बीएन राव ना होते भारतीय संविधान में लगते 25 साल
ब्राह्मण होना गर्व की बात, उनका ड्राफ्ट नहीं होता तो संविधान बनने में लगते 25 और साल: जानिए कर्नाटक हाई कोर्ट के जजों ने क्यों बताया ‘वर्ण का प्रतीक’, कहा- इनके लिए आयोजन होते रहने चाहिए
कर्नाटक हाई कोर्ट
जस्टिस श्रीशानंद और जस्टिस कृष्णा दीक्षित (फोटो साभार: Leonardo AI)
कर्नाटक हाई कोर्ट के दो जजों ने एक ब्राह्मण संगठन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। उन्होंने यहाँ ब्राह्मणों के समाज में योगदान की प्रशंसा की और साथ ही ब्राह्मण होना गर्व की बात कहा। उन्होंने ब्राह्मणों की एकता पर काम करने वाले और भी कार्यक्रम आयोजित किए जाने की वकालत की है।
राजधानी बेंगलुरु में ‘विश्वामित्र’ के नाम से 18-19 जनवरी, 2025 को आयोजित किए गए इस कार्यक्रम कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस वेदव्यासाचार्य श्रीशानंद और जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा ने आयोजित किया था।
इस कार्यक्रम में बोलते हुए जस्टिस दीक्षित ने कहा कि ब्राह्मण शब्द जाति का नहीं बल्कि वर्ण का द्योतक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वेद को चार हिस्सों में बदलने वाले वेदव्यास एक मछुआरे के पुत्र थे और रामायण लिखने वाले वाल्मीकि SC या संभवतः ST थे लेकिन ब्राह्मणों ने हमेशा उनका सम्मान किया है।
जस्टिस दीक्षित ने संविधान निर्माण में भी ब्राह्मणों के महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “सात सदस्यों वाली ड्राफ्ट कमिटी में तीन ब्राह्मण थे, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, गोपालस्वामी अयंगर और BN राव… डॉ BR अंबेडकर ने भंडारकर संस्थान में कहा था कि अगर BN राव ने संविधान का ड्राफ्ट नहीं बनाया होता, तो इसे तैयार होने में 25 साल और लगते।”
जस्टिस दीक्षित ने कहा कि जब हम ब्राह्मण कहते हैं तो यह गर्व की बात होती है। उन्होंने कहा, “क्यों? क्योंकि उन्होंने (ब्राह्मणों ने) संसार को द्वैत, अद्वैत, विशिष्ट अद्वैत और सुधाअद्वैत जैसे कई सिद्धांत दिए। यह वह समुदाय है जिसने दुनिया को ‘बसाव’ महान दार्शनिक व्यक्तित्व दिए।”
वहीं जस्टिस श्रीशानंद ने इस बात पर जोर दिया कि ब्राह्मणों में एकता लाने वाले कार्यक्रम किए जाते रहने चाहिए। उन्होंने कहा, “कई लोग पूछते हैं कि जब लोग खाने या शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो ऐसे बड़े आयोजनों की क्या ज़रूरत है। लेकिन यह आयोजन समुदाय को एक साथ लाने और उसके मुद्दों पर चर्चा करने के लिए ज़रूरी हैं। ऐसे आयोजन आखिर क्यों नहीं होने चाहिए?”
जस्टिस श्रीशानंद ने बताया कि जज बनने से पहले वह कई संस्थाओं से जुड़े हुए थे लेकिन अब उनसे दूर हैं।
‘...तो संविधान तैयार होने में 25 साल और लग जाते’, कर्नाटक हाईकोर्ट के जज डॉ. दीक्षित ने क्यों कहा ऐसा?
कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस डॉक्टर एस दीक्षित ने कहा है कि संविधान निर्माण में ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण योगदान है। कर्नाटक हाई कोर्ट के जज ने कहा ब्राह्मण कोई जाति नहीं बल्कि वर्ण है-संविधान की प्रारूप समिति के सात सदस्यों में से तीन सदस्य ब्राह्मण थे। अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा की स्वर्ण जयंती के अवसर पर 18-19 जनवरी को आयोजित दो दिवसीय ब्राह्मण सम्मेलन विश्वामित्र में उन्होंने यह बात कही।
कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित।
अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा की स्वर्ण जयंती पर 18-19 जनवरी को आयोजित दो दिवसीय ब्राह्मण सम्मेलन ‘विश्वामित्र’ में जस्टिस डॉक्टर दीक्षित ने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने एक बार भंडारकर इंस्टीट्यूट में कहा था कि यदि बीएन राव ने संविधान का मसौदा तैयार नहीं किया होता तो इसे तैयार होने में 25 साल और लग जाते। जस्टिस दीक्षित ने कहा कि संविधान की प्रारूप समिति के सात सदस्यों में से तीन अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, एन गोपालस्वामी अयंगर और बीएन राव ब्राह्मण थे।
‘ब्राह्मण एक वर्ण है, जाति नहीं’
कौन थे बीएन राव?
बीएन राव का पूरा नाम सर बेनेगल नरसिंह राव था। वे एक सिविल सेवक, न्यायविद, राजनयिक और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार के रूप में काम किया था। राव की 1947 में बर्मा (म्यांमार)और 1950 में भारत के संविधान का ड्रॉफ्ट तैयार करने में अहम भूमिका थी। वे 1950 से 1952 तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के प्रतिनिधि भी थे।
नरसिम्हा राव (बीएन राव) भारत के संविधान के प्रारूप तैयार करने में संवैधानिक सलाहकार थे. वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश भी रहे.
बीएन राव के बारे में कुछ और बातें:
बीएन राव ने सच्चिदानंद सिन्हा के साथ मिलकर संविधान का पहला प्रारूप तैयार किया था. प्रारूप समिति ने इसी में कांट-छांट कर संविधान सभा को सौंपा था।
बीएन राव संविधान निर्माण के समय संवैधानिक सलाहकार थे.
बीएन राव, संविधान निर्माण में इतनी अहम भूमिका निभाए, इसके बावजूद उनके योगदान को उतना महत्व नहीं मिला.
बीएन राव, 1949 से 1952 तक संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि रहे.
बीएन राव का निधन 26 फ़रवरी, 1953 को जेनेवा में कैंसर से हो गया.