उत्तरांखड भूकानून अध्ययन एवं परीक्षण समिति की सिफारिशों पर हिप्र की छाप
Land Law Study And Examination Committee Submitted Report To CM Dhami
भू-कानून: अध्ययन और परीक्षण के लिए गठित समिति ने सीएम धामी को सौंपी रिपोर्ट, पढ़िए ये खास बातें
भू – कानून के लिए गठित समिति के सदस्यों ने सोमवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की। समिति की ओर से सीएम धामी को रिपोर्ट सौंपी गई, जिस पर मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि सरकार शीघ्र ही समिति की रिपोर्ट का गहन अध्ययन कर व्यापक जनहित व प्रदेश हित में समिति की संस्तुतियों पर विचार करेगी और भू – कानून में संशोधन करेगी।
सीएम पुष्कर सिंह धामी
राज्य में भू – कानून के अध्ययन व परीक्षण के लिए गठित समिति ने आज सोमवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। समिति ने प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित क्रय – विक्रय के बीच संतुलन स्थापित करते हुए अपनी 23 संस्तुतियां सरकार को दी हैं।
मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय में समिति के अध्यक्ष व प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार, समिति के सदस्य व बदरीनाथ – केदारनाथ मंदिर समिति के सदस्य अजेंद्र अजय, पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण ढौंडियाल व डी.एस.गर्व्याल और समिति के पदेन सदस्य सचिव के रूप में हाल तक सचिव राजस्व का कार्यभार संभाल रहे दीपेंद्र कुमार चौधरी ने मुख्यमंत्री से भेंट की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि सरकार शीघ्र ही समिति की रिपोर्ट का गहन अध्ययन कर व्यापक जनहित व प्रदेश हित में समिति की संस्तुतियों पर विचार करेगी और भू – कानून में संशोधन करेगी।
जुलाई 2021 में सीएम धामी ने उच्च स्तरीय समिति गठित की थी
सीएम धामी ने जुलाई 2021 मेंअगस्त माह में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। समिति को राज्य में औद्योगिक विकास कार्यों हेतु भूमि की आवश्यकता और राज्य में उपलब्ध भूमि के संरक्षण के मध्य संतुलन को ध्यान में रख कर विकास कार्य प्रभावित न हों, इसको दृष्टिगत रखते हुए विचार – विमर्श कर अपनी संस्तुति सरकार को सौंपनी थी।
सभी हितधारकों से सुझाव लेकर गहन विचार विमर्श कर 80 पृष्ठ में तैयार की रिपोर्ट
समिति ने राज्य के हितबद्ध पक्षकारों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार – विमर्श कर लगभग 80 पृष्ठों में अपनी रिपोर्ट तैयार की है। इसके अलावा समिति ने सभी जिलाधिकारियों से प्रदेश में अब तक दी गई भूमि क्रय की स्वीकृतियों का विवरण मांग कर उनका परीक्षण भी किया।
समिति की प्रमुख संस्तुतियां
वर्तमान में जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन के लिए कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है। कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि/औद्यानिक प्रयोजन न करके रिसोर्ट/ निजी बंगले बनाकर दुरुपयोग हो रहा है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग भूमिहीन हो रहें और रोजगार सृजन भी नहीं हो रहा है। समिति ने संस्तुति की है कि ऐसी अनुमतियां जिलाधिकारी स्तर से ना दी जाएं। शासन से ही अनुमति का प्रावधान हो।
वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों के लिए भूमि क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी द्वारा प्रदान की जा रही है। हिमाचल प्रदेश की भाँति ही ये अनुमतियां, शासन स्तर से न्यूनतम भूमि की आवश्यकता के आधार पर प्राप्त की जाएं।
वर्तमान में राज्य सरकार पर्वतीय एवं मैदानी में औद्योगिक प्रयोजनों, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान एवं विभिन्न प्रसंस्करण, पर्यटन, कृषि के लिए 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक संस्था/फर्म/ कम्पनी/ व्यक्ति को उसके आवेदन पर दे सकती है। उपरोक्त प्रचलित व्यवस्था को समाप्त करते हुए हिमाचल प्रदेश की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता के आधार पर दिया जाना उचित होगा।
केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त 4-5 सितारा होटल / रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट आदि को ही अनिवार्यता प्रमाणपत्र के आधार भूमि क्रय करने की अनुमति शासन स्तर से दी जाए। अन्य प्रयोजनों के लिए लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था लाने की समिति संस्तुति करती है।
वर्तमान में गैर कृषि प्रयोजन के लिए खरीदी गई भूमि को 10 दिन में एसडीएम धारा- 143 के अंतर्गत गैर कृषि घोषित करते हुए खतौनी में दर्ज करेगा। लेकिन क्रय अनुमति आदेश में दो वर्ष में भूमि का उपयोग निर्धारित प्रयोजन में करने की शर्त रहती है। यदि निर्धारित अवधि में उपयोग ना करने पर या किसी अन्य उपयोग में लाने/विक्रय करने पर राज्य सरकार में भूमि निहित की जाएगी, यह भी शर्त में उल्लेखित रहता है।
यदि 10 दिन में गैर कृषि प्रयोजन के लिए क्रय की गई कृषि भूमि को “गैर कृषि” घोषित कर दिया जाता है, तो फिर यह धारा-167 के अंतर्गत राज्य सरकार में (उल्लंघन की स्थिति में) निहित नहीं की जा सकती है। अतः नई उपधारा जोड़ते हुए उक्त भूमि को पुनः कृषि भूमि घोषित करना होगा। इसके बाद उसे राज्य सरकार में निहित किया जा सकता है।