मत:राहुल-सोनिया को वोक चाहिए, नेहरुवाद नहीं

नेहरूवाद के स्थान पर ‘वोक’ ..

समाजशास्त्री हेस के अनुसार, वोक “‘राजनीतिक रूप से सही’ का विपरीत रूप है … इसका मतलब है सही माने जाने की चाहत, और यह चाहना कि हर कोई जान सके कि आप कितने सही हैं”। समाज पर वोक भावना के प्रभाव की विभिन्न दृष्टिकोणों से आलोचना की गई है। एक खर्चीले, वृह्द प्रचारतंत्र के माध्यम से एक काल्पनिक अन्याय को गढ़ा जाता है और बताया जाता है कि आप सोए हुए हैं। आप जागिए।
वोक, 1930 या उससे पहले से, अफ्रीकी अमेरिकियों को प्रभावित करने वाले सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के बारे में जागरूकता को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता है और यह सामान्य अमेरिकी अंग्रेजी शब्द ‘अवेक’ के लिए अफ्रीकी-अमेरिकी अंग्रेजी पर्याय से लिया गया है। इसका उपयोग अक्सर राजनीति में किया जाता है।
“वोक” शब्द का इस्तेमाल कई राष्ट्रपति पद के जीओपी उम्मीदवारों द्वारा किया गया है, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डेसेंटिस और विवेक रामास्वामी शामिल हैं, जिन्होंने “वोक इंक: इनसाइड कॉरपोरेट अमेरिकाज सोशल जस्टिस स्कैम” नामक पुस्तक लिखी है।

“हम वोक विचारधारा को अस्वीकार करते हैं,” डेसेंटिस ने अपने चुनाव 2022 की रात के भाषण में कहा। “हम कभी भी वोक एजेंडे के आगे नहीं झुकेंगे। लोग हमारी नीतियों के कारण यहाँ आए हैं।”

लगातार चुनावी हारों के बाद, काँग्रेस के नेता राहुल गाँधी अमरीकी डीप स्टेट के सम्पर्क में आये या कहें चरणों में आये। जार्ज सोरोस, ओपन सोसायटी फाउंडेशन, TIDE, क्लिंटन फाउंडेशन, ओबामा फाउंडेशन, बिल एंड मलिंडा गेट्स फाउंडेशन, ओरलैंस कम्बरलैंड कम्युनिटी रिसोर्स सेंटर (ओ.सी.सी.आर.एस) आदि आदि का मकड़जाल राहुल गाँधी के इर्दगिर्द आ गया।
यही से राहुल गाँधी के किरदार में जबरदस्त विरोधाभास दिखने लगा। जवाहरलाल नेहरू ने विदेशनीति में गुटनिरपेक्षता की बात की। राहुल गाँधी अमरीका के कदमों में … । ‘अमरीकी साम्राज्यवादी ताकत …’ नेहरूवाद का हदीस-वाक्य वाष्पित हो गया। जार्ज सोरोस के तन्त्र ने राहुल गाँधी को ‘वोक’ की दीक्षा दी। अमरीकी डीप स्टेट से जुड़े बिलियनर्स धनाढ्य समूह चीनी उद्योगपति जैक मा का विरोधी था और इस समूह ने उसे समाप्त कर दिया। वैसे ही है, राहुल की ज़बान से चला ‘अडानी अडानी’ का शोर। अडानी के कारण ही अत्याचार को स्थापित करने के सिद्धांत को ही ‘वोक’ कहते हैं। नेहरू के समाजवाद के स्थान पर ‘वोक’ की परिकल्पना को राहुल गाँधी ने अपनाया है।
डा. मनमोहन सिँह के खुले बाज़ारवादी दृष्टिकोण का राहुल गाँधी विरोधी हो गया है। क्योंकि वह डीप स्टेट की फंडिंग व वैचारिक कन्वर्जन की मदद से सत्ता चाहता है।
जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी जातिगत जनगणना के विरोधी रहे हैं। अमरीका का डीप स्टेट यूक्रेन, बंगलादेश, भारत जैसे कई देशों में सामाजिक द्वंद्व पर प्रयोग कर रहा है। यूक्रेन में स्थानीय बनाम रशियन द्वंद्व का लाभ लेकर एक कमेडियन ज़लेंसकी को सत्ता पर आसीन करवाया गया। ‘वोक’ की प्रेरणा से जातिगत जनगणना का एजेंडा राहुल गाँधी ने अपनाया है। मण्डल कमीशन की सिफारिशों के घोर विरोधी काँग्रेस अब जातिगत जनगणना करवाने की बात कर रही है।
बंगलादेश की निर्मिती इंदिरा सरकार के काल में हुई। काँग्रेस ने शेख मुजीबुर्रहमान का पक्ष लिया। जब शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या हुई और तख्ता पलट हुआ, तब उनकी शरणार्थी बेटी शेख हसीना को संरक्षण भारत की काँग्रेसनीत सरकार ने दिया। आज अमेरिका की बाइडेन सरकार, सीआईए, डोनाल्ड लू, जार्ज सोरोस सहित डीप स्टेट ने बंगलादेश में मोहम्मद यूनुस की कठपुतली सरकार स्थापित की। तब बंगलादेश में फंड देकर छात्रों व जिहादियों से अराजक स्थिति पैदा करवाई गई। चुनी हुई प्रधानमंत्री शेख हसीना को भाग कर भारत आना पड़ा। वोक समर्थक राहुल गाँधी मोहम्मद यूनुस के साथ खड़ा है और शेख हसीना के विरुद्ध खड़ा है। इंदिरा गाँधी की नीति को 180° से बदल दिया है राहुल ने।
हिन्दुओ से सम्पत्ति का अधिकार छीनने के लिए वोक के सिद्धांत ‘डिस्ट्रिब्यूशन ऑफ वेल्थ’ की बात की जाने लगी है।
इस्लामफोबिया वोक की थ्योरी का भाग है। धारा 370, वक्फ एक्ट, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के ख़िलाफ़ जार्ज सोरोस की ओपन सोसायटी फाउंडेशन, बाइडेन सरकार रही है। वोक का राहुल द्वारा अंधानुकरण किया गया। कश्मीर की नीति पर काँग्रेस चली अमरीका की चाल।
‘संविधान खतरे में है’ का नारा अमेरिका में डेमोक्रेट लगा रहे हैं, तो भारत में यही नारा राहुल गाँधी लगा रहे हैं। यह सब वोक की मेहरबानी है। जब संविधान कमेटी ने संविधान को संसद में रखने से पूर्व चर्चा प्रारंभ की, तो जवाहरलाल नेहरू इसके कई हिस्सों के आलोचक थे। संसद की मंजूरी के बाद नेहरू, इंदिरा, राजीव सरकारों ने संसद में संविधान में कई संशोधन करवाये। इन सबने विपक्ष की चुनी हुई सरकारें गिराई। धारा 370 समाप्ति के बाद से संविधान खतरे की बात राहुल गाँधी कह के लगे। भई, वोक की परिपाटी है।
चुनाव आयोग, न्याय-व्यवस्था, इंवेस्टिगेशन वाली एजेंसियाँ विशेषकर सीबीआई और ईडी, राज्यसभा व लोकसभा के स्पीकर पर सुनियोजित हमले राहुल गाँधी और उनके साथी कर रहे हैं। इन सब के लिए शक्ति ‘वोक’ आयातित है। ये सभी कार्य जवाहरलाल नेहरू ने नहीं किये थे।
अमरीकी हथियार कम्पनियों, फाइजर सरीखी सवाई कम्पनियों के कारण हर हथियार खरीद पर सियापा प्रायोजित है। कोरोना वैक्सीन हाय तौबा के पीछे अंकल सैम का सिस्टम है। राहुल गाँधी सिर्फ सेवाएं दे रहे हैं। नेहरूवाद इससे अलग था।
वोक, वास्तव में, भारत में लूट की एक खोज है। राहुल मात्र ‘साम्बा’ की भूमिका में हैं।
वोकिज्म की अवधारणा ने समकालीन समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरा प्रभाव डाला है, जिसमें लोकप्रिय संस्कृति, राजनीति और व्यवसाय शामिल हैं। जैसा कि हम इन जटिल मुद्दों पर आगे बढ़ते हैं, इस विचारधारा की ताकत और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करना आवश्यक है। जबकि वोकिज्म सामाजिक मुद्दों को दबाने के लिए एक तन्त्र प्रदान करता है, इसकी संभावित कमियों के बारे में जागरूक रहना और इसे आलोचनात्मक नज़र से देखना महत्वपूर्ण है। संक्षेप में, वोकिज्म चुनौतियों का एक जटिल और बहुआयामी सेट प्रस्तुत करता है जिसके लिए एक सूक्ष्म और आलोचनात्मक विश्लेषण की आवश्यकता होती है। समाज पर इसका प्रभाव दूरगामी है। इसकी सीमाओं पर विचारशील विचार की आवश्यकता है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, वोकिज्म द्वारा उठाए गए मुद्दों के बारे में खुली और ईमानदार बातचीत जारी रखना और इसके प्रभाव को पूरी तरह से समझने के लिए विविध दृष्टिकोण और सूचना के स्रोतों की तलाश करना आवश्यक है। ऐसा करके, हम अपने समाज के सामने आने वाली चुनौतियों का बेहतर ढंग से समाधान कर सकते हैं और अधिक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं।
• वोकिज्म की आलोचना इस बात के लिए की गई है कि यह मुक्त अभिव्यक्ति को दबाने, संस्कृति को रद्द करने और व्यक्तिगत योग्यता पर पहचान की राजनीति को बढ़ावा देने की कथित प्रवृत्ति है।

• वोकिज्म का समाज के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जिसमें लोकप्रिय संस्कृति, राजनीति और व्यवसाय शामिल हैं।

• वोक पूंजीवाद, जिसमें कंपनियां सामाजिक मुद्दों पर रुख अपनाने के लिए अपने ब्रांड का उपयोग करती हैं, वोकिज्म के बढ़ते प्रभाव के परिणामस्वरूप खतरनाक है।
राहुल गाँधी को वोक चाहिए, नेहरूवाद नहीं।

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