मानहानि केस में मेधा पाटकर की सजा में माफी नही,SC से मामूली राहत

supreme court confirms medha Patkar conviction in defamation case but gave one relief know full details
मानहानि केस में मेधा पाटकर की सजा बरकरार, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दे दी एक राहत
शीर्ष अदालत की पीठ ने आगे कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता के वकील की दलील पर विचार करते हुए लगाया गया 1 लाख वाला जुर्माना हटा दिया है। कोर्ट ने आगे कहा कि हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि पर्यवेक्षण आदेश लागू नहीं होगा।

समाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को देश की सर्वोच्च अदालत ने भी राहत नहीं दी है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के एलजी वी.के.सक्सेना की ओर से दायर 25 साल पुराने मानहानि मामले में कार्यकर्ता मेधा पाटकर की सजा को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और एन.कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वह इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने को इच्छुक नहीं है।

शीर्ष अदालत की पीठ ने आगे कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता के वकील की दलील पर विचार करते हुए लगाया गया 1 लाख वाला जुर्माना हटा दिया है। कोर्ट ने आगे कहा कि हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि पर्यवेक्षण आदेश लागू नहीं होगा। उच्च न्यायालय ने 29 जुलाई को 70 वर्षीय पाटकर को दी गई सजा और दंड को बरकरार रखा था। सक्सेना ने यह मामला 25 साल पहले दायर किया था,जब वह गुजरात में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) का नेतृत्व कर रहे थे।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि निचली अदालत के निष्कर्षों में कोई अवैधता या बड़ी अनियमितता नहीं थी और कहा था कि सजा का आदेश सबूतों और लागू कानून पर उचित विचार के बाद पारित किया गया था। इसने कहा था कि पाटकर प्रक्रिया में कोई दोष या कानून में कोई त्रुटि साबित करने में विफल रहीं,जिसके परिणामस्वरूप न्याय का उल्लंघन हुआ हो।

उच्च न्यायालय ने सजा के आदेश को भी बरकरार रखा,जिसमें पाटकर को “अच्छे आचरण की परिवीक्षा” पर रिहा किया गया था और कहा कि इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। परिवीक्षा अपराधियों के गैर-संस्थागत उपचार की एक विधि है और सजा का एक सशर्त निलंबन है,जिसमें दोषी व्यक्ति को जेल भेजने के बजाय अच्छे व्यवहार के बंधन पर रिहा किया जाता है।

उच्च न्यायालय ने हालांकि निचली अदालत द्वारा लगाई गई परिवीक्षा की शर्त में बदलाव किया था,जिसमें पाटकर को हर तीन महीने में एक बार निचली अदालत के सामने पेश होने की आवश्यकता थी और उन्हें पेशी के दौरान या तो शारीरिक रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित होने या वकील के माध्यम से प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी थी।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता ने मामले में मजिस्ट्रियल कोर्ट द्वारा दी गई अपनी सजा को बरकरार रखने वाले 2 अप्रैल के सत्र अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। सत्र अदालत जिसने मामले में पाटकर की सजा को बरकरार रखा था, ने 8 अप्रैल को 25,000 रुपये का परिवीक्षा बॉन्ड जमा करने पर उसे “अच्छे आचरण की परिवीक्षा” पर रिहा कर दिया था और उस पर 1 लाख रुपये का जुर्माना जमा करने की एक शर्त लगाई थी।

24 मई 2024 को मजिस्ट्रियल कोर्ट ने कहा था कि पाटकर के बयान केवल मानहानिकारक ही नहीं थे,बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणाएं भड़काने के लिए तैयार किए गए थे। कोर्ट ने कहा था कि यह आरोप कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के पास गिरवी रख रहा था,उसकी सत्यनिष्ठा और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला था। 1 जुलाई 2024 को मजिस्ट्रियल कोर्ट ने पाटकर को आईपीसी की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी पाए जाने के बाद पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। सक्सेना ने नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष के रूप में 24 नवंबर 2000 को सक्सेना के खिलाफ जारी की गई उनकी मानहानिकारक प्रेस विज्ञप्ति के लिए पाटकर के खिलाफ मामला दायर किया था।

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