लोकपर्व ‘छठ’ ने रोका बिहार का ईसाईकरण

#छठ

‘मिशनरी’ जब भारत के टारगेटेड इलाकों में अपनी अधिकतम फसल काट चुके तो अब उनका अगला निशाना हुआ ‘पंजाब’ और ‘बिहार’।

लेकिन ‘बिहार’ में काफ़ी अधिक ‘इन्वेस्टमेंट’ करने के बाबजूद भी उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो उन्होंने इसकी तहकीक कराई कि ऐसा हुआ क्यों?

उन्हें पता लगा कि इसका कारण है ‘बिहार’ में साल में दो बार होने वाला एक ‘पर्व’ जिसने इस ‘प्रांत’ के समाज को एकात्मता के सुंदर ताने बाने में जोड़कर रखा हुआ है और ये पर्व ऐसा है जो समाज में, गांव -देहात में एकता का सूत्र बन जाता है। इस पर्व में महिलाएं तो आपस में जुड़ती ही हैं साथ में इस पर्व के कारण युवक और तरुण भी संगठित हो जाते हैं और तो और ये समाज जीवन के हरेक जाति के लिए आर्थिक उन्नयन का कारण भी बन जाती है और इसलिए इस राज्य में ‘मिशनरीज’ आज तक अपेक्षित फसल नहीं काट सके हैं।

बात केवल ‘मिशनरीज’ की ही नहीं है, आज जब “वैश्विक आधुनिकरण” की होड़ में गांव और समाज तो दूर परिवार तक टूट रहे हैं ऐसे में ‘बिहार’ के समाज को, यहां के लोगों को इस पर्व ने सामाजिक रूप से जोड़ा हुआ है क्योंकि हर सक्षम और हर अक्षम इस पर्व में अपने घर में आता ही है जहां कम से कम साल में एक बार तो उसे अपने पूरे परिवार के साथ रहने का सौभाग्य मिल जाता है और चूंकि गांव – घर में सबके परिवार में लगभग हर कोई आता है तो वहां भी सब एक -दूसरे से मिलते हैं।

ये पर्व है “छठ” का जो मुख्य रूप से इस समय और फिर चैत्र में भी मनाया जाता है पर “कार्तिक माह” के ‘छठ’ का महत्व अधिक है।

यही ‘छठ’ ‘पर्यावरण संरक्षण’ का भी ‘पर्व’ है क्योंकि इसकी तैयारी हेतु ‘गांव’ के ‘नदी’, ‘तालाब’ और ‘पोखर’ की सफाई और इसके किनारे ‘घाट’ बनाने की तैयारी सामूहिक रूप से होती है जिसमें गांव का लगभग हर युवा भाग लेता है।

अपने गांव के बाहर कोई किसी भी बड़े पद पर हो पर छठ पर ‘घाट निर्माण’ में वे सबके साथ सहभागी होते हैं जिसमें हर जाति के लोग होते हैं यानि ‘सामाजिक समरसता’ का सबसे बड़ा उदाहरण ‘छठ’ जैसा ‘लोक पर्व’ है। घाट पर हर जाति के व्रती एक साथ इक्कठे आते हैं, बिहार में ‘मूलनिवासी’ आदि जहर के प्रसार न होने का एक बड़ा कारण ये भी है।

आज जबकि “उपभोक्तावाद” के कारण एक फ्लैट में रहने वाला हिंदू अपने पड़ोस के फ्लैट के हिंदू के दुख-दर्द में शामिल होना तो दूर पहचानता तक नहीं है ऐसे में ‘संगठन’ और ‘सामाजिकता’ के “अमूल्य सूत्र” आप ‘बिहार’ आकर ‘छठ’ में सीख सकते हैं।

दुनिया की बड़ी -बड़ी सभ्यताओं को निगल जाने वाले और समाजिक ताने वाले को नष्ट -भ्रष्ट कर देने वाले मिशनरियों का सिस्टम “छठ पर्व” हैंग करा देता है, इसलिए इस “लोकपर्व” का व्यापक प्रसार पूरे भारत में हो, ये वर्तमान की मांग भी है और जरूरत भी।

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