भारतीय अर्थव्यवस्था में संकट की पहेली, जवाब मिलेगा छह माह बाद

Indian Economy Puzzle Gdp Growth Fabulous Trouble At The Bottom Of The Pyramid
जीडीपी बढ़ रही लेकिन कम आय वालों को कोई फायदा नहीं, समझें क्यों है ये टेंशन वाली बात
भारतीय अर्थव्यवस्था में शानदार जीडीपी वृद्धि के बावजूद माइक्रोफाइनेंस संस्थानों और छोटे वित्तीय बैंकों में लोन डिफॉल्ट्स बढ़ रहे है। खासकर गरीब और छोटे व्यवसाय इससे प्रभावित हैं। आरबीआई नियमों में छूट से ये समस्याएं और बढ़ गई हैं। इस समय ग्रामीण क्षेत्र में भी संकट बढ़ता दिख रहा है।

मुख्य बिंदु

1-जीडीपी ग्रोथ शानदार,फिर बिक्री और क्रेडिट ग्रोथ सुस्त क्यों?
2-भारतीय अर्थव्यवस्था में दिख रही अजीब सी उलझन
3-पिरामिड के निचले हिस्से में उधार लेने वाले क्यों कर रहे डिफॉल्ट

भारतीय अर्थव्यवस्था में अजीब सी उलझन दिखती है। एक तरफ शानदार जीडीपी ग्रोथ,पिछले दो साल में ये 7.1 प्रतिशत और 8.2 प्रतिशत रही,और इस साल पहली तिमाही में 7.2 प्रतिशत पहुंच गई है। कई देशों की सुस्त स्थिति में यह बहुत बढ़िया है। दूसरी तरफ,कंज्यूमर गुड्स की बिक्री में मामूली बढ़ोतरी हुई है, और बैंक क्रेडिट ग्रोथ भी पहले से काफी कम है। सवाल ये है कि अगर जीडीपी ग्रोथ इतनी अच्छी है,तो बिक्री और क्रेडिट ग्रोथ सुस्त क्यों है?

भारतीय अर्थव्यवस्था में उलझन क्यों
इस उलझन के जवाब को हमें देश के गरीब वर्ग पर नजर डालनी होगी। सामान्य धारणा है कि जीडीपी में तेजी का सबसे ज्यादा लाभ गरीबों को होता है। लेकिन गरीबों और छोटे व्यवसायों को ऋण देने वाले माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (MFI) में  भारी गिरावट दिख रही है। MFI से बने छोटे वित्तीय बैंकों (SFB) के कर्ज में भी भारी चूक हो रही है।

जीडीपी वृद्धि बनाम एमएफआई संकट
माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में अग्रणी स्पंदना स्फूर्ति ने 2023-24 में 468 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड मुनाफा कमाया लेकिन इस जुलाई-सितंबर तिमाही में उसे 204 करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ। यह मुख्य रूप से कर्ज न चुका पाने से हुआ है। अच्छी तरह से प्रबंधित MFI क्रेडिट एक्सेस ग्रामीण का लाभ जुलाई-सितंबर तिमाही में आधा हो गया। शीर्ष SFB में से एक इक्विटास ने जुलाई-सितंबर में पिछली तिमाही की तुलना में लगभग 90% कम लाभ कमाया।

बड़े बैंकों को मिली राहत
बड़े बैंकों ने 2010 के दशक में फंसे कर्जे वापस पाकर छुटकारा पा लिया और अब वे कर्ज देने को तैयार हैं। वे गरीब वर्ग पर निर्भर नहीं हैं और उनके बड़े व्यावसायिक ग्राहक अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। फिर भी सबसे बड़े और सबसे अच्छे नॉन बैंक लेंडर बजाज फाइनेंस ने पिछली तिमाही में अपना प्रोविजन दोगुना कर दिया,जो ज्यादातर छोटे उधारकर्ताओं से था।

क्या ग्रामीण भारत संकट में है?
सवाल यह है कि गरीब लोग कर्ज क्यों नहीं चुका पा रहे? पिरामिड के निचले हिस्से के उधारकर्ता क्यों डिफॉल्ट कर रहे हैं? कुछ का कहना है कि इसकी वजह ग्रामीण संकट है,लेकिन ऐसा नहीं है। असली वजह छोटे लोन का ज्यादा वितरण है। 2022 में, RBI ने MFI क्षेत्र को काफी हद तक डी-रेग्युलेट कर दिया,ब्याज दर कैप समाप्त कर दिया। ब्याज दरों पर लगी सीमा हटा शर्त रखी थी कि मासिक भुगतान उधारकर्ता की आय के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो।

आरबीआई के कदम से सुधरेंगे हालात!
डी-रेगुलेशन से उत्साहित छोटे ऋणदाताओं ने अपर्याप्त जांच के साथ कर्ज बांटना शुरू कर दिया। उन्होंने बढ़े हुए जोखिम की भरपाई को ब्याज दरें भी बढ़ा दीं। पहले,ऋणदाताओं को उन उधारकर्ताओं से बचने को कहा जाता था जिनके पास पहले से ही तीन ऋण थे,लेकिन डी-रेगुलाइजेशन के उत्साह में,अलग-अलग, प्रतिस्पर्धी MFI से छह या छह से ज्यादा लोन के मामले भी सामने आए। परिणामस्वरूप, डिफॉल्ट बढ़ने लगे। RBI ने इस क्षेत्र को बिना किसी गारंटी के ऋण देने से रोकने को कहा,लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

RBI क्या घबराया हुआ है?
नियंत्रण मुक्त होने के बाद, MFI ने उम्मीद के मुताबिक, उधार दरों में वृद्धि की थी। लेकिन RBI ने अचानक चार MFI को अत्यधिक ब्याज दरों के लिए दंडित किया। क्या पहले उधार दरों पर लगी सीमा को हटाना और बाजार प्रतिस्पर्धा को परिणाम तय करने देना और फिर परिणामों की निंदा तर्कसंगत है? क्या यह कहना तर्कसंगत है कि 24 प्रतिशत उधार दर ठीक है लेकिन 26 प्रतिशत अत्यधिक है? RBI भ्रमित और घबराया हुआ लग रहा,शायद ऐसा राजनीतिक दबाव के कारण है।

क्यों बढ़ रहा डिफॉल्ट का खतरा?
इन सबसे ऊपर, पिछला वित्तीय वर्ष अल नीनो वर्ष था, जिसमें कम बारिश हुई थी। खाद्यान्न उत्पादन में मामूली गिरावट आई और कुल कृषि विकास दर पहले के औसत 4 प्रतिशत से गिरकर 1.8 प्रतिशत हो गई। इसका मतलब था कि ग्रामीण संकट बढ़ रहा था,ठीक उसी समय जब छोटे लोन में तेजी आ रही थी, परिणामस्वरूप डिफॉल्ट का खतरा बढ़ गया था।

क्या कोई और बुनियादी कारण है?
लेकिन क्या कोई और मौलिक कारण है? क्या ऐसा हो सकता है कि भारत का जीडीपी डेटा वास्तविक आर्थिक विकास को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा हो,जिससे निचले तबके को अनुचित तरीके से ऋण दिया जा रहा हो? पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन का लंबे समय से तर्क है कि भारत की आधिकारिक जीडीपी विकास दरें अन्य संकेतकों क्रेडिट ग्रोथ,बिजली उत्पादन,सामान्य वस्तुओं की खपत और निर्यात के अनुरूप नहीं हैं। अधिकांश अन्य अर्थशास्त्रियों ने सुब्रमण्यन का मत निरस्त कर दिया है,लेकिन नवीनतम माइक्रोफाइनेंस डेटा उनके तर्क को बल देगा।

पहली तिमाही में जीएसटी कलेक्शन ठीक रहा
निराशावादी अगस्त में एक अलग आर्थिक मंदी के संकेतों की ओर इशारा कर सकते हैं, जब औद्योगिक उत्पादन सूचकांक सिकुड़ गया था। सितंबर 2024 में विनिर्माण और सर्विस दोनों के लिए परचेंजिंग प्रोडक्शन इंडेक्श (PMI) धीमा हो गया। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में GST कलेक्शन ठीक रहा, लेकिन हाल ही में धीरे-धीरे बढ़ा है। सितंबर में सिर्फ 6.5 प्रतिशत और अक्टूबर में 8.9 प्रतिशत रहा, जो बजट में अनुमानित 10.5 प्रतिशत की जीडीपी ग्रोथ से धीमा है।

दूसरी छमाही में क्या रहेगा हाल?
दूसरी ओर, आशावादी लोग तर्क दे सकते हैं कि इस साल मानसून औसत से ऊपर रहा और अच्छी फसल से किसानों और मजदूरों को फायदा होगा। वे, विशेष रूप से MFI क्षेत्र में, आशा करते हैं कि ग्रामीण सुधार से उधारकर्ताओं की क्षमता में तेजी से वृद्धि होगी, जिससे निचले तबके की समस्या कम होगी। निश्चित रूप से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। इसका जवाब हमें वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में मिलेगा।
स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर

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