मत:सरकारी कर्मियों को संघ की छूट,ब्लंडर कि जरूरत?

सरकारी अधिकारियों के RSS के कार्यक्रमों में जाने की छूट का फैसला BJP का ब्लंडर है या जरूरत?
सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में जाने की छूट मिलने का कांग्रेस विरोध कर रही है. भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के इस आदेश का प्रभाव दूरगामी हो सकते हैं.
आरएसएस क्या नौकरशाही को प्रभावित कर सकेगी?
नई दिल्ली,22 जुलाई 2024,सरकारी कर्मचारी अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल हो सकेंगे. केंद्र सरकार ने आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर लगे प्रतिबंध को 58 साल बाद हटा लिया है. इस आदेश के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है. विपक्ष इस फैसले की जमकर आलोचना कर रहा है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट लिखकर इसका विरोध किया है. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस फैसले को वापस लेने की मांग की है. दरअसल आरएसएस भले ही राजनीतिक संगठन नहीं है पर उसकी विचारधारा और केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा में तालमेल है. माना जाता है आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी भले ही दो अलग संगठन हैं पर आपस में इस तरह गुंथे हुए हैं कि चाहकर भी अलग नहीं हो सकते हैं.

भारत में सिविल सर्विस को इस तरह डिजाइन किया गया है सरकारें आती जाती रहती हैं, सिविल सर्वेंट बना रहता है. पर जो भी दल सरकार बनाता है, सिविल सर्वेंट उसके प्रति जिम्मेदार होता है. इसीलिए सरकारी कर्मचारियों की गलतियों को मंत्री जिम्मेदार माने जाते है. रेल दुर्घटना में 2 लोगों की मौत हो गई तो तब के रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसे अपनी गलती मानते हुए रिजाइन कर दिया था. बाद में भी ऐसा ही चलता रहा. मतलब ब्यूरोक्रेसी के काम की जिम्मेदारी नेता लेते रहे हैं. यही कारण है कि ब्यूरोक्रेसी ने अच्छा काम किया तो श्रेय सरकार को मिलता है, और खराब काम करने का दोष भी सरकार पर ही होता है. शायद भारत में नौकरशाही को इसीलिए राजनीति से दूर रखा गया. पर अब इस आदेश के बाद आरएसएस के कार्यक्रमों में अधिकारियों की भागीदारी से ये स्पष्ट हो जाया करेगा कि अमुक अधिकारी की निष्ठा भाजपा के साथ है. यह परंपरा देश में नौकरशाही के भविष्य के लिए जहां घातक है, वहीं उम्मीद की किरण भी है.

भारतीय नौकरशाही शुरू से ही अमेरिकन लूट प्रणाली से प्रभावित रही है

अमेरिकी ब्यूरोक्रेसी में एक व्यवस्था है जिसमें जिस दल की सरकार बनती है उसे अपनी विचारधारा के लोगों को शासन के प्रमुख पदों पर बैठाने का अधिकार होता है. इसके चलते सत्ता मिलते ही राजनीतिक दल अपने लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाते हैं. कुल मिलाकर यह एक तरह से सरकारी पदों की लूट ही होती है. इसीलिए इस प्रणाली को लूट प्रणाली कहा जाता है. भारत में यह प्रणाली सैद्धांतिक रूप से लागू नहीं है पर व्यवहारिक तौर पर यहां भी लूट प्रणाली प्रचलित है. देश पर करीब 5 दशकों तक कांग्रेस शासन रहा तो जाहिर है कांग्रेस विचारधारा वाले ही केंद्र और राज्य सरकार के उपक्रमों में खास पदों पर बैठे हुए थे. यहां तक कि सरकार से रिलेटेड एजुकेशनल, कल्चरल, एकेडेमिक, आयोग, संस्थाओं पर भी कांग्रेस या लेफ्ट लोगों का कब्जा रहा है. 2014 के बाद इन सभी संस्थाओं में राइटिस्ट लोगों को शामिल करने की प्रक्रिया लगातार चल रही है. अब केंद्र सरकार की ओर से आया यह आदेश ब्यूरोक्रेसी के निचले लेवल तक पार्टी विचारधारा ले जाने की तैयारी है.

हालांकि देश का कानून सरकारी कर्मचारियों को किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने का विरोध करता है.सरकारी कर्मचारियों के मैनुअल में यह बात क्लीयर की गयी है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी राजनीतिक दल या किसी ऐसे संगठन का सदस्य नहीं होगा और न ही उससे अन्यथा संबद्ध होगा जो राजनीति में भाग लेता है और न ही वह किसी राजनीतिक आंदोलन या गतिविधि में भाग लेगा, सहायता के लिए चंदा देगा या किसी अन्य तरीके से सहायता करेगा.

भाजपा को क्यों ऐसी जरूरत पड़ी

सवाल उठ रहा है कि अचानक भाजपा नीत केंद्र सरकार को इस तरह का नोटिफिकेशन क्यों जारी करना पड़ा. आखिर पिछले 10 साल से भाजपा की सरकार है कभी इस तरह की न डिमांड की गई और न ही सरकार ने इस पर विचार किया. इसके पहले अटल बिहारी वाजपेयी की 2000 से 2004 तक भी भाजपा की केंद्र में सरकार थी उस समय भी कभी सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा प्रतिबंध हटाने के बारे में नहीं सोचा. फिर ऐसी क्या जल्दी मच गई? कहा जा रहा है कि पिछले दिनों आरएसएस के खास लोगों ने जैसे भाजपा को टार्गेट किया है उससे भाजपा अंदर ही अंदर बहुत परेशान है. हो सकता है कि आरएसएस से खटास और न बढ़े या पुराने जैसे रिश्ते स्थापित करने की यह सब कवायद हो.

पर एक बात और है जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी के लिए इस तरह का आदेश निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा होगा. उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावो में मिली भाजपा की करारी हार के बाद कारणों की समीक्षा में जो बात सामने आई है उसके अनुसार प्रदेश के कई हिस्सों में अधिकारियों ने पार्टी कार्यकर्ताओं की मदद नहीं की. लोकसभा चुनावों में कम सीट मिलने का यह कारण मामूली नहीं है. बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के बावजूद कई जिलों में भाजपा वोटर्स के नाम मतदाता सूची से काट दिए गए. प्रशासन के सरकार के साथ होने का फायदा अन्य कई तरह से सत्ताधारी पार्टियां उठाती रही हैं. यह कोई ढंकी छुपी बात नहीं है. भाजपा कार्यसमिति की बैठक में पार्टी नेताओं ने ही नहीं बल्कि सहयोगी दलों ने भी आरोप लगाया है कि चुनावों में अधिकारी विपक्ष की मदद कर रहे थे. निषाद पार्टी अध्यक्ष और प्रदेश सरकार में मंत्री संजय निषाद ने तो यहां तक कहा कि सरकार में बहुत से अधिकारी ऐसे हैं जिनकी निष्टा आज भी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की तरफ है.

कुल मिलाकर मतलब यही निकलता है कि प्रशासन में भाजपा के लोग बहुत कम हैं. इसलिए सरकार की कोशिश है कि यह संख्या बढ़ाई जाए चूंकि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी तरह की राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता और न ही राजनीतिक दल में शामिल हो सकता है इसलिए आरएसएस के नाम का सहारा लिया जा रहा है. क्योंकि आरएसएस एक सांस्कृतिक संगठन है.

खास पार्टी की नौकरशाही का मतलब भेदभाव वाला प्रशासन या कुशल प्रशासन

कांग्रेस नेता जयराम रमेश आशंका जताते हैं कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है. उनके कहने का मतलब है कि इस आदेश के चलते भारतीय नौकरशाही पर आरएसएस की विचारधारा वाले लोग हॉवी हो जाएंगे.

दरअसल इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार भी यही चाहती है. हर सरकार के अपने एजेंडे होते हैं, पब्लिक के प्रति उसकी जवाबदेही होती है, चुनावी घोषणापत्र में किए वादे होते हैं . जाहिर है कि इन्हें पूरा करने को सरकार को अपनी विचारधारा वाले लोग चाहिए. कांग्रेस की विचारधारा या लेफ्ट की विचारधारा वाला प्रशासक किस तरह भारतीय जनता पार्टी के विचार आगे बढ़ाने में सफल साबित होगा. दूसरी बात यह भी है कि सरकारी अधिकारियों का काम पहले कानून व्यवस्था तक ही सीमित था. अब सरकारी कर्मचारियों का काम केंद्र की नीतियों का क्रियान्वयन ज्यादा हो गया है. मोदी सरकार 2 टर्म तो पुरानी नौकरशाही से काम चला लिया पर शायद तीसरा टर्म में सरकार और तेजी से काम चाहती है . इसके लिए जरूरी है कि सरकार अपनी विचारधारा के लोग काम पर लगाए।

संयम श्रीवास्तव
TOPICS:नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
अब RSS के कार्यक्रमों में शामिल हो सकेंगे सरकारी कर्मचारी, मोदी सरकार ने पलटा 58 साल पुराना आदेश
RSS Activities by Govt Employees राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में अब सरकारी कर्मचारी भी भाग ले सकेंगे। केंद्र सरकार ने 58 साल पुराने प्रतिबंध को हटा लिया है। अब सरकारी कर्मी RSS की गतिविधियों में शामिल हो सकेंगे। बता दें कि फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था।

अब RSS के कार्यक्रमों में शामिल हो सकेंगे सरकारी कर्मचारी, मोदी सरकार ने पलटा 58 साल पुराना आदेश
गांधी की हत्या के बाद फरवरी 1948 में RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था
सरकारी कर्मचारी अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में शामिल हो सकेंगे। केंद्र सरकार ने आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर लगे प्रतिबंध को 58 साल बाद हटा दिया है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इस बारे में कोई बयान जारी नहीं किया गया है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस ने अपने एक्स पोस्ट में प्रतिबंध हटाए जाने का दावा किया है।

58 साल बाद हटा प्रतिबंध
बताते चलें कि हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्य सरकारें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस से जुड़े होने पर प्रतिबंध को पहले ही हटा चुकी हैं। 30 नवंबर 1966 में केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इंदिरा गांधी के शासन में लगाए गए प्रतिबंध को नौ जुलाई को एक आदेश से हटा दिया।

1948 में आरएसएस पर लगा था प्रतिबंध
भाजपा आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर कार्मिक मंत्रालय के आदेश का स्क्रीन शाट साझा करते हुए पोस्ट किया, 58 साल पहले, 1966 में जारी असंवैधानिक आदेश, जिसमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था, मोदी सरकार ने वापस ले लिया है।कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने पोस्ट किया, सरदार पटेल ने गांधी जी की हत्या के बाद फरवरी 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध हटा लिया गया था।

कांग्रेस ने साझा किया ये स्क्रीनशॉट
जयराम रमेश ने कहा कि 1966 में सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह सही भी था। नौ जुलाई 2024 को 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया, जो वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान भी लागू था। कांग्रेस नेता ने 30 नवंबर, 1966 के मूल आदेश का स्क्रीनशाट भी साझा किया, जिसमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी की गतिविधियों से जुड़ने पर प्रतिबंध लगाया गया था।

कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने आदेश का स्क्रीनशाट शेयर करते हुए कहा कि 58 साल पहले केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध लगाया था। मोदी सरकार ने उस आदेश को वापस ले लिया है।

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