लव जिहाद

धर्म परिवर्तन केस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी:फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला जबरन धर्म बदलवाते हैं तो धर्मांतरण विरोधी कानून में जिम्मेवार

फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला जबरन धर्म बदलवाते हैं तो धर्मांतरण विरोधी कानून में जिम्मेदार|प्रयागराज (इलाहाबाद),Prayagraj (Allahabad)
प्रयागराज 01 अप्रैल 2025। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर धर्म परिवर्तन के मामले पर गंभीर टिप्पणी की है। साथ ही इस मामले पर चिंता जताई है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा- फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला, आदि। अगर वह किसी व्यक्ति का जबरन, गलत बयानी, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराता है तो वह यूपी ‘धर्मांतरण विरोधी’ अधिनियम के तहत जिम्मेदार होगा।

हाईकोर्ट ने धर्मांतरण से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए आरोपी ‘मौलाना’ (धार्मिक पुजारी) की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने मोहम्मद शाने आलम नाम के शख्स को जमानत देने से इंकार करते हुए कहा जबरन धर्म परिवर्तन का आरोपी को जमानत का अधिकार नहीं है। याची मौलाना पर एक पीड़िता को जबरन ‘इस्लाम’ में परिवर्तित करने और एक मुस्लिम व्यक्ति के साथ उसका निकाह कराने का आरोप लगा है।

जानिये क्या है पूरा मामला हाईकोर्ट में जमानत अर्जी लगाने वाले याची शाने आलम के खिलाफ गाजियाबाद के थाना अंकुर विहार में यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3/5(1) के तहत मामला दर्ज है। इस मामले में याची ने अपनी जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत याचिका दाखिल की थी। याची के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि आवेदक शाने आलम मौलाना यानी धार्मिक पुजारी है और उसने केवल आरोपी अमान के साथ पीड़िता का निकाह कराया था और पीड़ित महिला को जबरन “इस्लाम” में परिवर्तित नहीं किया था। उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह 2 जून से जेल में बंद है। उसके 11 मार्च को हुए निकाहनामा पर जिस पर मोहर और उसके सिर्फ हस्ताक्षर हैं और इसके अलावा उसकी कोई भूमिका नहीं है।

सरकारी वकील ने विरोध किया सरकारी अधिवक्ता ने याची की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता जो खुद सूचना देने वाली है उसे सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपदस्थ किया गया कि वह एक कंपनी में काम कर रही थी। आरोपी अमान ने उसका शारीरिक शोषण किया और उसे “इस्लाम” स्वीकार करने के लिए मजबूर किया और 11 मार्च 2024 को याची ‘धर्म परिवर्तक’ द्वारा उसका निकाह कराया गया।

हाईकोर्ट ने धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज पीड़िता/सूचनाकर्ता के बयान को ध्यान में रखा जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसे ‘इस्लाम’ स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया और निकाह कराया गया था। कोर्ट ने कहा कि याची आरोपी मोहम्मद शाने आलम यूपी धर्म के गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 2(i) के तहत परिभाषित ‘धर्म परिवर्तक’ होने के नाते 2021 अधिनियम के तहत जिम्मेदार है। कोर्ट ने टिप्पणी कि की इस मामले में आवेदक जो यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 2(i) में परिभाषित “धर्म परिवर्तक” की परिभाषा के अंतर्गत आता है उसने आरोपी अमान के साथ पीड़िता का निकाह करवाया था।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अधिनियम, 2021 की धारा 8 में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जो अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है उसे शिड्यूल-I में निर्धारित प्रपत्र में कम से कम साठ दिन पहले एक घोषणा पत्र देना होगा। इसके लिए उसे जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के यहां आवेदन करना होगा। विशेष रूप से जिला मजिस्ट्रेट द्वारा अधिकृत जाएगा कि वह अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है वो भी अपनी स्वतंत्र सहमति से और बिना किसी बल, दबाव, अनुचित प्रभाव या प्रलोभन के। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आवेदक जो “धर्म परिवर्तक” की परिभाषा के अंतर्गत आता है जैसा कि धारा 2(i) में परिभाषित है। अधिनियम, 2021 के तहत पीड़िता का निकाह अमान के साथ कराया गया था। धर्मांतरण से पहले अधिनियम, 2021 की धारा 8 में दी गई आवश्यक घोषणा जिला मजिस्ट्रेट से प्राप्त नहीं की गई थी जैसा कि अनिवार्य है। अधिनियम, 2021 के प्रावधान की अवहेलना अधिनियम, 2021 की धारा 5 के तहत ये दंडनीय है।

कोर्ट ने कहा कि अधिनियम 2021 की धारा 3 के मुताबिक गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण को प्रतिबंधित करती है। कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है जो भारत की सामाजिक सद्भावना और भावना को दर्शाता है। संविधान के अनुसार राज्य का कोई धर्म नहीं है और राज्य के समक्ष सभी धर्म समान है तथा किसी भी धर्म को दूसरे धर्म पर वरीयता नहीं दी जाएगी। सभी व्यक्ति अपनी पसंद के किसी भी धर्म का प्रचार, अभ्यास और प्रसार करने के लिए स्वतंत्र हैं। संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। हालाँकि हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए है जहाँ भोले-भाले लोगों को गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित किया गया है।

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