मत: जेपीसी बन भी गई तो भाजपा का क्या बिगाड़ पायेगा विपक्ष?

Even If Jpc Is Formed, Will The Opposition Be Able To Put Bjp In The Dock On Adani Issue

Opinion: JPC बन भी जाए तो क्या अडानी के मुद्दे पर भाजपा को कठघरे में खड़ा कर पाएगा विपक्ष?

JPC Controversy: गौतम अडानी के मुद्दे पर विपक्ष लगातार जेपीसी की मांग रहा है। इस मुद्दे पर संसद का काम-काज भी ठप रहा। इस मुद्दे पर विपक्ष के 13 दल एकजुट हो गए। क्या होती है जेपीसी, क्या जेपीसी बन जाने से विपक्ष का मकसद हासिल हो जाएगा, कैसे बनती है जेपीसी, इन तमाम मुद्दों पर प्रकाश डालती रिपोर्ट।

हाइलाइट्स
जेपीसी की मांग पर 21 दिनों तक संसद में हंगामा
कार्यवाही बधित होने से 200 करोड़ रुपए की क्षति
जेपीसी बनती, तब भी दबदबा बीजेपी का ही रहता
70 साल के संसदीय इतिहास में 8 बार बनी जेपीसी

ओमप्रकाश अश्क, पटना:गौतम अडानी समूह की कंपनियों के कथित घपले उजागर करती अमेरिकी वित्तीय फर्म हिंडनबर्ग की जब से रिपोर्ट आई है, तभी से विपक्ष ने इसे नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ हाथ आया बड़ा हथियार मान लिया है। सड़क से लेकर संसद तक विपक्ष ने हंगामा किया। हंगामे का आलम यह रहा कि लगातार 21 दिनों तक संसद का बजट सत्र सुचारू रूप से नहीं चल पाया। अपनी गाढ़ी कमाई से सरकार को टैक्स देने वाले लोगों के 200 करोड़ रुपये संसद में हंगामे की भेंट चढ़ गए। संसद के पूरे सत्र के दौरान सिर्फ 6 बिल ही पास हो पाए। विपक्ष के 13 दल अडानी मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बनाने की मांग पर अड़े रहे। सरकार ने उनकी बातें अनसुनी कर दीं। सरकार के नुमाइंदे यह तर्क देते रहे कि जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट और सेबी के पास है तो अब और किसी जांच की जरूरत ही क्यों ? उन्होंने आरोप भी मढ़ दिया कि विपक्ष को न्याय व्यस्था पर भरोसा नहीं है। इस बीच मानहानि मामले में राहुल गांधी को दो साल की सजा हो गयी तो विपक्षी दलों का फोसस उधर शिफ्ट कर गया। अब तो एनसीपी नेता शरद पवार ने भी जेपीसी की मांग से खुद को अलग कर लिया है। उन्होंने कह दिया है कि जेपीसी की विपक्ष की मांग के साथ वे नहीं हैं, लेकिन विरोध भी नहीं करेंगें।

JPC की मांग क्यों अनसुनी कर दी है सरकार ने?

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के खुलासे को कांग्रेस सहित देश के 13 विपक्षी दलों ने देश का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया। सड़क से संसद तक इस पर हंगामा होता रहा। इन विपक्षी दलों ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से इस घोटाले की जांच की न सिर्फ मांग की, बल्कि इसके लिए बजट सत्र को चलने नहीं दिया। सरकार ने जेपीसी की मांग पर चुप्पी साध ली। वैसे सरकारी पक्ष के नेता यह जरूर तर्क देते रहे कि जब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट और सेबी कर ही रहे हैं तो जेपीसी की जरूत ही क्यों। सरकारी तर्क भी अपनी जगह ठीक ही लगा। देश के सर्वोच्च न्यायिक व्यस्था की कमान सुप्रीम कोर्ट के पास ही है। याद करें, इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सांसदी छीन ली थी। फिर तो जो हुआ, वह सबको मालूम है। इमरजेंसी लगी, बड़े-बड़े विपक्षी नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया। उनके साथ अपराधियों जैसे बर्ताव किए गए। और, अंततः 1977 में हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। बहरहाल, अडानी मामले में जेपीसी बनाने की विपक्ष की मांग सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और सेबी का हवाला देकर खारिज कर दी है।

क्या है जेपीसी, जिसकी मांग पर अड़ा है विपक्ष?

जिस जेपीसी के लिए विपक्ष आसमान सिर पर उठाए हुए है, आखिर यह होती क्या है। संसद अपने रेगुलर बिजनेस में ही उलझी रहती है। उसके पास बीसियों काम होते हैं। ऐसे में संसद कई कमेटियां बना कर कुछ काम उनके जिम्मे दे देता है। इन समितियों में संसद के सदस्य ही होते हैं। संसदीय समितियां भी दो तरह की होती हैं- स्थायी और एडहाक। स्थायी समितियों का कार्यकाल सदस्यों के कार्यकाल तक ही रहता है, लेकिन तदर्थ समिति जिस काम के लिए बनती है, उसका कार्यकाल काम पूरा होते ही समाप्त हो जाता है। इसका कार्यकाल महज तीन महीने का होता है। ऐसी ही तदर्थ समिति होती है जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति’।

आजाद भारत में अब तक 8 बार बन चुकी है जेपीसी
आजाद भारत के संसदीय इतिहास में अलग-अलग मामलों को लेकर अब तक 8 बार जेपीसी बनाई जा चुकी है। जेपीसी का अध्यक्ष सत्ताधारी पार्टी का सदस्य ही होता है। इतना ही नहीं, समिति में सदस्यों की संख्या भी विपक्षी पार्टियों के मुकाबले बहुमत वाले दल की अधिक होती है। जेपीसी को तीन महीने के अंदर जांच पूरी करनी होती है। फिर रिपोर्ट संसद में पेश की जाती है। जेपीसी बनाते वक्त यह ध्यान रखा जाता है कि लोकसभा के जितने सदस्य उसमें होंगे, उसकी आधी संख्या राज्यसभा सदस्यों की होगी। अब सवाल उठता है कि जेपीसी बन भी जाए तो क्या बीजेपी के मन में कोई खोट होगी तो वह उजागर हो पाएगी ? यह सवाल इसलिए कि जेपीसी में उसके सदस्य अधिक होंगे और अध्यक्ष भी उसी का होगा। जांच का नतीजा ऐसी स्थिति में क्या होगा, यह समझना कठिन नहीं।

कब और किन मुद्दों को लेकर पहले बनी है जेपीसी?
साल मुद्दा
1987 बोफोर्स तोप खरीद मामला
1992 सुरक्षा एवं बैंकिंग लेन-देन
2001 स्टाक मार्केट घोटाला
2003 सॉफ्ट ड्रिंक्स में मिलावट
2011 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला
2013 वीवीआईपी चॉपर खरीद
2015 भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास बिल
2016 एनआरसी के मुद्दे पर

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70 साल में 8 बार बनी जेपीसी, मोदी राज में 2
भारत के संसदीय इतिहास के 70 साल में किसी न किसी मामले को लेकर सरकार ने अब तक 8 बार जेपीसी का गठन किया है। इनमें 2 जेपीसी नरेंद्र मोदी के पहले ही कार्यकाल में बनी थीं। यह भी दिलचस्प है कि जिन सरकारों ने जेपीसी बनाई, उनमें 5 को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। 1987 में सबसे पहले राजीव गांधी सरकार ने बोफोर्स तोप सौदे के मामले में जेपीसी बनाई थी। 1989 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। पीवी नरिसंहराव ने 1992 में सुरक्षा व बैंकिंग ट्रांजैक्शन में अनियमितता के सवाल पर जेपीसी का गठन किया था। उसके बाद 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हो गई। मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में दो-दो बार जेपीसी के गठन का रिकार्ड है।

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