक्ता वस्तुओं को बढ़ावा देना।
परिवार में भूमिका
बुजुर्गों के कई दूसरे फायदे भी हैं, खासकर भारत में। यहां लगभग 48% परिवार संयुक्त हैं। इन परिवारों में वरिष्ठ नागरिक ऐसे तरीकों से योगदान करते हैं, जिन्हें पैसों से नहीं खरीदा जा सकता, लेकिन जिसकी कीमत बहुत बड़ी होती है। इसमें पोते-पोतियों का पालन-पोषण करना और घर को संभालना शामिल है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि भारत में हर बुजुर्ग घर के बच्चों को लोरियां ही सुना रहा है। यहां एक तिहाई वरिष्ठ नागरिक अब भी काम कर रहे हैं। उन्होंने अपने रिटायरमेंट को अनिश्चित तारीख तक टाल दिया है। हो सकता है कि उनकी रफ्तार कम हो, लेकिन अब भी वे दौड़ में बने हुए हैं।
युवाओं पर जिम्मेदारी
बूढ़े गोरिल्ला के विपरीत इंसान अधिक उम्र में भी अपना योगदान देते हैं। इसके बाद भी उन्हें प्रगति में बाधक माना जाता है। हां, वे उतना उत्पादन नहीं करते, लेकिन खपत से उसकी भरपाई कर देते हैं। अब यह युवाओं की जिम्मेदारी है कि वे आगे आएं और उत्पादन करें।
(लेखक समाजशास्त्री हैं)