विजयनगर जिहाद: क्या हैं जमीनी हालात? 14 गिरफ्तारियों बाद भी सहमी हैं बच्चियां

ब्यावर जिले के बिजयनगर में रेप-ब्लैकमेल मामले पर SIT बन चुकी.

ब्यावर जिले के बिजयनगर में रेप-ब्लैकमेल मामले पर SIT बन चुकी.

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तीन दशक पहले अजमेर ब्लैकमेल कांड से मिलती-जुलती घटना ने ऊंघते हुए कस्बे को झकझोंरकर उठा दिया. अब पचास हजार की आबादी वाला बिजयनगर रैलियों और मंत्रियों-संत्रियों से गुलजार है.

वहीं नाबालिग बच्चियां वो छोटा-मोटा स्टेशन हो चुकी हैं, जो लगातार गुजरती रेल की आवाज से कांपती तो रहेंगी, लेकिन जहां कोई गाड़ी रुकेगी नहीं. aajtak.in ने पीड़ित बच्चियों, उनके परिवार से लेकर आरोपियों के घरवालों से भी मुलाकात की और जानने की कोशिश की बीते दिनों उनपर क्या कुछ बीता.

किसी भी पुराने शहर की तर्ज पर बिजयनगर भी दो हिस्सों में बंटा दिखेगा. रेलवे स्टेशन के इस पार हाट हैं, बाजार है, और शांति है. वहीं तमाम किरदार उस पार बसे हुए हैं- पीड़िताएं

शहर के पूरब में फैले इस इलाके में नया चेहरा दिखते ही छोटी-मोटी भीड़ जुट जाती है और जैसे ही आप उनसे पता पूछेंगे, वही भीड़ तपाक से छंट भी जाएगी. खुसफुसाते हुए ही कुछ लोग नाम-पता बता देते हैं.

bijainagar beawar rape blackmail case similarities with ajmer grooming gang 1992

ऐसे ही एक मददगार के जरिए हम उस घर तक पहुंचे, जहां की दो-दो बच्चियों ने ब्लैकमेलिंग के आरोप लगाए थे. परिचय देने पर पिता घर के भीतर ले जाते हैं. दो चचेरी बहनों की मां वहीं बैठी हुई दिखीं, पिता बातचीत की डोर संभाल लेते हैं.

आपको कब और कैसे पता लगा?

मैं दुकान करता हूं. वैसे तो पैसों का मोटा हिसाब रहता है लेकिन एक दिन 2000 रुपए गायब लगे. घर में गिनती के आदमी. किसी ने कुछ बताया नहीं. उसी शाम बेटी को फोन पर किसी से बात करते सुना. हमने उन्हें मोबाइल नहीं दिया, तब! डांटने पर वो रोने लगी. हम बात कर ही रहे थे कि फोन घनघनाने लगा. कॉल पर कॉल आ रहे थे. बेटी रोए जा रही थी. हमने उसे फोन उठाकर स्पीकर पर डालने को कहा. जैसे ही उसने कॉल पिक की, उधर से गालियां सुनाई पड़ने लगीं. भद्दी-भद्दी बातें कहते हुए लड़का धमका रहा था. मतलब ये प्रेम-प्यार का चक्कर नहीं, कुछ और ही था.

हम थोड़ी देर सदमे में रहे. बेटी कई और सहेलियों के नाम ले रही थी कि उन्हें भी लड़कों ने मोबाइल दिए हैं और ब्लैकमेल करते रहते हैं. जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर हमने लड़की से कहा कि किसी बहाने से उस लड़के को बुलाए. हमने वहीं उसे घेर लिया. फिर उसने खुद ही उगल दिया कि इस काम में और कौन-कौन शामिल है.

 ये कब से चल रहा था, आपको कुछ अंदाजा है?

अगस्त-सितंबर से शायद. तब लड़कों ने एक बच्ची को फंसाया था. फिर उसपर बाकी सहेलियों से मिलवाने का दबाव बनाया.
लेकिन ऐसा दबाव वो क्यों बना सके?

पहले हंसी-मजाक से शुरुआत हुई. घूमना-फिरना, चॉकलेट देना. फिर उन्होंने कैफे में ले जाकर लड़की की अश्लील फोटो-वीडियो बना ली थी. उसी से ब्लैकमेल करते. मारे डर के लड़की ने वही किया, जो कहा गया. वो बाकी सहेलियों को मिलवाने लगी. फिर वे भी जाल में फंसती चली गईं. सबको छोटा मोबाइल दे रखा था ताकि जब चाहें, बुला सकें. हमारी दो बच्चियों के बीच एक फोन था.

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शहर तो इतना छोटा है, फिर इतने दिन आपको कुछ पता नहीं लगा!

इस बात का जवाब आता है बच्ची की चाची की ओर से, जिनकी खुद की बेटी भी इसमें फंसी थी. वे कहती हैं- पास में स्कूल है. पहले हममें से कोई छोड़ने जाता, कुछ वक्त से खुद आने-जाने लगी थीं. पांच-दस मिनट का रास्ता. दोपहर में लोग-बाग या तो काम पर रहते हैं, या घर के भीतर. तभी पकड़ लेते.

हम-आप उम्र वाले हैं लेकिन दो लड़के पास आ जाएं तो दिल हड़हड़ करता है. आप सोचिए, ये तो छोटी बच्चियां हैं. 13-14 साल की. उन्हें बाइक-कार में चारों तरफ से लड़के घेर लेते. कई बार कार में ले जाते. लड़कियां खौफ में कुछ कह नहीं पाती थीं. पहले वे मोबाइल से बात करते. फिर मिलने बुलाते.

एफआईआर में रेप की बात भी हो रही है!

हां, एक के साथ तो दुर्घटना हुई, दूसरी बची रह गई. वो कैफे नहीं गई थी. लेकिन लड़के उसे डरा-धमका रहे थे. हाथ पर भी ब्लेड से कट लगा दिए. दोनों चुप रहने लगी थीं. हमको लगा कि परीक्षा की तैयारी का टेंशन होगा. बाद में भेद खुला.

आप बच्चियों को बुला सकते हैं? मैं पिताजी की तरफ मुड़ती हूं.

बुला तो देंगे लेकिन आप कुछ रिकॉर्ड नहीं करेंगी. बहुत बीमार रहीं. अब एग्जाम सिर पर है. वो परेशान हो जाएंगी.

बुलाहट पर दो बच्चियां आती हैं. दुबले-पतले कंधे अदृश्य बोझ से झुके हुए. आंखों के नीचे महीनों से चलता आ रहा रतजगा. मुस्कुराने की कोशिश में होंठ खिंचकर रह जाते हैं.

पेपर कब से हैं?

चुप्पी.

तैयारी हो चुकी!

चुप्पी.

हाथ दिखा सकती हैं अपना!

एक बच्ची धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ा देती है. कट के हल्के-हल्के निशान हाथों की लकीरों में एकसार होते हुए.

पिता कहते हैं- एक बार कैफे में गई. वहां जो हुआ, उसके बाद बचने लगी तो बुलाकर हाथ काट दिया. धमकी दी कि अगर बात न मानी तो गला भी काट देंगे और तुम्हारे परिवार को भी खत्म कर देंगे.

बढ़े हाथ वाली बच्ची की आंखें भरभराती हुईं. मैं पलटते हुए पूछती हूं- कौन सा सबजेक्ट लेंगी आगे?

साइंस. पहली बार जवाब आता है.

पिता फिर बीच में आते हुए- इतने दिनों से स्कूल नहीं जा रहीं. अब तो वहां जा भी नहीं सकेंगी. प्रशासन ने कहा है कि दोनों को अजमेर भिजवाने का बंदोबस्त करेंगे. देखते हैं, आगे क्या होता है.

दोनों मांएं वहीं सीढ़ियों पर बैठी हुईं. एक कहती है- रमजान शुरू हो चुका. अगर उस रोज पैसे गायब न होते तो हमें पता ही नहीं लगता और ये रोजे रख रही होतीं.

धर्मांतरण को दबाव की बात पेरेंट्स बार-बार कहते रहे. उनके मुताबिक, पकडे गये पहले लड़के ने खुद कबूला था कि अलग-अलग जातियों की लड़कियों को मुस्लिम बनाने के अलग-अलग रेट तय थे.

काफी देर से चुप बैठी बच्ची खुलती है- वे कार और बाइक पर आते. हम कुछ जानते ही नहीं थे कि वे कौन हैं. क्या करते हैं. हमसे बुरका पहनने को कहते. रोजे रखवाने की बात करते. मना करने पर कहते कि तुम लोग पैसों की चिंता मत करो. ऊंची जाति की हो, हमसे जुड़ी तो 20 लाख वैसे ही मिल जाएंगे.

 

मैं लड़कियों से अकेले में बात कर सकती हूं क्या?

बड़े सीधे मना कर देते हैं. जो पूछना है, यहीं पूछ लीजिए. हर कोई तो सब जान चुका. अब क्या परदा!

निकलते हुए मां कहती हैं- ये पढ़ने-लिखने वाली बच्चियां. उनमें कोई पेंटर था, कोई मैकेनिक तो कोई खलासी. सब के सब शोहदे. इतने से दिन में इनकी भूख-प्यास सब मर गई. शरीर झटक गया. हमने तो अपनी बेटियों को जैसे-तैसे संभाल लिया, एक लड़की की हालत ज्यादा खराब है. मरने-मरने की बात करती है.

उसके घर का पता दे सकेंगी?

जवाब से पहले ही दरवाजे बंद हो चुके.

पता करते-कराते हम उस लड़की के घर पहुंचते हैं, जो इस ट्रैप में सबसे पहले फंसी थीं. घर के बाहर एक बुजुर्ग महिला बैठी हुई. वे कहती हैं – मेरा बेटा ही इसपर बात करेगा. वो अभी ठेकेदारी में गया है.

बच्ची से मिल सकते हैं क्या?

वो घर पर नहीं है.

अच्छा, आपके बेटे कब तक आएंगे.

दोपहर हो जाएगी.

हम नंबर लेकर दोपहर में कॉल करते हैं लेकिन कोई फोन नहीं उठाता. पीड़ित परिवारों से मुलाकात की कड़ी में हम चौथी पीड़िता के घर भी पहुंचते हैं, लेकिन वहां सारे पुरुष आक्रोश रैली में शामिल होने के लिए बाहर गए हुए. महिलाओं को बोलने की मनाही.

यहां से होते हुए हम मार्केट की तरफ जाते हैं, जहां ब्लैकमेल कांड के ज्यादातर आरोपियों के मकान-दुकान हैं.

इसमें एक पूर्व पार्षद हकीम कुरैशी का बार-बार नाम आता रहा. जांच चल रही है कि क्या हकीम इस गिरोह के जरिए कोई बड़ी साजिश रच रहा था. अजमेर पॉक्सो कोर्ट ने उसे 11 मार्च तक जेल भेजने का आदेश दिया है, जबकि 9 आरोपी जेल और 3 नाबालिग बाल सुधार गृह में हैं.

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हकीम के छोटे भाई सद्दी कुरैशी उर्फ भूरा खान बाजार में ही गाय-भैंसों के दूध का व्यापार करते हैं. वे कहते हैं- ‘मेरा भाई तो इस लायक ही नहीं कि वो छोरियों के साथ ऐसा-वैसा कर सके. अगर होता तो 55 साल की उम्र में कुंआरा नहीं बैठा रहता. कब का परिवार बसा चुका होता.’

आपके पास कोई मेडिकल है कि हकीम इस लायक नहीं?

नहीं मेडिकल का क्या है, करवा लेंगे. लेकिन हम तो सच्चाई जानते हैं न. वैसे भी वो घर पर ज्यादा रहता नहीं था. उसकी उठ-बैठ बाजार में ही थी. ठेकेदारी करता था नगरपालिका में. रात में सोने भर को हमारे पास लौटता. किसी ने रंजिश में उसका नाम फंसा दिया होगा.

कैसी रंजिश?

काम की रंजिश में. ठेकेदारी के लिए.

उनका नाम तो धर्मांतरण की साजिश में भी आया है!

वो तो 10 सालों से खुद ही धर्म से अलग हो चुका. कोई लक्षण मुस्लिम वाले नहीं हैं. न मस्जिद जाता है, न कुछ करता है. वो भला कैसे ये सोच सकता है. ये सब राजनैतिक दबाव में हो रहा है, वरना हम तो सीधे-सादे लोग हैं, दूध-घी का व्यापार करने वाले.

पशुओं के तबेले में बैठे छोटे भाई बार-बार इसी बात पर जोर देते रहे कि उनका भाई न तो फिजिकली फिट था, न ही मजहब में उसका कोई यकीन था. शुरुआती जांच में सामने आया है कि पूर्व पार्षद बाकी आरोपितों का सहयोगी था. वह बच्चियों का रास्ता रोक लड़कों के साथ उन पर होटल या कैफे जाने का दबाव बनाता था. अब तफ्तीश में उसके काम-धंधे और संपत्ति का ब्यौरा भी लिया जा रहा है.

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पकड़े गए 14 आरोपियों में एक और आरोपित करीम के भाई इसी बाजार में कार मैकेनिक हैं. पूछने पर वे सीधे दूसरे पक्ष पर हमलावर हो जाते हैं.

जरूरी नहीं कि सारी गलती लड़कों की हो. लड़कियों की भी कुछ न कुछ तो कमी रही होगी. पुलिस उनका भी तो पता करे.

उन्हें पीड़ित बताकर यहां लोग रोज रैली निकाल रहे हैं. हमें देश का गद्दार बता रहे हैं. हम गद्दार नहीं हैं. यहीं पले-बढ़े हैं. अब मान लीजिए कि मेरा भाई निर्दोष निकल गया तो! उसकी तो फोटो वायरल हो चुकी. कहां और कौन काम देगा. प्रशासन क्या उसे सुधार सकेगा?

सुना कि आप लोगों ने अतिक्रमण कर घर बना रखे हैं?

नहीं. पट्टे का मकान है. हमारे पास सब कागज हैं तब भी दो-दो बार नोटिस आ चुका. जान-बूझकर हमें परेशान कर रहे हैं. उसका नाम भी बाकी आरोपियों में से एक ने लिया. फ्रैंडशिप में मारा गया मेरा भाई.

लेकिन अभी तो आप कह रहे थे कि लड़कियों ने गड़बड़ी की होगी!

एकदम से टोन बदलते हुए- ऐसा है कि अगर कोई दोषी है तो उसे सजा मिले लेकिन हमारा भाई गुनहगार नहीं. लड़कियों ने जो किया होगा, वो अपने को थोड़ी बताएंगी. पुलिस जानती होगी सब.

बिजयनगर रेप-ब्लैकमेल कांड में लगातार चिल-आउट कैफे का नाम आता रहा.

चाय-कॉफी और स्नैक्स की इस दुकान में ग्राउंड फ्लोर पर तो आम लोग आते, लेकिन ऊपर के दो फ्लोर्स पर कथित तौर पर केबिननुमा कमरे बने हुए थे. परदों की ओट वाले इन्हीं केबिन्स में बच्चियों से रेप हुआ और वीडियो बनाई गई.

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कैफे सील  है. उसके आसपास फैशन और गारमेंट्स की दुकानें खुली तो हैं लेकिन चुप्पी वहां भी पसरी हुई.

क्या होता था यहां, आप लोगों को कभी कुछ अलग नहीं लगा! मैं पड़ोसियों को टटोलती हूं. नहीं. लड़के-लड़कियां तो खाने-पीने आते ही हैं. हमने कभी देखा नहीं कि ऊपर-नीचे अलग सिस्टम है. सुना है कि कैफे चलाने वाला 200 रुपए में केबिन भाड़े पर देता था. इतने से पैसों के लिए ईमान से चला गया.

इस शॉप को चलाने वाला श्रवण जाट अब हिरासत में है. रेंट एग्रीमेंट निकालकर हम उसके गांव जोरावरपुर पहुंचते हैं.

घर की निचली मंजिल पर ताला लगा हुआ. ऊपर से एक महिला झांकती है. आप नीचे आ सकेंगी क्या, बात करनी है. नहीं. तुम जाओ. घर में कोई आदमी हो तो उसे बुला दीजिए. हम बोल ही रहे थे कि महिला अंदर गायब हो जाती है. गांव में भीतर जाने पर कुछ युवक मिलते हैं जो आखिरकार आरोपित के बड़े भाई को बुलाने पर राजी होते हैं.

खेतों में काम करता भाई बरदाराम पांच मिनट में सामने. वे कहते हैं- श्रवण का चाल-चलन सही था. शहर में कैफे चला रहा था लेकिन रूम भी किराए पर लगाता है, ये हमें पता नहीं था. उसे भी खुद पता नहीं होगा कि ऊपर क्या चल रहा है. वो तो सिर्फ ज्यादा देर बैठने के एक्स्ट्रा पैसे लेता था.

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आपकी श्रवण से मुलाकात हुई?

नहीं. ये कांड हुआ, उसके बाद बिजयनगर थाने में बुलाहट हुई थी हमारी. जाकर लौट आए. काश्तकार लोग हैं हम. कमाएंगे तभी खाएंगे.
भाई के साथ ही कुछ और युवक भी बैठे हुए हैं. उनमें से एक कहता है- श्रवण को तो छुटपन से देखा है. वैसा लड़कियों की संगत वाला कुछ था ही नहीं. गांव आता था तो नजरें नहीं डालता था. किसी की भी लड़की घूमती दिखे तो टोक अलग देता था. अब शहर में क्या पता, क्या हुआ. 200 रुपए के चक्कर में इतना कुछ हो गया.

जोरावरपुर में कोई भी महिला इस मुद्दे पर बात नहीं करती है, जैसे सबको चुप रहने के निर्देश मिले हों. भीड़ हमें गांव से बाहर तक छोड़ने आती है, उन्हीं में से एक कहता है – हमारे गांव तो आ गईं. वहां लड़कियों का भी तो कोई रिकॉर्ड देखे!

सुनते हुए आंखों के आगे बमुश्किल 14 साल की दुबली-पतली बच्ची का चेहरा तिर जाता है, जिसके हाथों में ब्लेड से कटने के निशान थे, और जो अब सारी जिंदगी भय में जिएगी.

बिजयनगर थाने के पुलिस उपाधीक्षक सज्जन सिंह  मामला देख रहे हैं. वे कहते हैं- हमारे पास तीन प्रकरणों में FIR हुई थी, दो रेप और एक छेड़छाड़, स्टॉक करना. इनमें 13 (अब 14) गिरफ्तारियां हो चुकीं. इसमें तीन माइनर लड़के भी थे. अब कुछ पॉइंट्स पर जांच की जा रही है.

ये आंकड़ा सोमवार का है, जबकि हाल में एक और आरोपित पकड़ाई में आ चुका.

क्या रेप की पुष्टि हो चुकी?

मेडिकल हो चुका. बाकी पुलिस की जांच में भी ऐसा लगता तो है.

इसमें दबाव बनाकर धर्मांतरण जैसी बातें भी कही जा रही हैं?

हां. इस एंगल से भी जांच हो रही है. कोशिश है कि जितनी जल्दी हो सके, चालान पेश कर दें. रही कैफे में अनैतिक गतिविधियों की बात, तो उस पर हम टीम बनाकर अभियान चलाने को हैं. ये बिजयनगर ही नहीं, पूरे स्टेट में हो सकता है.

बच्चियों की सुरक्षा के लिए क्या कोई बंदोबस्त है?

हां. अलग से तो नहीं लेकिन पुलिस लगातार गश्त लगा रही है. काउंसलिंग हो रही है. एग्जाम की तैयारी के लिए भी स्कूल प्रबंधन से बात करके खास तैयारी हो चुकी.

पहली नजर में अजमेर रेप ब्लैकमेल कांड की तरह दिखती घटना को लेकर राजनैतिक गलियारों में भी घमासान है. मंत्रियों से लेकर अधिकारी भी लगातार इस छोटे-से कस्बे में आ रहे हैं.

इसी कड़ी में हमारी कैबिनेट मंत्री अविनाश गहलोत से मुलाकात हुई. 

वे दावा करते हैं कि षड्यंत्र के तहत हिंदू धर्म की लड़कियों को एक समुदाय विशेष ने फंसाया ताकि धर्मांतरण कर सके. गहलोत कहते हैं कि जल्द ही राजस्थान विधानसभा में धर्मांतरण विरोधी बिल पर बहस होगी, जिसके बाद जबर्दस्ती या लालच देकर धर्म बदलवाने पर कार्रवाई हो सकेगी.

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