वायनाड भूस्खलन, मृतक संख्या 168,बह गये साइलेंट वैली के चार गांव
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वायनाड भूस्खलन: 4 घंटे में 3 प्रलय, बहे पूरे 4 गांव, पश्चिमी घाट की साइलैंट वैली को प्रकृति से छेड़छाड़ ने किया अशांत
Wayanad landslides केरल के वायनाड जिले में भारी बारिश के कारण हुए भयानक भूस्खलन में अब तक 168 लोग जान गंवा चुके हैं। सैकड़ों लोग घायल हैं। कई गांव बह गए हैं तो सड़कों का नामोनिशान नहीं है। इस भूस्खलन में कई पेड़ उखड़ गए हैं और नदियां उफान पर हैं। लापता लोगों को खोजने और बचाने के लिए सेना को लगाया गया है। यह आपदा क्यों आई और केरल के पहाड़ क्यों दरक रहे हैं, इस बारे में जानते हैं।
वायनाड आपदा में अब तक 168 ने गंवाई जान
केरल सरकार ने क्यों नजरअंदाज की चेतावनी
पश्चिमी घाट के इलाका क्यों है सेंसिटिव जोन
नई दिल्ली 31 जुलाई 2024: केरल के वायनाड में भीषण भूस्खलन में कम से कम 168 लोगों की मौत हो गई। वहीं, इस आपदा में अब भी करीब 100 लोगों की तलाश की जा रही है, जिनके मलबे में दबे होने की आशंका जताई जा रही है। अब इस मामले में सियासत भी गरमा गई है। राज्यसभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा-23 जुलाई को ही केरल को भारी बारिश की चेतावनी दे दी गई थी। राज्य सरकार ने इस चेतावनी को नजरअंदाज किया। अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि चेतावनी जारी होने के बाद भी केरल सरकार ने क्यों नहीं पहले एहतियाती कदम उठाए। आइए- समझते हैं कि यह आपदा क्यों आई, क्यों कई गांव साफ हो गए।
गांव की जगह मलबा, पुल और सड़कें बहीं, तैरते हुए शव
केरल के वायनाड में आई इस भीषण आपदा के बार कम से कम 4 गांव बह गए। मेपाड्डी, मुंडक्काई, चूरलमाला, अत्तामाला, नूलपुझा जैसे इलाकों में जबरदस्त भूस्खलन होने से कई बस्तियां मलबे में दब गईं। जिन इलाकों में हरियाली नजर आती थी, वहां अब मला कल तक जहां हरियाली ही हरियाली थी, वहां मलबा ही मलबा नजर आ रहा है। पूरे इलाके में मलबे का ढेर, बहे हुए पुल और सड़कें और तैरते शव नजर आ रहे हैं। सुबह 2 बजे से लेकर 6 बजे के बीच चार बड़े भूस्खलन हुए, जिससे ये तबाही आई। जिस वक्त ये जलजला आया, लोग सो रहे थे।
उत्तराखंड की तरह बार-बार आएगी दक्षिण में आपदा
दिल्ली यूनिवर्सिटी में एनवायरनमेंटल स्टडी डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सना रहमान कहती हैं कि आपको उत्तराखंड के जोशीमठ में 2013 में आई आपदा याद है! अनियंत्रित विकास, जंगलों को नष्ट करना, रोड और पावर प्रोजेक्ट्स के लिए टनल बनाने की वजह से यह आपदा आई। हिमालय तक इंसान पहुंचने लगा और पहाड़ों का पर्यावरण नष्ट होने लगा। यही आपदा की वजह बनती हैं। मगर हमने इस आपदा के 11 साल बीतने के बाद भी सबक नहीं सीखा। वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर हम समय रहते नहीं चेते तो दक्षिण भारत के केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों पर इस तरह की आपदाएं बार-बार आती रहेंगी।
दो दशकों में पश्चिमी घाट के 20 हजार हेक्टेयर के जंगल नष्ट
देश के सबसे सुदूर दक्षिण के इलाके पश्चिमी घाट बेहद खूबसूरत और शांत हैं। ये इलाके घने जंगलों और तरह-तरह के जीवों के घर हैं। पश्चिमी घाट को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में किया गया है। अफसोस इस बात का है कि बीते दो दशकों में पश्चिमी घाट के 20 हजार से ज्यादा हेक्टेयर के जंगलों को इंसान ने बर्बाद कर दिया। पर्यावरणविदों ने इस बारे में पहले ही चेतावनी दी थी। पर्यावरणविद कई बार केरल में बार-बार भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की चेतावनी दे चुके हैं। बीते साल की शुरुआत में कोडगू में एक पूरा गांव ही भूस्खलन की भेंट चढ़ गया था।
केरल में हर बार मानसून ऐसी तबाही का देता रहा सिग्नल
डॉ. सना रहमान के अनुसार, हर बार जब मानसून आता है तब वह क्लाइमेट चेंज का सिग्नल देता है। बड़े पैमाने पर जब वन्यजीवों विस्थापित होते हैं तो वहां का पर्यावरण सिमटता है। इसकी बड़ी वजह खनन, नदियों से रेत निकालना, सड़कें बनाना, टूरिज्म प्रोजेक्ट्स के नाम पर शांत क्षेत्र को अशांत बनाना है। सरकार एजेंसियां ऐसे प्रोजेक्ट्स पर रोक लगाती हैं और डेवलपमेंट लॉबी नियमों की धज्जियां उड़ाकर मंजूरी हासिल कर लेती हैं। कस्तूरीरंगन रिपोर्ट ने बहुत पहले ही यह चेतावनी दी थी कि पश्चिमी घाट के 37 फीसदी हिस्से को ईको सेंसिटिव जोन घोषित किया जाए और वहां पर किसी भी तरह के निर्माण कार्य या प्रोजेक्ट्स की मंजूरी न दी जाए। मगर, केरल सरकार ने कस्तूरीरंगन रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया।
नंदी हिल्स के बर्बाद होने से कर्नाटक का भी यही हो रहा हाल
बेंगलूरू से कुछ दूर एक पहाड़ी इलाका है नंदी हिल्स। जहां उसकी प्राकृतिक खूबसूरती की वजह से बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। मगर, अब यह इलाका भी संकट में है। नंदी हिल्स के बर्बाद होने से कर्नाटक के बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में आने की आशंका है। किसान अपनी खेती की जमीनें बिल्डरों और रियल इस्टेट की कंपनियों को बेच रहे हैं, जो पहाड़ों की घाटियों के पास हॉलीडे होम्स बना रहे हैं।
यहां भी कर्नाटक सरकार एक रोपवे प्रोजेक्ट बनाने पर विचार कर रही है, ताकि वहां पर ज्यादा से ज्यादा सैलानी आएं। यहां बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे स्थानीय लोग भी नाखुश हैं। यह मामला फिलहाल कोर्ट में है। बीते दो मानसून की बारिश में यहां के ब्रह्मगिरि रेंज और नंदी को जाने वाली रोड बह गई। यहां पर इस तरह का यह पहली प्राकृतिक आपदा थी। नंदी हिल्स दरअसल, छह नदियों का उद्गम स्थल है और बेंगलूरू के लोगों को पीने के पानी का बड़ा सोर्स भी है।
वायनाड में क्यों आई ऐसी आपदा, अनुमान से 5 गुना ज्यादा बारिश
केरल के वायनाड जिले में सोमवार से लेकर मंगलवार सुबह तक 24 घंटे के भीतर 140 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हुई। यह अनुमान से 5 गुना ज्यादा थी। इंडिया मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट के आंकड़ों के अनुसार, वायनाड के कुछ हिस्सों में यह बारिश 300 मिमी से ज्यादा बारिश हुई। केरल में भारी बारिश की वजह से हर साल भूस्खलन होते हैं। केरल का पश्चिमी हिस्से में पहाड़ हैं, जो बेहद ढलान वाले हैं। इस वजह से भी यहां पहाड़ अक्सर दरक जाते हैं। केरल में 2018 में भी ऐसी भीषण भूस्खलन हुआ था, जिसमें 500 लोग मारे गए थे।
पहाड़ी इलाकों में कैसे होते हैं भूस्खलन
डॉ. सना रहमान के अनुसार, पश्चिमी घाटों की पहाड़ों पर दो तरह की परतें होती हैं। एक परत मिट्टी की होती है, जिन पर बड़े-बड़े सख्त चट्टानें टिकी होती हैं। जब भारी बारिश होती है, तब चट्टानों के बीच फंसी मिट्टी नम हो जाती है और पानी चट्टानों तक पहुंच जाता है। पहाड़ की दूसरी परत पत्थरों की होती है, जो मिट्टी से बंधी होती है। भारी बारिश की वजह से पत्थरों के बीच फंसी यह मिट्टी निकल जाती है, जिससे भूस्खलन होने लग जाता है। इस मिट्टी को पेड़-पौधे बांधते हैं। जब हम उन पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं तो पहाड़ और मिट्टी के बीच मजबूत बॉन्डिंग टूट जाती है और नतीजा भूस्खलन के रूप में सामने आता है। केरल का करीब 17 हजार वर्ग किमी के इलाके में भूस्खलन का खतरा बना रहता है। ये इलाका ज्यादातर पश्चिमी घाट की तरफ ही है।