लालकृष्ण आडवाणी हुए 96 के, जिनके रथ की धूल सिर लगाते थे लोग

वो रथयात्रा जिसकी धूल लोग सर से लगाते थे… करिश्मा ऐसा कि गाँधी-नेहरू भी फीके: 96 के हुए लालकृष्ण आडवाणी, बोले PM मोदी – उनके दूरदर्शी नेतृत्व से आगे बढ़ा दे
लालकृष्ण आडवाणी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के शिल्पी थे नरेंद्र मोदी

भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी आज (8 नवम्बर, 2023) को 96 साल के हो गए हैं। श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा निकाल कर आंदोलन खड़ा करने और भाजपा को सत्ता में लाने वाले क्षत्रप आडवाणी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जन्मदिन की बधाई दी है।

लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवम्बर, 1927 को अविभाजित भारत के कराची शहर में हुआ था। वह सिंधी समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं। पहले जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी की रीढ़ बनने वाले आडवाणी बँटवारे के बाद भारत आ गए थे।

आज से 33 वर्ष पहले यानी 1990 में आडवाणी ने हिन्दुओं को जोड़ने और राम मंदिर निर्माण की माँग के लिए गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए रथ यात्रा निकाली। यह 25 सितम्बर को सोमनाथ से निकली थी और इसको अलग-अलग प्रदेशों से होते हुए 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या पहुँचना था।

इस यात्रा के सारथी वही नरेंद्र मोदी थे, जो आज देश के प्रधानमंत्री हैं। उस समय वे गुजरात भाजपा के संगठन महामंत्री हुआ करते थे। असल में, राष्ट्रीय स्तर पर मोदी का अवतरण इसी रथ यात्रा के जरिए हुआ था। दूसरी तरफ जेपी आंदोलन से निकले नेता लालू यादव को अब इस बात की चिंता सता रही थी कि अब आंदोलन का प्रभाव खत्म हो चुका है और उनका वोटबैंक कहीं खिसक ना जाए। मंडल आरक्षण की राजनीति भी ढीली पड़ रही थी।

इन सबसे पार पाने के लिए लालू ने ‘सेक्युलरिज्म’ शब्द का सहारा लिया। उन्होंने इसी के बहाने आडवाणी की इस रथ यात्रा के पहिए रोक दिए। इस एक कदम का इतना प्रभाव हुआ कि देश कि सत्ता में बैठे प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार गिर गई। यह सत्ता ऐसे ही नहीं डोली थी। रथ यात्रा का प्रभाव ही इतना था कि यह जहाँ से निकलता था वहाँ इस पर फूलों की बरसात होती थी। लोग जहाँ से रथ निकलता था वहाँ की मिट्टी अपने माथे पर लगाते थे।

दिल्ली में बैठ कर मानसून के जाने और मशहूर गुलाबी ठंड आने का इंतजार कर रहे राजनीतिक पत्रकार और पंडित चकित थे। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गाँधी की रैलियाँ देखी थीं, इंदिरा गाँधी का करिश्मा देखा था लेकिन ऐसी कोई रथयात्रा नहीं देखी थी कि जिसकी धूल लोग माथे पर लगाएँ।

इस यात्रा की पूरी जिम्मेदारी वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी पर ही थी। हेमंत शर्मा ने अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में मोदी को इस यात्रा का रणनीतिकार और शिल्पी बताया है। यात्रा के मार्ग और कार्यक्रम को लेकर औपचारिक तौर पर सबसे पहले जानकारी भी मोदी ने ही 13 सितंबर, 1990 को दी थी। कहा जाता है कि इस यात्रा की हर सूचना जिस एक शख्स के पास होती थी वे मोदी ही थे।

यात्रा को रोका जाना दिखाता है कि सेक्यूलर जमात पर किस कदर समुदाय विशेष का मसीहा बनने का भूत सवार था। ‘युद्ध में अयोध्या’ के मुताबिक, 19 अक्टूबर, 1990 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के सुंदरनगर गेस्ट हाउस में एक बैठक हुई। बैठक में शामिल होने के लिए आडवाणी रथ यात्रा धनबाद में छोड़कर आए थे। बैठक तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की पहल पर हुई थी। आडवाणी ने कहा कि वे सरकार गिराना नहीं चाहते। यदि सरकार अध्यादेश लाकर विवादित ढाँचे के आसपास की जमीन विहिप या उसके प्रतिनिधि को सौंपती है तो बीजेपी उसका समर्थन करेगी।

कहा जाता है कि वीपी सिंह नहीं चाहते थे कि मुलायम अकेले मुस्लिमों का मसीहा बने, इसलिए उनके निर्देश पर लालू यादव ने बिहार में ही आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। हेमंत शर्मा ने ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखा है – वीपी सिंह ने एक तीर से दो शिकार किए। आडवाणी को गिरफ्तार करवा मुलायम को पटखनी दी।

आडवाणी की इस रथ यात्रा का प्रभाव था कि पूरे देश से कारसेवक अयोध्या में जुटने लगे। कारसेवक इस बात पर अडिग थे कि मंदिर निर्माण तो होकर रहेगा चाहे तत्कालीन प्रदेश सरकार कितना भी जोर लगा ले।

इसी कड़ी में 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या में कारसेवकों पर गोली भी चली जिसमें कोठारी बन्धु समेत तमाम कारसेवक मारे गए। एक कारसेवक ने मरते हुए अपने खून से सड़क पर ‘जय श्री राम’ लिखा। यात्रा शुरू होने के बाद एक ओर देश के करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के सेवक आडवाणी खड़े थे तो दूसरी तरफ वीपी सिंह, मुलायम सिंह और लालू यादव जैसे नेता कैसे अधिकाधिक मुस्लिम वोट बटोरे जाएं इसके लिए आपस में ही होड़ कर रहे थे।

इस यात्रा के दो सालों बाद बाबरी को भी कारसेवकों ने गिराया और कोर्ट में अपने अधिकार की जमीन के लिए लड़ते भी रहे। आज अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर बन रहा है। जनवरी 2024 में वह भक्तों के दर्शन के लिए तैयार हो जाएगा। लालकृष्ण आडवाणी, स्वर्गीय अशोक सिंहल और स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी उस पीढ़ी में हिन्दू स्वाभिमान जगा रहे थे जिसको दशकों से नेहरू के आदर्शवाद और इंदिरा के साम्यवाद के प्रेम के बूटों तले रौंद दिया गया था।

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