लोकसभा चुनाव के पहले सीएए लागू करने की तैयारियां पूर्ण

Rules And Portal Are Ready So Caa Can Be In Force Before Lok Sabha Election
लोकसभा चुनाव से पहले लागू होगा CAA? नए नियम तैयार, पोर्टल रेडी, जानिए हर एक बात
सूत्रों की मानें तो लोकसभा चुनाव से पहले देश में सीएए के नियम नोटिफाइ हो जाएंगे। इसका मतलब है कि सीएए कानून जमीन पर उतर जाएगा जो चार वर्षों से कागजों पर सीमित है। तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आए शरणार्थियों के लिए बने इस कानून का भारी विरोध हुआ था।
मुख्य बिंदु
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के लिए नियम बनकर तैयार हैं
2019 के दिसंबर में ही बन गया था सीएए, लेकिन नियम नहीं बन सके
आठ बार समय-सीमा पार करने के बाद सरकार ने नियम बना दिए हैं

लोकसभा चुनाव से पहले नोटिफाइ हो जाएंगे सीएए के नियम?
नई दिल्ली पांच जनवरी 2024: तीन पड़ोसी मुस्लिम देशों से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता में सहूलियत देने वाला कानून लोकसभा चुनाव से पहले ही लागू हो सकता है। अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्स्प्रेस ने सरकारी सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के लिए नियमों का नोटिफिकेशन लोकसभा चुनावों के ऐलान से काफी पहले ही जारी कर दिए जाएंगे। स्वाभाविक है कि सीएए लागू हुआ तो यह लोकसभा चुनाव का भी बड़ा मुद्दा बनेगा। भाजपा इसे अपने पक्ष में भुनाने का भरपूर प्रयास करेगी जबकि विपक्षी दल इसे मुस्लिम विरोधी कदम बताकर अल्पसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण करने की जुगत लगाएंगें।

सीएए के विरोध में सुलग गया था देश

कानून पारित होने के तुरंत बाद देशभर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। मुसलमानों, सिविल सोसाइटी के तबके और कुछ संगठनों ने सीएए का यह कहकर विरोध किया कि इसमें मुसलमानों को बाहर रखा गया है। लंबे समय तक चले विरोध-प्रदर्शन के मद्देनजर कानून लागू करने के लिए सरकार ने नियम ही नहीं बनाए और इसके लिए बार-बार समय बढ़ाने का अनुरोध करती रही। सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अब नियम तैयार हैं और ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार है। सूत्रों ने कहा कि पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी और आवेदक अपने मोबाइल फोन से भी आवेदन कर सकते हैं।

सबकुछ तैयार, कभी भी नोटिफाई हो सकते हैं नियम

सूत्रों ने कहा, ‘हम आने वाले दिनों में सीएए के लिए नियम जारी करने जा रहे हैं। एक बार नियम जारी होने के बाद कानून लागू किया जा सकता है और जो पात्र हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सकती है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या नियम लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले अधिसूचित किए जाएंगे, सूत्रों ने कहा, ‘सब कुछ तैयार है और हां, उन्हें चुनाव से पहले लागू किए जाने की संभावना है। आवेदकों को बिना यात्रा दस्तावेजों के भारत में प्रवेश करने का वर्ष घोषित करना होगा। आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा। 2014 के बाद आवेदन करने वाले आवेदकों के अनुरोधों को नए नियमों के अनुसार बदला जाएगा।’

आठ बार बढ़ी कानून बनाने की मियाद

सरकार अब तक सीएए के नियम बनाने की तारीख को आठ बार बढ़ा चुकी है। एक अधिकारी ने बताया, ‘पिछले दो वर्षों में नौ राज्यों के 30 से अधिक जिलाधिकारियों (डीएम) और गृह सचिवों (होम सेक्रेटरीज) को 1955 के नागरिकता अधिनियम में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने का अधिकार दिया गया है।’

सीएए को लागू करने में इतनी देरी के कई कारण बताए जा रहे हैं जिनमें एक प्रमुख कारण असम और त्रिपुरा सहित कई राज्यों में सीएए का मुखर विरोध है।

असम में इस डर से विरोध हुआ था कि यह कानून राज्य की डेमोग्राफी को बदल देगा। विरोध सिर्फ पूर्वोत्तर तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी फैल गए। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) सहित कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रही हैं।

शाह ने हाल ही में दिए थे संकेत

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले हफ्ते पश्चिम बंगाल में पार्टी की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि भाजपा सीएए के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, ‘दीदी (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) अक्सर सीएए के बारे में हमारे शरणार्थी भाइयों को गुमराह करती हैं। मैं स्पष्ट कर दूं कि सीएए देश का कानून है और इसे कोई नहीं रोक सकता। सभी को नागरिकता मिलेगी, यह हमारी पार्टी की प्रतिबद्धता है।’

सीएए को सुप्रीम कोर्ट में दी गई है चुनौती

कई याचिकाकर्ताओं ने सीएए को कोर्ट में चुनौती दी है। उनका कहना है कि यह कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से सिर्फ हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देता है और इसमें म्यांमार के सताए गए रोहिंग्या, चीन के तिब्बती बौद्ध और श्रीलंका के तमिलों को शामिल नहीं किया गया है, जो कि अन्यायपूर्ण है।

सरकार की दो टूक- दुनियाभर की समस्या दूर नहीं कर सकते

सरकार ने याचिकाओं के जवाब में दाखिल किए गए शुरुआती हलफनामे में कहा था कि 2019 के इस कानून में ‘उचित वर्गीकरण’ का आधार धर्म नहीं है, बल्कि पड़ोसी देशों में ‘धार्मिक भेदभाव’ है। सरकार ने कहा कि यह कानून ‘दुनिया भर के मुद्दों का समाधान नहीं है और भारतीय संसद से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह दुनियाभर के देशों में होने वाले संभावित उत्पीड़न का ध्यान रखे’।

सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि ‘पड़ोसी देशों में वर्गीकृत समुदायों के साथ व्यवहार पिछली सरकारों का भी ध्यान आकर्षित करता रहा है, लेकिन किसी भी सरकार ने कोई विधायी कदम नहीं उठाया, बल्कि केवल समस्या को स्वीकार किया और इन वर्गीकृत समुदायों के प्रवेश, ठहरने और नागरिकता के मुद्दों पर कार्यकारी निर्देशों के माध्यम से कुछ प्रशासनिक कार्रवाई की।’

चार वर्ष से लागू होने की राह ताक रहा है सीएए

सीएए को दिसंबर 2019 में ही संसद ने मंजूरी दी थी। इसे लोकसभा ने 9 दिसंबर 2019 को और राज्यसभा ने दो दिन बाद पारित किया था जबकि इस पर 12 दिसंबर को राष्ट्रपति का दस्तखत हो गया था। सीएए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाईयों को तेजी से भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान करता है।

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