भाजपा के पतन और इंडी के उभार का कारण बने मुसलमान

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उत्तर प्रदेश में सपा और बंगाल में TMC की ताकत के पीछे एक ही समुदाय- मुसलमान, जानें क्यों
लोकसभा चुनाव में इस बार क्षेत्रीय दल मजबूत हो कर उभरे हैं। समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, जदयू से लेकर टीडीपी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। यही वजह है कि इस बार सरकार गठन में क्षेत्रीय दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। अब सवाल उठता है कि सपा और बंगाल में टीएमसी की सफलता की वजह क्या है?
समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 37 सीटों पर हासिल की जीत
पश्चिम बंगाल में ममता की पार्टी ने 29 सीट के साथ दिखा दिया दम
दोनों दलों ने मुसलमानों को अपने पाले में करने में सफलता पाई

नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। इस बार लोकसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन ने उम्मीद से अधिक सफलता हासिल की है। इंडिया ब्लॉक की सफलता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मुसलमानों पर निर्भर रहा है। इस बार के चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने भाजपा के खिलाफ निर्णायक रूप से मतदान किया। इसके साथ ही पिछड़ी जातियों और दलितों के साथ गठबंधन बनाया। यही वजह है कि इस बार भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया। यूपी में समाजवादी पार्टी और पश्चिम बंगाल में टीएमसी को इसका साफतौर पर फायदा मिला।

आखिर क्यों हुए एकजुट?
एकेडमिक्स और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा पसमांदा (मुसलमानों में सबसे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े) के प्रति भाजपा की असफल पहुंच और चुनाव अभियान के दौरान मुस्लिम विरोधी बयानबाजी के मेल के कारण हुआ। हालांकि, पिछड़े-मुस्लिम गठबंधन को सक्षम करने वाला सबसे महत्वपूर्ण कारक भाजपा की घोषणा थी कि ओबीसी कोटे के भीतर मुस्लिम आरक्षण को हटा दिया जाएगा। जबकि भाजपा अभियान ‘विकसित भारत’ या विकास के एजेंडे के साथ शुरू हुआ। पहले चरण के तुरंत बाद नैरेटिव बिगड़ गया। अजीम प्रेमीजी विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री प्रोफेसर खालिद अनीस अंसारी ने प्रधानमंत्री   मोदी के पसमांदा आउटरीच को ‘दोहराव’ बताते हुए कहा कि एक भाषण में, वह पसमांदाओं के बारे में बोलते थे और फिर दूसरे भाषण में मुसलमानों को घुसपैठिया कहते थे।

मुसलमानों के खिलाफ बयानबाजी पड़ी भारी
मोदी ने टीएमसी पर ‘मुस्लिम वोट बैंक’ को खुश करने का आरोप लगाया। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि वे हिंदुओं की संपत्ति जब्त कर उसे मुसलमानों में बांट देंगे। उन्होंने कांग्रेस पर ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ करने का आरोप लगाया। भाजपा ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर यह कहने का भी आरोप लगाया कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। एक कोने में धकेल दिए जाने के बाद, मुसलमानों ने जीत की संभावना को ध्यान में रखते हुए रणनीतिक रूप से वोट करना चुना। सीएसडीएस के एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद ने कहा कि 2019 में, भाजपा को 6% मुस्लिम वोट मिले, जो अब काफी कम 1% हो गया है। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक पॉलिटिकल रिसर्चर असीम अली कहते हैं कि चुनाव में मुसलमानों के बीच पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों के लिए वोटों का सहज ट्रांसफर देखा गया। इसमें सपा और कांग्रेस के अधिकांश मुस्लिम उम्मीदवार उत्तर प्रदेश में जीते।
कांग्रेस उम्मीदवार रकीबुल हुसैन ने इस देश में सबसे अधिक वोटों से जीत दर्ज करने वाले दूसरे उम्मीदवार हैं। हसन ने AIUDF प्रत्याशी बदरुद्दीन अजमल को 10.01 लाख वोटों के अंतर से हराया।
सीधे मुकाबले में भारी पड़े मुस्लिम उम्मीदवार
लोकसभा चुनाव के सीधे मुकाबले में, रामपुर में सपा के मोहिबुल्लाह ने भाजपा के घनश्याम सिंह लोधी को हराया। जबकि कैराना से इकरा चौधरी और गाजीपुर से अफजल अंसारी ने भी जीत दर्ज की। पश्चिम बंगाल में, टीएमसी के यूसुफ पठान ने कांग्रेस के दिग्गज और पांच बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी को हराया। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट वामपंथियों और कांग्रेस की ओर और उत्तर प्रदेश  में बसपा की ओर नहीं बंटा, जैसा कि कुछ लोगों ने उम्मीद की थी। यह बात महत्वपूर्ण है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में कमी आई है। भाजपा ने केरल के मलप्पुरम से एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार अब्दुस सलाम को मैदान में उतारा था। वहीं, बिहार में उसकी सहयोगी जेडी(यू) ने दो उम्मीदवारों को टिकट दिया था। विपक्षी दलों में भी मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व कम हुआ है।

कोटा खत्म करने डर?
नागरिकता का सवाल और यह डर कि केरल, कर्नाटक और तेलंगाना में राज्य स्तर पर पहले से मौजूद मुस्लिम कोटा खत्म हो सकता है अगर भाजपा 400 सीटें जीतती है तो । मुस्लिम वोट मजबूत हो गए हैं। टीएमसी ने ओबीसी सर्टिफिकेट को खत्म करने के हाईकोर्ट के फैसले का काफी फायदा उठाया।

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