मत:आपरेशन सिंदूर पर राहुल की उलटबांसियां

पाक‍िस्‍तान के खिलाफ युद्ध और सीजफायर को लेकर राहुल गांधी की बातों में विरोधाभास ही विरोधाभास 

राहुल गांधी की बातों से स्पष्ट नहीं होता कि वे भारत पाकिस्‍तान के खिलाफ निर्णायक लड़ाई चाहते हैं ,यानि क‍ि फुल वॉर. या फिर इस पर कायम रहना चाहते हैं क‍ि भारत पाक‍िस्‍तान पर किसी भी सूरत में हमला न करे. चाहे कितना भी व‍ीभत्‍स आतंकी हमला क्‍यों न हो. सिर्फ डॉजियर वाली पॉलिसी अपनाए, जैसी यूपीए सरकार के दौरान रही.

राहुल गांधी लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर बोलते हुए

संयम श्रीवास्तव
नई दिल्ली,30 जुलाई 2025,राहुल गांधी लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर भाषण देते हुए खुद के तर्कों में उलझ कर रह गए. पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध और सीजफायर को लेकर उन्होंने जो पॉइंट्स रखे उनमें स्पष्ट विरोधाभास दिखा.एक तरफ तो उन्हें आपत्ति है क‍ि युद्ध क्‍यों रोक दिया,वहीं दूसरी तरफ उन्हें इस बात भी आपत्ति है क‍ि आतंकी हमले एक्‍ट ऑफ वॉर क्‍यों मान लिया? जाहिर है कि राहुल गांधी या तो खुद नहीं समझ पा रहे कि दोनों बातों में क्या अंतर है या वे देश की जनता को समझा नहीं पा रहे हैं कि दोनों एक्शन एक साथ कैसे संभव है. परिणामत: कांग्रेस पार्टी के  साथ सामान्य जन उनकी बातें समझ नहीं पा रहा कि वो आखिर चाहते क्या हैं? विपक्ष को बड़ी मुश्किल से मोदी सरकार को घेरने का मौका मिला था वो भी उनकी दिशाहीन की भेंट चढ़ गया.

राहुल को युद्धविराम पर क्यों है आपत्ति

राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस पार्टी ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के समय से ही अपने भाषणों में,अपने बयानों में,अपने सोशल मीडिया अपडेट्स में ऑपरेशन सिंदूर की समय सीमा और तत्काल युद्धविराम पर सवाल उठाने शुरू कर दिये थे.राहुल कहते हैं कि रक्षा मंत्री ने बताया कि ऑपरेशन सुबह 1:05 बजे शुरू हुआ और 22 मिनट बाद,1:35 बजे,DGMO ने पाकिस्तान को सूचना दी कि हमने असैन्य ठिकानों को निशाना बनाया और एस्केलेशन नहीं चाहते हैं. यह आत्मसमर्पण है.

राहुल का तर्क है कि सरकार ने सेना को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं दी. सरकार को पूरा समय देना चाहिए था.जल्दबाजी में युद्धविराम कर लिया,जिससे ऑपरेशन की प्रभाव कम हो गया.राहुल गांधी अपनी बात के पक्ष में 1971 युद्ध का उदाहरण भी रखते हैं.राहुल कहते हैं कि जनरल सैम मानेक शॉ को इंदिरा गांधी ने पूरी स्वतंत्रता दी थी.राहुल की बातों से मतलब यही निकलता है कि सेना को पूरी छूट देनी चाहिए थी.जब तक पीओके सरकार कब्जा नहीं लेती, उसे युद्ध विराम नहीं करना चाहिए था. मतलब साफ था कि सरकार निर्णायक सैन्य कार्रवाई करे. वह पूर्ण युद्ध के पक्ष में थे. उनका कथन है कि शेर पिंजरे में नहीं रखा जा सकता और सेना को निर्बाध कार्रवाई की छूट मिलनी चाहिए थी. पर राहुल का यह बयान देखिए कैसे बदल जाता है. आइये आगे देखते हैं.

आतंकी हमले को ‘Act of War’ मानने पर आपत्ति

राहुल एक तरफ चाहते हैं कि भारतीय सेना को खुली छूट देनी चाहिए थी ताकि वो निर्णायक बढ़त हासिल करते पर ठीक दूसरी तरफ उनके और भी सवाल है. वो सवाल उठाते हैं कि पहलगाम आतंकी हमला सरकार ने युद्ध की कार्रवाई क्यों माना ? राहुल चाहते हैं कि सरकर को पहलगाम आतंकी हमले को युद्ध की तरह नहीं लेना चाहिए था. यानि जैसे यूपीए सरकार में भारत सरकार आतंकी हमलों के बाद डॉजियर पर डॉजियर भेजती थी उसी तरह मोदी सरकार को भी करना चाहिए. दरअसल राहुल का तर्क यह है कि भारतीय प्रतिक्रिया से पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर यह कहने का मौका मिलता है कि भारत ने युद्ध शुरू किया.

उनका तर्क था कि आतंकी हमले को आतंकवाद के दायरे में रखकर जवाब देना चाहिए था, न कि इसे युद्ध बता कर. इससे भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता है, और पाकिस्तान इसे कूटनीतिक रूप से भुना सकता है.  राहुल की बातें नैतिकता में सही हो सकती हैं. पर यह सभी जानते हैं कि कूटनीति नैतिकता आधारित नहीं होती. इसीलिए इसे कूटनीति कहा गया है. कूटनीति हमेशा अपने देश के लाभ को ध्यान में रखकर बनाई और क्रियान्वित की जाती है.

राहुल को समझना चाहिए कि यूपीए सरकार में भारत सरकार डोजियर पॉलिसी ही मानती थी . भारत को केवल हमदर्दी ही मिलती थी. दुनिया का कोई भी देश पाकिस्तान के आतंकी हमलों का जवाब देने सामने नहीं आया. भारत आतंकी हमलों के जवाब में पाकिस्तान को सबूत सौंपता रहा.

राहुल क्यों किसी एक नीति पर नहीं चल सके?

राहुल गांधी न खुलकर यह कह पा रहे हैं कि भारत सरकार को लंबा युद्ध करना चाहिए था. और न ही अपनी इस बात पर स्थिर रह पा रहे हैं कि उन्हें यूपीए सरकार की तरह डॉजियर पर डॉजियर सौंपने चाहिए थे.राहुल यह समझते हैं कि पूर्ण युद्ध की वकालत भारतीय जनता के बीच जोखिम है. यह न केवल कांग्रेस की पॉलिसी के खिलाफ है बल्कि देश के मूड के भी विपरीत है. इसके साथ ही लंबा युद्ध देश पर आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बढ़ा सकता था.

इसी तरह डॉजियर पॉलिसी का हश्र राहुल को पता ही है.यूपीए के दौरान 26/11 जैसे हमलों के बाद डॉजियर सौंपने का परिणाम क्या हुआ. पाकिस्तान का मन बढ़ता गया.जनता भी इसे कमजोर फैसला मानती है. 2025 में, सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट जैसे ऑपरेशनों ने जनता की अपेक्षायें बढ़ा दी हैं. राहुल यह भी जानते हैं कि उनके सपा और टीएमसी जैसे सहयोगी भी डॉजियर की बजाए आक्रामक रुख की मांग कर रहे थे.

कांग्रेस से शशि थरूर और मनीष तिवारी जैसे नेताओं को बोलने का मौका न मिलने भी राहुल अकेले भी पड़ गए. यही कारण रहा कि राहुल लोकसभा में क्या बोलना है इसे लेकर एक स्पष्ट नीति नहीं बना सके. राहुल का भाषण इस बार जिस तरह असंगठित और बिखरा हुआ दिखा उतना कभी भी नहीं रहता था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *