मनरेगा
मनरेगा में भ्रष्टाचार
मनरेगा में भ्रष्टाचार: एक अवलोकन
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा या MGNREGA) भारत की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना है, जो 2005 में शुरू हुई। इसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन का गारंटीड रोजगार देना है। हालांकि, योजना की शुरुआत से ही इसमें भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आती रही हैं। मुख्य रूप से फर्जी जॉब कार्ड, घोस्ट वर्कर्स (कागजी मजदूर), फर्जी मस्टर रोल, सामग्री की फर्जी खरीद और फंड की हेराफेरी जैसे मामले रिपोर्ट हुए हैं।
मुख्य प्रकार के भ्रष्टाचार
फर्जी जॉब कार्ड और घोस्ट वर्कर्स: मृत लोगों, बाहर रहने वालों या अमीरों के नाम पर जॉब कार्ड बनाकर पैसे निकाले जाते हैं। उदाहरण: उत्तर प्रदेश के देवरिया में मृतकों के नाम पर पैसे निकाले गए; चंदौली में 128 कागजी मजदूरों का मामला (2025)।
फर्जी हाजिरी और मस्टर रोल: काम न होने पर भी पुरानी फोटो अपलोड कर भुगतान। कई राज्यों में फर्जी वेंडर से सामग्री खरीद के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी।
अन्य अनियमितताएं: काम की गुणवत्ता खराब, अधूरे प्रोजेक्ट, कमीशनखोरी। 2024-25 में करीब 170-194 करोड़ रुपये के दुरुपयोग के मामले सामने आए।
विभिन्न राज्यों में उदाहरण (2024-2025)
उत्तर प्रदेश: देवरिया, आजमगढ़, संभल में करोड़ों के घोटाले; मुर्दों और जेल में बंद लोगों के नाम पर पैसे।
बिहार: कैमूर में 6 करोड़ का घोटाला (नदी सफाई के नाम पर); गढ़वा में 1.5 करोड़ की बंदरबांट।
महाराष्ट्र: वर्धा में 70 लाख, गोंदिया में आरोप (खारिज किए गए)।
गुजरात: दाहोद में 71 करोड़, भरूच में 7.3 करोड़ के स्कैम; मंत्री के बेटे गिरफ्तार।
झारखंड: पूजा सिंघल (IAS) जैसे बड़े मामले; खूंटी में 18 करोड़ का पुराना घोटाला।
पश्चिम बंगाल: बड़े पैमाने पर अनियमितताएं; केंद्र ने फंड रोके (2022 से), हाईकोर्ट ने 2025 में बहाली का आदेश दिया।
अन्य: हिमाचल, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि में भी मामले।
CAG की पुरानी रिपोर्ट्स (2013 तक) में बड़े अनियमितताएं मिलीं, जैसे अधूरे काम, फंड का दुरुपयोग। उसके बाद कोई व्यापक परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुआ।सरकार के उपाय भ्रष्टाचार रोकने के लिए सरकार ने पारदर्शिता बढ़ाने के कई कदम उठाए हैं:
आधार लिंक्ड पेमेंट और e-KYC: जॉब कार्ड को आधार से लिंक कर फर्जीवाड़ा रोका जा रहा; 2025 में अनिवार्य e-KYC।
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT): मजदूरी सीधे बैंक खाते में।
डिजिटल मॉनिटरिंग: जियो-टैगिंग, NMMS (मोबाइल से हाजिरी), रीयल-टाइम ट्रैकिंग।
सोशल ऑडिट: ग्राम सभा में ऑडिट अनिवार्य, लेकिन कई राज्यों में कमजोर।
हालांकि, रिकवरी रेट कम (केवल 12-14%) है, और कई मामलों में कार्रवाई धीमी।मनरेगा ने करोड़ों ग्रामीणों को रोजगार दिया, लेकिन भ्रष्टाचार से इसकी प्रभावशीलता कम हुई है। नई सुधारों से उम्मीद है कि पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन जमीनी स्तर पर सख्त निगरानी जरूरी है।
CAG रिपोर्ट्स का विस्तार
CAG रिपोर्ट्स में मनरेगा की अनियमितताओं का विस्तारकंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) ने मनरेगा (MGNREGA) पर समय-समय पर परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट्स जारी की हैं। ये रिपोर्ट्स योजना के क्रियान्वयन, फंड उपयोग, रोजगार सृजन और पारदर्शिता पर फोकस करती हैं। मुख्य रूप से पुरानी रिपोर्ट्स में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं मिलीं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर आखिरी व्यापक परफॉर्मेंस ऑडिट 2013 में हुई (अप्रैल 2007 से मार्च 2012 की अवधि कवर)। उसके बाद 2016 में केवल सोशल ऑडिट यूनिट्स पर फोकस था, और 2023-2025 तक कोई नई यूनियन-लेवल परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई। कुछ राज्यों में अलग-अलग रिपोर्ट्स आईं।मुख्य CAG रिपोर्ट्स और उनकी प्रमुख खामियां2013 की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013, मिनिस्ट्री ऑफ रूरल डेवलपमेंट):अवधि: अप्रैल 2007 से मार्च 2012।
प्रमुख निष्कर्ष:प्रति ग्रामीण परिवार रोजगार घटा: 2009-10 में 54 दिन से 2011-12 में 43 दिन।
गरीब राज्यों (बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश – जो ग्रामीण गरीबों का 46% हिस्सा) ने कुल फंड का केवल 20% उपयोग किया।
मॉनिटरिंग असंतोषजनक, फंड रिलीज में नियमों का उल्लंघन (मार्च 2011 में ₹1960 करोड़ बिना शर्तों के रिलीज)।
कई जगहों पर फर्जीवाड़ा, अधूरे काम, मस्टर रोल में हेराफेरी और देरी से भुगतान।
यह रिपोर्ट संसद में पेश हुई और बड़े सुधारों की सिफारिश की।
2016 की रिपोर्ट (सोशल ऑडिट पर):सोशल ऑडिट यूनिट्स (SAU) पर फोकस।
निष्कर्ष: 7 राज्यों में SAU नहीं बनीं, 8 में बनीं लेकिन काम नहीं कर रही थीं। रिसोर्स पर्सन्स की कमी।
सोशल ऑडिट अनिवार्य है, लेकिन क्रियान्वयन कमजोर।
राज्य-विशेष रिपोर्ट्स:पंजाब (2023 की रिपोर्ट): अप्रैल 2016 से मार्च 2021 की अवधि। योजना के उद्देश्यों में कमी, फंड उपयोग और रोजगार सृजन में अनियमितताएं।
अन्य पुरानी राज्य रिपोर्ट्स: कर्नाटका (2013: ₹650 करोड़ फ्रॉड संभावना), असम (2013: केवल 9% घरों को 100 दिन रोजगार), झारखंड आदि में फंड दुरुपयोग, फर्जी जॉब कार्ड।
मध्य प्रदेश, बिहार आदि में हालिया CAG रिपोर्ट्स में मनरेगा से जुड़ी गड़बड़ियां (जैसे गलत खातों में भुगतान) उजागर हुईं, लेकिन पूर्ण मनरेगा ऑडिट नहीं।
क्यों नहीं हुई नई राष्ट्रीय ऑडिट?2023 तक की रिपोर्ट्स के अनुसार, 2013 के बाद यूनियन लेवल पर कोई परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई (10 साल का गैप)।
कारण: CAG की प्राथमिकताएं अन्य मंत्रालयों पर, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह गंभीर सवाल उठाता है क्योंकि योजना में भ्रष्टाचार की शिकायतें जारी हैं।
राज्य स्तर पर सोशल ऑडिट और अन्य जांच होती रहती हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर की कमी से बड़े पैमाने की समीक्षा नहीं हो पाई।
वर्तमान स्थिति (2025 तक)हालिया वर्षों में CAG ने अन्य योजनाओं पर फोकस किया, लेकिन मनरेगा पर नई व्यापक रिपोर्ट नहीं।
हालांकि, अलग-अलग जांचों (FIR, सोशल ऑडिट) से अनियमितताएं सामने आ रही हैं, जैसे फर्जी भुगतान, घोस्ट वर्कर्स।
सरकार ने आधार लिंकिंग, DBT, जियो-टैगिंग जैसे उपाय किए, लेकिन रिकवरी रेट कम (12-15%) बना हुआ है।
CAG रिपोर्ट्स ने शुरुआती वर्षों में योजना की कमियों को उजागर कर सुधारों को बढ़ावा दिया, लेकिन लंबे गैप से पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। नई व्यापक ऑडिट की जरूरत महसूस की जा रही है, खासकर नई VB-G RAM G योजना के संदर्भ में।
CAG रिपोर्ट्स का विस्तार
CAG रिपोर्ट्स में मनरेगा की अनियमितताओं का विस्तारमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) पर CAG (कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया) की रिपोर्ट्स मुख्य रूप से 2013 की परफॉर्मेंस ऑडिट और 2016 की सोशल ऑडिट पर केंद्रित हैं। 2013 के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कोई व्यापक परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई है, जो पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।
blog.lukmaanias.com +1
हालांकि, राज्य स्तर पर कुछ ऑडिट रिपोर्ट्स आई हैं, जिनमें अनियमितताएं उजागर हुईं। नीचे प्रमुख रिपोर्ट्स का विस्तृत विवरण दिया गया है।1. 2013 की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013)यह CAG की सबसे व्यापक राष्ट्रीय रिपोर्ट है, जो अप्रैल 2007 से मार्च 2012 की अवधि को कवर करती है। रिपोर्ट में योजना के क्रियान्वयन, फंड उपयोग, रोजगार सृजन और मॉनिटरिंग में बड़े पैमाने पर कमियां पाई गईं।
accountabilityindia.in +1
मुख्य निष्कर्ष:रोजगार सृजन में कमी: ग्रामीण परिवारों को औसतन रोजगार 2009-10 में 54 दिन से घटकर 2011-12 में 43 दिन रह गया। गरीब राज्यों (बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश) में कुल फंड का केवल 20% उपयोग हुआ, जबकि इनमें ग्रामीण गरीबों का 46% हिस्सा है।
blog.lukmaanias.com
फंड मैनेजमेंट में अनियमितताएं: मार्च 2011 में ₹1,960 करोड़ बिना शर्तों के रिलीज किए गए। कई राज्यों में फंड का दुरुपयोग, जैसे फर्जी जॉब कार्ड और मस्टर रोल में हेराफेरी। उदाहरण: कर्नाटक में ₹650 करोड़ का फ्रॉड, जहां फर्जी काम दिखाकर पैसे निकाले गए।
thehindu.com
कार्यान्वयन मुद्दे: ग्राम रोजगार सहायक (GRS) पदों में कमी – उत्तर प्रदेश में 20% से पंजाब में 93% तक। अधूरे काम, सामग्री की फर्जी खरीद और देरी से भुगतान। उत्तर प्रदेश में 2011-12 में रोजगार में 14.5% की गिरावट।
downtoearth.org.in +1
मॉनिटरिंग की कमियां: MIS (मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम) में असंगतियां, जैसे हाजिरी और काम के रिकॉर्ड में अंतर। ग्राम सभाओं में कम भागीदारी।
भ्रष्टाचार और दुरुपयोग के उदाहरण: आंध्र प्रदेश में MIS रिपोर्ट्स में विसंगतियां, जहां IT प्रोवाइडर ने फर्जी डेटा स्वीकार किया।
cag.gov.in
कर्नाटक में तीन महीने तक मजदूरी भुगतान में देरी।
indiatogether.org
कुल मिलाकर, रिपोर्ट ने फर्जी कार्यों, फंड की हेराफेरी और कमजोर निगरानी पर जोर दिया।
सिफारिशें: बेहतर प्लानिंग, आधार-लिंक्ड पेमेंट, मजबूत मॉनिटरिंग और सोशल ऑडिट को अनिवार्य बनाना।
यह रिपोर्ट संसद में पेश की गई और सुधारों का आधार बनी, लेकिन 10 साल बाद भी नई राष्ट्रीय ऑडिट नहीं हुई।
m.thewire.in
2. 2016 की सोशल ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 8 ऑफ 2016)यह रिपोर्ट मनरेगा में सोशल ऑडिट यूनिट्स (SAU) के कामकाज पर फोकस करती है। सोशल ऑडिट पारदर्शिता बढ़ाने का मुख्य उपकरण है, लेकिन रिपोर्ट में इसकी कमजोरियां उजागर हुईं।
cag.gov.in +2
मुख्य निष्कर्ष:SAU की कमी: 7 राज्यों में SAU नहीं बनीं, 8 में बनीं लेकिन काम नहीं कर रही थीं। रिसोर्स पर्सन्स की कमी और ट्रेनिंग का अभाव।
ग्राम सभा में कमियां: ग्राम सभा बैठकें नहीं बुलाई गईं, कम भागीदारी, और योजना पर चर्चा नहीं हुई। गांववासियों की कम शामिली से अनियमितताएं छिपी रहीं।
अनियमितताएं: फर्जी रिकॉर्ड सत्यापन में असफलता, जैसे मजदूरी भुगतान में हेराफेरी। रिपोर्ट ने SAU को रूरल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट से अलग करने की सिफारिश की।
प्रभाव: ऑडिट से अनियमितताएं पकड़ी गईं, लेकिन डर से मजदूर शिकायत नहीं करते।
isec.ac.in +1
सिफारिशें: सोशल ऑडिट को मजबूत बनाना, CAG के साथ सहयोग, और Auditing Standards लागू करना (जो 2016 में जारी हुए)।
3. राज्य स्तर की हालिया रिपोर्ट्स (2020-2025)राष्ट्रीय ऑडिट की कमी के बावजूद, राज्य स्तर पर CAG ने मनरेगा से जुड़ी अनियमितताएं उजागर की हैं।
prsindia.org
कुछ उदाहरण:त्रिपुरा (2024): CAG रिपोर्ट में ₹10.7 करोड़ के उपयोग प्रमाणपत्र न देने पर अनियमितताएं पाई गईं। MGNREGA और TUEP में फंड दुरुपयोग।
northeasttoday.in
गुजरात (पुरानी लेकिन संदर्भित): बजट अनुमान दोषपूर्ण, लेबर बजट अवास्तविक। राज्य केंद्र से फंड से वंचित रहा।
cag.gov.in
अन्य राज्य: PRS इंडिया की 2024 रिपोर्ट में CAG ऑडिट्स से देरी से मजदूरी भुगतान, फंड कमी और मॉनिटरिंग मुद्दे उजागर।
prsindia.org
2025 में VB-G RAM G बिल में पुरानी CAG सिफारिशों को शामिल किया गया है।
drishtiias.com
वर्तमान स्थिति और चुनौतियां2025 तक, CAG की वेबसाइट पर कोई नई राष्ट्रीय मनरेगा ऑडिट नहीं है।
blog.lukmaanias.com
सरकार ने आंतरिक ऑडिट (225 जिलों में 2013-14 से) किए हैं, लेकिन CAG जैसी स्वतंत्र जांच की कमी है।
pib.gov.in
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भ्रष्टाचार बढ़ा है। नई योजना VB-G RAM G में CAG की पुरानी सिफारिशें जैसे डिजिटल ट्रैकिंग शामिल हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन जरूरी है।ये रिपोर्ट्स मनरेगा की क्षमता दिखाती हैं, लेकिन भ्रष्टाचार रोकने के लिए सख्त ऑडिट और पारदर्शिता बढ़ानी होगी।
मनरेगा पर CAG रिपोर्ट्स: विस्तृत विवरण
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा या MGNREGA) पर कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) की सबसे प्रमुख राष्ट्रीय स्तर की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट 2013 की है (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013, यूनियन गवर्नमेंट, मिनिस्ट्री ऑफ रूरल डेवलपमेंट)। यह रिपोर्ट अप्रैल 2007 से मार्च 2012 की अवधि को कवर करती है। उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर कोई व्यापक परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई है (2025 तक)। 2016 में केवल सोशल ऑडिट यूनिट्स पर फोकस था। राज्य स्तर पर कुछ रिपोर्ट्स आई हैं, लेकिन यूनियन लेवल पर 12 साल का गैप पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।1. 2013 की मुख्य परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013)यह CAG की दूसरी राष्ट्रीय परफॉर्मेंस ऑडिट है (पहली 2007-08 में हुई थी)। रिपोर्ट में योजना के क्रियान्वयन, फंड उपयोग, रोजगार सृजन और मॉनिटरिंग में गंभीर कमियां उजागर हुईं। मुख्य निष्कर्ष:रोजगार सृजन में गिरावट: प्रति ग्रामीण परिवार औसत रोजगार 2009-10 में 54 दिन से घटकर
47 web pages
मनरेगा CAG रिपोर्ट्स विस्तार से
मनरेगा पर CAG रिपोर्ट्स का विस्तृत विवरणमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा या MGNREGA) पर कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) की रिपोर्ट्स मुख्य रूप से योजना की प्रभावशीलता, फंड उपयोग, रोजगार सृजन, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार की जांच करती हैं। CAG की आखिरी राष्ट्रीय स्तर की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट 2013 में आई थी, जो 2007-2012 की अवधि को कवर करती है। उसके बाद 2016 में सोशल ऑडिट पर एक रिपोर्ट आई। 2013 के बाद से 2025 तक कोई नई यूनियन-लेवल परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई है, जो पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।
m.thewire.in +1
हालांकि, राज्य स्तर पर कुछ ऑडिट्स हुई हैं, और आंतरिक ऑडिट्स (जैसे 2013-14 से 225 जिलों में) जारी हैं।
pib.gov.in
नीचे प्रमुख रिपोर्ट्स का विस्तृत विवरण दिया गया है।1. 2013 की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013)यह CAG की सबसे व्यापक राष्ट्रीय रिपोर्ट है, जो अप्रैल 2007 से मार्च 2012 की अवधि को कवर करती है। रिपोर्ट में योजना के क्रियान्वयन, फंड उपयोग, रोजगार सृजन और मॉनिटरिंग में बड़े पैमाने पर कमियां पाई गईं।
cag.gov.in +2
ऑडिट 28 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों के 182 जिलों, 458 ब्लॉकों और 3,848 ग्राम पंचायतों में हुई। योजना की शुरुआत से दिसंबर 2012 तक कुल व्यय ₹1,92,322.33 करोड़ था।मुख्य निष्कर्ष और अनियमितताएं:रोजगार सृजन में कमी: ग्रामीण परिवारों को औसत रोजगार 2009-10 में 54 दिन से घटकर 2011-12 में 43 दिन रह गया। गरीब राज्यों (बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश – ग्रामीण गरीबों का 46%) में कुल फंड का केवल 20% उपयोग हुआ। रोजगार में कमी 2%-100% तक (उदाहरण: बिहार 27%-98%, गुजरात 2%-62%, झारखंड 40%-59%, मध्य प्रदेश 27%-94%, महाराष्ट्र 30%-100%, राजस्थान 13%-50%, तमिलनाडु 17%-59%)।
फंड प्रबंधन में अनियमितताएं: केंद्र से अतिरिक्त फंड जारी (₹2,374.86 करोड़ छह राज्यों को गलत गणना या अनस्पेंट बैलेंस के कारण)। 2010-11 में ₹6,733.25 करोड़ जारी जबकि ₹10,104.71 करोड़ अनस्पेंट था; 2011-12 में ₹2,440 करोड़ जारी जबकि ₹3,758.91 करोड़ अनस्पेंट। मार्च में अगले वर्ष के लिए ₹4,072.99 करोड़ अग्रिम जारी। राज्य हिस्से में कमी (₹456.55 करोड़) और देरी (354 दिनों तक)।
कार्यान्वयन मुद्दे: 1,201 ग्राम पंचायतों (11 राज्यों में 31%) में प्लान नहीं बने या अधूरे। 49 जिलों में लेबर बजट नहीं। 129.22 लाख कार्य स्वीकृत (₹1,26,961.11 करोड़), लेकिन केवल 30% पूरे (₹27,792.13 करोड़)। 4,907 कार्य (₹158.83 करोड़) प्लान के बाहर निष्पादित। 1,02,100 अनुमति-रहित कार्य (₹2,252.43 करोड़)। सामग्री लागत 40% सीमा से अधिक (₹1,594.37 करोड़ 12 राज्यों में)। अधूरे कार्यों पर ₹4,070.76 करोड़ व्यय।
मजदूरी और जॉब कार्ड मुद्दे: 12,455 परिवारों को जॉब कार्ड नहीं जारी (6 राज्यों में); 4.33 लाख कार्डों पर फोटो गायब (7 राज्यों में)। कम भुगतान (₹36.97 करोड़ 14 राज्यों में)। नकद भुगतान (55 ग्राम पंचायतों में नियमों का उल्लंघन)।
मानव संसाधन और क्षमता: ग्राम रोजगार सहायकों (GRS) में कमी (उत्तर प्रदेश 20%, पंजाब 93%; तमिलनाडु और केरल में कोई नहीं)। ट्रेनिंग फंड का कम उपयोग (उत्तर प्रदेश में 2010-11 के लिए 74%)।
रिकॉर्ड कीपिंग और मॉनिटरिंग: ग्राम पंचायत स्तर पर रिकॉर्ड में कमी (18%-54%)। 10 राज्यों में सोशल ऑडिट यूनिट नहीं बनीं। केंद्रीय मॉनिटरिंग असंतोषजनक।
लाभार्थी सर्वे (38,376 लाभार्थी): महिलाओं की भागीदारी 33% से कम (गुजरात, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम में <1/5)। जागरूकता कम (गुजरात 28%, ओडिशा 43%, बिहार 52%, महाराष्ट्र 57%)। काम की मांग के बाद औसत 9 दिन में काम, लेकिन 99% मामलों में 15 दिन से अधिक देरी पर बेरोजगारी भत्ता नहीं। मजदूरी में देरी (65% 15 दिनों में, 16% 1 महीने में)। तमिलनाडु में 98% नकद भुगतान।
भ्रष्टाचार के उदाहरण: फर्जी कार्य, मस्टर रोल में हेराफेरी, घोस्ट वर्कर्स, अनस्पेंट बैलेंस की अनदेखी से अधिक फंड जारी।
राज्य-विशेष उदाहरण: आंध्र प्रदेश में कोई ग्राम पंचायत प्लान नहीं; बिहार में कम जागरूकता (52%); गुजरात में कम महिलाएं; महाराष्ट्र में 100% तक कमी; तमिलनाडु में 98% नकद भुगतान।सिफारिशें: बेहतर प्लानिंग, आधार-लिंक्ड पेमेंट, मजबूत मॉनिटरिंग, सोशल ऑडिट अनिवार्य, और राज्य हिस्से की सख्ती।
jstor.org
2. 2016 की सोशल ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 8 ऑफ 2016)यह रिपोर्ट मनरेगा में सोशल ऑडिट यूनिट्स (SAU) और सोशल ऑडिट प्रक्रिया पर फोकस करती है, जो 2011 के नियमों के तहत पारदर्शिता के लिए अनिवार्य है। ऑडिट 2014-15 की अवधि को कवर करती है, जिसमें मंत्रालय, राज्य सरकारों, जिलों, ब्लॉकों और पंचायतों के रिकॉर्ड की जांच अप्रैल-अगस्त 2015 में हुई।
cag.gov.in +3
2012-15 में योजना पर ₹1,14,155 करोड़ व्यय हुआ।मुख्य निष्कर्ष और कमियां:सोशल ऑडिट यूनिट्स की कमी: 7 राज्यों में SAU नहीं बनीं, 8 में बनीं लेकिन काम नहीं कर रही थीं। रिसोर्स पर्सन्स की कमी, ट्रेनिंग का अभाव, और संसाधन आवंटन में मुद्दे।
प्लानिंग और निष्पादन में कमियां: सोशल ऑडिट की योजना और क्रियान्वयन में असंगतियां, कवरेज कम, और पद्धति में कमी। ग्राम सभा बैठकें नहीं बुलाई गईं, कम भागीदारी।
फॉलो-अप की कमी: ऑडिट निष्कर्षों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं, सुधार सीमित। फर्जी रिकॉर्ड सत्यापन में असफलता, मजदूरी भुगतान में हेराफेरी।
अनियमितताएं: SAU की कार्यक्षमता कम, ग्राम सभा में चर्चा नहीं, और डर से मजदूर शिकायत नहीं करते।
राज्य-विशेष मुद्दे: रिपोर्ट में सामान्य सिस्टमिक मुद्दे उजागर, लेकिन विशिष्ट राज्य उदाहरण नहीं दिए गए। हालांकि, 7 राज्यों में SAU अनुपस्थित और 8 में निष्क्रिय।आंकड़े: व्यय ₹1,14,155 करोड़ (2012-15)।सिफारिशें: SAU को मजबूत बनाना, CAG के साथ सहयोग, Auditing Standards लागू करना (2016 में जारी), सोशल ऑडिट को रूरल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट से अलग करना, और समुदाय-आधारित ऑडिट को बढ़ावा।
nirdpr.org.in
3. राज्य स्तर की रिपोर्ट्स (2013 से 2025 तक)पंजाब (2023): अप्रैल 2016 से मार्च 2021 की अवधि में योजना के उद्देश्यों में कमी, फंड उपयोग और रोजगार सृजन में अनियमितताएं।
cag.gov.in
त्रिपुरा (2024): ₹10.7 करोड़ के उपयोग प्रमाणपत्र न देने पर अनियमितताएं।
scribd.com
आंध्र प्रदेश (2013): सोशल ऑडिट में ग्राम सभा द्वारा हाफ-ईयरली ऑडिट में कमियां, जैसे SAU की स्थापना में कमी।
cag.gov.in
झारखंड (2013): फंड दुरुपयोग, फर्जी जॉब कार्ड।
saiindia.gov.in
अन्य: गुजरात में बजट अनुमान दोषपूर्ण; मध्य प्रदेश, असम आदि में अधूरे काम। 2023 में कुछ CAG ऑडिट में फंड वितरण में देरी उजागर, लेकिन राष्ट्रीय नहीं।
nirdpr.org.in +1
वर्तमान स्थिति (2025 तक)2025 तक कोई नई राष्ट्रीय परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं, लेकिन NITI Aayog की स्टडीज (2019-20 और जारी) में मनरेगा की प्रभावशीलता उजागर: ग्रामीण सुरक्षा, प्रवासन में कमी, संपत्ति निर्माण।
pib.gov.in
सोशल ऑडिट में सुधार (e-KYC, DBT, जियो-टैगिंग), लेकिन रिकवरी रेट कम। 2024-25 में 56% ग्राम पंचायतों में सोशल ऑडिट, लेकिन केवल 5% मुद्दे सुलझे।
CAG की कमी से भ्रष्टाचार पर निगरानी प्रभावित, लेकिन आंतरिक ऑडिट्स जारी। नई VB-G RAM G योजना में पुरानी सिफारिशें शामिल।
मनरेगा में भ्रष्टाचार
मनरेगा में भ्रष्टाचार: एक अवलोकनमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा या MGNREGA) भारत की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना है, जो 2005 में शुरू हुई। इसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन का गारंटीड रोजगार देना है। हालांकि, योजना की शुरुआत से ही इसमें भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आती रही हैं। मुख्य रूप से फर्जी जॉब कार्ड, घोस्ट वर्कर्स (कागजी मजदूर), फर्जी मस्टर रोल, सामग्री की फर्जी खरीद और फंड की हेराफेरी जैसे मामले रिपोर्ट हुए हैं।मुख्य प्रकार के भ्रष्टाचारफर्जी जॉब कार्ड और घोस्ट वर्कर्स: मृत लोगों, बाहर रहने वालों या अमीरों के नाम पर जॉब कार्ड बनाकर पैसे निकाले जाते हैं। उदाहरण: उत्तर प्रदेश के देवरिया में मृतकों के नाम पर पैसे निकाले गए; चंदौली में 128 कागजी मजदूरों का मामला (2025)।
फर्जी हाजिरी और मस्टर रोल: काम न होने पर भी पुरानी फोटो अपलोड कर भुगतान। कई राज्यों में फर्जी वेंडर से सामग्री खरीद के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी।
अन्य अनियमितताएं: काम की गुणवत्ता खराब, अधूरे प्रोजेक्ट, कमीशनखोरी। 2024-25 में करीब 170-194 करोड़ रुपये के दुरुपयोग के मामले सामने आए।
विभिन्न राज्यों में उदाहरण (2024-2025)उत्तर प्रदेश: देवरिया, आजमगढ़, संभल में करोड़ों के घोटाले; मुर्दों और जेल में बंद लोगों के नाम पर पैसे।
बिहार: कैमूर में 6 करोड़ का घोटाला (नदी सफाई के नाम पर); गढ़वा में 1.5 करोड़ की बंदरबांट।
महाराष्ट्र: वर्धा में 70 लाख, गोंदिया में आरोप (खारिज किए गए)।
गुजरात: दाहोद में 71 करोड़, भरूच में 7.3 करोड़ के स्कैम; मंत्री के बेटे गिरफ्तार।
झारखंड: पूजा सिंघल (IAS) जैसे बड़े मामले; खूंटी में 18 करोड़ का पुराना घोटाला।
पश्चिम बंगाल: बड़े पैमाने पर अनियमितताएं; केंद्र ने फंड रोके (2022 से), हाईकोर्ट ने 2025 में बहाली का आदेश दिया।
अन्य: हिमाचल, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि में भी मामले।
CAG की पुरानी रिपोर्ट्स (2013 तक) में बड़े अनियमितताएं मिलीं, जैसे अधूरे काम, फंड का दुरुपयोग। उसके बाद कोई व्यापक परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुआ।सरकार के उपाय भ्रष्टाचार रोकने के लिएसरकार ने पारदर्शिता बढ़ाने के कई कदम उठाए हैं:आधार लिंक्ड पेमेंट और e-KYC: जॉब कार्ड को आधार से लिंक कर फर्जीवाड़ा रोका जा रहा; 2025 में अनिवार्य e-KYC।
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT): मजदूरी सीधे बैंक खाते में।
डिजिटल मॉनिटरिंग: जियो-टैगिंग, NMMS (मोबाइल से हाजिरी), रीयल-टाइम ट्रैकिंग।
सोशल ऑडिट: ग्राम सभा में ऑडिट अनिवार्य, लेकिन कई राज्यों में कमजोर।
नई योजना (2025): मनरेगा की जगह विकसित भारत जी-राम-जी (VB-G RAM G) बिल पेश; इसमें ज्यादा पारदर्शिता, डिजिटल ट्रैकिंग और भ्रष्टाचार रोकने के प्रावधान। सत्ता पक्ष का दावा: पुरानी योजना भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई थी।
हालांकि, रिकवरी रेट कम (केवल 12-14%) है, और कई मामलों में कार्रवाई धीमी।मनरेगा ने करोड़ों ग्रामीणों को रोजगार दिया, लेकिन भ्रष्टाचार से इसकी प्रभावशीलता कम हुई है। नई सुधारों से उम्मीद है कि पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन जमीनी स्तर पर सख्त निगरानी जरूरी है।
CAG रिपोर्ट्स का विस्तार
CAG रिपोर्ट्स में मनरेगा की अनियमितताओं का विस्तारकंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) ने मनरेगा (MGNREGA) पर समय-समय पर परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट्स जारी की हैं। ये रिपोर्ट्स योजना के क्रियान्वयन, फंड उपयोग, रोजगार सृजन और पारदर्शिता पर फोकस करती हैं। मुख्य रूप से पुरानी रिपोर्ट्स में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं मिलीं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर आखिरी व्यापक परफॉर्मेंस ऑडिट 2013 में हुई (अप्रैल 2007 से मार्च 2012 की अवधि कवर)। उसके बाद 2016 में केवल सोशल ऑडिट यूनिट्स पर फोकस था, और 2023-2025 तक कोई नई यूनियन-लेवल परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई। कुछ राज्यों में अलग-अलग रिपोर्ट्स आईं।मुख्य CAG रिपोर्ट्स और उनकी प्रमुख खामियां2013 की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013, मिनिस्ट्री ऑफ रूरल डेवलपमेंट):अवधि: अप्रैल 2007 से मार्च 2012।
प्रमुख निष्कर्ष:प्रति ग्रामीण परिवार रोजगार घटा: 2009-10 में 54 दिन से 2011-12 में 43 दिन।
गरीब राज्यों (बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश – जो ग्रामीण गरीबों का 46% हिस्सा) ने कुल फंड का केवल 20% उपयोग किया।
मॉनिटरिंग असंतोषजनक, फंड रिलीज में नियमों का उल्लंघन (मार्च 2011 में ₹1960 करोड़ बिना शर्तों के रिलीज)।
कई जगहों पर फर्जीवाड़ा, अधूरे काम, मस्टर रोल में हेराफेरी और देरी से भुगतान।
यह रिपोर्ट संसद में पेश हुई और बड़े सुधारों की सिफारिश की।
2016 की रिपोर्ट (सोशल ऑडिट पर):सोशल ऑडिट यूनिट्स (SAU) पर फोकस।
निष्कर्ष: 7 राज्यों में SAU नहीं बनीं, 8 में बनीं लेकिन काम नहीं कर रही थीं। रिसोर्स पर्सन्स की कमी।
सोशल ऑडिट अनिवार्य है, लेकिन क्रियान्वयन कमजोर।
राज्य-विशेष रिपोर्ट्स:पंजाब (2023 की रिपोर्ट): अप्रैल 2016 से मार्च 2021 की अवधि। योजना के उद्देश्यों में कमी, फंड उपयोग और रोजगार सृजन में अनियमितताएं।
अन्य पुरानी राज्य रिपोर्ट्स: कर्नाटका (2013: ₹650 करोड़ फ्रॉड संभावना), असम (2013: केवल 9% घरों को 100 दिन रोजगार), झारखंड आदि में फंड दुरुपयोग, फर्जी जॉब कार्ड।
मध्य प्रदेश, बिहार आदि में हालिया CAG रिपोर्ट्स में मनरेगा से जुड़ी गड़बड़ियां (जैसे गलत खातों में भुगतान) उजागर हुईं, लेकिन पूर्ण मनरेगा ऑडिट नहीं।
क्यों नहीं हुई नई राष्ट्रीय ऑडिट?2023 तक की रिपोर्ट्स के अनुसार, 2013 के बाद यूनियन लेवल पर कोई परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई (10 साल का गैप)।
कारण: CAG की प्राथमिकताएं अन्य मंत्रालयों पर, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह गंभीर सवाल उठाता है क्योंकि योजना में भ्रष्टाचार की शिकायतें जारी हैं।
राज्य स्तर पर सोशल ऑडिट और अन्य जांच होती रहती हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर की कमी से बड़े पैमाने की समीक्षा नहीं हो पाई।
वर्तमान स्थिति (2025 तक)हालिया वर्षों में CAG ने अन्य योजनाओं पर फोकस किया, लेकिन मनरेगा पर नई व्यापक रिपोर्ट नहीं।
हालांकि, अलग-अलग जांचों (FIR, सोशल ऑडिट) से अनियमितताएं सामने आ रही हैं, जैसे फर्जी भुगतान, घोस्ट वर्कर्स।
सरकार ने आधार लिंकिंग, DBT, जियो-टैगिंग जैसे उपाय किए, लेकिन रिकवरी रेट कम (12-15%) बना हुआ है।
CAG रिपोर्ट्स ने शुरुआती वर्षों में योजना की कमियों को उजागर कर सुधारों को बढ़ावा दिया, लेकिन लंबे गैप से पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। नई व्यापक ऑडिट की जरूरत महसूस की जा रही है, खासकर नई VB-G RAM G योजना के संदर्भ में।
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CAG रिपोर्ट्स का विस्तार
CAG रिपोर्ट्स में मनरेगा की अनियमितताओं का विस्तारमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) पर CAG (कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया) की रिपोर्ट्स मुख्य रूप से 2013 की परफॉर्मेंस ऑडिट और 2016 की सोशल ऑडिट पर केंद्रित हैं। 2013 के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कोई व्यापक परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई है, जो पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।
blog.lukmaanias.com +1
हालांकि, राज्य स्तर पर कुछ ऑडिट रिपोर्ट्स आई हैं, जिनमें अनियमितताएं उजागर हुईं। नीचे प्रमुख रिपोर्ट्स का विस्तृत विवरण दिया गया है।1. 2013 की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013)यह CAG की सबसे व्यापक राष्ट्रीय रिपोर्ट है, जो अप्रैल 2007 से मार्च 2012 की अवधि को कवर करती है। रिपोर्ट में योजना के क्रियान्वयन, फंड उपयोग, रोजगार सृजन और मॉनिटरिंग में बड़े पैमाने पर कमियां पाई गईं।
accountabilityindia.in +1
मुख्य निष्कर्ष:रोजगार सृजन में कमी: ग्रामीण परिवारों को औसतन रोजगार 2009-10 में 54 दिन से घटकर 2011-12 में 43 दिन रह गया। गरीब राज्यों (बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश) में कुल फंड का केवल 20% उपयोग हुआ, जबकि इनमें ग्रामीण गरीबों का 46% हिस्सा है।
blog.lukmaanias.com
फंड मैनेजमेंट में अनियमितताएं: मार्च 2011 में ₹1,960 करोड़ बिना शर्तों के रिलीज किए गए। कई राज्यों में फंड का दुरुपयोग, जैसे फर्जी जॉब कार्ड और मस्टर रोल में हेराफेरी। उदाहरण: कर्नाटक में ₹650 करोड़ का फ्रॉड, जहां फर्जी काम दिखाकर पैसे निकाले गए।
thehindu.com
कार्यान्वयन मुद्दे: ग्राम रोजगार सहायक (GRS) पदों में कमी – उत्तर प्रदेश में 20% से पंजाब में 93% तक। अधूरे काम, सामग्री की फर्जी खरीद और देरी से भुगतान। उत्तर प्रदेश में 2011-12 में रोजगार में 14.5% की गिरावट।
downtoearth.org.in +1
मॉनिटरिंग की कमियां: MIS (मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम) में असंगतियां, जैसे हाजिरी और काम के रिकॉर्ड में अंतर। ग्राम सभाओं में कम भागीदारी।
भ्रष्टाचार और दुरुपयोग के उदाहरण: आंध्र प्रदेश में MIS रिपोर्ट्स में विसंगतियां, जहां IT प्रोवाइडर ने फर्जी डेटा स्वीकार किया।
cag.gov.in
कर्नाटक में तीन महीने तक मजदूरी भुगतान में देरी।
indiatogether.org
कुल मिलाकर, रिपोर्ट ने फर्जी कार्यों, फंड की हेराफेरी और कमजोर निगरानी पर जोर दिया।
सिफारिशें: बेहतर प्लानिंग, आधार-लिंक्ड पेमेंट, मजबूत मॉनिटरिंग और सोशल ऑडिट को अनिवार्य बनाना।
यह रिपोर्ट संसद में पेश की गई और सुधारों का आधार बनी, लेकिन 10 साल बाद भी नई राष्ट्रीय ऑडिट नहीं हुई।
m.thewire.in
2. 2016 की सोशल ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 8 ऑफ 2016)यह रिपोर्ट मनरेगा में सोशल ऑडिट यूनिट्स (SAU) के कामकाज पर फोकस करती है। सोशल ऑडिट पारदर्शिता बढ़ाने का मुख्य उपकरण है, लेकिन रिपोर्ट में इसकी कमजोरियां उजागर हुईं।
cag.gov.in +2
मुख्य निष्कर्ष:SAU की कमी: 7 राज्यों में SAU नहीं बनीं, 8 में बनीं लेकिन काम नहीं कर रही थीं। रिसोर्स पर्सन्स की कमी और ट्रेनिंग का अभाव।
ग्राम सभा में कमियां: ग्राम सभा बैठकें नहीं बुलाई गईं, कम भागीदारी, और योजना पर चर्चा नहीं हुई। गांववासियों की कम शामिली से अनियमितताएं छिपी रहीं।
अनियमितताएं: फर्जी रिकॉर्ड सत्यापन में असफलता, जैसे मजदूरी भुगतान में हेराफेरी। रिपोर्ट ने SAU को रूरल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट से अलग करने की सिफारिश की।
प्रभाव: ऑडिट से अनियमितताएं पकड़ी गईं, लेकिन डर से मजदूर शिकायत नहीं करते।
isec.ac.in +1
सिफारिशें: सोशल ऑडिट को मजबूत बनाना, CAG के साथ सहयोग, और Auditing Standards लागू करना (जो 2016 में जारी हुए)।
3. राज्य स्तर की हालिया रिपोर्ट्स (2020-2025)राष्ट्रीय ऑडिट की कमी के बावजूद, राज्य स्तर पर CAG ने मनरेगा से जुड़ी अनियमितताएं उजागर की हैं।
prsindia.org
कुछ उदाहरण:त्रिपुरा (2024): CAG रिपोर्ट में ₹10.7 करोड़ के उपयोग प्रमाणपत्र न देने पर अनियमितताएं पाई गईं। MGNREGA और TUEP में फंड दुरुपयोग।
northeasttoday.in
गुजरात (पुरानी लेकिन संदर्भित): बजट अनुमान दोषपूर्ण, लेबर बजट अवास्तविक। राज्य केंद्र से फंड से वंचित रहा।
cag.gov.in
अन्य राज्य: PRS इंडिया की 2024 रिपोर्ट में CAG ऑडिट्स से देरी से मजदूरी भुगतान, फंड कमी और मॉनिटरिंग मुद्दे उजागर।
prsindia.org
2025 में VB-G RAM G बिल में पुरानी CAG सिफारिशों को शामिल किया गया है।
drishtiias.com
वर्तमान स्थिति और चुनौतियां2025 तक, CAG की वेबसाइट पर कोई नई राष्ट्रीय मनरेगा ऑडिट नहीं है।
blog.lukmaanias.com
सरकार ने आंतरिक ऑडिट (225 जिलों में 2013-14 से) किए हैं, लेकिन CAG जैसी स्वतंत्र जांच की कमी है।
pib.gov.in
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भ्रष्टाचार बढ़ा है। नई योजना VB-G RAM G में CAG की पुरानी सिफारिशें जैसे डिजिटल ट्रैकिंग शामिल हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन जरूरी है।ये रिपोर्ट्स मनरेगा की क्षमता दिखाती हैं, लेकिन भ्रष्टाचार रोकने के लिए सख्त ऑडिट और पारदर्शिता बढ़ानी होगी।
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मनरेगा CAG रिपोर्ट्स विस्तार से
मनरेगा पर CAG रिपोर्ट्स: विस्तृत विवरणमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा या MGNREGA) पर कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) की सबसे प्रमुख राष्ट्रीय स्तर की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट 2013 की है (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013, यूनियन गवर्नमेंट, मिनिस्ट्री ऑफ रूरल डेवलपमेंट)। यह रिपोर्ट अप्रैल 2007 से मार्च 2012 की अवधि को कवर करती है। उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर कोई व्यापक परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई है (2025 तक)। 2016 में केवल सोशल ऑडिट यूनिट्स पर फोकस था। राज्य स्तर पर कुछ रिपोर्ट्स आई हैं, लेकिन यूनियन लेवल पर 12 साल का गैप पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।1. 2013 की मुख्य परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013)यह CAG की दूसरी राष्ट्रीय परफॉर्मेंस ऑडिट है (पहली 2007-08 में हुई थी)। रिपोर्ट में योजना के क्रियान्वयन, फंड उपयोग, रोजगार सृजन और मॉनिटरिंग में गंभीर कमियां उजागर हुईं। मुख्य निष्कर्ष:रोजगार सृजन में गिरावट: प्रति ग्रामीण परिवार औसत रोजगार 2009-10 में 54 दिन से घटकर
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मनरेगा CAG रिपोर्ट्स विस्तार से
मनरेगा पर CAG रिपोर्ट्स का विस्तृत विवरणमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा या MGNREGA) पर कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) की रिपोर्ट्स मुख्य रूप से योजना की प्रभावशीलता, फंड उपयोग, रोजगार सृजन, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार की जांच करती हैं। CAG की आखिरी राष्ट्रीय स्तर की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट 2013 में आई थी, जो 2007-2012 की अवधि को कवर करती है। उसके बाद 2016 में सोशल ऑडिट पर एक रिपोर्ट आई। 2013 के बाद से 2025 तक कोई नई यूनियन-लेवल परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं हुई है, जो पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।
m.thewire.in +1
हालांकि, राज्य स्तर पर कुछ ऑडिट्स हुई हैं, और आंतरिक ऑडिट्स (जैसे 2013-14 से 225 जिलों में) जारी हैं।
pib.gov.in
नीचे प्रमुख रिपोर्ट्स का विस्तृत विवरण दिया गया है।1. 2013 की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 6 ऑफ 2013)यह CAG की सबसे व्यापक राष्ट्रीय रिपोर्ट है, जो अप्रैल 2007 से मार्च 2012 की अवधि को कवर करती है। रिपोर्ट में योजना के क्रियान्वयन, फंड उपयोग, रोजगार सृजन और मॉनिटरिंग में बड़े पैमाने पर कमियां पाई गईं।
cag.gov.in +2
ऑडिट 28 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों के 182 जिलों, 458 ब्लॉकों और 3,848 ग्राम पंचायतों में हुई। योजना की शुरुआत से दिसंबर 2012 तक कुल व्यय ₹1,92,322.33 करोड़ था।मुख्य निष्कर्ष और अनियमितताएं:रोजगार सृजन में कमी: ग्रामीण परिवारों को औसत रोजगार 2009-10 में 54 दिन से घटकर 2011-12 में 43 दिन रह गया। गरीब राज्यों (बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश – ग्रामीण गरीबों का 46%) में कुल फंड का केवल 20% उपयोग हुआ। रोजगार में कमी 2%-100% तक (उदाहरण: बिहार 27%-98%, गुजरात 2%-62%, झारखंड 40%-59%, मध्य प्रदेश 27%-94%, महाराष्ट्र 30%-100%, राजस्थान 13%-50%, तमिलनाडु 17%-59%)।
फंड प्रबंधन में अनियमितताएं: केंद्र से अतिरिक्त फंड जारी (₹2,374.86 करोड़ छह राज्यों को गलत गणना या अनस्पेंट बैलेंस के कारण)। 2010-11 में ₹6,733.25 करोड़ जारी जबकि ₹10,104.71 करोड़ अनस्पेंट था; 2011-12 में ₹2,440 करोड़ जारी जबकि ₹3,758.91 करोड़ अनस्पेंट। मार्च में अगले वर्ष के लिए ₹4,072.99 करोड़ अग्रिम जारी। राज्य हिस्से में कमी (₹456.55 करोड़) और देरी (354 दिनों तक)।
कार्यान्वयन मुद्दे: 1,201 ग्राम पंचायतों (11 राज्यों में 31%) में प्लान नहीं बने या अधूरे। 49 जिलों में लेबर बजट नहीं। 129.22 लाख कार्य स्वीकृत (₹1,26,961.11 करोड़), लेकिन केवल 30% पूरे (₹27,792.13 करोड़)। 4,907 कार्य (₹158.83 करोड़) प्लान के बाहर निष्पादित। 1,02,100 अनुमति-रहित कार्य (₹2,252.43 करोड़)। सामग्री लागत 40% सीमा से अधिक (₹1,594.37 करोड़ 12 राज्यों में)। अधूरे कार्यों पर ₹4,070.76 करोड़ व्यय।
मजदूरी और जॉब कार्ड मुद्दे: 12,455 परिवारों को जॉब कार्ड नहीं जारी (6 राज्यों में); 4.33 लाख कार्डों पर फोटो गायब (7 राज्यों में)। कम भुगतान (₹36.97 करोड़ 14 राज्यों में)। नकद भुगतान (55 ग्राम पंचायतों में नियमों का उल्लंघन)।
मानव संसाधन और क्षमता: ग्राम रोजगार सहायकों (GRS) में कमी (उत्तर प्रदेश 20%, पंजाब 93%; तमिलनाडु और केरल में कोई नहीं)। ट्रेनिंग फंड का कम उपयोग (उत्तर प्रदेश में 2010-11 के लिए 74%)।
रिकॉर्ड कीपिंग और मॉनिटरिंग: ग्राम पंचायत स्तर पर रिकॉर्ड में कमी (18%-54%)। 10 राज्यों में सोशल ऑडिट यूनिट नहीं बनीं। केंद्रीय मॉनिटरिंग असंतोषजनक।
लाभार्थी सर्वे (38,376 लाभार्थी): महिलाओं की भागीदारी 33% से कम (गुजरात, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम में <1/5)। जागरूकता कम (गुजरात 28%, ओडिशा 43%, बिहार 52%, महाराष्ट्र 57%)। काम की मांग के बाद औसत 9 दिन में काम, लेकिन 99% मामलों में 15 दिन से अधिक देरी पर बेरोजगारी भत्ता नहीं। मजदूरी में देरी (65% 15 दिनों में, 16% 1 महीने में)। तमिलनाडु में 98% नकद भुगतान।
भ्रष्टाचार के उदाहरण: फर्जी कार्य, मस्टर रोल में हेराफेरी, घोस्ट वर्कर्स, अनस्पेंट बैलेंस की अनदेखी से अधिक फंड जारी।
राज्य-विशेष उदाहरण: आंध्र प्रदेश में कोई ग्राम पंचायत प्लान नहीं; बिहार में कम जागरूकता (52%); गुजरात में कम महिलाएं; महाराष्ट्र में 100% तक कमी; तमिलनाडु में 98% नकद भुगतान।सिफारिशें: बेहतर प्लानिंग, आधार-लिंक्ड पेमेंट, मजबूत मॉनिटरिंग, सोशल ऑडिट अनिवार्य, और राज्य हिस्से की सख्ती।
jstor.org
2. 2016 की सोशल ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट नंबर 8 ऑफ 2016)यह रिपोर्ट मनरेगा में सोशल ऑडिट यूनिट्स (SAU) और सोशल ऑडिट प्रक्रिया पर फोकस करती है, जो 2011 के नियमों के तहत पारदर्शिता के लिए अनिवार्य है। ऑडिट 2014-15 की अवधि को कवर करती है, जिसमें मंत्रालय, राज्य सरकारों, जिलों, ब्लॉकों और पंचायतों के रिकॉर्ड की जांच अप्रैल-अगस्त 2015 में हुई।
cag.gov.in +3
2012-15 में योजना पर ₹1,14,155 करोड़ व्यय हुआ।मुख्य निष्कर्ष और कमियां:सोशल ऑडिट यूनिट्स की कमी: 7 राज्यों में SAU नहीं बनीं, 8 में बनीं लेकिन काम नहीं कर रही थीं। रिसोर्स पर्सन्स की कमी, ट्रेनिंग का अभाव, और संसाधन आवंटन में मुद्दे।
प्लानिंग और निष्पादन में कमियां: सोशल ऑडिट की योजना और क्रियान्वयन में असंगतियां, कवरेज कम, और पद्धति में कमी। ग्राम सभा बैठकें नहीं बुलाई गईं, कम भागीदारी।
फॉलो-अप की कमी: ऑडिट निष्कर्षों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं, सुधार सीमित। फर्जी रिकॉर्ड सत्यापन में असफलता, मजदूरी भुगतान में हेराफेरी।
अनियमितताएं: SAU की कार्यक्षमता कम, ग्राम सभा में चर्चा नहीं, और डर से मजदूर शिकायत नहीं करते।
राज्य-विशेष मुद्दे: रिपोर्ट में सामान्य सिस्टमिक मुद्दे उजागर, लेकिन विशिष्ट राज्य उदाहरण नहीं दिए गए। हालांकि, 7 राज्यों में SAU अनुपस्थित और 8 में निष्क्रिय।
आंकड़े: व्यय ₹1,14,155 करोड़ (2012-15)।
सिफारिशें: SAU को मजबूत बनाना, CAG के साथ सहयोग, Auditing Standards लागू करना (2016 में जारी), सोशल ऑडिट को रूरल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट से अलग करना, और समुदाय-आधारित ऑडिट को बढ़ावा।
nirdpr.org.in
3. राज्य स्तर की रिपोर्ट्स (2013 से 2025 तक)
पंजाब (2023): अप्रैल 2016 से मार्च 2021 की अवधि में योजना के उद्देश्यों में कमी, फंड उपयोग और रोजगार सृजन में अनियमितताएं।
cag.gov.in
त्रिपुरा (2024): ₹10.7 करोड़ के उपयोग प्रमाणपत्र न देने पर अनियमितताएं।
scribd.com
आंध्र प्रदेश (2013): सोशल ऑडिट में ग्राम सभा द्वारा हाफ-ईयरली ऑडिट में कमियां, जैसे SAU की स्थापना में कमी।
cag.gov.in
झारखंड (2013) : फंड दुरुपयोग, फर्जी जॉब कार्ड।
saiindia.gov.in
अन्य: गुजरात में बजट अनुमान दोषपूर्ण; मध्य प्रदेश, असम आदि में अधूरे काम। 2023 में कुछ CAG ऑडिट में फंड वितरण में देरी उजागर, लेकिन राष्ट्रीय नहीं।
nirdpr.org.in +1
वर्तमान स्थिति (2025 तक) 2025 तक कोई नई राष्ट्रीय परफॉर्मेंस ऑडिट नहीं, लेकिन NITI Aayog की स्टडीज (2019-20 और जारी) में मनरेगा की प्रभावशीलता उजागर: ग्रामीण सुरक्षा, प्रवासन में कमी, संपत्ति निर्माण।
pib.gov.in
सोशल ऑडिट में सुधार (e-KYC, DBT, जियो-टैगिंग), लेकिन रिकवरी रेट कम। 2024-25 में 56% ग्राम पंचायतों में सोशल ऑडिट, लेकिन केवल 5% मुद्दे सुलझे।
drishtiias.com +1
CAG की कमी से भ्रष्टाचार पर निगरानी प्रभावित, लेकिन आंतरिक ऑडिट्स जारी। नई VB-G RAM G योजना में पुरानी सिफारिशें शामिल।नई योजना (2025): मनरेगा की जगह विकसित भारत जी-राम-जी (VB-G RAM G) बिल पेश; इसमें ज्यादा पारदर्शिता, डिजिटल ट्रैकिंग और भ्रष्टाचार रोकने के प्रावधान। सत्ता पक्ष का दावा: पुरानी योजना भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई थी।
